शिप्रा को मालव गंगा भी कहा गया है। उत्तर दिशा में बहने के कारण इसे उत्तरवाहिनी भी कहा जाता है, जो धर्म-कर्म के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी जाती है। शिप्रा में स्नान करने से मोक्ष प्राप्ति की मान्यता अनादिकाल से रही है, किन्तु आज शिप्रा खोजती है, स्वयं का मोक्ष का मार्ग। क्योंकि आज शिप्रा का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। शिप्रा एक बरसाती नदी के रूप में या एक गंदे नाले के रूप में परिवर्तित होती जा रही है। हमारा भारत सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है। यहां प्रकृति को भी माता के रूप में माना और पूजा जाता है। ऐसे ही हमारे सांस्कृतिक संस्कारों में नदी को माता की संज्ञा दी गयी है। आज हमारे सामने हमारी शिप्रा माता को दूषित किया जा रहा है, तो मन व्याकुल हो जाता है।
मालव गंगा मोक्षदायिनी शिप्रा की वर्तमान दुर्दशा से सभी अवगत हैं। आज हम सभी का दायित्व है, इस धरोहर को सुरक्षित रखने का व इसे सदानीरा सद्य: प्रवाहिता बनाये रखने का। शिप्रा नदी का जन्म महानगर इन्दौर से 20 किलोमीटर दूर काकरसर्डी नामक स्थान से हुआ है। स्कन्ध पुराण के अनुसार उत्तर दिशा में बहने वाली नदी को गंगा रूप माना गया है, इसलिये शिप्रा को मालव गंगा भी कहा गया है। उत्तर दिशा में बहने के कारण इसे उत्तरवाहिनी भी कहा जाता है, जो धर्म-कर्म के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी जाती है। शिप्रा में स्नान करने से मोक्ष प्राप्ति की मान्यता अनादिकाल से रही है, किन्तु आज शिप्रा खोजती है, स्वयं का मोक्ष का मार्ग। क्योंकि आज शिप्रा का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। शिप्रा एक बरसाती नदी के रूप में या एक गंदे नाले के रूप में परिवर्तित होती जा रही है।
श्रद्धालु नागरिकों से लेकर अनेक संवेदनशील व्यक्तित्व भी समय-समय पर यहां आकर शुध्दिकरण अभियान को सार्थकता प्रदान करते रहे हैं। परन्तु पुन: ये प्रश्न यक्ष की भांति यथावत खड़ा है कि क्या शिप्रा शुद्ध हुई? क्या उसमें कल-कल करता जल प्रवाहित होने लगा? इतने प्रयासों के बाद भी ऐसा कुछ नहीं हुआ है। शिप्रा आज भी सूखी है। उसके स्वाभाविक रूप को देखने के लिये उसके किनारे रहने वाले समस्त नागरिकों की आंखें भी पथरा चुकी हैं।
अब आवश्यकता है कि हम अपने पूर्व में किये गये प्रयासों की समीक्षा करें। कहां क्या कमी, क्या त्रुटि रह गई है, इस पर विचार करें। नये सिरे से कोई ऐसा रास्ता खोजने का प्रयास करें, जिससे एकमात्र परिणाम निकले यानी शुद्ध बहता जल इसके माध्यम से हम सबको मिल सके और हमें फिर से अविरल शिप्रा-निर्मल शिप्रा के शुद्ध जल का आचमन कर पुण्य प्राप्त करने का अवसर मिले। समस्त जाति, धर्म, सम्प्रदाय, दलों से परे एक मंच पर होकर ‘जल ही जीवन है’, के अटल सत्य की गंभीरता को समझकर उसके लिये विचार करें कि कैसे जनजागृति के माध्यम से शिप्रा के मूल स्वरूप को लौटाया जा सके।
शिप्रा के लिये सत्ता पक्ष के साथ-साथ श्रद्धा पक्ष की भी आवश्यकता है, क्योंकि अगर शिप्रा नहीं रही तो इस उज्जैयिनी से सिंहस्थ भी चला जायेगा। इसलिये सभी को शिप्रा के दिल से जुड़ना होगा, ताकि शिप्रा के अस्तित्व को बचाया जा सके। शिप्रा को पुर्नजीवित के लिये पेड़ से जोड़ना होगा। शिप्रा की कुल 250 कि. मी. की यात्रा में करीब 75 कि. मी. उज्जैन के इर्दगिर्द है और इन्दौर-देवास-उज्जैन में इस नदी का सर्वाधिक दोहन एवं प्रदूषण हो रहा है। यदि इस 75 कि. मी. के क्षेत्र में सुधार कर लें तो शेष हिस्सा स्वत: ठीक हो जायेगा।
इसके लिये कुछ प्रयास किये जा सकते हैं-
1. शिप्रा नदी के दोनों ओर 250 मीटर ग्रीन बैल्ट घोषित किया जाना चाहिये और यहां सघन वृक्षारोपण किया जाना चाहिये, ताकि ढिली मिट्टी जिसका लगातार कटाव होता है, वह मिट्टी का कटाव रुक सके।
2. उद्गम से 75 कि. मी. के दायरे में दोनों किनारों पर आने वाले प्रत्येक गांव में कम से कम दो तालाब बनाये जायें।
3. गंदे नालों के पानी को तथा इंदौर की समस्त औद्योगिक तथा महानगरीय गंदगी को जो कि खान नदी के जरिये मोक्षदायिनी शिप्रा में मिलती है, को रोककर इस पानी को साफ कर पुन: शिप्रा में छोड़ा जाना चाहिए।
4. 75 कि. मी. की नदी को पूर्ण रूप से 5 से 6 फीट गहरीकरण कर इस पर जमी गाद को निकाला जाना चाहिये, ताकि शिप्रा का आंतरिक जल बाहर आकर बहने लगे।
यह काम शासन और जनता के सहयोग से ही सम्भव है, लेकिन यदि यह केचमेंट एरिया ट्रिटमेंट योजना पूरी की जाती है तो फिर शिप्रा सदैव बहती रहेगी, फिर न श्रमदान की आवश्यकता होगी और न ही नर्मदा का शिप्रा लिंक योजना की। आवश्यकता है शिप्रा के संरक्षण हेतु एक सार्थक पहल की। वैसे स्वराज स्वर्णिम राज संगठन के द्वारा यूं तो कई तरह के समाजहित के कार्य किये जाते हैं जैसे- प्लास्टिक के इस्तेमाल का विरोध, भ्रष्टाचार का विरोध तथा युवाओं को रोजगार युक्त बनाने के लिए उन्हें लघु उद्योग लगाने हेतु प्रोत्साहित करना आदि, पर स्वराज के बैनर तले शिप्रा के पुनरुद्धार के लिए विशेष कार्यक्रम बनाया गया, जिसे ‘अविरल शिप्रा-निर्मल शिप्रा’ का नाम दिया गया।
इसके अंतर्गत मई, 2010 में शिप्रा नदी को स्वच्छ करने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाया गया था। वहीं लोगों को इस अभियान से जोड़ने के लिए ‘दीपदान’ का कार्यक्रम भी किया गया था। शिप्रा के पुनरुद्धार हेतु यह समिति वर्तमान में इसकी बेवसाइट बनाने, 25 लोगों की वर्किंग कमेटी बनाने तथा शिप्रा के किनारे बसे गांवों के 5-5 लोगों की उप-समिति बना कर उन्हें लोगों को जागरुक करने के लिए कार्य कर रही है। भविष्य में शिप्रा के पुनरुद्धार के लिए उज्जैन में मैराथन का आयोजन करना, अनशन कर सरकारीतंत्र को जगाना आदि कार्य करने की योजना है।
संपर्क: राष्ट्रीय संयोजक, स्वर्णिम राज संगठन (स्वराज), 301, लालवानी टावर, तृतीय तल, शहीद पार्क, फ्रीगंज, उज्जैन (म.प्र.)
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