हाल ही में सिंधु जल-विवाद पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने पर विश्वबैंक ने चुप्पी साध ली और अपने को सिंधु जल-समझौते से अलग कर लिया है। 12 दिसम्बर, 2016 की विश्वबैंक की ओर से भारत-पाक वित्त मंत्रालयों को पत्र लिखकर भारत-पाक को नए समझौते के लिए स्वयं ही पहल करने को कहा गया था। इस बात से साफ हो गया है कि अब समझौते को पाकिस्तान की पाक-नीयत यानी नेकनीयत ही बचा सकती है। पाकिस्तान खून का खेल बंद करे, सिंधु के पानी के लिए भारत से बात करे।
विश्वबैंक के कदम से पाकिस्तान पूरी तरह बौखला गया। पाकिस्तान के वित्तमंत्री इशाक दार ने विश्वबैंक अध्यक्ष जिम योंग को एक जवाबी पत्र लिखा और विश्वबैंक को उसके कर्तव्य याद दिलाते हुए लिखा कि संधि में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि उसमें शामिल होने वाली कोई पार्टी अपना कर्तव्य निभाने से खुद को तटस्थ कर ले।
दार का मानना है कि अगर विश्वबैंक मध्यस्थता न्यायाधिकरण की नियुक्ति न करने के अपने फैसले पर टिका रहेगा तो इससे सिंधु जल-संधि 1960 के तहत पाकिस्तान के हितों और अधिकारों को गंभीर हानि होगी।
रेडियो पाकिस्तान की खबर के मुताबिक “इस पत्र में मध्यस्थता न्यायालय के अध्यक्ष की नियुक्ति पर खासा जोर दिया गया है और यह भी कहा गया कि यह नियुक्ति करने में पहले ही बहुत देरी हो चुकी है और इसीलिए अब विश्वबैंक सिंधु जल-समझौते के मद्देनजर अपने कर्तव्यों का जल्दी से जल्दी पालन करे।” दार ने यह पत्र उस पत्र के जवाब में भेजा है जो 12 दिसम्बर, 2016 को विश्वबैंक की ओर से भारत-पाक वित्त मंत्रालयों को भेजा गया था।
इसी के तुरन्त बाद पाकिस्तान के विदेश सचिव एजाज अहमद चौधरी ने 28 दिसम्बर को भारत को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर भारत इस समझौते का एकतरफा उल्लंघन करता है या तोड़ता है तो यह भारत के लिये अच्छा नहीं होगा इतना ही नहीं यह बाकी मुल्कों के लिये भी ऐसी संधियों को तोड़ देने के लिये एक उदाहरण के तौर पर देखा जाएगा।
दरअसल यह विवाद बार-बार तूल पकड़ रहा है इसकी वजह यह भी हो सकती है कि मोदी सरकार ने सिंधु जल-समझौते के सभी पहलुओं को गहराई से समझने और अपने हक के पानी को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के लिये एक टास्क फोर्स का गठन किया था। इस टास्क फोर्स की हाल में 23 दिसम्बर, 2016 को पहली बैठक हुई। इस बैठक में जम्मू और कश्मीर में बनने वाले 8500 मेगावाट क्षमता वाली पनविद्युत परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने पर चर्चा की गई। इसी कड़ी में तुलबुल परियोजना भी शामिल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्रा इस टास्क फोर्स के अध्यक्ष हैं और उन्हीं की अगुवाई में टास्क फोर्स की पहली मीटिंग हुई जिसमें अजित डोवाल, एस जयशंकर, अशोक लवासा और शशिशेखर जैसे अनुभवी व्यक्ति शामिल थे। शायद यही वजह थी कि इस सब के बाद पाकिस्तान बौखला गया और उसे लगा होगा कि भारत अब उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकता है और यह तो जाहिर ही है कि अगर भारत ने पाकिस्तान की तरफ जाने वाले पानी को ना भी रोका और सिर्फ अपने ही हिस्से के पानी का पूरी तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तो भी पाकिस्तान में पानी की कमी की वजह से खेती और अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो जाएगी। क्योंकि अभी तक भारत पूर्वी नदियों का ही पानी पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाया जिसके कारण पाकिस्तान के मुताबिक उसे 10.37 बिलियन क्यूबिक मीटर वार्षिक और यूनाइटेड नेशन के मुताबिक 11.1 बिलियन क्यूबिक मीटर अधिक बोनस के तौर पर मिल रहा है इतना ही नहीं पाकिस्तान के लिये सुरक्षित की गई नदियों के पानी में से भी भारत का 4.4 बिलियन क्यूबिक मीटर हिस्सा है जिसका भारत ने आज तक कोई इस्तेमाल नहीं किया। अभी तक भारत ने जिस उदारता से अपना हिस्सा तक पाकिस्तान को देता रहा है तो पाकिस्तान अब ये कैसे बर्दाश्त कर सकेगा कि भारत उस पानी के उपयोग के बारे में सोच रहा है और शायद इसी बौखलाहट के चलते विश्वबैंक से गुहार लगाने गया जिसका कोई फायदा नहीं हुआ।
विश्वबैंक के दरवाजे से निराश लौटे पाकिस्तान ने अमेरिका से गुहार लगाई कि वो इस मामले में दखलअंदाजी करे और पाकिस्तान के हितों और अधिकारों की सुरक्षा करे। लेकिन वहाँ भी पाकिस्तान को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि इस्लामाबाद पीटीआई से जारी एक खबर के अनुसार 31 दिसम्बर की रात को अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जॉन कैरी ने पाकिस्तान के वित्तमंत्री से फोन पर बात की। इस बात-चीत में इशाक दार ने जॉन कैरी के साथ सिंधु जल-समझौते पर भारत-पाक विवाद की चर्चा करते हुए विश्वबैंक की भूमिका पर भी चर्चा की। उन्होंने पाकिस्तान के अधिकारों और हितों की दुहाई देते हुए जॉन कैरी से विनती की कि अमेरिका इस विवाद को सुलझाने में मदद करे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि जॉन कैरी ने अमेरिका की भूमिका को सुरक्षित रखते हुए जवाब में कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि भारत और पाकिस्तान सौहार्दपूर्ण तरीके से इस विवाद को सुलझा लेंगे।
इस सारी बातचीत से तो ऐसा ही लगता है कि अमेरिका ने भी इस विवाद में पड़ने की बजाय खुद को अलग कर लिया है। अब पाकिस्तान के लिये मुश्किलें और बढ़ती नजर आ रही हैं। सब जगह से निराश होने के बावजूद भी पाकिस्तान इस समस्या की जड़ आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने की बजाय भारत पर दबाव डालने के नये-नये तरीके खोज रहा है और हर दरवाजा खटखटा रहा है।
अब बारी आई चीन की। विश्वबैंक, अमेरिका और यूनाइटेड नेशन से नाउम्मीद हुए पाकिस्तान ने अब फिर से चीन का सहारा लिया। हाल में 29 दिसम्बर, 2016 को चीन ने पाकिस्तान को यह भरोसा दिलाया कि पाकिस्तान में बनने वाले चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सी-पैक) की योजना में जल-सुरक्षा को खास अहमियत दी जाएगी और इस जल-सुरक्षा पर कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ने दिया जाएगा और अगर भारत की किसी भी हरकत की वजह से पाकिस्तान की आर्थिक सुरक्षा और सी-पैक में जल-सुरक्षा को कोई भी नुकसान हुआ तो उसका जवाब दिया जाएगा। वित्तमंत्री दार ने यह भी कहा कि विश्वबैंक के अध्यक्ष से अभी-भी उनकी बातचीत निरन्तर हो रही है हालांकि विश्वबैंक की ओर से ऐसी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
ऐसा लगता है कि सिंधु जल-विवाद पर पाकिस्तान खुद को हारा हुआ महसूस करके इस तरह की बयानबाजी कर रहा है ताकि अन्तरराष्ट्रीय जगत में वो अपनी छवि को बरकरार रख सके।
इधर भारत में भी पिछले कुछ महीनों से यह बार-बार कहा जा रहा है कि अगर पाकिस्तान ने आतंकवाद को पनाह देना बन्द नहीं किया तो भारत सिंधु के पानी को रोककर उसका भरपूर इस्तेमाल करेगा। लेकिन इस बात में ठोस योजना कुछ कम ही नजर आती है। क्योंकि भारत में पानी 12 विभागों में बँटा हुआ विषय है। ऐसे में कैसे वो सब एक साथ मिलकर अपने हिस्से के पानी का उचित प्रबन्धन कर पाएँगे। यह एक बड़ा सवाल है। क्योंकि बातों से पाकिस्तान रुकने वाला नहीं है इसके लिये ठोस नीति, व्यवस्था और कठोर कदमों की जरूरत है। समय आ गया है कि सिंधु में हिंद का 'खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकता' वक्तव्य को सोचनेे से आगे करने में बदलना होगा।
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