इस दुरूह परिस्थिति में हमें सिन्धु समझौते पर पुनः विचार करना चाहिए। स्वतंत्रता के शीघ्र बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच समझौता हुआ था कि सिन्धु घाटी की 6 नदियों में से 3 नदियों के जल पर भारत का अधिकार होगा और 3 नदियों पर पाकिस्तान का अधिकार होगा।
नए विदेश मंत्री जयशंकर के सामने प्रमुख चुनौती पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों को सुधारने की है। हमने पाकिस्तान को आर्थिक दृष्टि से घेरने का प्रयास किया था। बीती एनडीए सरकार ने पाकिस्तान से आने वाले माल पर आयात कर वृद्धि की थी, लेकिन यह पाकिस्तान को भारी नही पड़ रहा है चूंकि पाकिस्तान के कुल निर्यातों में केवल 1.4 प्रतिशत भारत को जाते हैं। पाकिस्तान ने सऊदी अरब और चीन से मदद लेने में सफलता हासिल की है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी उससे मदद की है। अतः हमारी आर्थिक मोर्चेबंदी सफल नहीं हुई है। ऐसे में श्री जयशंकर के सामने पाकिस्तान को घेरने के उपाय सीमित हैं। यह सही है कि भारत ने अमरीका के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाकर पाकिस्तान पर दबाव डलवाना है लेकिन यह भी सही है कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में अमरीका का वर्चस्व है। अतः मुद्रा कोष द्वारा पाकिस्तान को मदद देना बताता है कि अमरीका पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर नहीं करना चाहता है।
इस दुरूह परिस्थिति में हमें सिन्धु समझौते पर पुनः विचार करना चाहिए। स्वतंत्रता के शीघ्र बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच समझौता हुआ था कि सिन्धु घाटी की 6 नदियों में से 3 नदियों के जल पर भारत का अधिकार होगा और 3 नदियों पर पाकिस्तान का अधिकार होगा। पाकिस्तान के कोटे में सिन्धु, चिनाव और झेलम नदियाँ, डाली गई थी। इनके द्वारा पाकिस्तान को हर वर्ष 8 करोड़ एकड़ फुट पानी रखा जाए तो उस पानी को एक एकड़ फुट कहा जाता है। इसके विपरीत भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदी आवंटित की गई, लेकिन भारत इन नदियों के सम्पूर्ण जल का उपयोग करने में सफल नहीं हुआ है। आज भी इन नदियों का 3.3 करोड़ एकड़ फुट पानी पाकिस्तान को बह रहा है। इस प्रकार पाकिस्तान को वर्तमान में 11.3 करोड़ एकड़ फुट पानी भारत की भूमि से बहकर मिल रहा है। पाकिस्तान में कुल पानी की उपलब्धता 14.5 करोड़ एकड़ फुट है। यानी पाकिस्तान को उपलब्ध पानी में से लगभग 80 प्रतिशत पानी भारत से मिल रहा है। आश्चर्य की बात है कि भारत पर इतना परावलम्बी होने के बावजूद पाकिस्तान हमारे विरुद्ध आतकियों को पोषित कर रहा है। बीती एनडीए सरकार ने ब्यास, रवि और सतलुज नदियों के भारत के कोटे के 3.3 करोड़ एकड़ फुट पानी का भारत में ही उपयोग करने के कदम उठाए हैं और आशा की जा सकती है कि वर्तमान सरकार के समय यह पानी हम पूरी तरह से उपयोग कर सकेंगे। तब यह पानी पाकिस्तान को मिलना बन्द हो जाएगा। इससे पाकिस्तान की समस्या बढ़ेगी क्योंकि वर्तमान में 11.3 करोड़ एकड़ फुट पानी जो सिन्धु घाटी के माध्यम से उसको मिल रहा है उसकी तुलना में आने वाले समय में केवल 8 करोड़ एकड़ एक फुट पानी मिलेगा। फिर भी पाकिस्तान का रवय्या सुधरता नहीं दिख रहा है।
इस परिस्थिति में हमें सिन्धु जल समझौते को रद्द करने पर विचार करना चाहिए। यदि हम इस समझौते को रद्द कर दें और सिन्धु, चिनाव और झेलम के पानी को रोक लें, तो पाकिस्तान बहुत शीघ्र ही घुटने टेक देगा। समस्या यह है कि सिन्धु जल समझौते में व्यवस्था दी गई है कि उस समझौते में कोई भी परिवर्तन आपसी सहमती से ही किया जाएगा और मतभेद होने पर विश्व बैंक की मध्यस्तता की पहल की जाएगी। इस प्रावधान के अनुसार हम एक तरफा कार्यवाही से समझौते को रद्द नहीं कर सकते हैं, लेकिन कानून का एक मूल सिद्धान्त है कि कानून की विवेचना उसकी प्रस्तावना के मद्देनजर की जाती है। जिस उद्देश्य से कानून बनाया गया है। उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही कानून की विवेचना की जानी चाहिए। सिन्धु जल समझौते की प्रस्तावना में लिखा गया है कि आपसी सौहार्द और मित्रता की भावना से पाकिस्तान और भारत इस समझौते में प्रवेश कर रहे हैं। हमने जो सिन्धु, चिनाव और झेलम नदियों का पानी पाकिस्तान को देने को स्वीकार किया, उसका उद्देश्य था कि पाकिस्तान और भारत के बीच सौहार्द और मित्रता बनी रहेगी। यदि पाकिस्तान ने यह सौहार्द और मित्रता ही नहीं बनाया हैं और हमारे विरुद्ध आतंकवाद को पोषित कर रहा है तो इस बदली हुई परिस्थिति में समझौते का औचित्य ही नहीं रह जाता है। अतः हम समझौते को पूरी तरह रद्द कर सकते हैं। ध्यान दें कि जब हम समझौते के अन्तर्गत कुछ सुधार करना चाहें यानी समझौते को स्वीकार करते हुए उसमें परिवर्तन करना चाहें तो आपसी सहमति जरूरी है, लेकिन यदि हम समझौते को ही रद्द करते हैं तो उसके साथ वह धारा भी रद्द हो जाती है जिसमें आपसी सहमति की बात की गई है। इसलिए समझौते को रद्द करने में आपसी सहमति की धारा बीच में नहीं आती है। यदि हम समझौते को तत्काल रद्द न करना चाहें तो भी पाकिस्तान को नोटिस देकर विश्व बैंक की मध्यस्तता तो माँग ही सकते हैं। हम कह सकते हैं कि हम इस समझौते को रद्द करना चाहते हैं क्योंकि इससे आपसी सौहार्द और मित्रता स्थापित नहीं हो रही है और विश्व बैंक से कहें कि वह मध्यस्तता करे और उस मध्यस्तता में यदि सफलता नहीं मिलती है तो हम इस सन्धि को रद्द कर सकते हैं। ध्यान दें कि विश्व बैंक की मध्यस्तता यदि सफल नहीं होती है तो उस हालत में क्या किया जाएगा, इसका कोई विवरण सिन्धु जल सन्धि में नहीं दिया गया है।
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