सिंधु जल समझौते की पृष्ठभूमि

सिंधु नदी बेसिन
सिंधु नदी बेसिन


‘सिंधु के मैदानों ने मनुष्य को वो परिस्थितियाँ सौंपी जिससे मनुष्य दुनिया का सबसे विशाल संलग्न सिंचाई नेटवर्क बना सका। कुदरत ने पृथ्वी पर कहीं भी पानी की ऐसी भारी-भरकम मात्रा नहीं दी है जिसे बगैर जलाशय में इकट्ठा किये केवल गुरुत्वाकर्षण के जरिए उपयोग में लाया जा सके।’ -एलॉयस आर्थर मिशेल ने अपनी पुस्तक ‘द इंडस रिवर्स: ए स्टडी ऑफ इफेक्ट ऑफ पार्टिशन में यही लिखा है। इस पुस्तक से उन परिस्थितियों की जानकारी मिलती है जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु और सिंधु घाटी की नदियों के जल के बँटवारे के लिये समझौता की जरूरत पड़ी।

दरअसल, भारत-विभाजन के वक्त जब सिंधु घाटी की नदियों पर बने अनेक सैलाबी नहरों में जलप्रवाह बन्द हो गया और नदी, नहर तथा सिंचित क्षेत्र अलग-अलग देशों में चले गए तब विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह समझौता हो सका। 1948 से 1960 के बीच कई दौर में वार्ताएँ हुईं, दस्तावेजों और सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ। विभिन्न बारीकियों पर गौर करते हुए ऐसा समझौता सम्पन्न हो सका जिसके अन्तर्गत विवादों को निपटाने की स्पष्ट व्यवस्था भी की गई। इसी व्यवस्था का अंग सिंधु जल आयोग है जिसकी बैठक स्थगित होने पर हाय-तौबा मची है।

बँटवारे में पूरब की नदियाँ- सतलुज, रावी और व्यास के अबाध उपयोग का हक भारत को मिला जबकि सिंधु समेत पश्चिम की तीन नदियाँ (बाकी दो झेलम और चेनाब) पाकिस्तान को दी गई। इन नदियों के जल प्रवाह में असमानता को पाटने के लिहाज से भारत को पश्चिमी नदियों के 20 प्रतिशत जल के गैर उपभोग्य (नन कंज्यूमेटिव) उपयोग करने का हक भी मिला।

दस वर्षों का संक्रमण काल निर्धारित किया गया जिस दौरान पाकिस्तान को पूरब की नदियों पर निर्भर नहरों के लिये पश्चिमी नदियों से जल की व्यवस्था कर लेनी थी। पूर्वी नदियों का औसत वार्षिक जल प्रवाह 330 लाख एकड़ फीट है जबकि पश्चिमी नदियों का औसत वार्षिक जल प्रवाह 1350 लाख एकड़ फीट आँका गया। इसके 20 प्रतिशत पानी का उपयोग भारत घरेलू कार्यों, नौवहन, पनबिजली उत्पादन जैसे कार्यों में कर सकता है। उसे बाढ़ नियंत्रण के लिहाज से भी जरूरी संरचनाएँ बनाने का अधिकार है। हालांकि भारत अभी केवल चार प्रतिशत का उपयोग ही कर पाता है।

“सिंधु क्षेत्र में नदियों का जो प्राकृतिक संजाल है, उसे दुनिया का सबसे विशाल व विविधतापूर्ण नदी तंत्रों में से एक माना जाता है।

कैलाश-मानसरोवर के पास के ग्लेशियरों से निकली सिंधु नदी अरब सागर में समाहित होने के पहले कोई 3180 किलोमीटर की दूरी तय करती है। सिंधु घाटी के कुल क्षेत्रफल 9,44,568 वर्ग किलोमीटर में से लगभग आधा- 4,15,434 वर्ग किलोमीटर का इलाका तिब्बत, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ऊँचाई वाली जगहों में फैला हुआ है। बाकी का हिस्सा सिंधु के मैदानों में है।

भारत में सिंधु घाटी का 39 प्रतिशत हिस्सा पड़ता है जो जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और चंडीगढ़ में फैला है। तिब्बत और अफगानिस्तान में 14 प्रतिशत हिस्सा पड़ता है। बाकी 47 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में है। पाकिस्तान में सिंधु नदी के दाएँ किनारे पर एक नदी है काबूल जो अफगानिस्तान से आती है। बाएँ किनारे भारत से गई पाँचों नदियाँ मिलती हैं।

पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों से पानी ले जाने के लिये नहरें बनानी थीं। विश्वबैंक की मध्यस्थता की वजह से अमेरिका का मददगार हाथ उसके साथ था। भारत ने अपने हिस्से की सतलुज नदी पर भाखड़ा-नांगल डैम बना लिया और रावी व व्यास नदियों को उससे जोड़ दिया। पश्चिमी नदियों पर पानी जमा करने वाली कोई संरचना भारत में नहीं बनी।

चेनाब पर अंग्रेजों के जमाने से दो सैलाबी नहरें जरूर बनी हैं- रणबीर नहर और प्रताप नहर जिनका उल्लेख सिंधु जल समझौता में भी है। समझौते में कश्मीर की अनदेखी को लेकर कश्मीरी लोगों में लम्बे समय से गहरा विक्षोभ है। उनका कहना है कि इस समझौते की वजह से राज्य अपने कीमती संसाधन -जल संसाधन के सहारे अपना विकास नहीं कर पा रहा।

इस मसले पर कश्मीर विधानसभा में तीन-तीन बार प्रस्ताव पारित हुआ है। भारत और पाकिस्तान के समझौते में कश्मीरी जनता की आवाज दबी रह गई है। कश्मीर में आतंकवाद को हवा देने में इस मसले को भी उठाया जाता है।

आखिरकार, भारत ने पिछले दशक में झेलम पर किशनगंगा और चेनाब पर बगलिहार पनबिजली परियोजनाएँ आरम्भ किया। पाकिस्तान इसके खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय अदालत में चला गया। हालांकि अदालत ने परियोजना पर काम आगे बढ़ाने की इजाजत दे दी, केवल कुछ तकनीकी संशोधन करने के लिये कहा। इसके अलावा झेलम के वेलूर झील के पास तुलबुल बैराज बनाने की योजना 1987 में सामने आई।

यह नौवहन परियोजना थी जिससे झील के मुहाने पर नौकायन के लायक गहराई रखा जा सके। अभी पानी की गहराई एक-डेढ़ फीट रह जाती है। पाकिस्तान के विरोध के चलते भारत की तत्कालीन सरकार ने 2007 में इस परियोजना पर काम रोक दिया। झेलम पर उक्त बैराज के अलावा चेनाब की सहायक नदियों पर पक्कलडल डैम, झेलम पर सवालकोट, उधमपुर जिले में और चेनाब पर किश्तवार जिले में बरसर डैम निमार्णाधीन हैं।

पश्चिमी नदियों पनबिजली उत्पादन की कुल क्षमता 18,653 मेगावाट आँकी गई है। विभिन्न कार्यरत योजनाओं से 3034 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है। 2526 मेगावाट की परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। तथा 5,846 मेगावाट की पनबिजली परियोजनाएँ योजना के विभिन्न स्तरों पर लम्बित हैं।

सिंधु जल समझौता में इसे निरस्त करने का प्रावधान नहीं है। फिर भी अगर कोई जुगत लगाकर इसे निरस्त कर दिया जाता है तो क्या होगा? सिंधु नदी का पानी कहाँ जाएगा? जम्मू कश्मीर को डूबाने के सिवा उसका कोई निस्तार नहीं है।

सिंधु का पानी रोका या मोड़ा कैसे जाएगा, जबकि इसके लिये जरूरी संरचना भारत के पास नहीं है। सिंधु व सहायक नदियों के पानी की हिस्सेदारी का प्रश्न फिर भी रहेगा। अगली बार चीन और अफगानिस्तान भी हिस्सेदार होंगे। कुल मिलकार एक गड़बड़झाले की शुरुआत होगी।

वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सभी नदियों की तरह सिंधु घाटी की नदियों का जल प्रवाह भी घटा है। इसके अलावा पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में सिंचाई के लिये अधिक पानी रोक लिया जाता है। सिंध प्रान्त में पानी के लिये हाहाकार मचता है। जरूरत सिंचाई में किफायती तकनीकों को अपनाने की है, पर पाकिस्तान पानी के लिये हाहाकार के लिये भारत को जिम्मेवार ठहराता है।

अपने लोगों का ध्यान दूसरे मुद्दों से हटाने के लिये पाकिस्तान जिन भारत विरोधी भावनाओं को हवा देता है, उसमें भारत पर पानी रोकने का बेबुनियाद आरोप भी शामिल होता है। इस आरोप को लेकर वह अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत की दौड़ लगाकर परास्त भी हो चुका है। यह पहला अवसर है जब भारत ने सिंधु जल आयोग की नियमित बैठक को स्थगित करने जैसी कार्रवाई की है। अन्यथा 1965, 1971 या 2009 के युद्धों के वक्त भी इसकी बैठकों के नियत अन्तराल पर होने में कोई अड़चन नहीं आई थी।

इन विशाल मैदानी क्षेत्र में सबसे शुरुआती और सबसे उन्नत इंसानी बसाहटें पनपीं। नदी और इसके पानी का खेती को समृद्ध करने के लिये उपयोग इस क्षेत्र की तरक्की की बुनियाद में एक अहम वजह रहा है। घाटी में सिंचाई विकसित होने के विभिन्न दौर रहे हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के दौर से इस्लामी शासन और अंग्रेजी राज के बाद आधुनिक दौर तक। जाहिर है, देश विभाजन के बाद सिंचाई तंत्र का बँटवारा बहुत ही अहम था।

 

 

 

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