समृद्धि से उपजा विनाश

गुजरात का विकास मॉडल आजकल चर्चा का विषय है, लेकिन विकास के इस मॉडल से वहां का पर्यावरण भयानक तौर पर प्रदूषित हो गया है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आर्थिक संपन्नता की दौड़ में पिछले कई वर्षों से गुजरात में कई प्रकार के रसायनों का जहर फैल चुका है। वर्ष 1989 में तत्कालीन केंद्रीय पेट्रेलियम व रसायन मंत्री ब्रह्मदत्त ने स्वीकार किया था कि गुजरात में प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर है। उस समय अंकलेश्वर में लगभग 200 कारखानों में 50 हजार प्रकार के प्रतिबंधित रसायनों का उपयोग होता पाया गया था।

एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 29 प्रतिशत औद्योगिक कचरे के साथ गुजरात सबसे ज्यादा प्रदूषित राज्य है। इसके बाद महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश हैं। गुजरात में सर्वाधिक प्रदूषण का कारक गोल्डन कॉरीडोर बताया गया है, जहां स्थित कारखानों से प्रति वर्ष लगभग 60 लाख टन कचरा पैदा होता है। यूरोप व अमेरिका से बाहर किए गए कई रासायनिक कारखाने यहां कार्यरत हैं। इन क्षेत्रों में प्रदूषित पानी की सिंचाई से पैदा की गई सब्जियों में भी भारी धातुओं की उपस्थिति पाई गई है।राजकोट के चेतपुरा में साड़ियां रंगने के कारखानों के कारण कई कुओं का पानी इतना रंगीन हो गया था कि लोग मजाक में इसे कोकाकोला कहते थे। 1992-93 में भी केंद्र सरकार ने देश में जिन 19 प्रदूषित स्थानों की पहचान की थी उनमें गुजरात का वापी काफी ऊंचे स्थान पर था। सरकारी जानकारी के अनुसार राज्य में लगभग 9000 उद्योग हैं, जो जल एवं वायु प्रदूषण फैलाते हैं। इनमें लगभम 2500 रासायनिक उद्योग हैं। मई 1995 में हाईकोर्ट ने अहमदाबाद, वापी, अंकलेश्वर में फैले 1500 उद्योगों से पैदा हुए प्रदूषण पर सुनवाई करते हुए, कुछ को समय सीमा में प्रदूषण नियंत्रण एवं कुछ को बंद करने के आदेश दिए थे।

रंगाई उद्योगों में उपयोगी नेप्थाल-डाय-सल्फोनिक एसिड व मेथाबिलिक एसिड के निर्माण के खतरनाक कारखाने भी यहां कार्यरत पाए गए थे। भारी प्रदूषण के कारण इन एसिड्स का निर्माण विदेशों में प्रतिबंधित है।

उत्तरी गुजरात के छत्रल से वापी तक फैला क्षेत्र प्रदूषण की दृष्टि से काफी खतरनाक माना गया है। इसी क्षेत्र में आने वाले अन्य शहर अहमदाबाद, आणंद, बड़ोदरा, अंकलेश्वर, हजीरा, सूरटा एवं बलसाड़ है जहां बड़े-बड़े औद्योगिक कारखानों के कारण काफी प्रदूषण फैल रहा है। अहमदाबाद के नरोड़ा में स्थित मोनोक्लोरो एसिटिक अम्ल का कारखाना भी खतरनाक की श्रेणी में है।

सर्वाधिक गंभीर स्थिति मध्य व दक्षिण गुजरात की है जहां नंदेसरी औद्योगिक क्षेत्र में सर्वाधिक (लगभग 300) रासायनिक उद्योग कार्यरत हैं। पूरे राज्य में लगभग 30 ऐसे कारखाने हैं जो खतरनाक रसायनों का निर्माण करते हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने वर्ष 2007 से 2009 तक अध्ययन कर जारी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि देश के 88 औद्योगिक क्षेत्रों में से 75 (85 प्रतिशत) भारी प्रदूषण युक्त हैं। भारी प्रदूषण वाले सर्वाधिक 10 क्षेत्रों में गुजरात के अंकलेश्वर व वापी, प्रथम व दूसरे स्थान पर थे। इन औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण के ठोस प्रयास न होने के कारण यहां का पानी हवा एवं भूमि का प्रदूषण इंसानी बसाहट के लिए अनुपयुक्त बताया गया था।

इसी प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा हाल ही में (वर्ष 2013) जारी एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 29 प्रतिशत औद्योगिक कचरे के साथ गुजरात सबसे ज्यादा प्रदूषित राज्य है। इसके बाद महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश हैं। गुजरात में सर्वाधिक प्रदूषण का कारक गोल्डन कॉरीडोर बताया गया है, जहां स्थित कारखानों से प्रति वर्ष लगभग 60 लाख टन कचरा पैदा होता है। यूरोप व अमेरिका से बाहर किए गए कई रासायनिक कारखाने यहां कार्यरत हैं। इन क्षेत्रों में प्रदूषित पानी की सिंचाई से पैदा की गई सब्जियों में भी भारी धातुओं की उपस्थिति पाई गई है।

कुछ गैर सरकारी संगठनों ने अध्ययन कर बताया है कि गुजरात के कुछ क्षेत्रों में हवा में कैंसरजन्य पदार्थ भी उपस्थित हैं। रासायनिक कारखानों की अधिकता के कारण पर्यावरणविद् गुजरात को रासायनिक बम पर टिका हुआ मानते हैं। खतरनाक कारखानों के क्षेत्र में यदि तेज भूकंप आता है या कोई दुर्घटना होती है तो यहां भी जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी के समान त्रासदी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

Path Alias

/articles/samardadhai-sae-upajaa-vainaasa

Post By: pankajbagwan
×