समुद्र किनारे शिक्षा

अक्टूबर में चेन्नई समुद्रतट पर पहुंचे 24,300 टन वजनी सैलानी पोत से उतरे लोग दक्षिण भारत के सुंदर समुद्रतट को निरखने आए कैमरे लादे पर्यटक नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन के अनुभवों को पढ़ने आए 520 अमेरिकी छात्र और उनके अध्यापक थे। एक सेमेस्टर समुद्र पर पढ़ने वाले इन छात्रों को संसार को देखने की एक व्यापक दृष्टि के साथ ही शैक्षणिक क्रेडिट भी मिलेंगे। पोत पर और उससे परे लगने वाली इनकी कक्षाएं अपने आप में निराली हैं।

एक कक्षा चेन्नई की एक झोंपड़-पट्टी में एक बड़े, खुले, गंदे नाले के पास बने समुदाय केंद्र में लगी। पांच अमेरिकी छात्र और स्थानीय रोटरी क्लब की सहयोगी संस्था रोटरैक्ट से जुड़े कई भारतीय छात्र यह जानने की प्रक्रिया में थे कि लोगों के जीवन में टिकाऊ बदलाव लाने के लिए क्या करना होगा।साउथ केरोलाइना में क्लिंटन यूनिवर्सिटी के प्रेसबाइटेरियन कॉलेज की छात्रा कैरोलीन लैंगफ़र्ड ने कहा, ‘‘100 डॉलर से हम वाटर प्योरिफायर और बच्चों के सोने के लिए 50 चटाइयां ले सकते हैं।’’

ये 100 डॉलर अमेरिकी छात्रों की जेब से आते हैं। चेन्नई के अपने सहयोगी छात्रों की सलाह से उन्होंने तय किया कि कौन से काम तुरंत किए जाने जरूरी हैं और कौन से बाद में किए जा सकते हैं। उनके फैसले से तय होगा कि समुदाय केंद्र में सोने वाले झोपड़पट्टी के 50 बच्चों को सोने के लिए चटाइयां और आसपास के लोगों को पीने का साफ पानी मिलेगा या वहां पर काम सीख रही औरतों को गर्मी और घुटन से बच कर आराम से काम करने और सीख पाने में मदद के लिए पंखे।

रोटेरियन्स के बनवाए इस समुदाय केंद्र में स्त्रियां ब्यूटीशियन, दर्जी और कंप्यूटर मरमम्त का काम सीखती हैं। इस क्षेत्र में पानी की गुणवत्ता ठीकठाक है लेकिन हर महीने कई बच्चे बीमार पड़ते हैं। 4 से 5 बरस तक के करीब 50 बच्चे हर रात यहां ठंडे फर्श पर सोते हैं। कंप्यूटर रूम और ब्यूटी पार्लर में पंखे नहीं हैं और गर्मियों में तापमान 38 डिग्री पहुंचने पर वहां दम घुटता है। झोंपड़पट्टी के वासी तीनों समस्याओं का समाधान चाहते हैं लेकिन 100 डॉलर में इतना सब नहीं हो पाएगा।

अगले 10 मिनट छात्र हर मांग के लाभ और हानि पर चर्चा करते हैं और उनके प्रोफेसर, बनार्ड स्ट्रीनेकी देखते हैं कि वे उनकी कक्षा के पाठों को स्थायी समाधानों में कैसे बदलते हैं।

चेन्नई की छात्रा एल. जयश्री बात काटते हुए कहती हैं: ‘‘अगर बच्च्चे साफ पानी पीते हैं तो वे बीमार नहीं होंगे। उनका स्वास्थ्य सुधर जाएगा। और अगर वे ठंडी जमीन की जगह चटाइयों पर सोते हैं तो वे अच्छे से आराम भी कर सकते हैं। दो मामलों में उन्नति होगी। पंखों का इंतज़ार किया जा सकता है। हम उसकी दूसरी परियोजना बना सकते हैं।

सभी के सिर सहमति में हिलते हैं। एक और ‘‘100 डॉलर समाधान’’ मिल गया है। सेमेस्टर एट सी कार्यक्रम की रचना स्ट्रेनेकी ने 2005 में प्रॉस्पेक्ट, गॉशेन के रोटरी क्लब के साथ मिलकर की थी। इसका इस्तेमाल वह अपने छात्रों को एम.वी. एक्सप्लोरर की कक्षाओं में पढ़ाए पाठों को व्यवहार में उतारना सिखाने के लिए करते हैं। अक्टूबर में चेन्नई आना सेमेस्टर एट सी कार्यक्रम की 100 वीं समुद्रयात्रा का हिस्सा था। भारत की धरती पर उतरने के दो दिन के अन्दर ही शहर के सबसे गरीब लोगों की मदद के लिए 100 डॉलर के उपयोग के बारे में फैसला लेने की प्रक्रिया में कैरोलिन शामिल थीं। अन्य छात्र दीवारों की पुताई, वृक्षारोपण या स्थानीय लेखकों, विचारकों, आन्दोलनकारियों और राजनीतिक अगुआओं से संवाद की परियोजना से जुड़ते हैं।

1963 में शुरू हुआ सेमेस्टर एट सी कार्यक्रम छात्रों को तेजी से वैश्वीकृत हो रहे संसार में बराबरी कर पाने के कौशल देना है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों के छात्र इस पाठ्यक्रम में नेतृत्व या वैश्विक सबन्धों से जुड़े पाठ्यक्रम पढ़ते हैं। कक्षा में होने वाली पढ़ाई के अलावा फ़ील्ड विज़िट्स और निजी अध्ययन पर भी जोर रहता है। बहुत से छात्र लोगों की जीवन को बेहतर ढंग से समझ पाने के लिए ग्रामीण परिवारों के साथ दी-तीन दिन बिताते हैं।

जहाज साल में तीन बार आठ से बारह देशों की यात्रा करता है। उस पर 500 से 700 छात्र और 30 अध्यापक होते हैं जो लगभग सभी अमेरिका से ही होते हैं। सीखने के साथ-साथ मौजमस्ती पर जोर दिया जाता है लेकिन पार्टियां कम ही होती हैं और शराब, तबाकू और मादक पदार्थों के उपयोग की सख़्त मनाही हैं। सच तो यह है कि असल में, एम.वी. एक्सप्लोरर के कैसीनो और बार में कक्षाएं लगती हैं। सबसे सस्ते कमरों में रहते हुए शिक्षण और जलयात्रा की कीमत करीब 21,000 डॉलर और सुइट्स के लिए यह करीब 30,000 डॉलर है। 40 प्रतिशत छात्र आर्थिक सहायता प्राप्त करते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ वर्जिनिया इस पाठ्यक्रम के लिए क्रेडिट्स देती है जिसे 280 यूनिवर्सिटीज़ में मान्यता मिलती है।

शैक्षिक डीन, रॉर्बट चैपल का कहना है, ‘‘हम गंभीर रूप से परिवर्तनशील विदेश में पढ़ाई के अनुभव प्रदान करने के लिए प्रतिबद्घ हैं जो वैश्विक आदान-प्रदान और जागरूकता पर जोर देते हैं। हम ऐसे विश्व नेताओं का विकास करेंगे जिनके पास सभी लोगों और सभी संस्कृतियों की अधिक जानकारी बढ़ाने के लिए जरूरी ज्ञान और नज़रिया हो। इस तरह हम विश्व पर एक सकारात्मक प्रभाव बनाते रहेंगे।’’

100 डॉलर समाधान वाला टीचिंग प्रोग्राम सेमेस्टर एट सी पाठ्यक्रम की अनूठी विशेषता है। हाल के महीनों में, छात्रों ने तमिलनाडु के एक गांव में बकरियां, अकरा, घाना में घुटनभरी कक्षाओं के लिए पंखे, हांगकांग में बूढ़े नागरिकों के लिए अंग्रेजी भाषा की किताबें और वियतनाम में सैगौन के एक अनाथालय के लिए गर्म पानी करने वाला हीटर खरीदने के लिए पैसा दिया है जिससे बच्चे अपने जीवन में पहली बार गर्म पानी से नहा सके। वैश्विक विषयों पर छात्रों के लिए शिक्षा सबन्धी कार्यक्रम आयोजित करने वाली गैर सरकारी संस्था ग्लोबल नोमड्स ग्रुप के सदस्य कार्यक्रम को दर्जं करने और यह देखने के लिए कि अब तक क्या कार्य उपलब्धि रही है, जहाज पर यात्रा कर रहे हैं।स्ट्रेनिकी कहते हैं, ‘‘ये सभी परियोजनाएं टिकाऊ हैं। समस्याओं को हल करने के लिए कई लाख डॉलर नहीं बल्कि एक नेक दिल और छोटी सी राशि चाहिए होती है। लोग हमारे काम की सराहना कर रहे हैं और हम अमेरिका की ओर से बहुत सद्भावना फैला रहे हैं।’’

छात्रों और अध्यापकों के पांच दिन ऐसी ही 40 फ़ील्ड कार्य में बीतते हैं जिनमें से कुछ पूरी तरह पर्यटन सबन्धी हैं।

‘‘20 साल पहले भारत के बारे में बहुत ही कम जागरूकता थी’’ पिछले दो दशकों से छात्रों के साल में दो बार होने वाले भ्रमण को आयोजित करती आ रही हंसप्रिया श्रीनिवासन कहती हैं, ‘‘यहां तक कि प्राध्यापक वर्ग भी कहता था, ‘तुम अच्छी अंग्रेजी बोलती हो,’’ उन्हें भारत के बारे में बहुत कम पता था। भारत के अब इतनी प्रमुखता पाने के साथ उनके विचार बदल गए हैं। भारतीय छात्र अपने अमेरिकी साथियों के साथ संवाद करते हैं। वे खरीदारी के लिए साथ जाते हैं, साथ भोजन करते हैं। उनके बीच लंबे समय तक चलने वाली दोस्तियां पनपती हैं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। अमेरिकी लोगों के लिए यह एक वैश्विक दृष्टि बिंदु प्रदान करता है।’’

अध्यापक कहते हैं कि अमेरिकी छात्र अक्सर केवल अपने शिक्षा क्षेत्र पर केंद्रित होते हैं इसलिए पतझड़ या बसन्त में 100 दिनों में कई देशों की यात्रा उनके परिप्रेक्ष्य को विस्तार देती है। गर्मियों की जलयात्रा अक्सर 65 से 70 दिन तक चलती है और एक विशेष क्षेत्र तक ही सीमित होती है। मौजूदा समुद्रयात्रा में छात्र स्पेन, घाना, मोरक्को, साउथ अफ़्रीका, मॉरीशस, भारत, वियतनाम, हांगकांग, चीन और जापान देखेंगे।

अब तक, 1500 संस्थानों से 50,000 से अधिक छात्रों ने सेमेस्टर एट सी कार्यक्रम का हिस्सा बनकर अध्ययन किया है और 60 देशों की यात्रा की है। उनमें से कुछ लोग अध्यापक बनकर लौटे हैं। विद्यार्थियों के डीन बायरन हाऊलेट इनमें से एक हैं, ‘‘मैं 21 बरस पहले सेमेस्टर एट सी कार्यक्रम का एक छात्र था। मैं भारत आया तो मुझे पता नहीं था कि यहां मेरा अनुभव कैसा रहेगा। लेकिन लोगों ने इतना उत्साह दिखाया और हमें यूं अपनाया कि मुझे भारत से प्यार हो गया।’’ यह हाऊलेट की भारत की तीसरी समुद्रयात्रा है। चेन्नई में हाउलेट असमंजस में पड़े छात्रों को ऐसे समारोह में जाने के लिए प्रेरित करते दिखे जिसका उद्देश्य उन्हें भारतीय संस्कृति से परिचित करवाना था। वह उनको बता रहे थे, ‘‘यह ऐसा कार्यक्रम है जिसे आपको नहीं छोड़ना चाहिए।

ज्यादातर कार्यक्रमों के पीछे उद्देश्य यह है कि अमेरिकी किसी समुदाय की गतिविधि में रुचि लें और लोगों के लिए कुछ योगदान दें। चेन्नई में गरीब बच्चों के विद्यालय के एक ऐसे भ्रमण के आयोजक हेनरी त्यागराज कहते हैं, ‘‘पिछले अनुभव से मैंने जाना है कि अमेरिकी छात्र काम करना और योगदान के रूप में अपना श्रम देना चाहते हैं। इसलिए हम उसे बढ़ावा देते हैं।’’

चेन्नई पहुंचने के कुछ ही घंटे के अन्दर वह दो दर्जन छात्रों को एआईडल्यूसी प्राइमरी स्कूल में ले जाते है। कुछ छात्र कमरे की दीवारों को साफ करते हैं और उसे गेरुए पीले रंग से पेंट कर देते हैं। बाकी ब्लैकबोर्डों को ठीक करते हैं और पौधे रोपते हैं।

जोआना ग्रीनी ने कहा, ‘‘यह मजेदार था। मैं इस स्कूल को लेकर बहुत उत्साहित हूं। बच्चों द्वारा किया गया स्वागत आश्चर्यचकित कर देने वाला था। उन्होंने पूरा प्यार और दुलार दिखाया। सब लोग उनकी तस्वीरें लेना चाहते थे। और बच्चे अपनी तस्वीरें देखने के लिए उत्सुक थे।’’

वेस्टर्न केनटकी यूनिवर्सिटी से उसका साथी छात्र जोई को कहता है, ‘‘मैं उनके उत्साह को देखकर हैरान रह गया। वहां पर बहुत सारे बच्चे थे। यह बहुत सुंदर था और मैं खुश हूं कि हम उनके जीवन को छू पाए।’’

आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउडेशन द्वारा आयोजित कुछ कार्यक्रम लोगों को उनके मनोभावों के संपर्क में लाने का प्रयास करते हैं। 30 छात्रों को समुद्र किनारे के सांस्कृतिक केन्द्र में योग और ध्यान के सत्र में ले जाती निहारिका पेरी कहती हैं, ‘‘अपनी समस्याओं की हंसी में उड़ा दो। अपनी चिंताओं को हंसी में उड़ा दो।’’ योग सत्र ने छात्रों को थका दिया है और वे 20 मिनट के आराम पहुंचाने वाले कार्यक्रम के लिए बैठ जाते हैं।

बोका रैटन की लॉरिडा एंटलांटिक यूनिवर्सिटी से जेरेमी स्लोन कहते हैं, ‘‘मैंने सोचा था कि ये सत्र योग और ध्यान के बारे में ज्यादा होगा, लेकिन यह निजी विकास जैसा था। उन चीज़ों की तह में जाना, जिनके बारे में हमने पहले कभी नहीं सोचा, काफी दिलचस्प था। मुझे अपने बारे में कई चीज़ें पता लगी।’’400 से अधिक छात्रों ने ताजमहल जाने, वाराणसी के घाटों पर नहाने और नई दिल्ली के स्मारकों की सैर करने का मन बनाया तो उनके कुछ मठ्ठीभर साथियों ने ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण करना पसन्द किया।

14 छात्रों ने तमिलनाडु में इरोड शहर के लिए रेल पकड़ी। 9 छात्रों के दूसरे समूह ने भारत के दक्षिणी छोर से नागरकोइल तक की लंबी यात्रा करने का साहस किया। उन्होंने बहुत से नए काम किए: खेत के कुएं में नहाना, नारियल के पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करना, रबड़ के पेड़ से रस निकालना, भोर में स्त्रियों की जमीन पर चावल के चूरे से आकृतियां बनाते देखना या किसानों को चावल के खेतों में और मजदूरों को इलायची की फली तोड़ते देखना। हिन्दू मन्दिरों और आश्रमों की यात्रा धर्म की एक व्यावहारिक जानकारी प्रदान करती है।

मेडीसन हेनरी कहते हैं, ‘‘असली भारत को देखना एक बहुत ही महान सांस्कृतिक अनुभव था। इसने स्थानीय लोगों के साथ विचारों को आदान-प्रदान और शहर और ग्रामीण भारत में तुलना और अंतर कर पाने का अवसर उपलब्ध करवाया।’’

नागरकोइल में मेज़बान पद्मनाभन कुमारस्वामी और उनकी पत्नी लता को अपने घर से छात्रों की विदाई को संभालना बड़ा कठिन लगा, ‘‘हमने उनके साथ बहुत ही अच्छा समय बिताया। अब घर बहुत ही खाली और सूना है।’’

सेमेस्टर एट सी की 100वीं जलयात्रा पर सेमेस्टर के कार्यकारी अध्यक्ष, निकोलस इयामैरीनो कहते हैं, ‘‘अगर छात्र इस भाव के साथ वापस आते हैं कि हमारा यह छोटा सा वैश्विक गांव है, अगर वे संसार में और उसके लिए ज्यादा करने की इच्छा से वापस आते हैं तभी मैं जानूंगा कि मैंने अपना काम कर दिया।’’

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