स्वतंत्रता के बाद योजना अवधि के दौरान जल संसाधन विकास के प्रारम्भिक चरण में जल संसाधनों को तेजी से काम में लगाना मुख्य प्रयोजन था। तदनुसार राज्य सरकारों को सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, जल विद्युत उत्पादन, पेयजल आपूर्ति, औद्योगिक तथा विभिन्न विविध प्रयोगों जैसे विशिष्टि प्रयोजनों के लिए जल संसाधन परियोजनाएं तैयार और विकसित करने को प्रोत्साहित किया गया। इसका फल यह हुआ कि क्रमिक पंचवर्षीय योजनाओं के साथ सारे देश के भीतर बांधों, बराजों, जल विद्युत संरचनाओं, नहर नेटवर्क आदि से युक्त परियोजनाएं काफी संख्या में उभर कर आईं। भारत में विशाल भण्डारण क्षमता जल संसाधन विकास के क्षेत्र में एक अनन्य उपलब्धि मानी जा सकती है। तैयार किए गए इन भण्डारण कार्यों के कारण कमान क्षेत्र में सुनिश्चित सिंचाई उपलब्ध कराना, जल विद्युत तथा विभन्नि स्थानों पर स्थित तापीय विद्युत संयंत्रों के लिए आपूर्ति तथा विभन्नि अन्य प्रयोगों के लिए मांग की पूर्ति सुनिश्चित करना संभव हो सका है। बाढ़ संभावित क्षेत्रों में जहां भण्डारण उपलब्ध करा दिया गया है, बाढ़ नियंत्रण प्रभावी हो सका था। इसके अलावा देश के भीतर विभन्नि हिस्सों में दूरस्थ इलाकों में सारे वर्ष पेयजल की आपूर्ति संभव हो सकी है।
जब 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना शुरू हुई तो उस समय भारत की जनसंख्या लगभग 361 मिलियन और खाद्य का वार्षिक उत्पादन 51 मिलियन टन था जो कि काफी नहीं था। खाद्य की इस कमी को पूरा करने के लिए खाद्यान्न का आयात करना जरूरी था। इसलिए योजना अवधि में खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया था और इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए क्रमिक पंचवर्षीय योजनाओं के जरिए अनेक वृहद, मध्यम और लघु सिंचाई तथा बहुद्देश्यीय परियोजनाएं तैयार और कार्यान्वित की गईं ताकि सारे देश के भीतर सिंचाई की अतिरिक्त क्षमता पैदा की जा सके। कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति सहित उक्त आन्दोलन के कारण खाद्यान्न के उत्पादन के मामले में भारत पिछड़े हुए देश के स्थान पर अपनी आवश्यकता से किंचित फालतू मात्रा में खाद्यान्न पैदा करने वाला देश बन गया है।
इस प्रकार निवल सिंचित क्षेत्र कुल बुवाई क्षेत्र का 39 प्रतिशत तथा कुल कृषि-योग्य भूमि का 30 प्रतिशत बैठता है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है वृहद तथा मध्यम परियोजनाओं के कारण अन्ततः 58 मिलियन हैक्टेयर सिंचित क्षेत्र का आकलन किया गया है जिसमें से 64% अनुमानतः विकसित किया जाएगा।
जब 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना शुरू हुई तो उस समय भारत की जनसंख्या लगभग 361 मिलियन और खाद्य का वार्षिक उत्पादन 51 मिलियन टन था जो कि काफी नहीं था। खाद्य की इस कमी को पूरा करने के लिए खाद्यान्न का आयात करना जरूरी था। इसलिए योजना अवधि में खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया था और इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए क्रमिक पंचवर्षीय योजनाओं के जरिए अनेक वृहद, मध्यम और लघु सिंचाई तथा बहुद्देश्यीय परियोजनाएं तैयार और कार्यान्वित की गईं ताकि सारे देश के भीतर सिंचाई की अतिरिक्त क्षमता पैदा की जा सके। कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति सहित उक्त आन्दोलन के कारण खाद्यान्न के उत्पादन के मामले में भारत पिछड़े हुए देश के स्थान पर अपनी आवश्यकता से किंचित फालतू मात्रा में खाद्यान्न पैदा करने वाला देश बन गया है।
इस प्रकार निवल सिंचित क्षेत्र कुल बुवाई क्षेत्र का 39 प्रतिशत तथा कुल कृषि-योग्य भूमि का 30 प्रतिशत बैठता है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है वृहद तथा मध्यम परियोजनाओं के कारण अन्ततः 58 मिलियन हैक्टेयर सिंचित क्षेत्र का आकलन किया गया है जिसमें से 64% अनुमानतः विकसित किया जाएगा।
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