स्कूल पाठ्यक्रम में आपदा प्रबन्धन

आपदा एकदम और प्राकृतिक रूप से आती है और इसके कारण किसी देश या प्रदेश में काफी ज्यादा लोग विस्थापित हो सकते हैं। इस वजह से प्राकृतिक संसाधनों की बड़े पैमाने पर बर्बादी होती है, प्रदूषण के कारण नदियों, भूजल और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है।इस धरती पर मानव के आविर्भाव के बाद से अनेक प्रकार की प्राकृतिक और मानव रचित आपदाएँ आती रही हैं। ये अवांछित घटनाएँ जब-तब अनियमित रूप से इस भूतल पर होती रहती हैं। प्राकृतिक आपदाएँ भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, बाढ़, सूखे, दुर्भिक्ष अथवा समुद्री तूफान के रूप में हो सकती हैं। मानव सृजित आपदाएँ प्रदूषण, कुहासा, गैस, बिजली चली जाना, रासायनिक रिसाव, अग्निकाण्ड, बम विस्फोट, हिंसा और मारकाट के रूप में सामने आ सकती हैं।

इस बात पर सभी सहमत होंगे कि कोई भी आपदा एकदम और प्राकृतिक रूप से आती है और इसके कारण किसी देश या प्रदेश में काफी ज्यादा लोग विस्थापित हो सकते हैं। इस वजह से प्राकृतिक संसाधनों की बड़े पैमाने पर बर्बादी होती है, प्रदूषण के कारण नदियों, भूजल और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। जहाँ खतरे को तबाही और बर्बादी का परिणाम माना जाता है वहीं तबाही से प्रभावित होने की आशंका को एहतियाती उपायों के जरिये रोका जा सकता है। इन उपायों में क्षमता निर्माण शामिल है जिसके लिए तकनीकी और वित्तीय आधार की जरूरत पड़ेगी। दूसरे शब्दों में खतरा प्रबन्धन आपदा प्रबन्धन का ही एक भाग है।

इसी तरह से, आपदा प्रबन्धन आपदाओं और उसके बाद के परिणामों के नाजुक मुद्दों पर जोर देता है। इनमें सबसे पहले तबाही में कमी लाना शामिल है। इससे जिम्मेदारी व्यक्ति की बजाय समाज पर आ सकती है और समुदाय उन्मुखता की धारणा सरकार केन्दित हो जाती है। सामुदायिक पहल में दो चीजें बहुत जरूरी हैं। पहला है तैयारी जिसका मतलब है किसी आने वाली आपदा के परिणामों का सामना करने के लिए सेवाएँ तैयार करना। इसके लिए स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशालाएँ आयोजित करके जागरुकता पैदा करना और चेतावनी तन्त्र पैदा करना पड़ेगा। सहायता व्यवस्था और प्रबन्धन की कार्यनीतियाँ भी तैयार करनी होंगी। इसी बात का दूसरा पक्ष है आपदा के समय निवारण व्यवस्था। इसका मतलब है खतरा कम करने के लिए योजनाएँ बनाना और परिणामस्वरूप होने वाली अव्यवस्था से बचने के उपाय।

इसी तरह से, दूसरी बात आपदा के बाद राहत और प्रतिक्रिया से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत नियन्त्रण कक्ष की स्थापना, भोजन एवं आश्रय की व्यवस्था तथा खोज राहत के काम आते हैं। इनमें गैर-सरकारी संगठनों के नेताओं को भी शामिल करना चाहिए। इसी क्रम में आपदा के शिकार हुए लोगों की खोज और पुनर्वास करना होगा, सुरक्षा एवं भरोसा बढ़ाने के उपाय, जरूरी सेवाओं और संचार की बहाली और तबाही के बाद दैनिक सेवाओं को फिर से शुरू करने के उपाय करने होंगे।

स्कूली शिक्षा में आपदा प्रबन्धन के महत्त्व को देखते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य शिक्षा बोर्ड ने लोगों में जागरुकता लाने, तैयारी करने और निवारण, पुनर्निर्माण, राहत और बचाव तथा मानव सृजित आपदाओं के शिकार लोगों के बचाव और स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम को इसके अनुरूप बनाने के उपाय किए, ताकि अप्रत्याशित आपदाओं का सामना किया जा सके। अग्निकाण्ड जैसी इंसानों द्वारा पैदा की गई आपदाओं को स्थानीय परिस्थितियों से जोड़कर और हफ्ते भर तक वाद-विवाद और विचार-गोष्ठियों का स्कूलों के सहयोग से आयोजन करके पूरे देश में आग और इसके निवारण के उपायों की जानकारी दी गई।

इसी तरह से युवकों को भी हथगोले या इसी तरह के विस्फोटक पदार्थों को छूने के परिणाम मालूम होने चाहिए। इनके बारे में सुरक्षाबल सद्भावना अभियान के तहत लोगों को जानकारी दे रहे हैं। चालू वर्ष के बर्फीले सुनामी, देश के साथ राज्य को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर अक्सर होने वाले भूस्खलन और कश्मीर के उत्तरी और दक्षिणी प्रदेशों में बर्फ और भूस्खलन वाले इलाकों तथा अन्य नागरिक आपदाओं से बचाव की योजनाएँ भी बनाई जानी चाहिए।

राज्य के लोगों के कल्याण के लिए विभिन्न एजेंसियों और संगठनों ने बिखरे होने के बावजूद योजनाएँ बनाई हैं जिन्हें संकलित किया जा रहा है और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर राज्य स्कूल शिक्षा बोर्ड ने इस दिशा में अपनी तरफ से कुछ प्रयास किए हैं और विभिन्न कक्षाओं में भूगोल विषय में इन्हें शामिल किया है। इस विषय में आपदाओं का विवरण और इंसान पर उनके परिणामों का विवरण दिया गया है। राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान के नीति-निर्देशों के जवाब में उठाए गए इस कदम के परिणामस्वरूप निम्नलिखित उपाय किए गए हैं और कक्षा 8 से 9 तक के पाठ्यक्रम में निम्नलिखित पाठ शामिल किए गए हैं।

कक्षा 8 की भूगोल की पुस्तक में 'धरातल में परिवर्तन' शीर्षक अध्याय में भूगर्भीय गतिविधियों, जैसे ज्वालामुखी, भूकम्प और इसके केन्द्र, भूकम्पमापी यन्त्र आदि का परिचय दिया गया है। इसी तरह से उसी पुस्तक के भूदृश्य निर्माण अध्याय में मौसम, बाढ़, भूमि सुधार आदि के ब्यौरे दिए गए हैं तथा आपदाओं से निपटने की तैयारी और निवारण के उपाय बताए गए हैं जिसमें छात्रों के मिट्टी की किस्मों, जंगलों के विनाश के कारण और उपाय तथा फसल-चक्रों के बारे में जानकारी दी गई है।

यही नहीं, कक्षा 9 की भूगोल की पुस्तक में नाली व्यवस्था शीर्षक एक अध्याय में झीलों और पानी की निकासी, प्रदूषण और कार्य योजनाओं का विवरण दिया गया है। कक्षा 9 की ही पुस्तक के एक अध्याय का शीर्षक है 'हमारे संसाधन'। इसमें संसाधनों के विकास, नियोजन, क्षरण और भूमि कटाव तथा उससे बचाव के उपायों की चर्चा है।

जम्मू-कश्मीर राज्य शिक्षा बोर्ड ने भी पाठ्यक्रम पुस्तकों में इन विषयों की जानकारी शामिल करके सराहनीय कार्य किया है। विज्ञान, समाज विज्ञान और उर्दू तथा अंग्रेजी की किताबों में इन विषयों को शामिल करके स्कूली शिक्षा को पर्यावरण-हितैषी बनाने की कोशिश की गई है। एक परियोजना के अन्तर्गत कार्यशालाओं और प्रशिक्षण जैसे उपायों के जरिये छात्रों की इन विषयों में रुचि पैदा करने की कोशिश की गई है। ये कार्यशालाएँ पर्यावरण शिक्षा के लक्ष्य पूरे करने की परियोजना के अन्तर्गत आयोजित की गई ताकि पर्यावरण शिक्षा के लक्ष्य पूरे हो सकें।

आयोजित की गई कार्यशालाओं और अन्य कार्यक्रमों का उद्देश्य कक्षा 6, 7 और 8 की विज्ञान और टेक्नोलॉजी की पाठ्यपुस्तकों में पर्यावरण शिक्षा सम्बन्धित विषयों का समावेश करना तथा वांछित परिवर्तनों को अन्तिम रूप देना है। इनमें अवधारणाओं की सूची बनाना और काम आने वाली सामग्री का विकास करना शामिल है। ये विषय जम्मू-कश्मीर राज्य स्कूल शिक्षा बोर्ड की स्कूल व्यवस्था के विभिन्न स्तरों की पाठ्यपुस्तकों में पहले से मौजूद हैं अथवा शामिल कर लिए गए हैं।

यह उल्लेखनीय है कि आपदाओं के बारे में लोगों को जागरूक बनाने और इस तरह की अप्रिय घटनाओं का सामना करने के लिए जिम्मेदारी की भावना जगाने में किसी व्यक्ति, समुदाय, गैर-सरकारी संगठन तथा राज्य एवं केन्द्र सरकार और विभिन्न स्वायत्तशासी निकायों को अपने तरीके से योगदान करना होता है और देश ही नहीं बल्कि विदेश के लोगों की भी बिना उनकी हैसियत, जाति, धर्म और राष्ट्रीयता आदि का भेदभाव किए मदद करनी होती है। इस तरह से हम सभी को अपने को एक आदर्श गाँव का श्रेष्ठ नागरिक साबित करने का मौका मिलता है। एक ऐसा नागरिक जो प्राकृतिक आपदाओं और मुसीबतों से निपटने की क्षमता से लैस है।

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