भारत के सबसे पिछड़े जिलों में से एक जिले के गाँव ने यह दिखा दिया कि उनके इलाके को पिछड़ा रखने वाले स्थायी रूप से पड़ने वाले सूखे के स्रोत को भी मोड़ा जा सकता है। ओडिशा के नूआपड़ा जिले के बैंसादानी गाँव के बुधुराम पहड़िया एक नयी सफलता की कहानी लिख रहे हैं। वह और उनके गाँव के लोगों ने एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिससे उन्हें गर्व महसूस होता है। उन्होंने दिखा दिया कि न्यूनतम समर्थन व प्रोत्साहन के बावजूद तथाकथित पिछड़े गाँव के लोग कैसे चमत्कार कर सकते हैं। उन्होंने सामुदायिक प्रयासों के जरिये स्थायी सूखे का मुकाबला किया।
बुधुराम के पास दो एकड़ मध्यम गुणवत्ता वाली जमीन है जिसमें वह धान पैदा करते हैं। इस बार उन्हें अपने आशा के अनुरूप अपनी दो एकड़ की भूमि में से 30 क्विण्टल उपज प्राप्त हुई। उनके जीवन काल में यह एक रिकॉर्ड है। बुधुराम कहते हैं कि एक साल पहले यह स्थिति नहीं थी। बीज बोने के लिए उन्हें बारिश का इन्तजार करना पड़ता था। अगर बारिश होने में देरी हुई तो खेती नहीं हो पाती थी। वह कहते हैं कि उन्हें इससे पूर्व 8 क्विण्टल धान प्राप्त होते थे। इस सकारात्मक परिवर्तन का श्रेय बुधुराम को जाता है।
ओडिशा के नूआपड़ा जिले के बैंसादानी गाँव में पानी की किल्लत के कारण गाँव वालों ने एक गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से गाँव से कुछ कि.मी. दूर स्थित एक झरने को पीवीसी पाइप के जरिये जलाशयों तथा कृषि तक लाने का निर्णय लिया और यह कार्य तीन माह के अन्दर सम्पूर्ण हो गया।बुधुराम व उनके गाँव वाले एक गैर-सरकारी संगठन की सहायता से पास के एक झरने के पानी को पीवीसी पाइप के जरिये मोड़ने का निर्णय लिया। इससे बुधुराम के दो एकड़ की जमीन में सिंचाई हो सकी और उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई। अब वह दो फसली खेती भी करते हैं।
अतीत में अपने बुरे दिनों को याद कर बुधुराम डर जाते हैं। अब वह उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिन अच्छे रहेंगे। वह बताते हैं कि उनकी 18 साल की लड़की गत वर्ष काम करने के लिए हैदराबाद चली गई। उनका विवाह होने वाला था और वह आधा तोला सोना खरीदना चाहती थी। लेकिन सोना खरीदना उसके लिए सम्भव नहीं था। न्यूनतम आधा तोला सोना खरीदने के लिए कम-से-कम 18 हजार रुपये की आवश्यकता थी। बुधुराम कहते हैं मेरी बेटी ने विवाह किया लेकिन उन्हें इसके लिए उधार लाने पड़े। उन्हें अब उम्मीद है कि आगामी दिनों में खेती से अधिक उत्पादन कर वह यह उधार लौटा सकेंगे। इस गाँव के सभी 80 परिवार के लोगों के यही कहानी है। इस पहल से समस्त परिवार के लोगों को लाभ हुआ है और वे इससे खुश हैं।
ओडिशा के नूआपड़ा जिला से बैंसादानी गाँव एक सौ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस जिले के अन्य गाँवों की तरह इस गाँव में भी पानी की भयंकर किल्लत है। इस गाँव में पाँच ट्यूबवेल हैं लेकिन दिसम्बर माह के बाद इनमें पानी नहीं उपलब्ध होता। यहाँ तक कि पाँच तालाबों व चार अन्य जलाशयों से भी कुछ खास नहीं होता। ओडिशा के इस हिस्से तक पानी लाने में सफलता नहीं मिली।
यहाँ केवल मात्रा की ही समस्या नहीं है पानी की गुणवत्ता भी एक प्रमुख समस्या है। ट्यूबवेल से जो पानी निकलता है उसमें लौह की मात्रा काफी अधिक होने के कारण पानी अच्छा नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता पाण्डा कहते हैं कि बारिश के दिनों में जब ट्यूबवेल से पानी निकलता है, तो वह पानी भी ठीक नहीं होता है। इस कारण गाँव के लोग पीने के पानी के लिए गाँव में स्थित दो खुले कुओं पर जनवरी से जुलाई तक निर्भर रहते हैं।
गाँव में स्थित यही दोनों खुले कुएँ उनके लिए पीने के पानी की दृष्टि से प्रमुख स्रोत हैं और जनवरी से जुलाई तक वे इससे पानी लेते हैं। इनमें से एक कुआँ एक तालाब में पारम्परिक वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर (डब्ल्यूएचएस) के जरिये स्थित है। जब यह तालाब सूख जाता है, तब कुआँ भी सूख जाता है। इसके बाद गाँव के लोग पानी के लिए पाँच माह तक पास ही स्थित एक झरने पर निर्भर रहते हैं। यह झरना सालभर बहता है तथा गाँव से कुछ कि.मी. दूर स्थित है। पानी की किल्लत के कारण गाँव वालों के मन ने इस झरने के पानी को मोड़ लेने पर अनेक बार विचार आया। इस सम्बन्ध में वे अनेक बार सरकारी अधिकारियों से मिले और इस बाबत बात की लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। सरकार ने भी गाँव में पानी के लिए कदम उठाया लेकिन झरने के पानी को लेकर उन्होंने कभी कल्पना नहीं की। पर गैर-सरकारी संगठनों ने जब जिम्मेदारी ली तो स्थिति में बदलाव हुआ।
गाँव में पानी की व्यवस्था हो, इसके लिए गाँव वाले बार-बार प्रखण्ड विकास अधिकारी (बीडीओ) के पास जा रहे थे। वे जिलाधिकारी के पास भी गए, लेकिन इससे भी उन्हें कोई लाभ नहीं हो सका। इस बारे में बुधुराम ने कहा कि जब भी गाँव वाले प्रखण्ड विकास अधिकारी के पास जाते थे, तब वह कहते थे कि इस बारे में जलापूर्ति विभाग के अधिकारियों से बात करेंगे। प्रखण्ड विकास अधिकारी ने विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया कि गाँव में टैंकर के जरिये पानी उपलब्ध कराया जाए। इसके अलावा बीडीओ ने पंचायत कार्यालय के अधिशासी अधिकारी को गाँव में स्थित तालाबों को पुनरुद्धार का काम मनरेगा के जरिये करवाने के लिए पल्ली सभा व ग्राम सभा की मंजूरी हासिल करें।
इन चीजों का कार्यान्वयन हुआ और आरडब्ल्यूएसएस विभाग ने टैंकरों के जरिये गाँव में पानी उपलब्ध कराना शुरू कर दिया। इसी तरह मनरेगा कार्यक्रम के तहत गाँवों के जलाशयों व तालाबों का पुनरुद्धार का काम 2008-09 में किया गया।
इसके बाद ‘विकास’ नामक गैर-सरकारी संगठन को गाँव की समस्याओं के बारे में जानकारी मिली। इस संगठन के कार्यकर्ता गाँव वालों से बातचीत करने लगे। संगठन भागीदारीपूर्ण योजना बनाकर समस्याओं का स्थानीय स्तर पर समाधान में विश्वास करता था। इस कारण इस सम्बन्ध में संगठन के कार्यकर्ताओं ने गाँव वालों से सुझाव मांगे। गाँव वालों ने उन्हें झरने के पानी को गाँव तक लाने का प्रस्ताव दिया। विकास ने इस प्रस्ताव पर विचार करने का निर्णय लिया। एक अन्य स्थानीय गैर-सरकारी संगठन ‘नवपल्लव’ ने भी इसमें सहयोग का हाथ बढ़ाया। ग्रामीणों तथा इन गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं की अनेक बैठकें हुई तथा इस सम्बन्ध में गैर-सरकारी संगठन के लोगों ने एक योजना बनाई। झरने के पानी को पीवीसी पाइप के जरिये जलाशयों तथा कृषि तक लाने का निर्णय लिया गया।
गाँव वालों ने इस काम के लिए निःशुल्क श्रमदान करने का निर्णय किया। इस सम्बन्ध में जेआरडी टाटा ट्रस्ट से सहयोग प्राप्त हुआ तथा तीन माह के अन्दर यह कार्य सम्पूर्ण हो गया।
कुछ ही समय में इसका परिणाम दिखने लगा। गाँव वालों को खरीफ व रबी दोनों फसल के लिए सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हुई। वर्षा जल के आधार पर यहाँ खेती होती थी। यहाँ की मिट्टी की संरचना ऐसी है कि अगर सात-आठ दिन के बारिश न हो तो मिट्टी सूख जाती थी और इस कारण खेती खराब हो जाती थी। बैंसादानी गाँव की यह स्थायी समस्या थी। पर इस प्रयास के बाद काफी कुछ बदलाव हुआ। अब गाँव के लोगों को खरीफ सीजन में 166 एकड़ की जमीन पर तथा रबी के मौसम में 20 एकड़ जमीन पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होती है। सभी परिवारों के लिए जल उपलब्ध है। गाँव के सभी हैमलेटों में पानी के पोस्ट हैं।
गाँवों के कुछ परिवार रबी मौसम में आजकल सब्जी की खेती कर रहे हैं। इसके अलावा गाँव के सभी परिवार 168 एकड़ की जमीन पर धान की खेती करते हैं। गाँव के लोगों ने अब घर के पीछे सब्जी उगाना भी शुरू कर दिया है।
बैंसादानी गाँव में न केवल जल सुरक्षा हासिल हुई है बल्कि इसके बाद खाद्य सुरक्षा भी हासिल हुई है। लोगों द्वारा किए गए इस पहल के बाद कृषि क्षेत्र में आजीविका के विकल्प में बढ़ोत्तरी हुई है। पाइप का एक छोटा आउटलेट गाँव के एक वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर (डब्लूएचएस) को 24 घण्टे पानी उपलब्ध कराता है और इस वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर (डब्ल्यूएचएस) में अब साल भर पानी रहता है। इसके नीचे जो कुआँ स्थित है, उसमें पानी अब सालों भर रहता है। काफी कम समय में इस प्रयास का जबर्दस्त प्रभाव देखने को मिला है। गाँव वाले इसे जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। बुधुराम व उनके गाँव वाले अब कुछ नयी पहल शुरू करने पर विचार कर रहे हैं ताकि उनके गाँव को इस अविकसित इलाके में एक आदर्श गाँव के तौर पर विकसित किया जा सके।
(लेखक शोधकर्ता एवं जल मामलों के विशेषज्ञ हैं। वे ‘वाटर इनिशिएटिव्स’ नामक नेटवर्क चलाते हैं)
ई-मेल: ranjanpanda@gmail.com
बुधुराम के पास दो एकड़ मध्यम गुणवत्ता वाली जमीन है जिसमें वह धान पैदा करते हैं। इस बार उन्हें अपने आशा के अनुरूप अपनी दो एकड़ की भूमि में से 30 क्विण्टल उपज प्राप्त हुई। उनके जीवन काल में यह एक रिकॉर्ड है। बुधुराम कहते हैं कि एक साल पहले यह स्थिति नहीं थी। बीज बोने के लिए उन्हें बारिश का इन्तजार करना पड़ता था। अगर बारिश होने में देरी हुई तो खेती नहीं हो पाती थी। वह कहते हैं कि उन्हें इससे पूर्व 8 क्विण्टल धान प्राप्त होते थे। इस सकारात्मक परिवर्तन का श्रेय बुधुराम को जाता है।
ओडिशा के नूआपड़ा जिले के बैंसादानी गाँव में पानी की किल्लत के कारण गाँव वालों ने एक गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से गाँव से कुछ कि.मी. दूर स्थित एक झरने को पीवीसी पाइप के जरिये जलाशयों तथा कृषि तक लाने का निर्णय लिया और यह कार्य तीन माह के अन्दर सम्पूर्ण हो गया।बुधुराम व उनके गाँव वाले एक गैर-सरकारी संगठन की सहायता से पास के एक झरने के पानी को पीवीसी पाइप के जरिये मोड़ने का निर्णय लिया। इससे बुधुराम के दो एकड़ की जमीन में सिंचाई हो सकी और उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई। अब वह दो फसली खेती भी करते हैं।
अतीत में अपने बुरे दिनों को याद कर बुधुराम डर जाते हैं। अब वह उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिन अच्छे रहेंगे। वह बताते हैं कि उनकी 18 साल की लड़की गत वर्ष काम करने के लिए हैदराबाद चली गई। उनका विवाह होने वाला था और वह आधा तोला सोना खरीदना चाहती थी। लेकिन सोना खरीदना उसके लिए सम्भव नहीं था। न्यूनतम आधा तोला सोना खरीदने के लिए कम-से-कम 18 हजार रुपये की आवश्यकता थी। बुधुराम कहते हैं मेरी बेटी ने विवाह किया लेकिन उन्हें इसके लिए उधार लाने पड़े। उन्हें अब उम्मीद है कि आगामी दिनों में खेती से अधिक उत्पादन कर वह यह उधार लौटा सकेंगे। इस गाँव के सभी 80 परिवार के लोगों के यही कहानी है। इस पहल से समस्त परिवार के लोगों को लाभ हुआ है और वे इससे खुश हैं।
भीषण संकटों वाला एक सुदूर गाँव
ओडिशा के नूआपड़ा जिला से बैंसादानी गाँव एक सौ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस जिले के अन्य गाँवों की तरह इस गाँव में भी पानी की भयंकर किल्लत है। इस गाँव में पाँच ट्यूबवेल हैं लेकिन दिसम्बर माह के बाद इनमें पानी नहीं उपलब्ध होता। यहाँ तक कि पाँच तालाबों व चार अन्य जलाशयों से भी कुछ खास नहीं होता। ओडिशा के इस हिस्से तक पानी लाने में सफलता नहीं मिली।
यहाँ केवल मात्रा की ही समस्या नहीं है पानी की गुणवत्ता भी एक प्रमुख समस्या है। ट्यूबवेल से जो पानी निकलता है उसमें लौह की मात्रा काफी अधिक होने के कारण पानी अच्छा नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता पाण्डा कहते हैं कि बारिश के दिनों में जब ट्यूबवेल से पानी निकलता है, तो वह पानी भी ठीक नहीं होता है। इस कारण गाँव के लोग पीने के पानी के लिए गाँव में स्थित दो खुले कुओं पर जनवरी से जुलाई तक निर्भर रहते हैं।
गाँव में स्थित यही दोनों खुले कुएँ उनके लिए पीने के पानी की दृष्टि से प्रमुख स्रोत हैं और जनवरी से जुलाई तक वे इससे पानी लेते हैं। इनमें से एक कुआँ एक तालाब में पारम्परिक वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर (डब्ल्यूएचएस) के जरिये स्थित है। जब यह तालाब सूख जाता है, तब कुआँ भी सूख जाता है। इसके बाद गाँव के लोग पानी के लिए पाँच माह तक पास ही स्थित एक झरने पर निर्भर रहते हैं। यह झरना सालभर बहता है तथा गाँव से कुछ कि.मी. दूर स्थित है। पानी की किल्लत के कारण गाँव वालों के मन ने इस झरने के पानी को मोड़ लेने पर अनेक बार विचार आया। इस सम्बन्ध में वे अनेक बार सरकारी अधिकारियों से मिले और इस बाबत बात की लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। सरकार ने भी गाँव में पानी के लिए कदम उठाया लेकिन झरने के पानी को लेकर उन्होंने कभी कल्पना नहीं की। पर गैर-सरकारी संगठनों ने जब जिम्मेदारी ली तो स्थिति में बदलाव हुआ।
सरकार सहायता के लिए आगे आई, स्वयंसेवी संगठन ने सिंचाई में सहायता की
गाँव में पानी की व्यवस्था हो, इसके लिए गाँव वाले बार-बार प्रखण्ड विकास अधिकारी (बीडीओ) के पास जा रहे थे। वे जिलाधिकारी के पास भी गए, लेकिन इससे भी उन्हें कोई लाभ नहीं हो सका। इस बारे में बुधुराम ने कहा कि जब भी गाँव वाले प्रखण्ड विकास अधिकारी के पास जाते थे, तब वह कहते थे कि इस बारे में जलापूर्ति विभाग के अधिकारियों से बात करेंगे। प्रखण्ड विकास अधिकारी ने विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया कि गाँव में टैंकर के जरिये पानी उपलब्ध कराया जाए। इसके अलावा बीडीओ ने पंचायत कार्यालय के अधिशासी अधिकारी को गाँव में स्थित तालाबों को पुनरुद्धार का काम मनरेगा के जरिये करवाने के लिए पल्ली सभा व ग्राम सभा की मंजूरी हासिल करें।
इन चीजों का कार्यान्वयन हुआ और आरडब्ल्यूएसएस विभाग ने टैंकरों के जरिये गाँव में पानी उपलब्ध कराना शुरू कर दिया। इसी तरह मनरेगा कार्यक्रम के तहत गाँवों के जलाशयों व तालाबों का पुनरुद्धार का काम 2008-09 में किया गया।
इसके बाद ‘विकास’ नामक गैर-सरकारी संगठन को गाँव की समस्याओं के बारे में जानकारी मिली। इस संगठन के कार्यकर्ता गाँव वालों से बातचीत करने लगे। संगठन भागीदारीपूर्ण योजना बनाकर समस्याओं का स्थानीय स्तर पर समाधान में विश्वास करता था। इस कारण इस सम्बन्ध में संगठन के कार्यकर्ताओं ने गाँव वालों से सुझाव मांगे। गाँव वालों ने उन्हें झरने के पानी को गाँव तक लाने का प्रस्ताव दिया। विकास ने इस प्रस्ताव पर विचार करने का निर्णय लिया। एक अन्य स्थानीय गैर-सरकारी संगठन ‘नवपल्लव’ ने भी इसमें सहयोग का हाथ बढ़ाया। ग्रामीणों तथा इन गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं की अनेक बैठकें हुई तथा इस सम्बन्ध में गैर-सरकारी संगठन के लोगों ने एक योजना बनाई। झरने के पानी को पीवीसी पाइप के जरिये जलाशयों तथा कृषि तक लाने का निर्णय लिया गया।
गाँव वालों ने इस काम के लिए निःशुल्क श्रमदान करने का निर्णय किया। इस सम्बन्ध में जेआरडी टाटा ट्रस्ट से सहयोग प्राप्त हुआ तथा तीन माह के अन्दर यह कार्य सम्पूर्ण हो गया।
छोटा सहयोग, बड़ा प्रभाव
कुछ ही समय में इसका परिणाम दिखने लगा। गाँव वालों को खरीफ व रबी दोनों फसल के लिए सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हुई। वर्षा जल के आधार पर यहाँ खेती होती थी। यहाँ की मिट्टी की संरचना ऐसी है कि अगर सात-आठ दिन के बारिश न हो तो मिट्टी सूख जाती थी और इस कारण खेती खराब हो जाती थी। बैंसादानी गाँव की यह स्थायी समस्या थी। पर इस प्रयास के बाद काफी कुछ बदलाव हुआ। अब गाँव के लोगों को खरीफ सीजन में 166 एकड़ की जमीन पर तथा रबी के मौसम में 20 एकड़ जमीन पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होती है। सभी परिवारों के लिए जल उपलब्ध है। गाँव के सभी हैमलेटों में पानी के पोस्ट हैं।
गाँवों के कुछ परिवार रबी मौसम में आजकल सब्जी की खेती कर रहे हैं। इसके अलावा गाँव के सभी परिवार 168 एकड़ की जमीन पर धान की खेती करते हैं। गाँव के लोगों ने अब घर के पीछे सब्जी उगाना भी शुरू कर दिया है।
बैंसादानी गाँव में न केवल जल सुरक्षा हासिल हुई है बल्कि इसके बाद खाद्य सुरक्षा भी हासिल हुई है। लोगों द्वारा किए गए इस पहल के बाद कृषि क्षेत्र में आजीविका के विकल्प में बढ़ोत्तरी हुई है। पाइप का एक छोटा आउटलेट गाँव के एक वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर (डब्लूएचएस) को 24 घण्टे पानी उपलब्ध कराता है और इस वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर (डब्ल्यूएचएस) में अब साल भर पानी रहता है। इसके नीचे जो कुआँ स्थित है, उसमें पानी अब सालों भर रहता है। काफी कम समय में इस प्रयास का जबर्दस्त प्रभाव देखने को मिला है। गाँव वाले इसे जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। बुधुराम व उनके गाँव वाले अब कुछ नयी पहल शुरू करने पर विचार कर रहे हैं ताकि उनके गाँव को इस अविकसित इलाके में एक आदर्श गाँव के तौर पर विकसित किया जा सके।
(लेखक शोधकर्ता एवं जल मामलों के विशेषज्ञ हैं। वे ‘वाटर इनिशिएटिव्स’ नामक नेटवर्क चलाते हैं)
ई-मेल: ranjanpanda@gmail.com
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Post By: birendrakrgupta