बीस बरस पहले उतराखण्ड में ‘‘सेब’’ की फसल की खूब आमद थी, पर अब यहां लोग सेब की फसल यानि ‘‘सेब के बाग’’ को लगाने के लिए कई बार सोचते हैं। जी हां! ऐसा ही कुछ समय से प्रकृति में हो रहा था जो इस बार नहीं हुआ। आमतौर पर सेब की फसल का उत्पादन बर्फबारी पर ही टिका रहता है, सो पिछले 20 बरस से बर्फबारी कम ही हो रही थी। इस कारण लोग सेब की फसल से पलायन कर रहे हैं। कई काश्तकारो का कहना है कि सेब के पौध को फलोत्पादन तक बच्चे के जैसे पालना पड़ता है, फिर वह पांच साल के अन्तराल में फलोत्पादन ना करे तो उनकी मेहनत फिजूल ही जाती है। मगर इस बार की बर्फबारी से उनके चेहरे खिल उठे हैं कि उनके सेब के बाग इस साल अच्छे फलो का उत्पादन करेंगे। क्योंकि दिसम्बर में ही बर्फबारी जो हो गई और जनवरी के आरम्भ में बर्फ ने पहाड़ो पर सफेद चादर बिछा दी है।
ज्ञात हो कि हिमांचल से लगी यमुनाघाटी में लगभग 50 फीसदी लोगो की आजीविका सेब के बागानो पर ही निर्भर है। हिमांचल से आने वाली पाबर नदी, टौंस व यमुना नदी की घाटियों की जनसंख्या को जोड़ देंगे तो लगभग 10 लाख लोगो की आजीविका का स्रोत यहां ‘‘सेब’’ ही है। 20 साल से वे लोग अच्छी फसल सेब के बागानो से प्राप्त नहीं कर पाये। इस वर्ष के अन्त में यानि दिसम्बर माह में हुई अच्छी बर्फबारी से उद्यान मालिको के चेहरे खिल उठे है। वे विश्वास के साथ कह रहे हैं कि इस वर्ष सेब की अच्छी पैदावार होने वाली है। कह सकते हैं कि सेब और बर्फ का चोली-दामन का साथ है। बताते चलें कि उतराखण्ड व हिमांचल में सेब के अधिकांश बागान 1500 मी. से 2500 मी. तक की ऊंचाई पर ही स्थित है। इस दौरान कुदरत ने भी इस स्थिती पर बर्फबारी करके उद्यान से जुड़े लोगो के चेहरो की रंगत बढा दी है।
उल्लेखनीय हो कि उत्तराखंड मौसम विभाग ने भी स्पष्ट कर दिया कि इस दौरान उतराखण्ड की 2500 मीटर की ऊंचाई वाली पहाड़ियों ने एक से सात फीट तक बर्फ की चादर ओड़ दी है। इसलिए देहरादून, चकराता और मसूरी एवं धनौल्टी में भी हुई बर्फबारी को देखने पर्यटको की भीड़ जमा होने लगी है। राज्य के ऊपरी क्षेत्रों समेत बदरीनाथ, केदारनाथ धाम, हेमकुंड, गंगोत्री, यमुनोत्री, गोमुख और नेलांग घाटी में भी अच्छी बर्फबारी से भारी ठंड बढ़ गई है। देहरादून जिले के चकराता क्षेत्र के लोखंडी-लोहारी में मौसम का पहला हिमपात होने से लोगों के चेहरे खिल उठे हैं। ग्रामीणों ने सुबह से जारी बर्फबारी का मजा लिया। इसके अलावा मुंडाली, खंडबा, देववन, जाडी व मिडांल समेत आसपास क्षेत्र में बर्फबारी से क्षेत्र में ठंडक बढ़ गई है। उधर जम्मू-कश्मीर में भी एलओसी से सटे केरन, करनाह, माछिल, तंगधार और गुरेज में बर्फबारी के चलते हाईवे 72 घण्टे तक बंद रहा। यहां तीन दिनों से लगातार बर्फबारी हुई है। जहां लगभग 200 से ज्यादा पर्यटक बर्फ में फंस गये थे जिन्हे बाद में रेस्क्यू किया गया।
समय से हुई बर्फबारी
रुद्रप्रयाग जनपद के उच्च हिमालयी क्षेत्रों समेत अन्य ऊंचाई वाले इलाकों में जमकर बर्फबारी हो हुई। केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ धाम में जमकर बर्फबारी हुई तो वहीं ऊखीमठ, चिरबटिया, हरियाली कांठा, राड़ीटाॅप समेत कई ऊंचाई वाली पहाड़ियों ने भी बर्फ की चादर ओढ़ ली है। मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से विख्यात चोपता-दुगलबिट्टा ने भी पर्यटकों के स्वागत के लिए बर्फ की चादर बिछा दी है। राज्य के अधिकांश स्थानों पर अधिकतम तापमान में गिरावट दर्ज की गयी। मौसम विभाग के निदेशक विक्रम सिंह ने बताया कि केदानाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री सहित 2500 मीटर और उससे अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर अभी एक फुट की बर्फबारी हुई है। मौसम की फिर से बर्फबारी करके निचले इलाकों तक पंहुचने की उम्मीद बन रही है। उन्होंने बताया कि आगे भी मौसम समय समय पर प्रकृति के अनुकूल बना रहेगा। 2500मी॰ के निचले हिस्सों जैसे हिमनगरी के पास कालामुनी और बेटुलीधार में तीन से 18 इंच बर्फबार हुई है। इसी तरह मुनस्यारी क्षेत्र से लगे इलाकों में जमकर बर्फबारी हुई। थल-मुनस्यारी हाईवे पर कालामुनी और बेटुलीधार की पहाड़ियां तीन 18इंच मोटी बर्फ की चादर से ढक गईं। खलिया में चार से 12इंच बर्फ गिरी है। अतएव मुनस्यारी में अधिकतम तापमान 8 डिग्री सेल्सियस तो न्यूनतम तापमान माइनस एक डिग्री पहुंच गया है। जो आगामी दो माह तक बना रहेगा। बर्फबारी देख पर्यटक तड़के अपने होटलों को छोड़ कालामुनि और बेटुलीधार जा पहुंचे। पर्यटकों ने बर्फबारी का जमकर आनंद उठाया। कालामुनि में पर्यटक बर्फ के गोले बनाकर खेलते नजर आए। बंगाल से आये मानस चटर्जी अपने परिवार के साथ मुनस्यारी पहुंचे हैं। वह खुद को किस्मत का धनी मानते हैं। उनका कहना है कि मुनस्यारी स्वर्ग से कम नहीं है। आज पहली बार उन्होंने सपरिवार बर्फबारी देखी है। उन्होंने परिवार के साथ बर्फबारी का लुत्फ लिया। हल्द्वानी से पहुंचे दीपक भी बर्फ को देखकर काफी खुश नजर आए। मुनस्यारी में हुई बर्फबारी से स्थानीय व्यापारी और होटल व्यावसायी भी गदगद हैं। उनका कहना है कि बर्फबारी शुरू होने के बाद मुनस्यारी में पर्यटक अधिक संख्या में आएंगे। इससे उनका व्यवसाय भी बढ़ेगा।
बर्फबारी का तात्पर्य
उतरकाशी की पूरी यमुनाघाटी और हर्षिल क्षेत्र तथा टिहरी की काणाताल, धनोल्टी आदि क्षेत्रो में ‘‘सेब बागान मालिक’’ इस दौरान की बर्फबारी से फूले नहीं समा रहे है। उद्यानपति अमरसिंह कफोला, उद्यान पण्डित कुन्दन सिंह पंवार, पं॰ शारदा, भरत सिंह राणा, ठाकुर महावीरचन्द आदि सैकड़ो काश्तकारो का कहना है कि पिछले 30 सालो में ऐसा नहीं कि बर्फबारी ना हुई हो, मगर पिछले कई वर्षो से बर्फबारी बेमौसमी हुई है। इस साल तो हिमपात ने काश्तकारो के अनुसार ही आगमन किया है। वे कहते हैं कि समय पर हिमपात होने से उनके सेब के बागान अब समय पर फूल देंगे, समय पर फल देंगे, फलोपदन भी अच्छा होगा और समय पर यह नगदी फल मंण्डी पंहुचेगा। उन्होने कहा कि जब जब समय पर हिमपात हुआ है तब तब सेब की अच्छी पैदावार हुई है। वे आगे बताते हैं कि समय पर हिमपात के कारण ओलावृष्टी भी ऐसे समय पर होगी जब फसल को काश्तकार समेट देंगे। वर्ना गलत समय पर हिमपात होने से फलो व फूलों को सर्वाधिक खतरा फिर ओलावृष्टी से होता है। यदि फलोत्पादन अच्छा भी होगा तो ओलावृष्टी से सौ फीसदी नुकसान हो जाता है। वे कहते हैं कि मौसम का चक्र भी बर्फबारी पर ही निर्भर रहता है।
उद्यानो के जानकारो का मानना है कि बर्फबारी का संबध सीधा फलों आदि की उपज पर होता है। विशेषकर सेब की फसल बावत। सेब की पौध को बारहमास पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए भी सेब का उत्पादन करना भी उतना ही कठीन है। क्योंकि सेब की फसल यानि उतराखण्ड, हिमांचल, व जम्मू कश्मीर में ऊंचाई वाले क्षोत्रों में ही होती है। बर्फ भी इन्ही जगहो पर गिरती है। मगर इस मध्य हिमालय में ऊंचाई वाले स्थान पानी की आवश्यकता हेतु बर्फ व बरसात पर ही निर्भर रहते है। इसलिए यदि समय पर इन स्थानो पर हिमपात हो जाता है तो यहां यह हिमपात पेड़ो के लिए संजीवनी ही साबित होगी। और सेब के लिए तो समय का हिमपात मौसम का सन्तुलन तक बनाता है।
कुलमिलाकर समय पर हुए हिमपात ने हिमालय रीजन के लोगो के चेहरों पर रौनक खड़ी कर दी है। उद्याानो में फलोत्पादन की मात्रा बढेगी तो वहीं इस हिमालय में पर्यटको की आमाद भी बढेगी। फलस्वरूप इसके एक तरफ लोगो को रोजगार उपलब्ध होगा तो वहीं पर्यावरण का सन्तुलन भी बारहमास बना रहेगा।
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