अगस्त के महीने में सिर्फ 12 दिनों के दौरान भारी बारिश की एक हजार से अधिक घटनाएं हुई हैं। कर्नाटक में तो सिर्फ 24 घंटे में ही सामान्य औसत से 3000 प्रतिशत अधिक बरसात दर्ज की गई। मौसम विभाग के आंकड़ों के आधार पर सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने यह विश्लेषण प्रस्तुत किया है। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा है- “जिस तरह वर्षा की चरम घटनाएं बढ़ी हैं, उसे देखते हुए मौसम विभाग को चरम वर्षा को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है।” नई दिल्ली में मरुस्थलीकरण पर केंद्रित एक ग्लोबल मीडिया ब्रीफिंग के दौरान उन्होंने यह बात कही है।
सीएसई प्रमुख, ने कहा- “देश में चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ी है और कम दिनों के अंतराल पर भारी बारिश देखने को मिल रही है। चरम मौसमी घटनाओं से भूमि क्षरण में भी बढ़ोत्तरी होती है, जिससे भूमि के बंजर होने की घटनाएं बढ़ सकती हैं। इसका असर खेती पर आश्रित आबादी की आजीविका पर पड़ सकता है।” मानसून में बाढ़ और सूखे दोनों का अनुभव करने वाले महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों का उदाहरण देते हुए सुनीता नारायण ने कहा - “अकेले जलवायु परिवर्तन इन आपदाओं के लिए जिम्मेदार नहीं है, बल्कि संसाधनों के कुप्रबंधन के कारण यह समस्या बढ़ रही है।”
जोधपुर स्थित केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ पी.सी. मोहराणा ने बताया कि “मरुस्थलीकरण के कारण पौधों को सहारा देने और अनाज उत्पादन की भूमि की क्षमता कम होने लगती है। जल प्रबंधन प्रणाली और और कार्बन भंडारण पर इसका विपरीत असर पड़ता है। मरुस्थलीकरण ऐतिहासिक रूप से होता रहा है, पर हाल के वर्षों में यह प्रक्रिया तेजी से बढ़ी है।” भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी) द्वारा प्रकाशित मरुस्थलीकरण एवं भू-क्षरण एटलस के अनुसार, देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का करीब 30 फीसदी भाग भू-क्षरण से प्रभावित है। देश की कुल भूमि के 70 प्रतिशत भाग में फैले शुष्क भूमि वाले 8.26 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्रों में जमीन बंजर हो रही है। भारत के लिए यह परिस्थिति चिंताजनक है, क्योंकि यहां दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी और 15 फीसदी पशु रहते हैं।
मीडिया ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए मौसम विभाग के उप महानिदेशक, एस.डी. अत्री ने कहा कि- “जलवायु परिवर्तन बारिश और मौसम के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है। इसके कारण ग्रीष्म एवं शीत लहर में वृद्धि स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। वर्ष 1990 तक सालाना औसतन लगभग 500 ग्रीष्म लहर की घटनाएं होती थीं, जिनकी आवृत्ति वर्ष 2000 से 2010 के बीच बढ़कर लगभग 670 सालाना हो गई है।”
जलवायु एवं पर्यावरण का असर जैव विविधता और भूमि पर पड़ता है। अत्यधिक वर्षा, धूल भरी आंधियों और ग्रीष्म लहर जैसी मौसमी घटनाओं के अलावा खेती में अत्यधिक रसायनों का उपयोग, जल का दोहन और वनों की कटाई जैसे मानवीय कारक भी भू-क्षरण के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। बंजर होती जमीन की रोकथाम के लिए ग्रेटर नोएडा में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के 14वें सम्मेलन (यूएनसीसीडी) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा है कि “वर्ष 2015 से 2017 के बीच भारत ने अपने वन क्षेत्र और पेड़ क्षेत्र 8 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया है। भारत बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के प्रति अपने प्रयासों को बढ़ाने की ओर काम कर रहा है। वर्ष 2030 तक बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के स्तर को 2.1 करोड़ हेक्टेयर से बढ़ाकर 2.6 करोड़ करने का भारत का प्रयास रहेगा।”
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