समाधान का एक रास्ता यह भी

यमुना की सफाई ‘नेचुरल सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम’ से की जा सकती है। यह प्रणाली नदियों के किनारों पर या नई कालोनियों में भी लगाई जा सकती है। इस प्रणाली से पानी शुद्ध करके उपयोग में लाया जा सकता है। इस प्रकार शुद्ध किए गए जल में मछली आदि जलचर पाले जा सकते हैं। वनचरों को पीने के लिए शुद्ध पानी मिलता है। शुद्ध जल के किनारे औषधियों से संबंधित पौधों को रोपा जा सकता है। अनेक पौधे स्वत: ही उग जाते हैं। जलाशय के किनारों पर बांस, केली, टाइफा जैसे तमाम पौधों को रोपा जा सकता है। इनके द्वारा भी जल से प्रदूषक अवशोषित होते हैं। अवशोषित जल का प्रयोग सिंचाई के काम आ सकता है। भूमिगत जल का स्तर भी लगभग समान बना रह सकता है। इन जलाशयों में वर्षा का जल भी एकत्र रह सकता है। नेचुरल सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम (प्राकृतिक सीवेज उपचार प्रणाली) उन्हीं नालों पर लगाया जाता है, जिन नालों के पानी में कोई रसायन मिला हुआ जहरीला पानी न आता हो। हमने सरकार से मांग की कि यमुना खादर में गिरने वाले प्राकृतिक नालों पर ‘प्राकृतिक सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम’ लगाया जाए ताकि उनको किसी भी तरह की बिजली और मानवीय प्रबंधन की जरूरत न रहे क्योंकि ज्यादातर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मानवीय प्रबंधन या बिजली की अनुपस्थिति में बंद रहते हैं। इन प्लांटों के नाम पर हजारों करोड़ रु. खर्च किये जा रहे हैं पर परिणाम शून्य है। प्राकृतिक सीवेज उपचार प्रणाली के अंतर्गत गंदे पानी को एक जगह एकत्र कर लिया जाता है। उसको एक बड़े तालाब का रूप दे दिया जाता है। बड़े तालाब से पांच या छह सीढ़ियां बनाकर पानी को सीढ़ियों से नीचे गिराया जाता है। जिससे दो काम होते हैं, एक तो पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। दूसरा पानी का उछलना-कूदना एक सौंदर्य भी पैदा करता है। जिस छोटे तालाब में पानी को गिराया जाता है। उसमें सबसे नीचे रेती होती है। रेती के ऊपर बजरी होती है। सबसे ऊपर मोट- मोटे पत्थर होते हैं। सबसे पहले गंदा पानी पत्थरों पर गिरता है। उसके बाद बजरी तथा रेती से होकर गुजरता है। अंत में पानी शुद्ध होकर एकत्र हो जाता है। तालाब की दीवार में से छिद्र बना दिये जाते हैं।

शुद्ध जल उन छिद्रों से होकर दूसरे तालाब में, तत्पश्चात तीसरे तालाब में जाता है। इस प्रकार पांचवें तालाब तक जाते-जाते जल पूर्णत: शुद्ध हो जाता है। यही विधि प्राकृतिक सीवेज उपचार प्रणाली कहलाती है। जिन चार तालाबों से गंदा जल गुजरता है, उन सभी में पत्थर, बजरी तथा रेती पड़ी होती है। अन्य दिशाओं से भी जल का बहाव इन्हीं में मोड़ दिया जाता है। इस प्रकार प्राकृतिक सीवेज उपचार प्रणाली का एक उदाहरण, ककरैठा, सिकन्दरा, आगरा में देखने को मिलता है। वहां प्राकृतिक सीवेज उपचार प्रणाली का एक प्लांट है। यह वन क्षेत्र है और वन विभाग द्वारा ही इस प्रक्रिया को मूर्तरूप दिया गया है। इस प्रकार की सीवेज उपचार प्रणाली का प्रबंध उन्हीं नालों के पास किया जाता है, जहां घरेलू प्रयोग का पानी बहता है। उसमें प्रदूषित रसायन युक्त जल नहीं बहता हो। यह प्रणाली नदियों के किनारों पर या नई कालोनियों में भी लगाया जा सकता है।

खादरों को भी इस प्रणाली के तहत प्रयोग में लाया जा सकता है। इस प्रणाली द्वारा पानी शुद्ध करके उपयोग में लाया जा सकता है। जलाशय के किनारों पर बांस, केली, टाइफा जैसे तमाम पौधों को रोपा जा सकता है। इनके द्वारा भी जल से प्रदूषक अवशोषित होते हैं। यमुना के घाटों पर ‘नेचुरल सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम’ बनाकर उसका पानी सिंचाई हेतु उपयोग किया जाए। 02 नवम्बर 2007 को मंडलायुक्त आगरा ने हमारी मांगों के संबंध में संबंधित विभागों को पत्र लिखकर कहा कि देशी पद्धति द्वारा यमुना जल शुद्धिकरण के संदर्भ में उचित कार्रवाई की जाए। उन्होंने स्वयंसेवी संगठनों और गैरसरकारी संस्थाओं की भी मदद लेने को कहा। यमुना सफाई के काम में पूंजी आधारित योजनाओं से बचने और प्राकृतिक तरीकों को अपनाने पर ज्यादा जोर दिया जाए। मेरा स्पष्ट मानना है कि ‘नेचुरल सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम’ से खाली हो रहे भूगर्भ को भी जल से भरा जा सकता है। मैं समय-समय पर सरकार के विभिन्न विभागों को पत्र लिखकर व सम्पर्क कर बताता रहा हूं कि यमुना की सफाई के लिए यह योजना केवल और केवल श्रम मांगती है, पूंजी की जरूरत काफी कम होती है। हमारे सतत प्रयास और वन विभाग के सहयोग से फरवरी 2010 में ककरेठा वनक्षेत्र में इस तरह का एक प्रोजेक्ट शुरू भी किया गया और प्रोजेक्ट काफी सफल भी रहा। ककरेठा के आसपास से 4 प्रमुख नाले यमुना में गिरते हैं, उन्हें वनविभाग ने वनभूमि की तरफ मोड़ दिया।

इस पानी को एक के बाद एक तालाबों में डालकर साफ किया गया। तालाब में पानी रोककर बालू, बजरी, तथा पत्थरों के टुकड़ों से होकर गुजारा गया, जिससे काफी हद तक पानी साफ हो गया है। लेकिन इस तरह के लिए अन्य और कामों पर सरकार ने कोई कोष जारी नहीं किया जिससे आगे का काम रुक चुका है।

प्राकृतिक सीवेज से लाभ ही लाभ


इस प्रकार शुद्ध किए गए जल में मछली आदि जलचर पाले जा सकते हैं। वनचरों को पीने के लिए शुद्ध पानी मिलता है। शुद्ध जल के किनारे औषधियों से सम्बन्धित पौधों को रोपा जा सकता है। अनेक पौधे स्वत: ही उग जाते हैं। अवशोधित जल का प्रयोग सिंचाई के काम आ सकता है। किसानों की सिंचाई की समस्या का समाधान करने में आसानी रहेगी। इस प्रकार के जलाशयों के कारण भूमिगत जल का स्तर लगभग समान बना रह सकता है। इससे पेयजल की समस्या से लड़ा जा सकता है। इन जलाशयों में वर्षा का जल भी एकत्र रह सकता है। इससे भविष्य में उपयोग के लिए जल सुरक्षित रह सकता है।

वर्षा कम होने पर सिंचाई आदि के लिए इस जल का उपयोग किया जा सकता है। जल के कारण वृक्षों को पोषण मिलता है तथा वृक्षों से पर्यावरण सुधरता है। वृक्ष वर्षा कराने में सहयोग करते हैं। यमुना तथा अन्य नदियों के पास यदि इस तरह के प्लांट्स हों तो नदियों को भी इनसे लाभ मिलता है। पानी का रिसाव होता रहता है। रिसाव के कारण नदियों का जल स्तर बढ़ता रहता है और नदी जीवित रहती है। नदी सदानीरा बनी रहती है। इस प्रकार की सीवेज प्रणाली से वह स्थान पर्यटन स्थल का रूप ले सकता है। आगरा में यमुना तट के आसपास यदि इस तरह के सीवेज प्लांट बनाए जाते हैं तो ताजमहल आने वालों को आकर्षित किया जा सकता है।

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