समाज में ऊर्जा का महत्त्व


कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं जबकि ऊर्जा प्रदान करने की दर को शक्ति कहा जाता है। आधुनिक समाज की अधिकांश गतिविधियों के लिये ऊर्जा अत्यंत आवश्यक है। इसके उपयोग या उपभोग को सामान्यतः जीवन स्तर के सूचकांक के रूप में लिया जाता है। हम ऊर्जा को जलावन की लकड़ी, जीवाश्म ईंधन, एवं विद्युत के रूप में उपयोग करते हैं जिससे हमारा जीवन आरामदायक और सुविधाजनक बनता है।

हम घरों में विद्युत को लाइटों तथा पंखों, एयर कंडीशनरों, वॉटर हीटर व रूम हीटर, ओवन, माइक्रोवेव, वॉशिंग मशीन, ड्रायर आदि में उपयोग करते हैं। हम पेट्रोल, डीजल एवं सीएनजी को अपनी कारों, बसों, ऑटो आदि चलाने के लिये उपयोग करते हैं। कृषि एवं उद्योगों में बड़े पैमाने पर ऊर्जा का उपभोग होता है। कार्यालयों में भी हम ऊर्जा का उपयोग एयरकंडीशनरों, पंखों, लाइटों, कम्प्यूटरों, फोटोकॉपी करने की मशीनों के लिये करते हैं।

हम जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बसों, ट्रकों, रेल, हवाई जहाजों, पानी के जहाजों इत्यादि के लिये करते हैं एवं इस तरह परिवहन में कुल ऊर्जा के एक बड़े भाग का उपयोग होता है। इस पाठ में हम समाज में ऊर्जा की भूमिका के बारे में जानेंगे।

उद्देश्य


इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आपः
- ऊर्जा की अवधारणा का वर्णन कर सकेंगे;
- मानव समाज में ऊर्जा के महत्त्व का वर्णन कर सकेंगे;
- ऊष्मा-गतिकी के प्रथम एवं द्वितीय नियमों का वर्णन कर सकेंगे;
- ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों को सूचीबद्ध कर सकेंगे।

27.1 ऊर्जा क्या है?


‘‘कार्य करने की क्षमता’’ है।
दिन के समय में सूर्य की ऊर्जा हमें प्रकाश देती है। यह रस्सी पर बाहर सूख रहे कपड़ों को सुखाती है। यह पेड़-पौधों एवं फसलों को उगाने में मदद करती है। पेड़ पौधों में संचित ऊर्जा को पशु (शाकाहारी) खा जाते हैं, जिससे उन्हें ऊर्जा मिलती है। परभक्षी पशु अपने शिकार को खाते हैं, जिससे उन्हें ऊर्जा मिलती है। जब हम खाना खाते हैं, तब हमारा शरीर खाने में संचित ऊर्जा को कार्य करने की ऊर्जा में परिवर्तित करता है। जब हम बात करते हैं, दौड़ते हैं या चलते हैं, सोचते या फिर पढ़ते हैं, तब हम अपने शरीर की खाद्य ऊर्जा का उपयोग करते हैं। लेकिन यह ऊर्जा कहाँ से प्राप्त होती है?

27.2 ऊर्जा नियंत्रण के नियम


ऊष्मागतिकी (थर्मोडायनामिक्स, Thermodynamics) का पहला नियम ऊर्जा संरक्षण के बारे में बताता है। इसके अनुसार ऊर्जा ना तो निर्मित की जा सकती है, ना ही उसको नष्ट किया जा सकता है, इसे केवल एक रूप से दूसरे में बदला जा सकता है।

उदाहरण के लिये, सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा को हरे पौधे अवशोषित कर लेते हैं एवं इसे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में प्रयोग करते हैं एवं सौर ऊर्जा को खाद्य या बायोमास के रूप में रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करके संचित करते हैं।

ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम बताता है कि प्रत्येक ऊर्जा रूपान्तरण में कुछ ऊर्जा का ताप (ऊष्मा) के रूप में क्षय होता है जो आगे उपयोगी कार्य करने के लिये उपलब्ध नहीं होती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कोई भी ऊर्जा रूपान्तरण शत प्रतिशत सफल नहीं हो पाता है। अर्थात प्रत्येक ऊर्जा रूपान्तरण में कुछ ऊर्जा का क्षय ऊष्मा (ताप) के रूप में होता है जो व्यर्थ होकर वातावरण में बिखर (चली) जाती है।

ऊष्मा से हम सभी परिचित हैं क्योंकि हम सभी यह जानते हैं कि गर्मी व सर्दी दोनों में आप कैसा महसूस करते हैं। हमारे शरीर की गर्मी कितनी है, यह थर्मामीटर से मापा जा सकता है। इस थर्मामीटर में ऐसा तरल पदार्थ होता है जो तापमान बढ़ने के साथ-साथ फैलता जाता है। ऊर्जा के विभिन्न रूपों में ताप भी एक प्रकार की ऊर्जा है और यह ताप ऊर्जा का ऐसा एक रूप है जिसमें ऊर्जा के अन्य सभी रूपों को पूर्णतः रूपांतरित किया जा सकता है। यही कारण है कि ताप को एक ही मात्रक, कैलोरी (cal) अथवा जूल को ऊर्जा का परिमाण बताने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।

एक ग्राम कैलोरी (C) : यह ताप का वह परिमाण (मात्रा) है जो एक ग्राम पानी के तापमान को एक डिग्री सेंटीग्रेट बढ़ाने के लिये आवश्यक होती है। (14-5° से 15.5° C तक) एवं यह एक मात्रक है जिसमें खाद्य पदार्थों या अन्य जैविक पदार्थों का ऊर्जा मान प्रदर्शित किया जाता है, यद्यपि अब इसका स्थान जूल ने ले लिया है।

जूल (Joule or J) : यह कार्य का व्यवहारिक मात्रक है। यह ऊर्जा/कार्य की व्युत्पन्न SI इकाई (मूल मात्रक) है जिसका अर्थ है वह कार्य जो एक न्यूटन के बराबर बल किसी बिंदु को 1 मीटर तक विस्थापित करने के लिये किया जाता है।

ऊष्मा के रूप में ऊर्जा को काम में लाना थोड़ा कठिन है क्योंकि आण्विक गति बहुत ही अव्यवस्थित होती है। ऊष्मा एक निम्न कोटि की ऊर्जा है और यदि सभी वस्तुएँ एक ही तापमान पर रहती हैं तो यह कोई भी कार्य नहीं कर पाती है। लेकिन यदि तापमानों में अंतर रखा जाए तो अव्यवस्थित गति, अति सांद्रण (उच्चतम ताप) वाले स्थान से कम सांद्रण (निम्नतम ताप) वाले स्थान की तरफ बढ़ने की कोशिश करेगी।

पाठगत प्रश्न 27.1


1. ऊर्जा को आप किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
2. एक ग्राम कैलोरी क्या है?
3. ऊर्जा की SI इकाई क्या है?
4. ऊष्मा गतिकी के प्रथम और द्वितीय नियमों को बताइये।

27.3 ऊर्जा के स्रोत


चूँकि ऊर्जा हमारे जीवन के लिये अत्यंत आवश्यक है इसलिये हमारे लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि हम ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों के बारे में जानें। ऊर्जा स्रोतों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बाँटा जाता है जिनके नाम हैं: नवीकरणीय (ऐसा ऊर्जा स्रोत जिसका हम बार-बार उपयोग कर सकते हैं) एवं अनवीकरणीय स्रोत (जब ऊर्जा स्रोतों को बार-बार उपयोग में नहीं लाया जा सकता है)।

27.3.1 नवीकरणीय स्रोत (Renewable source)


नवीकरणीय ऊर्जा शब्द का प्रयोग ऐसी ऊर्जा का वर्णन करने के लिये किया जाता है जो ऐसे स्रोतों से आती है जिनकी आपूर्ति कभी खत्म नहीं होती है और इन्हें बार-बार उत्पन्न किया जा सकता है। नवीकरणीय स्रोतों को कुछ ही समय के भीतर फिर से तैयार किया जा सकता है। यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का वर्णन किया जा रहा हैः-

(i) सौर ऊर्जा (Solar energy)


हमारे ग्रह (पृथ्वी) पर सूर्य का प्रकाश ऊर्जा को सबसे अधिक परिमाण में परोक्ष रूप से प्राप्त किया जाता है। सौर ऊर्जा अक्षय है एवं यह धरती पर दृश्य प्रकाश एवं इन्फ्रारेड (अवरक्त) विकिरण के रूप में आती है। हम सौर ऊर्जा का प्रयोग हमेशा से करते आ रहे हैं जबसे धरती पर मानव का अस्तित्व है। लोग सूर्य को ‘‘सूर्य भगवान’’ के रूप में पूजते हैं क्योंकि यह सौर ऊर्जा ही है जो पृथ्वी को परिचालित कर रही है। प्रतिदिन हम सौर ऊर्जा का कई तरह से प्रयोग करते हैं। सूर्य के प्रकाश के बिना, हमारे ग्रह पर जीवन का अस्तित्व ही नहीं होगा। पेड़-पौधे सूर्य के प्रकाश का उपयोग भोजन बनाने के लिये करते हैं।

जन्तु पेड़-पौधों को खाद्य के रूप में खाते हैं। कई लाख वर्ष पहले पेड़-पौधों के विघटित (सड़ जाने) से ही जीवाश्म ईंधन का निर्माण हुआ जो कोयला, तेल एवं प्राकृतिक गैस के रूप में हमें मिल रहा है। इस प्रकार जो हम आज उपयोग में ला रहे हैं वह वास्तव में कई लाख वर्षों पहले जमा किया गया सूर्य का प्रकाश ही है। जैसे-जैसे इसकी खपत (उपभोग) बढ़ रही है, यह शीघ्रता से खत्म होता जा रहा है। यद्यपि धरती तक पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा प्रचुर है, लेकिन इसका संचय एवं परिवहन आसान नहीं हैं।

सौर ऊर्जा का प्रयोग घरों को गर्म करने में, पानी गर्म करने में, पेड़-पौधों को उगाने में एवं विद्युत उत्पादन में कई तरीकों से किया जा सकता है। सौर शक्ति में सक्रिय, निष्क्रिय तथा फोटोवोल्टॉइक तकनीक एवं पद्धतियां शामिल हैं। सक्रिय एवं निष्क्रिय सौर तकनीकें सूर्य की ऊर्जा का प्रयोग खाना बनाने, स्थान को गर्म करने एवं पानी गर्म करने के लिये करती हैं। फोटोवोल्टाइक (सोलर सेल) सौर ऊर्जा को सीधे ही विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं। सरलतम सोलर सेलों का प्रयोग घड़ियों एवं कैलकुलेटरों को चलाने के लिये होता है जबकि कुछ जटिल प्रणालीयुक्त बैटरियों का प्रयोग घरों को प्रकाशित करने, अंतरिक्ष यान एवं उपग्रहों को ऊर्जा प्रदान करने के लिये किया जाता है। आजकल, जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम करने के लिये सौर ऊर्जा को नए तरीकों से उपयोग करने के प्रयास नए सिरे से किए जा रहे हैं।

(ii) बायोमास (Biomass)


बायोमास ऊर्जा या बायोऊर्जा ऐसी ऊर्जा है जो जैविक पदार्थों जैसे जलावन की लकड़ी, टहनियां, मृत वनस्पति, मवेशियों का गोबर, पशुधन की खाद एवं मृत पशुओं के अवशेष से प्राप्त होती है। पौधों की पत्तियां सूर्य के प्रकाश को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं, जो पौधों में ही संचित हो जाती है।

जन्तु जब इन पेड़-पौधों को खाते हैं, तो ये रासायनिक ऊर्जा उनके शरीर में एकत्र हो जाती है। इसमें से कुछ खाद एवं अन्य अवशिष्टों के रूप में रह जाती है। बायोमास ईंधन नवीकरणीय होते हैं क्योंकि इसका कच्चा माल ज्यादा फसल उगाकर या ज्यादा जैविक कचरा एकत्र करके फिर से बनाया जा सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कोई नया नहीं है, कई हजारों वर्षों से लकड़ी ही ऊर्जा का मुख्य पारंपरिक स्रोत हुआ करती थी। लोग लकड़ी को जलाकर उससे खाना पकाया करते थे एवं स्वयं को गर्म रखा करते थे। आज भी जंगलों में रहने वाले लोगों एवं कुछ ग्रामीण समुदायों में जलावन की लकड़ी एवं फसल के अवशेष ही बड़े पैमाने पर जैविक ऊर्जा स्रोत के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं।

किंतु अब हम बायोमास के अन्य स्रोतों का भी प्रयोग कर सकते हैं जिनमें पेड़ पौधे, कृषि या वानिकी के अपशिष्ट पदार्थ एवं नगरपालिका एवं औद्योगिक अपशिष्ट शामिल है। पशुओं के गोबर, मानव मल एवं अन्य जैविक अपशिष्टों से एक खास प्रक्रिया जिसे ‘अवायवीय पाचन (Anaerobic digestion)’ कहा जाता है, के द्वारा बायोगैस संयंत्र में बायोगैस का उत्पादन किया जाता है। इसमें करीब 55 से 75% तक मीथेन गैस होती है, जो ज्वलनशील है और इसका प्रयोग खाना पकाने, प्रकाश व्यवस्था, गर्म करने के लिये या विद्युत उत्पादन के लिये किया जा सकता है। जैविक कचरे की कंपोस्टिंग के दौरान अथवा लैंड फिल (भूमि भराव) वाली जगहों से उत्पन्न होने वाली मीथेन गैस को भी एक बायोमास ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

बायोगैस एक साफ सुथरी, प्रदूषणरहित तथा कम खर्च वाला ईंधन है। बायोगैस संयंत्र से मिलने वाला बचा हुआ पचित पदार्थ जो स्लरी (Sturry) के रूप में आता है एक बहुत ही मूल्यवान उप- उत्पाद है जिसका प्रयोग कृषि क्षेत्रों में जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है। बायोमास ईंधन कृषि अवशेष (फसलों), एल्कोहल ईंधनों, पशु अपशिष्टों एवं नगर पालिका के ठोस अपशिष्टों से प्राप्त किया जाता है। अब, इस बायोमास को, जो आमतौर पर निपटान की समस्या पैदा करता है, विद्युत ऊर्जा (उदाहरणः उत्पादन अपशिष्टों, चावल के छिलकों, और कागज निर्माण के बाद बचा हुआ काला तरल पदार्थ) लेकिन अब बायोमास में कई अन्य स्रोतों का भी प्रयोग हो रहा है जिसमें वनस्पति, कृषि या वनों से निकले अवशेष एवं नगरपालिका तथा औद्योगिक कचरों का जैविक तत्व आते हैं।

आज बायोमास को इस्तेमाल करने के नए-नए तरीके ढूंढे जा रहे हैं। एक तरीका है एथेनॉल उत्पादन का, जो बायोमास से बना द्रव एल्कोहल ईंधन है। अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विपरीत, बायोमास को सीधे द्रव ईंधनों (जैविक ईंधन) में बदला जा सकता है जो हमारे परिवहन की आवश्यकता को पूरा करता है। (जैसे कार, ट्रक, बस, हवाई जहाज एवं रेलगाड़ियाँ) दो आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले जैविक ईंधन है बायोडीजल एवं एथेनॉल है।

एथेनॉल को बनाने के लिये कोई भी बायोमास जिसमें कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च, शर्करा या सेल्यूलोज) की मात्रा अधिक हो, को शराब बनाने की प्रक्रिया की तरह ही किण्वित किया जाता है। अधिकांशतः एथेनॉल एक ईंधन के रूप में प्रयोग होता है जो एक वाहन से निकलने वाले कार्बन मोनोक्साइड एवं अन्य प्रदूषणकारी तत्वों (स्मॉग) को कम करने में मदद करता है। एथेनॉल का प्रयोग विशेष प्रकार की गाड़ियों में होता है जो गैसोलीन की जगह एल्कोहल ईंधन इस्तेमाल करने के लिये बनी होती हैं। एल्कोहल को गैसोलीन के साथ भी मिलाया जा सकता है। एल्कोहल या डीजल बनाने के लिये बने पौधे को ऊर्जा फसल (Energy Crop) कहा जाता है, जो तेजी से बढ़ने वाले पेड़ या घास होती है।

(iii) बायोडीजल (Biodiesel)


बायोडीजल (Biodiesel) वनस्पति तेलों के ट्रांस-ईथरीफिकेशन (Trans-etherification) से प्राप्त किया जाता है। जंगली वनस्पति जिनमें खाद्य अनुपयोगी तेलों की अधिकता होती है, के तेल युक्त बीज ही बायोडीजल के मुख्य स्रोत हैं। जट्रोफा (Jatropha), पोंगामिया (Pongamia) एवं नीम के बीज बायोडीजल के उत्पादन के लिये उपयोग में लाए जाते हैं।

बायोमास ऊर्जा के प्रयोग से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में काफी मदद मिलती है। बायोमास जीवाश्म ईंधन से जितना ही कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है, किंतु हरे पेड़- पौधे इस कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से धीरे-धीरे उनके विकसित होने के साथ-साथ हटाते जाते हैं। इस तरह कार्बन डाइऑक्साइड का कुल उत्सर्जन शून्य हो जाता है जब तक कि बायोमास ऊर्जा के लिये पेड़ पौधों को लगाया जाता रहेगा। साफ सुथरी नवीकरणीय ऊर्जा के लिये उपभोक्ताओं की मांग में काफी तेजी आई है विशेषकर ऊर्जा के हरित शक्ति - सौर, पवन, भूतापीय, बायोमास एवं पन बिजली स्रोतों में।

(iv) जलशक्ति (हाइड्रोपावर, Hydropower)


बहता हुआ पानी ऊर्जा का निर्माण करता है जिसे जमा करके विद्युत में परिवर्तित किया जा सकता है। इसे ही पन बिजली शक्ति या जल शक्ति कहा जाता है। पानी से प्राप्त जल ऊर्जा भी ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है। पन बिजली ऊर्जा या जलशक्ति वह ऊर्जा है जो गिरते हुए पानी द्वारा पन चक्की, प्रोपेलर या टरबाइन को चलाने के द्वारा उत्पन्न होती हैं। प्रायः पूरी की पूरी पन बिजली ऊर्जा ही विद्युत बनाने के कार्य में प्रयोग की जाती है, यद्यपि पहले के आविष्कारकों ने पन चक्की को अनाज पीसने एवं अन्य मशीनें चलाने के लिये भी इस्तेमाल किया था।

सबसे आम प्रकार का पन बिजली शक्ति संयंत्र एक नदी के ऊपर बने बांध का इस्तेमाल करता है जिससे पानी को एक बड़े कुंड में जमा किया जा सके। इस कुंड से छोड़ा गया पानी टर्बाइन से होकर गुजरता है जिससे वह घूमती है, जो इसके साथ जुड़े जनरेटर को घुमाती है जिससे विद्युत पैदा होती है। जो पानी ऊँचाई पर जमा रहता है वह स्थितिज ऊर्जा का स्रोत है। यह ऊर्जा टर्बाइन में जाकर गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है और इसके बाद यह विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित होती है। आमतौर पर जल की 90% से अधिक की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।

अन्य प्रकार का पन बिजली ऊर्जा संयंत्र पम्प्ड स्टोरेज संयंत्र (Pumped storage plant) कहलाता है जो ऊर्जा (शक्ति) को भी संचित कर सकता है। यह ऊर्जा (शक्ति) पॉवर ग्रिड द्वारा विद्युत जनरेटरों में भेजी जाती है जिससे टर्बाइन एक नदी या निचले कुंड से पानी को पंप करके ऊपरी कुंड जहाँ शक्ति संचित है, वहाँ तक ले जाती है। इस शक्ति को इस्तेमाल करने के लिये पानी को ऊपरी कुंड से वापस निचले कुंड या नदी में भेज दिया जाता है। यह टर्बाइन को आगे की ओर घुमाता है जिससे जनरेटर विद्युत उत्पादन के लिये सक्रिय हो जाते हैं।

छोटे पन बिजली संयंत्र या अतिसूक्ष्म पन बिजली ऊर्जा संयंत्रों में जरूरी नहीं है कि बड़ा बांध ही हो बल्कि ये केवल एक छोटी नहरों का प्रयोग करते हैं जिससे नदी के पानी को घेर कर धारा के रूप में टर्बाइन से होते हुए भेजा जाए जो इतनी विद्युत उत्पन्न कर सके जो घरों, खेतों या छोटे गाँवों के लिये पर्याप्त हो।

(v) पवन ऊर्जा (wind energy)


पवन की गतिज ऊर्जा को ऊर्जा के अन्य रूपों या तो यांत्रिक ऊर्जा या फिर विद्युतीय ऊर्जा आदि के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। जब एक नाव पाल उठाती है, वह पवन ऊर्जा का इस्तेमाल करती है जिससे नाव को पानी में से खींचा जा सके। यह ऊर्जा का एक रूप है। किसान पवन ऊर्जा का प्रयोग कई वर्षों से पानी को कुओं से पवन चक्कियों द्वारा पंप करने के लिये कर रहे हैं। हॉलैंड में पवनचक्कियों का उपयोग कई सदियों से पानी को निचले क्षेत्रों से खींचने के लिये एवं अनाज पीसने के लिये होता आ रहा है। आज भी पवन का प्रयोग विद्युत उत्पादन में हो रहा है।

पवन ऊर्जा एक साफ (स्वच्छ) नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है जो पृथ्वी की सतह के प्रतिदिन गर्म और ठंडे होने की प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न होती हैं। इस पवन ऊर्जा को विद्युत उत्पादन, पानी खींचने, अनाज पीसने एवं नाव या जहाजों को चलाने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है। पवन जनरेटरों में एक स्टील टॉवर लगा होता है एवं पवन को पकड़ने के लिये प्रोपेलर ब्लेड (Propeller blades) होते हैं तथा एक जनरेटर होता है। अलग-अलग पवन जनरेटर आम तौर पर घरों या खेतों के पास बने होते हैं लेकिन ये समूह में या पवन फार्म (wind farm) के रूप में भी व्यवस्थित होते हैं। पवन का उपयोग कार्य करने के लिये होता है। बहती हुई हवा, पवन टर्बाइन में लगे ब्लेडों को ठीक एक बड़े खिलौनानुमा पिन व्हील (Toy pin wheel) की तरह घुमाती है। इस यंत्र (device) को पवनटर्बाइन कहा जाता है ना कि पवन चक्की। एक पवन चक्की अनाजों को पीस सकती है या इसे पानी पंप करने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।

टर्बाइन के ब्लेड एक हब (Hub) से जुड़े होते हैं जो एक टर्निंग शॉफ्ट के ऊपर टिका रहता है। यह शॉफ्ट एक गीयर ट्रांसमिशन बॉक्स (Gear transmission box) के भीतर जाता है जहाँ इसके घूमने की गति बढ़ जाती है। ट्रांसमिशन बॉक्स एक उच्च गति वाले शॉफ्ट से जुड़ा होता है जो एक जनरेटर को घुमाता है जो विद्युत उत्पादन करता है। पवन टर्बाइन, जैसे पवन चक्कियां एक टॉवर पर लगाई जाती हैं जिससे अधिक से अधिक ऊर्जा संचित की जा सके। 100 फीट (30 मीटर) या इससे अधिक की ऊँचाई पर ये तेज या कम तूफानीय हवाओं का लाभ ले सकते हैं। टर्बाइनों द्वारा पवन ऊर्जा को उनके प्रोपेलर जैसे ब्लेडों द्वारा पकड़ा जाता है। सामान्यतः दो या तीन ब्लेड एक शॉफ्ट पर लगाए जाते हैं जिससे एक रोटर (Rotor) बनता है। हमारे देश में बहुत से वायु वाले क्षेत्र हैं विशेष तौर पर ये भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में स्थित हैं।

(vi) तरंग ऊर्जा (Wave energy)


महासागर एवं समुद्री तरंगों का कारण अप्रत्यक्ष रूप से सौर ऊर्जा ही होती है। तरंग ऊर्जा को पवन ऊर्जा द्वारा भी निकाला जा सकता है जो स्वयं सौर ऊर्जा द्वारा ही संचालित होती है। तरंग ऊर्जा को पहले यांत्रिक ऊर्जा में और इसके बाद विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।

(vii) महासागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण (Oceanic thermal energy conversion)


महासागर में संचित तापीय ऊर्जा जो सौर ऊर्जा के प्रभाव द्वारा पैदा होती है, को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिये गर्म सतही जल एवं ठंडे भीतरी जल के बीच के तापमान के अंतर का इस्तेमाल किया जाता है।

(viii) भूतापीय ऊर्जा (Geothermal energy)


भूतापीय ऊर्जा का अर्थ है वह ऊर्जा जो भूमि के नीचे की चट्टानों एवं तरल पदार्थों में छिपी होती है। पृथ्वी के नीचे की यह तापीय या ऊष्मा ऊर्जा भूमिगत जल को गर्म या वाष्प में परिवर्तित कर देती है। भूतापीय ऊर्जा का प्रयोग स्टीम टर्बाइन को शक्ति प्रदान करने एवं विद्युत उत्पन्न करने के लिये होता है, यद्यपि यह घरों एवं अन्य इमारतों को गर्म रखने के लिये भी इस्तेमाल की जा सकती है। यह ताप पृथ्वी की सतह से नीचे की ओर जाने पर बढ़ते तापमान के परिणामस्वरूप होता है। यह पृथ्वी के भीतर से आने वाली ऊर्जा है अर्थात ऐसी ऊर्जा जो भूमिगत चट्टानों एवं तरल पदार्थों में छिपी है। गर्म पानी के झरनों के पानी को गर्म करने के लिये भूतापीय ऊर्जा ही जिम्मेदार है।

(ix) ईंधन कोष्ठिका तकनीक (Fuel cell technology)


फ्यूल सेल (Fuel cell) या ईंधन कोष्ठिका वे उपकरण होते हैं जो सीधे हाइड्रोजन को विद्युत में परिवर्तित करते हैं। हाइड्रोजन एक रंगहीन, गंधहीन गैस है, जो पृथ्वी पर अन्य तत्वों के संयोजन के रूप में जैसे ऑक्सीजन, कार्बन एवं नाइट्रोजन के साथ ही मिलती है। हाइड्रोजन को प्रयोग करने के लिये इसे इन सभी अन्य तत्वों से पृथक करना पड़ता है।

हाइड्रोजन एक ईंधन के रूप में प्रचुर ऊर्जा युक्त है एवं यह काफी अच्छा साफ ईंधन माना जाता है। एक ईंधन कोष्ठिका वायु से हाइड्रोजन को (जो निर्मित एवं संचित की गई हो) ऑक्सीजन के साथ लेकर विद्युत में परिवर्तित करता है। एक मशीन जो शुद्ध हाइड्रोजन को जलाती है, ऊर्जा उत्पन्न करती है तथा बिना कोई प्रदूषण फैलाए शुद्ध जल उत्पन्न करती है। ईंधन कोष्ठिका, ताप और विद्युत के स्रोत के रूप में उभरी एक नई तकनीक है जिसे इमारतों एवं वाहनों में ऊर्जा के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

पानी में प्रचुर मात्रा में हाइड्रोजन उपलब्ध होती है। लेकिन प्रकृति में कहीं मुक्त हाइड्रोजन उपलब्ध नहीं है। ताप का प्रयोग करके हाइड्रोजन को हाइड्रोकार्बनों से बनाया जाता है। इस प्रक्रिया को हाइड्रोजन की ‘‘रीफॉर्मिंग’’ करना कहा जाता है। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक गैस से हाइड्रोजन बनाया जाता है। पानी में विद्युत धारा प्रवाहित करके इसके दोनों घटकों हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन को अलग किया जा सकता है, इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोलिसिस (Electrolysis) कहते हैं। कुछ शैवाल एवं जीवाणु जो सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रयोग करते हैं, हाइड्रोजन का उत्सर्जन करते हैं। इसके लिये कुछ शर्तें जरूरी हैं। पानी से हाइड्रोजन उत्पन्न करने के लिये प्रचुर मात्रा में ऊर्जा आवश्यक होती है। अतः यह तब तक एक स्वच्छ वैकल्पिक स्रोत के रूप में उपलब्ध नहीं होगी जब तक कि नवीकरणीय ऊर्जा व्यापक रूप से संपूर्ण प्रक्रिया के लिये उपलब्ध नहीं होगी।

भविष्य में, हाइड्रोजन एक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा वाहक के रूप में विद्युत की जगह ले सकता है। एक ऊर्जा वाहक, उपभोक्ता तक इस्तेमाल करने योग्य रूप में ऊर्जा को ले जाता है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे सूर्य, हमेशा ऊर्जा उत्पन्न नहीं करते हैं। सूर्य हमेशा चमकता नहीं रहता है। किंतु हाइड्रोजन इस ऊर्जा को तब तक संचित करके रखता है जब तक आवश्यकता हो एवं इसे जहाँ भी जरूरत हो, ले जाया जा सकता है।

हाइड्रोजन का प्रयोग नासा (NASA) के अंतरिक्ष कार्यक्रम में ईंधन के रूप में 1970 से होता आ रहा है। जिससे रॉकेटों को चलाया जाता है और अब यह कक्षा में स्थित अंतरिक्ष यान में भी इस्तेमाल होता है। इसके अलावा ईंधन सेल अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को ताप और विद्युत तथा पीने का पानी भी प्रदान करते हैं। भविष्य में हाइड्रोजन का प्रयोग मोटर वाहनों और हवाई जहाजों, घरों तथा ऑफिसों में भी विद्युत ऊर्जा प्रदान करने के लिये होने लगेगा।

27.3.2 अनवीकरणीय ऊर्जा (Non-renewable energy)


अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का भंडार सीमित मात्रा में उपलब्ध है। इनके पुनरुत्पादन की दर, खपत की अपेक्षा नगण्य है अर्थात अनवीकरणीय ऊर्जा जिसका हम इस्तेमाल कर रहे हैं, थोड़े समय में ही पुनरुत्पादित नहीं की जा सकती है या कम से कम हमारे जीवन काल में तो उसे फिर से नहीं बनाया जा सकता है। जीवाश्म ईंधन भी महत्त्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत हैं। जीवाश्म ईंधन (कोयला, लिग्नाइट, पीट) पृथ्वी के नीचे से और समुद्री सतह के नीचे (पेट्रोलियम आदि) से द्रव या गैस के रूप में मिलते हैं। जीवाश्म ईंधन पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्राचीन वनस्पतियों या जीव जन्तुओं के अवशेष होते हैं। जीवाश्म ईंधन ऊर्जा ऊष्मा के रूप में उत्सर्जित होती हैं।

(i) तेल (पेट्रोलियम)


तेल एक तरल जीवाश्म ईंधन है जो पृथ्वी के नीचे और समुद्री की सतह के नीचे से मिलता है। जीवाश्म ईंधन तब बने जब डायनासोर के समय में वनस्पति और जीव जन्तु मरने लगे एवं शायद इससे भी पहले से इसका उत्पादन प्रारंभ हो गया था। इन प्राणियों के सड़े हुए अवशेष धीरे-धीरे आने वाले वर्षों में कोयला, तेल एवं प्राकृतिक गैस में परिवर्तित हो गए।

तेल एवं प्राकृतिक गैस एक जटिल विघटनकारी प्रक्रिया द्वारा निर्मित होते हैं जो अति सूक्ष्म जीव रूप जिन्हें पादप प्लवक (फाइटोप्लांक्टन, Phytoplankton छोटे पौधे जिन्हें शैवाल कहा जाता है) जो संसार के महासागरों में लाखों वर्षों पहले से तैरती आ रही है, के द्वारा अपघटित होती है। आज के पादप प्लवक (Phytoplankton) की तरह ही उन्होंने भी सौर ऊर्जा को प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया एवं संचित किया। जन्तुप्लवक (Zooplankton) कुछ छोटे जीव होते हैं जो पादप प्लवकों को खाते हैं लेकिन खुद मछली एवं कुछ व्हेलों का मुख्य भोजन होते हैं।

जब ये छोटे पौधे के समूह मर जाते हैं, ये समुद्री सतह के नीचे डूब जाते हैं और धीरे-धीरे दबे रहकर ठोस चट्टानों में बदल जाते हैं। पृथ्वी के भीतर का ताप एवं इन चट्टानों के भार के फलस्वरूप इन दबे हुए पादपप्लवकों में निहित ऊर्जा के अंश धीरे-धीरे तरल हाइड्रोकार्बन एवं गैसों में बदल जाते हैं। हाइड्रोकार्बन एक प्रकार के साधारण अणु होते हैं जो कार्बन और हाइड्रोजन के परमाणुओं को श्रृंखला मे मिलाकर या घेरों मे मिलाकर बनते हैं। ये अणु हल्के एवं चलायमान होने के कारण पत्थरों से निकलकर ऊपर की ओर गति करते हैं और इस प्रक्रिया में ये अभेद्य पत्थरों के बीच में फंस जाते हैं।

पेट्रोलियम एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है। पिछले तीस वर्षों में पेट्रोलियम की खपत अन्य ऊर्जा स्रोतों की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ी है। विश्व में इस्तेमाल होने वाली कुल व्यवसायिक ऊर्जा का करीब 40% भाग पेट्रोलियम प्रदान करता है। इसे हम इस प्रकार सोच सकते हैं कि पेट्रोलियम का प्रयोग कारों, हवाई जहाजों, ट्रैक्टरों, पानी के जहाजों, विद्युत, खाना बनाने, कृषि क्षेत्रों, उद्योगों आदि में तो होता ही है। ये तो कुछ ही उदाहरण हैं। हमारे द्वारा पेट्रोलियम के उपयोगों की सूची का कोई अंत नहीं है। जीवाश्म ईंधन बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। हम आज जिस ईंधन को इस्तेमाल कर रहे हैं वह 650 लाख से भी अधिक वर्षों पहले बना था। इन्हें नवीनीकृत नहीं किया जा सकता है, ना ही इन्हें फिर से बनाया जा सकता है। हम जीवाश्म ईंधन का संरक्षण करके उसे बचा सकते हैं।

इसके अलावा ऊर्जा के ‘‘अक्षय स्रोत’’ जैसे सूर्य एवं पवन से ऊर्जा प्राप्ति के नए तरीके ढूंढने चाहिए। धरती में नीचे गहरा कुआँ खोदकर तेल निकाला जाता है और उसे पंपों द्वारा बाहर खींचा जाता है। तेल को गैसोलीन में परिवर्तित किया जा सकता है। तेल एवं गैसोलीन दोनों का प्रयोग वाहनों एवं हवाई जहाजों के चलने में किया जाता है। हम अपने परिवहन के लिये 90% भाग पर तेल के लिये आश्रित रहते हैं। इसके अलावा हम खाना, दवाओं एवं रसायन के क्षेत्र में भी तेल पर निर्भर करते हैं। हमारी आधुनिक जीवन शैली पूर्णतः तेल एवं गैस पर आश्रित है। लेकिन तेल उद्योग के विशेषज्ञों का यह अनुमान है कि वर्तमान में जितना तेल उपलब्ध है वह केवल 40 साल और चल पाएगा।

(ii) प्राकृतिक गैस (Natural gas)


प्राकृतिक गैस भी एक जीवाश्म ईंधन है जो धरती के नीचे पाई जाने वाली गैसों का एक मिश्रण है। प्राकृतिक गैस को जमा करके प्रायः तेल का जिस प्रकार से परिवहन किया जाता है, उसी प्रकार इसका भी परिवहन किया जाता है। प्राकृतिक गैस घरेलू भट्टियों एवं कुकिंग रेंजों में जलती है। अब इसका प्रयोग कारों एवं बसों के परिवहन में भी होने लगा है।

(iii) कोयला (Coal)


कोयला आम तौर पर इस्तेमाल होने वाला ठोस ईंधन है जिसका प्रयोग घरों और उद्योगों में ऊर्जा के प्रथम स्रोत के रूप में होता था। यह धरती के नीचे ठोस रूप में पाया जाता है तथा इसे इस्तेमाल करने के लिये पहले खानों से निकालकर परिवहन द्वारा एक स्थान से दूसरे तक ले जाया जाता है। हमारे देश में कोयले के प्रचुर भंडार मौजूद हैं।

कोयले में अधिकतर कार्बन होता है लेकिन इसमें कुछ सल्फर की मात्रा भी होती है। यह भी वनस्पतियों से बनता है जिसमें अधिकतर पेड़ होते हैं जो कई लाखों वर्षों पहले, निचले दलदल में पैदा हुए थे। जब ये पेड़ नष्ट हुए, ये दलदल के नीचे की ओर धँसते गए। दलदल में ये पूरी तरह सड़ नहीं पाए क्योंकि वहाँ तक हवा नहीं पहुँचती है। कुछ पेड़ पौधों के हिस्से जो आंशिक रूप से कीचड़ में ही सड़ गए थे, उन्हें पीट कहा गया जिसमें ऊष्मा कम मात्रा में होती है। ये पीट, पानी में दबने के बाद रेत एवं गीली मिट्टी में परिवर्तित हो जाते हैं। उन पर कई वर्षों तक और पदार्थ जमा होते रहे हैं। और यह पेड़ों का हिस्सा दबाव एवं ताप के प्रभाव से कोयले में परिवर्तित हो जाता है अर्थात पेड़ों का हिस्सा कई लाखों वर्षों में कोयले में रूपांतरित हो जाता है। यह सबसे अधिक मात्रा में उपलब्ध ईंधन है किंतु यह बहुत अधिक प्रदूषणकारी होता है।

27.3.3 नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear energy)


नाभिकीय ऊर्जा का उत्सर्जन नाभिकीय अभिक्रिया संलयन (Fusion) अथवा विखंडन (Fission) या रेडियो ऐक्टिव क्षय के परिणामस्वरूप होता है। एक परंपरागत नाभिकीय रिएक्टर में यूरेनियम एवं प्लूटोनियम के आइसोटोप - परमाणु संलयन की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इससे उत्पन्न होने वाली ऊष्मा-वाष्प (भाप) पैदा करता है जो एक टर्बाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करता है। अधिक मात्रा में ईंधन की आपूर्ति, कम मात्रा में मध्यवर्ती पर्यावरणीय प्रभाव, कम मात्रा में CO2 का उत्सर्जन एवं कई सारे सुरक्षा तंत्रों के कारण दुर्घटना की कम संभावना आदि इस ऊर्जा को एक अतिवांछित संसाधन मानते हैं। अन्य ऊर्जा संसाधनों के विपरीत, परमाणु ऊर्जा द्वारा उच्च कोटि के रेडियोएक्टिव पदार्थ उत्पन्न होते हैं जो हजारों वर्षों तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं जब तक कि उनकी रेडियोधर्मिता सुरक्षा स्तर तक न गिर जाए।

जब एक परमाणु रिएक्टर का उपयोगी जीवन काल (40-60 साल) खत्म हो जाता है, तब भी इसे बंद नहीं किया जा सकता है और इसे एक ठंडे ज्वलनशील संयंत्र के रूप में छोड़ दिया जाता है। इसमें प्रचुर मात्रा में रेडियोएक्टिव पदार्थ होते हैं जिन्हें पर्यावरण से हजारों वर्षों तक दूर रखा जाना चाहिए। इन सभी सुरक्षा उपायों के कारण ही परमाणु ऊर्जा संयंत्र को बनाना एवं उसका रख-रखाव करना काफी महँगा होता है।

हालाँकि, परमाणु अपशिष्ट का निपटान, आतंकी हमले के लिये इसकी अति संवेदनशीलता एवं परमाणु हथियार बनाने के लिये इस तकनीक का दुरुपयोग, इस ऊर्जा को एक मुश्किल विकल्प बना देता है एवं यह विश्व का सबसे कम विकसित होने वाला ऊर्जा स्रोत बन जाता है।

पाठगत प्रश्न 27.2


1. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत एवं अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत को परिभाषित कीजिए।
2- सौर ऊर्जा के उपयोग के विभिन्न तरीके कौन से हैं?
3. नवीकरणीय एवं अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विभिन्न स्रोतों को सूचीबद्ध कीजिए।
4. हाइड्रोजन को साफ सुथरा ऊर्जा स्रोत क्यों कहा जाता है?
5. प्रकृति में कोयले का निर्माण किस प्रकार होता है?

27.4 चिंता के चिन्ह


कुछ शताब्दी पहले तक प्रायः सभी लोग अपने घरों के आस-पास कुछ दूरी तक मिलने वाले ईंधन पर ही निर्भर रहते थे। अब जो ईंधन हमें ऊष्मा और प्रकाश के लिये चाहिए, वह लंबी दूरियाँ तय करके हम तक पहुँचता है। कभी-कभी यह महाद्वीपों को ही नहीं बल्कि राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विभाजकों को भी पार करके हमारे पास पहुँचता है। ये दूरियाँ, तेल से सम्बन्धित राजनैतिक अस्थिरता से लेकर लंबी दूरी की पाइप लाइनों से जुड़े पर्यावरणीय खतरों तक के लिये एक चुनौती पैदा करती है। इसके अलावा हम जीवाश्म ईंधन का प्रयोग भी लंबे समय तक नहीं कर सकते हैं क्योंकि ये अनवीकरणीय स्रोत हैं और इसका सीमित भंडार है।

अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International energy agency) का कहना है कि 2002 की अपेक्षा 2030 में विश्व को करीब 60 प्रतिशत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी। तब भी जीवाश्म ईंधन इस आवश्यकता को काफी हद तक आपूर्ति करते रहेंगे।

हर व्यक्ति जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं है। आज विश्व की संपूर्ण जनसंख्या का करीब एक तिहाई (6.1 विलियन लोग) भाग बिजली के या अन्य आधुनिक ऊर्जा आपूर्तियों के बिना रहता है एवं अन्य एक तिहाई के पास केवल सीमित संसाधन ही होते हैं।

चित्र 27.1 बढ़ती हुई वैश्विक ऊर्जा माँग के आँकड़े एवं तथ्यजिस तरह ताप एवं ऊर्जा संयंत्र संयुक्त रूप से कार्य करते हैं हमें भी कई सारे कार्य करने के लिये ऊर्जा को तुरंत प्राप्त कर सकते हैं। यदि हम ऊर्जा-क्षम हो जाएँ तो हम इसका कुछ भाग ही प्रयोग कर सकेंगे।

हमारी गरीबी मिटाने के लिये सस्ती, उपलब्ध ऊर्जा आवश्यक है। गरीबी मिटाना इसलिये आवश्यक है जिससे ऐसे गरीब, जिनके पास दो वक्त का भोजन भी नहीं है, के द्वारा पृथ्वी पर पड़ने वाला बोझ कम किया जा सके। हमारा ऊर्जा उपयोग अनवरत चलता रहता है लेकिन हम यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि इसके वैकल्पिक स्रोतों का कितना अधिक महत्त्व है।

लेकिन पानी से हाइड्रोजन उत्पन्न करने के लिये प्रचुर परिमाण में ऊर्जा की आवश्यकता होती है अतः यह स्वयं ही एक स्वच्छ विकल्प के रूप में सामने नहीं आ सकता है जब तक कि नवीकरणीय ऊर्जा इस प्रक्रिया के लिये व्यापक रूप से उपलब्ध न हो जाए।

आपने क्या सीखा


- ऊर्जा को ‘‘कार्य करने की क्षमता’’ के रूप में परिभाषित किया गया है एवं शक्ति ऊर्जा प्रदान करने की दर है।

- इसकी आवश्यकता समस्त जीवित प्राणियों, जिनमें मनुष्य भी शामिल है, के लिये होती है।

- बिना ऊर्जा के कोई गति नहीं कर सकता, ना ही कार्य कर सकता है।

- ऊर्जा का व्यवहार एवं रूपांतरण पूर्णतः ऊष्मागतिकी के नियमों द्वारा संचालित होता है।

- ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम बताता है कि ऊर्जा को ना तो निर्मित किया जा सकता और ना ही समाप्त किया जा सकता है। इसे ऊर्जा संरक्षण का नियम भी कहा जाता है। ऊर्जा का प्रवाह उच्च विभव से निम्न विभव की ओर होता है।

- ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम कहता है कि ऊर्जा रूपांतरण कभी भी 100 प्रतिशत नहीं होता है अर्थात ऊर्जा रूपान्तरण के प्रत्येक चरण में कुछ मात्रा में ऊर्जा का क्षय ऊष्मा के रूप में होता है। ऊर्जा को मापने की परंपरागत इकाई है ग्राम कैलोरी।

- विभिन्न ऊर्जा स्रोतों को व्यापक पैमाने पर दो श्रेणियों में बाँटा गया है; नवीकरणरीय एवं अनवीकरणीय।
- नवीकरणीय ऊर्जा शब्द ऐसा ऊर्जा का वर्णन करने के लिये इस्तेमाल किया गया है जो पुनरुत्पादित एवं प्रायः अक्षय आपूर्ति वाले स्रोतों से आती है।

- सबसे महत्त्वपूर्ण एवं अक्षय ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। सौर ऊर्जा हरे पेड़-पौधों द्वारा ग्रहण करके प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा खाना बनाने के लिये इस्तेमाल की जाती है। सौर ऊर्जा बायोमास द्वारा भी इस्तेमाल की जाती है जिसका प्रयोग ऊर्जा स्रोत के रूप में पशुओं एवं मनुष्यों द्वारा भी होता है।

- अन्य नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत हैं सौर ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पन बिजली ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा एवं लहर तथा ज्वार-भाटा ऊर्जा।

- अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का भंडार सीमित मात्रा में उपलब्ध है। अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों की पुनरुत्पादन की दर इसकी खपत की तुलना में लगभग शून्य है।

- जीवाश्म ईंधन महत्त्वपूर्ण अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं। जीवाश्म ईंधन (कोयला, लिग्नाइट, पीट, गैस, तेल) पृथ्वी के नीचे एवं समुद्री सतह के नीचे द्रव एवं गैसीय रूप में पाये जाते हैं। जीवाश्म ईंधन, प्राचीन वनस्पतियों एवं जीव जन्तुओं के अवशेष हैं जो धरती पर पाए जाते हैं। जीवाश्म ईंधन की ऊर्जा ताप के रूप में उत्सर्जित होती है। जीवाश्म ईंधन हाइड्रोकार्बन होते हैं एवं उनमें कोयला, लिग्नाइट, पीट, पेट्रोलियम प्राकृतिक गैस शामिल है।

- जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम करने के लिये क्योंकि वे जल्दी खत्म हो जाएँगे, नवीकरणीय स्रोतों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये दिन प्रतिदिन दबाव बढ़ता जा रहा है।

- जीवाश्म ईंधन के बढ़ते प्रयोग से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ी है जिससे जलवायु परिवर्तन एवं भूमंडलीय तापन जैसी समस्याएँ सामने आई हैं।

- जीवाश्म ईंधन एक अनवीकरणीय एवं सीमित संसाधन है जिसका प्रयोग हम लंबे समय तक नहीं कर सकते हैं।

- नाभिकीय ऊर्जा एक नाभिकीय अभिक्रिया (विखंडन या संलयन) के द्वारा या रेडियोएक्टिव क्षय के द्वारा उत्सर्जित होती है। नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन एक विशेष रूप से बने नाभिकीय पॉवर संयंत्र में होता है जो नाभिकीय ऊर्जा को उपयोगी शक्ति जैसे यांत्रिक या विद्युत शक्ति में परिवर्तित कर देता है।

- एक नाभिकीय विद्युत संयंत्र में, रिएक्टर द्वारा उत्पन्न ऊष्मा का आमतौर पर भाप बनाने के लिये उपयोग होता है जो टर्बाइन को घुमाती है जिससे विद्युत जनरेटर चलता है।

पाठान्त प्रश्न


1. बायो ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? बायोमास ऊर्जा को प्रयोग करने के विभिन्न तरीकों का वर्णन कीजिए।
2. ऊष्मागतिकी के प्रथम और द्वितीय नियम बताइए।
3. नवीकरणीय एवं अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को सूचीबद्ध कीजिए।
4. ईंधन कोष्ठिका क्या है? रॉकेट चलाने में किस ईंधन का उपयोग होता है?
5. बायोगैस उत्पादन के लिये किस तरह की परिस्थितियाँ होनी चाहिए?
6. बायोगैस की औसत संघटना क्या है?
7. हाइड्रोजन को विशुद्ध ऊर्जा स्रोत क्यों कहा गया है?
8. कोयले और पेट्रोलियम में वास्तविक ऊर्जा स्रोत क्या है?
9. कोयला एवं पेट्रोलियम निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन करें।
10. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने के लिये बढ़ते दबाव के कारण बताइए।
11. किस प्रकार की ताप (ऊर्जा) या शक्ति प्रदूषण पैदा नहीं करती है?

पाठगत प्रश्नों के उत्तर


27.1
1. ऊर्जा कार्य करने की क्षमता होती है।
2. यह ताप की वह मात्रा होती है जिसकी आवश्यकता एक ग्राम पानी का तापमान 1 डिग्री बढ़ाने अर्थात 14.5°C से 15.5°C के लिये होता है।
3. ऊर्जा का SI मात्रक जूल (J) है। यह वह कार्य होता है जो एक न्यूटन का बल एक बिंदु को एक मीटर तक विस्थापित करने में प्रयोग करता है।
4. प्रथम नियम यह है कि ऊर्जा ना तो बनाई जा सकती है और ना ही नष्ट की जा सकती है। इसे केवल एक रूप से दूसरे में बदला जा सकता है। द्वितीय नियम यह बताता है कि प्रत्येक रूपांतरण में कुछ मात्रा में ऊर्जा का क्षय ताप के रूप में होता है।

27.2
1. ऐसी ऊर्जा जो ऐसे स्रोतों से आती है जिसकी आपूर्ति अक्षय होती है और इन स्रोतों का नवीकरण या पुनरुत्पादन किया जा सकता है। वह ऊर्जा स्रोत जो सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं एवं जिनका पुनरुत्पादन कम समय में करना संभव नहीं है।

2. सौर ऊर्जा का प्रयोग कई तरीकों से होता है जैसे घरों को गर्म करने में, पानी गर्म करने में, सौर कुकर से खाना पकाने में तथा विद्युत उत्पादन में।

3. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं- सौर, पवन, पन बिजली, भूतापीय, महासागरीय-तापीय ऊर्जा, बायोमास तथा हाइड्रोजन।

अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं- कोयला, गैस, तेल एवं पेट्रोलियम।

4. हाइड्रोजन बिना कोई प्रदूषण फैलाए शुद्ध ऊर्जा एवं शुद्ध जल प्रदान करता है।

5. कई लाखों वर्ष पहले जो पेड़ दलदल में पैदा हुए थे उन्हीं से कोयला बना। ये पेड़ दबने के बाद दलदल में नीचे धंस गए। ये पूरी तरह सड़े नहीं क्योंकि वहाँ हवा नहीं पहुँची। इन पेड़ों के अवशेष पर रेत और कीचड़ की तह जमती गई एवं हजारों वर्ष बीतने पर ये वनस्पति पदार्थ धीरे-धीरे ताप एवं दबाव के कारण कोयले में परिवर्तित हो गए।

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