सिंचाई सहकारिताएं

पहले किसान सिंचाई व्यवस्था का बड़े सलीके से प्रबंधन किया करते थे, लेकिन जबसे सरकार सिंचाई विभाग के साथ इसमें शामिल हुई है तब से इसका प्रबंधन बिगड़ने लगा। बुनियादी ढांचे की बिगड़ी स्थिति को देखते हुए महाराष्ट्र के कुछेक गैर सरकारी संगठनों ने किसानों को सहकारिताओं के गठन के लिए प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया। इन सहकारिताओं से सरकार भी काफी प्रेरित हुई है और अब तो यह किसानों को प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपने का भी निर्णय ले रही है।

महाराष्ट्र ऐसा पहला राज्य है जो सिंचाई अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव रख रहा है, जिससे सहकारितओं को इसके प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपने में कोई कठिनाई न आए। सिंचाई विभाग किसान सहकारिताओं को माप और निर्धारित कीमत पर पानी पहुंचाएगा। इस समझौते के तहत किसानों को फसल उगाने और सहकारिता में पानी की खरीद मूल्य के संबंध में निर्णय लेने की पूरी आजादी होगी।

शुरू में, पुणे आधारित ‘सोसायटी फॉर प्रमोटिंग पार्टिसिपेटरी इको सिस्टम मैनेजमेंट (एसओपीपीईसीओएम) और नासिक आधारित ‘समाज परिवर्तन केंद्र’(एसपीके) ने सहकारिताओं के गठन से इस दिशा में प्रयोग करना आरंभ किया। इस प्रकार नासिक, मराठवाड़ा और अम्रावति में लगभग एक लाख हेक्टेयर में काम करने वाली करीब 250 संस्थाएं स्थापित हुईं। सन् 1989 में एसओपी पीईसीओएम ने गोदावरी बेरिसन की मूला परियोजना के तहत अहमद नगर जिले में जल उपयोगकर्ता संघ का गठन किया। सहकारिताओं का भी गठन हुआ, जिसके बाद आगे चलकर नासिक में बड़े पैमाने पर सहकारितओं का गठन होने लगा।

एसओपीपीईसीओएम में काम कर रहे भारत कवाले ने इस क्षेत्र के कुछ किसानों के साथ मिलकर जून 1990 में समाज परिवर्तन केंद्र का गठन किया, जिसमें नासिक के तीन जल उपयोगकर्ता संघ, साथ ही जल योगेश्वरी सोसायटी, एम फुले सोसायटी और बानगंगा पाल सोसायटी भी जुड़ीं।

इसके एक लाभांशी रामदास शेजवाल का कहना था कि “पहले हमें पानी की दिक्कत थी लेकिन इस योजना ने हमें बचाया और अब हम एक बड़े भू- भाग में ज्यादा से ज्यादा फसल उगा सकते हैं”। नकदी फसलों की किस्म में बढ़त होने से फसलों की पैदावार 136 प्रतिशत तक बढ़ गई है। सिंचाई के तहत का क्षेत्र और फैला, जिससे जल कर की वसूली में भी बढ़ोत्तरी हुई है। ये सहकारिताएं काफी मुनाफा भी कमा रही हैं।

सबसे पहले तो सहकारिताएं लाभांशियों की एक बैठक बुलाती हैं और पानी की आवश्यकता तथा भुगतान राशि के संबंध में उनके साथ सलाह-मशविरा करती हैं। फिर किसान महासंघ के तहत 16 सहकारिताएं एक परियोजना में पूरे क्षेत्र के पानी की जरूरतों पर चर्चा करती है। इस पर प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद, यह विभाग को भेजा जाता है, जो आवश्यक पानी को आगे छोड़ते हैं। “पहले पानी के गलत वितरण के कारण सिंचाई प्रबंध व्यवस्था काफी बिगड़ी हुई थी,” यह एम फुले सोसायटी की अध्यक्ष राजू कुलकर्णी का कहना था। उन दिनों कमान क्षेत्र करीब 151 हेक्टेयर का था, परन्तु पानी सिर्फ 30 से 40 हेक्टेयर क्षेत्र में ही पहुंचाया पाता था।

महाराष्ट्र सरकार ने सहकारिताओं की उपलब्धियों से प्रेरित होकर लाभांशियों को सिंचाई प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय लिया है।

किसान चाहते हैं कि सरकार हस्तांतरण से पहले के सभी क्षतिग्रस्त ढांचों की मरम्मत करे, क्योंकि किसानों के लिए इन्हें बिना तकनीकी जानकारी के ठीक करना मुश्किल होगा। इस मामले में भी सरकार सुस्त है। “कुछेक सरकारी निर्माण और रखरखाव के काम अभी भी पूरे नहीं हुए हैं”, यह एसपीके के राजूभाई कुलकर्णी का कहना था। उन्होंने आगे बताया कि “यह पूरी योजना तभी सफल होगी, जब सरकार निर्माण का काम पूरा कर लेगी”।

भविष्य में किसानों पर इसके रखरखाव की जिम्मेदारी होगी, जिसके लिए सरकार और किसानों के योगदान से पैसा एकत्रित किया जाएगा। सहकारिता और सिंचाई विभाग संयुक्त रूप से बैंक में फिक्सउ डिपोजिट (निश्चित समयावधि की जमा पूंजी) करेंगे। इस योजना के तहत सिंचाई विभाग से 90 प्रतिशत का योगदान प्राप्त होगा और 10 प्रतिशत का अंशदान सहकारिताओं की तरफ से होगा। बैंक में पूंजी फिक्सड डिपोजिट के रूप में जमा होगी और इससे जो ब्याज प्राप्त होगा, उसे देखरेख और प्रशासनिक कार्यों में खर्च किया जाएगा।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : के एल जोय / आर के पटेल एसओपीपीईसीओएम, 16, काले पार्क सोमेश्वरवादी रोड, पाषाण महाराष्ट्र ई-मेल: soppecom@pn3.vsnl.net.in
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