संधि खत्म करने से दूसरे देशों को जाएगा गलत संदेश
नई दिल्ली, 25 सितम्बर (विशेष): उड़ी हमले के बाद भारत के अंदर पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोश फैला हुआ है। लोगों के अंदर गुस्सा है और अघोषित युद्ध सा माहौल बना हुआ है। हथियारों से युद्ध के साथ-साथ एक विकल्प के तौर पर जल युद्ध की बात भी छुपे तौर पर चल रही है। सरकार ने भी इस ओर एक इशारा किया। सिंधु जल समझौते को भंग कर पाकिस्तान को तबाह करने की बात कही गई।
लेकिन अगर व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो सिंधु जल समझौते को भंग करना इतना आसान नहीं है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस समझौते को भंग करने में न केवल सैद्धांतिक बल्कि व्यावहारिक समस्या भी है। किसी भी अन्तरराष्ट्रीय संधि को कोई भी पक्ष एकतरफा कार्रवाई करके इसे भंग नहीं कर सकता है। इससे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ गलत संदेश जाएगा। पाकिस्तान इसके खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में जा सकता है, जिससे दूसरे को मध्यस्थता करने का मौका मिल जाएगा। इसके साथ ही अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक आदि को भी द्विपक्षीय मुद्दे पर मध्यस्थता करने का मौका मिल जाएगा और मुद्दे का अन्तरराष्ट्रीयकरण हो जाएगा। भारत द्वारा शुरू की गई किशन गंगा बिजली परियोजना के खिलाफ भी पाकिस्तान ने विश्व बैंक को हस्तक्षेप करने के लिये कहा था और उसके बाद यह परियोजना कुछ समय तक अटक गया था।
इसके अलावा सिंधु जल समझौता भंग करने से दूसरे देशों के साथ भारत के किये गये जल संधि प्रभावित होने की उम्मीद भी की जा सकती है। भारत का पाकिस्तान के अलावा चीन, नेपाल, बाँग्लादेश और भूटान के साथ अलग-अलग नदियों के संदर्भ में जल संधि है और अगर भारत पाकिस्तान के खिलाफ सिंधु जल समझौते का इस्तेमाल करता है, तो भविष्य में अगर चीन, बांग्लादेश, नेपाल या भूटान आदि देश भारत के खिलाफ इसका इस्तेमाल करता है, तो अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का साथ माँगने के लिये भारत के पास नैतिक आधार नहीं रहेगा। इसके अलावा भारत अगर इन अन्तरराष्ट्रीय समस्याओं को दरकिनार भी कर दे, तो भारत को सिंधु का पानी रोकने के लिये बाँध व नहरों का निर्माण करना होगा, जो इतने कम समय के अंदर नहीं किया जा सकता है। इसके लिये बड़ा संसाधन भी चाहिए एवं इससे होने वाले विस्थापन एवं पर्यावरणीय प्रभाव का भी ध्यान रखना होगा।
हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के पास इस समझौते को भंग किये बिना भी पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया जा सकता है। इसके लिये सिंधु समझौते के तहत आने वाली पश्चिमी बहाव की नदियों के जल का इस्तेमाल कर बिना समझौते के प्रावधानों को भंग किये हुए पाकिस्तान को की जाने वाली जलापूर्ति को प्रभावित किया जा सकता है। इसके अलावा स्थाई सिंधु आयोग की बैठकों को स्थगित करके भी पाकिस्तान के लिये समस्या खड़ी की जा सकती है, क्योंकि इस आयोग में हर साल होने वाली समस्याओं पर चर्चा और उसके समाधान की कोशिश की जाती है।
आसान नहीं है सिंधु जल समझौते का उल्लंघन
हालाँकि, पाकिस्तान के साथ विवाद के साथ ही इस समझौते को समाप्त करने की चर्चा होती रहती है लेकिन इस संधि का उल्लंघन इतना आसान नहीं है। पहला तो इसके लिये काफी समय लगेगा क्योंकि पानी को रोककर दूसरी नदियों में भेजने के लिये जिस तरह की आधारभूत संरचनाओं की आवश्यकता है, उसे बनाने में बहुत समय लगता है। दूसरी बात यह है कि भारत का चीन, बाँग्लादेश, नेपाल तथा भूटान के साथ भी जल समझौता है और सिंधु के उल्लंघन से इन देशों में इसका गलत संदेश जाएगा और भारत को परेशानी हो सकती है। इसके अलावा इसके उल्लंघन से अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किरकिरी होगी।
भारत ने दिखाई है दरियादिली
दुनिया में यह एकमात्र ऐसी अन्तर्देशीय जल संधि है जो उस देश के लिये प्रतिकूल है, जहाँ उसका उद्गम है। इस समझौते के तहत भारत पश्चिमी प्रवाह की नदियों का केवल 20 प्रतिशत जल का ही इस्तेमाल कर सकता है, जबकि पाकिस्तान 80 प्रतिशत का। दूसरे देशों के साथ ऐसा नहीं है। चीन का अपने यहाँ से निकलने वाली नदियों के पानी पर पूरा प्रभुत्व है। वह नदी के बहाव क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव की परवाह नहीं करता। चीन ने अपने 13 पड़ोसी देशों के साथ जल साझेदारी का समझौता नहीं किया।
कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य - 19 सितम्बर, 1960 को कराची में हुआ समझौता। - भारतीय पीएम जवाहरलाल नेहरू व पाक राष्ट्रपति अयुब खाँ ने किये हस्ताक्षर - सिंधु व उसकी सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया। - पूर्वी नदियों में सतलज, व्यास और रावी - पश्चिमी नदियों में सिंधु, झेलम, चेनाब - इन नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत ही रोक सकता है भारत - कुछ अपवादों को छोड़ पूर्वी नदियों का इस्तेमाल करेगा भारत - पश्चिमी नदियों का पानी होगा पाकिस्तान के लिये - सिंचाई, बिजली बनाने आदि के लिये पश्चिमी नदियों के जल का इस्तेमाल कर सकता है - स्थाई सिंधु जल आयोग बना, जिसमें होंगे दोनों देशों के आयुक्त - स्थाई सिंधु जल आयोग की समय-समय पर होगी बैठकें - परियोजना बनाने के लिये दोनों देश करेंगे डिजाइन साझा - विवादों का समाधान के लिये ली जा सकती है विशेषज्ञ की मदद - कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में जाने का रास्ता भी खुला है। |
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