जीर्णोद्धार के बाद जयपुर की मानसागर झील और जलमहल पर नए प्रदूषण का साया
1990 के बाद राजस्थान सरकार ने तकरीबन 500 साल पुरानी इस मानसागर झील की बदतर होती स्थिति, इसकी पारिस्थितिकी और जलमहल के जीर्णोद्धार के लिए कई प्रयास किए लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। पिछले कुछ दशकों से इस झील में गाद, गंदगी और प्रदूषण स्तर इतना बढ़ गया था कि न सिर्फ आसपास के इलाके बदबू से त्रस्त हो गए थे बल्कि झील का दायरा भी सिमटने लगा था।
जयपुर की विवादित मानसागर झील और जलमहल परियोजना में भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोपों की जांच तो फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुकी है लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने पुनर्जीवित हुई झील को जिस यथावत स्थिति में रखने का आदेश जारी किया है उससे तय है कि एक स्वच्छ जल स्रोत और उसमें जगमगाता जलमहल फिर से प्रदूषण की चपेट में आ जाएगा। मशहूर बुजुर्ग स्तंभकार वी.जी. वर्गीज के शब्दों में, ‘ऑपरेशन तो सफल रहा लेकिन मरीज की मौत हो गई।’ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामने पर 25 मई को फैसला सुनाते हुए जलमहल रिसोर्ट प्राइवेट लिमिटेड (जेएमआरपीएल) की 99 साल की लीज को रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इसे देखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञों, बुद्धिजिवियों तथा स्थानीय निवासियों ने इस पर्यटन स्थल को आम जनता के लिए खोल देने की मांग तेज कर दी है।हाईकोर्ट ने 17 मई को राजस्थान विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर के.पी. शर्मा की जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए रिसोर्ट कंपनी को दी गई लीज को अवैध ठहराया था। इससे पहले 4 मई को किसी बाबू खान ने जेएमआरपीएल के निदेशक और आभूषण कारोबारी नवरतन कोठारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराते हुए उन पर जलमहल स्थित धार्मिक स्थलों को नष्ट करने का आरोप लगाया था। उसी दिन धरोहर बचाओं समिति के भागवत गौड़ ने कोठारी पर फर्जी दस्तावेज और धोखाधड़ी से मानसागर झील एवं जलमहल स्मारक को 99 साल की लीज पर देने के मामले में जांच करने की अपील की। उनका कहना था कि लीज पर जमीन पाने के लिए केजीके इंटरप्राइजेज मुंबई ने भी निविदा डाली जिसके कर्ताधर्ता कोठारी थे। इसी तरह जलमहल प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड भी कोठारी की दूसरी कंपनी का ही नाम था। यानी आरोप था कि एक ही व्यक्ति ने छल करके निविदा प्रक्रिया को प्रभावहीन बनाया है। इस मामले पर सुनवाई करते हुए अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट क्रम-5 ने 9 सितंबर 2011 को कोठारी सहित चार लोगों के खिलाफ गैर जमानती वांरट जारी करने का आदेश दिया। मामले को झील के कायाकल्प के लिए जारी निविदा से ही उलझाया जा रहा है।
दरअसल 1990 के बाद राजस्थान सरकार ने तकरीबन 500 साल पुरानी इस मानसागर झील की बदतर होती स्थिति, इसकी पारिस्थितिकी और जलमहल के जीर्णोद्धार के लिए कई प्रयास किए लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। पिछले कुछ दशकों से इस झील में गाद, गंदगी और प्रदूषण स्तर इतना बढ़ गया था कि न सिर्फ आसपास के इलाके बदबू से त्रस्त हो गए थे बल्कि झील का दायरा भी सिमटने लगा था। ब्रह्मपुरी नाले और नागतलाई नाले से बरसात का पानी इकट्ठा होने के कारण पहले यह झील पानी से लबालब रहती थी। लेकिन कई दशकों से दोनों नालों पर अतिक्रमण, शहर की गंदगी, पॉलिथिन और मल-मूत्र बढ़ने के कारण जलापूर्ति लगभग नगण्य रह गई। जयपुर और इसके आसपास की छह अन्य झीलों की तरह इस झील पर भी अस्तित्व का संकट मंडराने लगा था।
सन 1998 में सत्ता में आई अशोक गहलोत की पहली सरकार और जयपुर नगर निगम ने सरकारी निजी क्षेत्रों की भागीदारी (पीपीपी) से झील के जीर्णोद्धार के लिए निवेशक आमंत्रित किए तो ताज आईटीसी, ओबेरॉय, डीएलएप जैसी कंपनियों के प्रतिनिधियों ने जयपुर पर्यटन विभाग के सचिव अरविंद मायाराम के साथ बैठक की। तय हुआ कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इस परियोजना को अमल में लाया जाए और इसके लिए झील के आसपास की सौ एकड़ जमीन के 13 प्रतिशत हिस्से पर परियोजना से जुड़ी कंपनियों को लीज के तहत व्यावसायिक गतिविधियां चलाने की अनुमति दी जाए। बैठक के बाद जब इन प्रतिनिधियों को झील स्थल का दौर कराया गया तो उन्होंने अपनी नाक पर रूमाल रखते हुए यह कहते हुए परियोजना से मुंह मोड़ लिया कि इसमें करोड़ों रुपए झोंक भी दिए जाएं तो भी इसके पुनरुद्धार या आमद की गारंटी नहीं दी जा सकती। इसके बाद अक्टूबर 2001 में पीडीकोर ने एक नई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की जिसमें कार्य, गतिविधियों, दायित्वों और परियोजना की लागत निर्धारित की गई। इसकी निविदा के विज्ञापन देश के राष्ट्रीय दैनिकों में प्रकाशित हुए। इसमें कई कंपनियों ने हिस्सा लिया लेकिन सिर्फ चार कंपनियों ने तकनीकी और वित्तीय बोलियां सौंपीं जिनमें तकनीकी आधार पर जांच में दो कंपनियां अयोग्य हो गईं। केजीएम कंसोर्टियम ने सालाना 2.52 करोड़ रुपए की बोली लगाई जबकि जे.एम. प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड ने 1.81 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। लिहाजा केजीके कंसोर्टियम तकनीकी और वित्तीय दोनों आधार पर परियोजना पाने में सफल रही। वर्ष 2005 में केजीके की मातहत परियोजना कंपनी जलमहल रिसोर्ट ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए कि वह मानसागर झील और उसके बीच स्थित ऐतिहासिक जलमहल की 100 एकड़ भूमि पर विकास कार्य को अंजाम देगा।
इस निविदा के खिलाफ याचिकाकर्ता भागवत गौड़ ने यह कहते हुए जनहित याचिका दायर की कि निविदा प्रक्रिया में भाग लेने वाली कंपनी का पब्लिक लिमिटेड या प्राइवेट लिमिटेड होना जारूरी है लेकिन केजीके इंटरप्राइजेज भागीदारी वाली कंपनी है। इसके बावजूद वित्तीय बोली में केजीके का लिफाफा खोला गया। इसके अलावा आरोप लगाया गया कि राजस्थान पर्यटन विकास निगम के तत्कालीन अधिकारियों ने नवरतन कोठारी से सांठगांठ करते हुए जलमहल झील की 100 एकड़ भूमि फर्जी दस्तावेज के आधार पर 99 साल की लीज पर दे दी। हाईकोर्ट ने इस वर्ष इस आधार पर लीज रद्द कर दी कि परियोजना से जुड़ी केजीके एक कंपनी है न कि प्राइवेट लिमिटेड कंपनी तथा परियोजना में पर्यावरण, धरोहर, झील और स्मारक के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ की जा रही है।
जवाब में परियोजना निदेशक राजीव लुंकड़ ने बताया कि झील के पुनरुद्धार के बदले मात्र 13 फीसदी जमीन पर व्यावसायिक गतिविधियों की इजाजत कंपनी को सिर्फ इसलिए दी गई है कि पर्यटन को बढ़ावा मिले। विदेशी पर्यटक जयपुर के ऐतिहासिक स्थलों को दिन में देख लेने के बाद शायद ही रात को यहां ठहरते हैं। लेकिन झील और जलमहल देखने के लिए वे रात को होटलों में ठहर सकते हैं और इसलिए यहां एक होटल और बजट होटल, दिल्ली हाट की तर्ज पर हाट आदि बनाने की मंजूरी दी गई है। इससे राजस्व में भी वृद्धि होगी। लुंकड़ के मुताबिक यह भी आरोप लगा कि झील का आकार कम कर दिया गया है और सेडिमेंटेशन पिट (गाद, कचरा जमा होकर स्वच्छ पानी प्रवाहित करने वाली व्यवस्था) बनाकर झील का स्वरूप बिगाड़ दिया गया है जबकि सेडिमेंटेशन पिट झील के पुनरुद्धार के लिए जरूरी थी। जर्मन विशेषज्ञ हेराल्ड क्राफ्ट के मुताबिक भी विश्व की यह पहली ऐसी झील है जिसमें सेडिमेंटेशन पिट के जरिए कचरा छनकर साफ पानी झील में पहुंचता है जिससे इसका पुनरुद्धार हो सका।
पर्यावरणविद् और पक्षी विशेषज्ञ हर्षवर्धन पिछले कई वर्षों से जलमहल के पास पक्षी मेला लगाते आ रहे हैं। हर्षवर्धन कहते हैं, ‘सेडिमेंटेशन पिट से झील का पानी 80 से 90 प्रतिशत साफ हो गया है। ब्रह्मपुरी नाला शहर के पश्चिमी छोर से आते हुए झील की दक्षिणी दिशा में गिरता है जबकि नागतलाई नाला पूर्वी छोर से आते हुए दक्षिणी दिशा में गिरता है। झील का जलग्रहण क्षेत्रफल 23.5 वर्ग किलोमीटर है जिसमें 80 प्रतिशत क्षेत्र में ब्रह्मपुरी और नागतलाई तथा आसपास की कॉलोनियों का पानी आता है। दोनों नालों को जलमहल रिसोर्ट प्राइवेट लिमिटेड (जेएमआरपीएल) ने तकरीबन 1.5 किलोमीटर मोड़ दिया ताकि गंदा पानी सीधे झील में न आ सके। दोनों नालों को इस तरह मिलाया गया है कि गंदा पानी काणोता बांध में चला जाए और मानसागर को शहर के रोजाना प्रदूषित पानी से बचाया जा सके। इस संशोधित प्रणाली से झील में सिर्फ बारिश का शुद्ध पानी ही इकट्ठा हो सकेगा। पहले ब्रह्मपुरी नाले से प्रतिदिन 30 एमएलडी और नागतलाई नाले से 8 एमएलडी सीवर का पानी झील में जमा होता था जिससे झील में गाद बढ़ती जा रही थी। हर साल मानसून के दौरान लगभग 200 टन गाद झील में जमा हो जाती थी जो अब नई व्यवस्था से थम गई है। इसके अलावा 40 किस्म के प्रवासी पक्षियों के लिए झील में मछलियों के रूप में चारा भी मिलने लगा है। इससे प्रवासी पक्षियों की आवक बढ़ने लगी है।’
पास की हजरत अली कॉलोनी की रूबी खान कहती हैं, ‘आज से चार साल पहले हमारे कोई मेहमान या रिश्तेदार मिलने आते थे तो हमें हिकारत की नजरों से देखते थे। वे कहते थे कि कहां आकर बस गई हो। झील की बदबू से न सिर्फ आसपास के इलाके प्रदूषित थे बल्कि हर घर में कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती थी। आज झील की खूबसूरती ने हमारी इज्जत बढ़ा दी है। आसपास की तकरीबन 20-25 कॉलोनियों में जमीन की कीमतें बढ़ गई हैं। जलमहल को जल्द से जल्द आम जनता के लिए खोल दिया जाए।’ लुंकड़ बताते हैं कि जिन लोगों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोला है या जिन्हें इस परियोजना से एतराज है, उन्होंने जीर्णोद्धार के बाद इस स्थल का दौरा तक नहीं किया है। परियोजना के खिलाफ एक प्रमुख अखबार के अभियान के बारे में उन्होंने बताया, ‘वह खुद विरासत आबंटन संबंधी कई मामलों में घिरा रहा जहां तक औने-पौने दाम में जमीन देने की बात है तो यह तत्कालीन मान्य सरकारी दर पर दी गई है।’ राजस्थान विधानसभा में 18 मई को भाजपा ने जब यह मसला उठाया तो पर्यटन मंत्री बीना काक ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दो साल तक इस परियोजना को लटकाए रखा क्योंकि झील के पास होटल की उनकी मांग पूरी नहीं हो पा रही थी।
राजस्थान विश्वविद्यालय में महारानी महाविद्यालय की प्रिंसिपल और जैव प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ अमला बतरा कहती हैं, ‘पहले जयपुर के लिए सात-सात झीलों के रहते उनमें पानी का न होना और मानसागर झील की दुर्गंध शर्म की बात थी। जेएमआरपीएल की बदौलत आज हालत बेहतर हुए हैं और किसी धरोहर का स्वरूप बिगाड़े बगैर उसे खूबसूरत बनाया गया है तो किसी को दिक्कत नहीं बल्कि गर्व होना चाहिए। पहले तो मानसागर जलकुंभी से पटी रहती थी। कुछ विशेषज्ञों को कई बार परियोजना पर काम करने का मौका भी मिला लेकिन कुछ लाभ नहीं हुआ। कुछ ऐसे ही स्वार्थी तत्वों के कारण झील और जलमहल कैद होकर रह गए हैं। पर्यटकों के लिए इसे शीघ्र खोल देना चाहिए।’
झील 1947 की स्थिति में लाई जाए : भागवत गौड़
जलमहल परियोजना के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता और धरोहर बचाओ समिति के सचिव भागवत गौड़ को सरकारी नीतियों पर आपत्ति है। उनका कहना है कि सरकारी उदासीनता और अतिक्रमण के कारण ही मानसागर, रामगढ़, मावठा और तालकटोरा जैसे प्राकृतिक जलाशय सूख गए हैं। उनके आलीशान दफ्तर में जब उनसे आउटलुक के संवाददाता मिलने गए और उनके पक्ष की जानकारी ली। पेश हैं इंटरव्यू के चुनिंदा अंशः
परियोजना के बारे में आपक क्या राय है?
आप तो पेड न्यूज वाले हैं, आपसे क्या बात करें।
बताइए तो सही, आपको क्या आपत्ति है?
हमारी नाराजगी नवरतन कोठारी से नहीं बल्कि सरकार से है। मानसागर झील में प्राकृतिक तरीके से जल संग्रह होता था लेकिन इसके स्वरूप को बिगाड़कर जलसंग्रह क्षेत्र को सीमित कर दिया गया है। जीर्णोद्धार सरकार का काम है, इसे किसी निजी कंपनी को नहीं सौंपना चाहिए। जेएमआरपीएल को नियम के विरुद्ध 30 साल के बजाय 99 साल की लीज पर झील की जमीन दी गई। यह धारा 420 और 409 के तहत एक संगीन आपराधिक कृत्य है।
झील, स्मारक को 2002 की तुलना में बेहतर मानते हैं?
बेहतर कैसे मानें, हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि झील का अतिक्रमण हुआ है और झील को यथावत स्थिति में लाया जाए जो भी चकाचौंध दिखाई रही है वह धरोहर का मूल स्वरूप बिगाड़ने की कीमत पर की गई है।
हाईकोर्ट के फैसले से सहमत हैं कि झील को पहले जैसी स्थिति में बहाल किया जाए?
झील का भराव क्षेत्र 16 फुट था जिसे अब 12 फुट कर दिया गया। यथावत स्थिति में तात्पर्य सन् 1947 की स्थिति से है। यदि कोई इसे 2002 की स्थिति को यथावत बताता है तो हम उसका विरोध करते हैं। जलमहल के टैरेस गार्डन की जालियां भी संगमरमर की लगा दी गई हैं जबकि ये पत्थर की थीं।
सन् 1947 की स्थिति में झील को किसने देखा है और पहले जैसी स्थिति तो झील को फिर प्रदूषित कर देगी?
झील पहले प्रदूषित जरूर थी पर उतनी नहीं, जितनी बताई जा रही है। अब तो हमें वहां जाने भी नहीं दिया जाता तो कैसे पता चलेगा कि क्या सुधार कराया गया है। (जब हमने उन्हें साथ चलने को कहा तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि गार्ड रोक देते हैं जबकि मेरे जैसे पत्रकार और अन्य लोग झील एवं महल देखने जाते रहे हैं।)
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