आज शहरीकरण और इससे उत्पन्न समस्या देश के लिये बड़ी चुनौती है। दूसरी तरफ शहरों की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है, जिसके लिये हमें कई तरह से जूझना है। ऐसे में स्मार्ट सिटी जैसी पहल अत्यन्त उपयोगी और सार्थक कही जा सकती है। इसके प्रावधानों के अलावा हमें कुछ जरूरी मसलों की तरफ भी ध्यान देने की जरूरत है। शहरी अवसंरचना विकास एक बड़ी चुनौती है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के साथ ही हमें शहरी प्रबंधन की ओर तेजी से उन्मुख होना पड़ेगा, क्योंकि हम शहरों का प्रबंधन समुचित ढंग से नहीं कर पा रहे हैं...
शहरी विकास मंत्रालय ने स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित किए जाने वाले पहले 20 शहरों की घोषणा कर दी है। अगले पाँच वर्षों के दौरान इन शहरों को विश्वस्तरीय अवसंरचना और अच्छा वातावरण देने के लिये 3 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाएँगे। इन शहरों में पानी और बिजली आपूर्ति, सफाई और ठोस कचरा प्रबंधन, बेहतर शहरी आवागमन और सार्वजनिक परिवहन, आईटी संपर्क, ई-गवर्नेंस के जरिए बुनियादी सुविधाएँ और नागरिक भागीदारी विकसित की जाएगी।अगले वर्षों में सरकार 40 और शहरों के नाम की घोषणा करेगी, जिन्हें देश में 100 स्मार्ट शहर विकसित करने की योजना के तहत स्मार्ट शहर के तौर पर विकसित किया जाएगा। जनसंख्या के आधार पर देखा जाए तो इन 20 शहरों की आबादी 3.54 करोड़ है। इन शहरों का चयन एक विहित प्रक्रिया के तहत किया गया है, जिसमें हर राज्य को एक नंबर दिया गया है, जोकि वहाँ की शहरी जनसंख्या और दूसरे कारकों पर निर्भर है। देश में स्मार्ट सिटी की अवधारण और उसका क्रियान्यवयन एक नवीन पहल है, जिसकी सफलता की आशा की जा सकती है।
वैसे तमाम सरकारी प्रयास और नीतियाँ स्वतंत्रता काल से ही प्रमुख रूप से ग्रामीण केंद्रित हो गई थीं। गाँवों के लिये तमाम तरह की योजनाएँ लागू की गईं। जिनमें महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारण्टी स्कीम, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन आदि के नाम प्रमुखता से लिये जा सकते हैं। इन योजनाओं पर प्रतिवर्ष लगभग 1.66 लाख करोड़ रुपए की राशि खर्च की जाती है। दूसरी तरफ, शहरों के विकास के लिये एक मात्र जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन बना दिया गया था, जो करीब 555 परियोजनाओं की जिम्मेदारी निभाता है। क्या किसी एक नोडल योजना के सहारे इतने सारे कार्य किए जाने संभव हैं। वह भी तब जबकि इसके लिये सकल घरेलू उत्पाद की केवल 0.1 प्रतिशत की राशि खर्च की जाती है।
आज शहरीकरण और इससे उत्पन्न समस्या देश के लिये बड़ी चुनौती है। दूसरी तरफ शहरों की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है, जिसके लिये हमें कई तरह से जूझना है। ऐसे में स्मार्ट सिटी जैसी पहल अत्यन्त उपयोगी और सार्थक कही जा सकती है। इसके प्रावधानों के अलावा हमें कुछ जरूरी मसलों की तरफ भी ध्यान देने की जरूरत है। शहरी अवसंरचना विकास एक बड़ी चुनौती है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के साथ ही हमें शहरी प्रबंधन की ओर तेजी से उन्मुख होना पड़ेगा। क्योंकि हम शहरों का प्रबंधन समुचित ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। पीने के पानी, प्रदूषण, बिजली की समस्या और न जाने कितनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में वर्तमान में कई शहर अक्षम साबित हो रहे हैं।
इसके पीछे का एकमात्र कारण यही है कि हम शहरी संरचना को बेहतर बनाने के प्रति गम्भीर नहीं हुए हैं। पिछले कई वर्षों से यह मुद्दा हाशिए पर रखा गया है। जबकि शहरीकरण की तीव्र प्रक्रिया ने कई तरह की समस्याओं को जन्म दिया है।
इसके अलावा शहरों के साथ सबसे बड़ी समस्या ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन है। इससे कई तरह की अतिरिक्त समस्याएँ भी पैदा होती रहती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन के कई पहलू हैं, अक्सर रोजगार, शिक्षा और उच्च जीवन स्तर की आकांक्षा में लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं। यह न केवल आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के लिये जिम्मेदार है, बल्कि इसका एक व्यापक सामाजिक आधार भी है। ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवर्तन के साथ-साथ यह नगरों में होने वाली कई तरह की समस्याओं के लिये भी उत्तरदायी है।
इस समस्या को दूर करने के उद्देश्य से ग्रामीण क्षेत्रों में भी शहरी सुविधाओं के विकास का उपाय किया जा रहा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन नाम से एक परियोजना की शुरुआत की गई है, जिसमें आर्थिक गतिविधियों का विकास और कौशल विकास शामिल है। इसे ग्रामीण इलाकों में एकीकृत परियोजना आधारित अवसंरचना की सुपुर्दगी के लिये शुरू किया जाना है। इस योजना का क्रियान्यवयन पीपीपी मॉडल के तहत किया जाना है। सरकार का यह मानना है कि पीपीपी के जरिए अगले 10 वर्षों में अवसंरचना और सेवाओं के नवीकरण के लिये 500 शहरी बसावटों को सहायता दी जाए।
एक तरफ शहर तेज रफ्तार से भागती जिंदगी का प्रतीक बना है तो दूसरी ओर असमानता, उपेक्षा, शोषण का एक विद्रूप चेहरा भी प्रस्तुत करता है। इसी का नतीजा है कि शहरों में कई तरह की सामाजिक बुराइयाँ भी अपने चरम पर है। अनियंत्रित स्लम क्षेत्रों के विस्तार होने से अपराध, बाल अपराध, नशाखोरी, जुआ, वेश्यावृति में तीव्र बढ़ोतरी होती जा रही है। इसका क्या कारण है।
क्या यह तीव्र असमानता, शोषण, उपेक्षा और अनियंत्रित भीड़ का नतीजा नहीं है। अक्सर शहरों की आलोचना यह कह कर की जाती है कि यहाँ मानवीय संवेदना नहीं है। शहरों का अनियंत्रित विकास कई तरह की समस्याओं को जन्म देता है। यदि इस पर काबू पा लिया जाता है तो शहर भी ग्रामीण संवेदनाओं के आदर्श को लागू कर सकते हैं। इतना ही नहीं शहरीकरण से पैदा हुई चुनौतियों को भी दूर किया जा सकेगा। इसके लिये नियंत्रित शहरीकरण को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को अमल में लाना होगा। शहर केंद्रित योजनाओं को शहर की समस्याओं को ध्यान में रख कर बनाने की जरूरत है। आज शहर की संख्या व विस्तार से पैदा होते पर्यावरण की समस्या को दूर करने के लिये ग्रीन ग्रोथ की परिकल्पना को भी साकार करना होगा, तभी हम शहरीकरण से पैदा होती चुनौतियों से निपट सकेंगे।
आज शहरी नियोजन बदलते समय की बदलती प्रमुख जरूरत बन गई है। देश में शहरी क्षेत्रों के विकास को लेकर कई तरह के मॉडल अपनाए जा सकते हैं। इनमें शहरी निकायों के साथ निजी क्षेत्रों की भागीदारी का मॉडल सर्वाधिक उपयुक्त हो सकता है। इससे एक तरफ शहरी आबादी अपनी विकास की गतिविधियों का निर्धारण, कार्यान्यवयन, पर्यवेक्षण आदि स्वयं कर सकेंगे, वहीं इससे कार्य कुशलता और त्वरित लाभ भी मिलाने की सम्भावना है। शहरी विकास के लिये आवश्यकता इस बात की भी है कि हम पूर्व नियोजन पर जोर दें। केंद्र सरकार ने जिस 100 नए स्मार्ट सिटी की स्थापना की घोषणा की है। आने वाले दिनों में इसका बेहतर परिणाम देखने को अवश्य मिलेगा। किंतु बाकी के अन्य शहरों की स्थिति को भी सुधारने की तत्काल आवश्यकता है। शहरी सामाजिक-आर्थिक संरचना को भी जनकेंद्रित नीतियों के माध्यम से भी सुधारा जा सकता है।
शहरों में परिवहन की समस्या काफी जटिल और वृहद है। देश के विभिन्न बड़े शहरों में मेट्रो रेल की शुरुआत एक बड़ी पहल है। साथ ही मोनोरेल जैसी अवधारण भी सामने आई है, जिसका दूरगामी परिणाम होगा। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति तैयार की है। इसका मुख्य जोर समन्वित भूमि प्रयोग तथा परिवहन नियोजन, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार, गैर-मशीनी परिवहन को प्रोत्साहन तथा पर्याप्त पार्किंग स्थल और शहरी परिवहन नियोजन में क्षमता निर्माण पर है। सरकार के साथ आम जनता की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे शहरों के बेहतर और स्वच्छ रख-रखाव में गम्भीरता से ध्यान दें। सार्वजनिक परिवहनों के इस्तेमाल के प्रति लोगों का रुख सकारात्मक नहीं है। सड़कों पर जाम और प्रदूषण की समस्या आज दिल्ली जैसे शहरों में आम बात है।
इस दिशा में दिल्ली में बैटरी ऑटो रिक्शा की शुरुआत ने अच्छी पहल की है। किन्तु अब भी लोगों में जागरूकता की कमी और गम्भीरता का अभाव है। ऐसी दशा में शहरी नियोजन और प्रबंधन पर केवल सरकारी प्रयासों से ही बेहतरी की उम्मीद नहीं की जा सकती। लोगों को भी अपने शहरों को पोषित करना होगा।
शहरी चुनौती का एक अहम आयाम स्लमों का बेतरतीब ढंग से विकास है। इस दिशा में भी हमें पर्याप्त कदम उठाने की जरूरत है। शहरों में अनियमित कॉलोनियाँ, अपराध, असंतुलित आर्थिक विकास इसकी नई समस्या है, इससे निपटने के लिये हमें एक दीर्घकालीन समावेशी रणनीति बनाने की जरूरत है। इसमें शहरी संरचना का आयाम दीर्घकालीन और समावेशी होगा, साथ ही ग्रामीण पलायन को रोकने की दिशा में ग्रामीण क्षेत्रों का भी नगरीकरण किया जा सकेगा। इसका तात्पर्य यह है कि हमें ग्रामीण अंचलों में भी शहरी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत होगी।
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