सीएसआर के दायरे में सभी बड़ी कंपनियां

झारखंड-बिहार एक बार फिर सूखे की दहलीज पर खड़े राज्य हैं। अब क्या होगा? यह बड़ा सवाल है। इस सवाल का हल केवल इस रूप में देखा जाता है कि किसान अपनी किस्मत का रोना रो कर नुकसान उठाएंगे और दूसरा कि सरकार राहत कार्य चलाएगी। सरकार कुछ अनुदान देगी और किसान वैकल्पिक खेती कर नुकसान की कुछ भरपाई कर लेंगे, लेकिन एक तीसरा पक्ष भी है, जो पूरी तरह कृषि और किसानों से जुड़ा हुआ। इस पर हमारी नजर नहीं जाती है, जबकि वह न केवल आर्थिक रूप से मजबूत है, बल्कि कानूनी रूप से ऐसे हालात में अपने मुनाफे की एक निश्चित राशि खर्च करने के लिए मजबूर भी है। वह है कृषि कंपनियां। केवल सुखाड़ और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में ही नहीं, सभी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में और केवल कृषि कंपनियां ही नहीं, सभी तरह की बड़ी कंपनियां समाज की भलाई के लिए भी उत्तरदायी हैं। इसे संक्षेप में सीएसआर कहते हैं। हम यहां इसके बारे में बता रहे हैं, ताकि कंपनियों को सामुदायिक लाभ के क्षेत्र में खर्च करने के लिए आप बाध्य कर सकें।

सीएसआर गतिविधि के तहत किसी पंजीकृत संस्था या ट्रस्ट को कोई कंपनी धन दे सकती है। उस संस्था द्वारा कंपनी की सीएसआर नीति और उसके कार्यक्रम के अनुसार वह राशि खर्च की जा सकती है। उसे कंपनी अपनी सीएसआर रिपोर्ट में शामिल करेगी, लेकिन किसी राजनीतिक दल को किसी भी प्रकार से और किसी भी गतिविधि के लिए दी गई राशि सीएसआर को अलग-अलग रखने के लिए किया गया है, ताकि कोई सत्तारूढ़ या प्रभावशाली राजनीतिक दल किसी कंपनी से सीएसआर के नाम पर मोटी रकम लेकर उसे अपने राजनीतिक हित में इस्तेमाल न करें।

कंपनियों का सामाजिक दायित्व, जिसे अंग्रेजी में कॉरपोरेट सोशल रेस्पांसिब्लिटी यानी सीएसआर कहते हैं, केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के अधीन आता है। इस संबंध में नियम-परिनियम वही बनाता है। राज्य सरकारें उन नियमों के तहत अपने राज्य के लोगों के सामाजिक लाभ के लिए इन कंपनियों से खर्च कराती है।

सीएसआर के नियम को लेकर केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने इस साल 27 फरवरी को अधिसूचना जारी की है। यह पहली अप्रैल 2014 से लागू किया गया है। यह नियम कुछ नए प्रावधान भी किये गए हैं।

किन कंपनियों पर सीएसआर नियम लागू


इस नए नियम के अनुसार वैसी कंपनियां, जिन्हें भारी मुनाफा होता है, उन्हें अपने मुनाफे का कम-से-कम 02 प्रतिशत हिस्सा वैसी गतिविधियों पर खर्च करना है, जो उस क्षेत्र के लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, नैतिक और स्वास्थ्य आदि में सुधार के लिए हो तथा जिससे उस क्षेत्र की आधारभूत संरचना, पर्यावरण और सांस्कृतिक विषयों को बढ़ाने में मदद मिल सके।

इस तरह की गतिविधियों के जरिए वहां के सामाजिक विषयों के विकास में योगदान करना इस कंपनियों की सामाजिक जिम्मेवारी है। इसे ही सीएसआर कहते हैं। यानी भारी मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को समाज की भलाई में अपनी कमाई को कम से कम दो प्रतिशत खर्च करना है। नए नियम में इन कंपनियों को इस तरह चिन्हित किया है :

1. ऐसी कंपनी, जिसमें कम से कम 500 करोड़ रुपए निवेश हुआ हो।
2. ऐसी कंपनी, जिसे एक साल में कम-से-कम पांच करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा हुआ हो।
3. ऐसी कंपनी, जो कम से कम 1000 करोड़ रुपए का कारोबार करती हो।
4. इन सभी कंपनियों को अपनी कमाई का 2% हिस्सा सीएसआर गतिविधियों में खर्च करना है।

मुनाफे में शामिल नहीं


कंपनियों के मुनाफे की गणना करते समय विदेशी शाखाओं से होने वाले लाभ और भारत में दूसरी कंपनियों से मिलने वाले लाभांश को मुनाफे से बाहर रखा गया है। उसी प्रकार सीएसआर गतिविधियों से बचा पैसा कंपनी के मुनाफे का हिस्सा नहीं होगा।

सीएसआर में खर्च की राशि की गणना


नियम के मुताबिक सीएसआर के दायरे में आने वाली कंपनियों को अपने तीन साल के औसत वार्षिक शुद्ध लाभ का 2% हिस्सा इस तरह की गतिविधियों पर हर साल खर्च करना है। साल का मतलब वित्तीय वर्ष है। यानी पहली अप्रैल से 31 मार्च। यानी नया नियम इस वित्त वर्ष से लागू है।

हर कंपनी की सीएसआर


नियम के मुताबिक कंपनियों को अपनी सीएसआर नीति बनानी होती है। उस नीति की उन्हें घोषणा भी करनी है। घोषणा में उन्हें पूरे वित्त वर्ष के लिए अपनी योजनाओं, गतिविधियों, कार्यक्रमों और परियोजनाओं का स्पष्ट उल्लेख करना होता है। उन्हें बताना होता है कि वे अपने लाभ की 2% राशि किस क्षेत्र में, किन के बीच और किस तरह खर्च करेंगी।

दो कंपनियां मिल कर भी चला सकती हैं गतिविधियां


सीएसआर के नए नियम के मुताबिक कोई कंपनी दूसरी कंपनी के साथ मिल कर भी सीएसआर की गतिविधियां चला सकती है। यानी एक से अधिक कंपनियां आपस में मिलकर कोई कार्यक्रम, परियोजना या आयोजन संचालन सम्मिलित रूप से कर सकती हैं, लेकिन उन्हें रिपोर्ट अलग-अलग दिखाना होगा। यानी वे सीएसआर रिपोर्ट अलग-अलग प्रस्तुत करेंगी, जिसमें उनके हिस्से का खर्च भी अंकित होगा।

एनजीओ भी हो सकते हैं भागीदार


कोई कंपनी अपने हिस्से के सीएसआर को पूरा करने के लिए किसी संस्था या ट्रस्ट को भागीदार बना सकती है, लेकिन ऐसी संस्था को सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 तथा ट्रस्ट को ट्रस्ट एक्ट के तहत पंजीकृत होना होगा।

राजनीतिक दल को लाभ नहीं


सीएसआर गतिविधि के तहत किसी पंजीकृत संस्था या ट्रस्ट को कोई कंपनी धन दे सकती है। उस संस्था द्वारा कंपनी की सीएसआर नीति और उसके कार्यक्रम के अनुसार वह राशि खर्च की जा सकती है। उसे कंपनी अपनी सीएसआर रिपोर्ट में शामिल करेगी, लेकिन किसी राजनीतिक दल को किसी भी प्रकार से और किसी भी गतिविधि के लिए दी गई राशि सीएसआर को अलग-अलग रखने के लिए किया गया है, ताकि कोई सत्तारूढ़ या प्रभावशाली राजनीतिक दल किसी कंपनी से सीएसआर के नाम पर मोटी रकम लेकर उसे अपने राजनीतिक हित में इस्तेमाल न करें।

कर्मचारी पर खर्च भी सीएसआर नहीं


कोई भी बड़ी कंपनी या फैक्टरी शहरी क्षेत्र में कम, ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा लगती हैं। इसमें किसानों की जमीन जाती है। अगर हम पिछले दस सालों का रिकॉर्ड उठा कर देखें, तो पता चलता कि करीब 16 से 20 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि घटी है। इसमें से जमीन का बहुत बड़ा हिस्सा फैक्टरियों और ऐसे कारोबार में लगाई गई हैं, जो गैर कृषि कार्य हैं।

कंपनियों को अपने कर्मचारियों के हितों में कई तरह से बड़ी राशि खर्च करनी होती है। इस खर्च को सीएसआर गतिविधि पर हुआ खर्च नहीं माना गया है। यानी अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य, प्रशिक्षण, सामाजिक गतिविधि, बोनस, विशेष चिकित्सा और आर्थिक सहायता आदि में कोई राशि खर्च करती है, तो वह यह दावा नहीं कर सकती है कि उसका कर्मचारी समुदाय का सदस्य है।

विदेशों में खर्च भी सीएसआर नहीं


कोई देशी या विदेशी कंपनी भारत के बाहर किसी देश पर अगर कोई सामुदायिक लाभ के कार्य करती है, तो उस खर्च को सीएसआर का हिस्सा नहीं माना जाएगा। नियम में स्पष्ट है कि कंपनी को हर हाल में भारत में ही अपनी सीएसआर गतिविधियां चलानी हैं।

विदेशी कंपनियां भी सीएसआर के दायरे में


नए नियम में उन कंपनियों के लिए भी सीएसआर लागू है, जो विदेशी हैं, लेकिन भारत में पंजीकृत हैं और यहां अपना कारोबार करती हैं।

सीएसआर के दायरे में पंचायत और किसानी


सीएसआर गतिविधियों के लिए तय कार्यक्रमों में गांव-पंचायत से जुड़े विषय भी आते हैं। खेती-किसानी से जुड़े विषयों को भी इसमें शामिल किया गया है।

दरअसल कोई भी बड़ी कंपनी या फैक्टरी शहरी क्षेत्र में कम, ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा लगती हैं। इसमें किसानों की जमीन जाती है। अगर हम पिछले दस सालों का रिकॉर्ड उठा कर देखें, तो पता चलता कि करीब 16 से 20 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि घटी है। इसमें से जमीन का बहुत बड़ा हिस्सा फैक्टरियों और ऐसे कारोबार में लगाई गई हैं, जो गैर कृषि कार्य हैं।

जाहिर तौर पर इस तरह की बड़ी कंपनियों के सामाजिक दायित्व के दायरे में हमारे गांव, किसान और पंचायतें आती हैं। कंपनियों को इन क्षेत्रों में समुदाय के लाभ के लिए धन खर्च करना है। केवल खानापूर्ति के लिए नहीं, जबकि अभी हो यही रहा है। किसान गोष्ठी और फुटबॉल मैच करा कर कंपनियां अपनी जिम्मेदारी पूरा करने का दावा कर रही हैं।

समुदाय हो जागरूकबिहार-झारखंड में चूंकि राज्य सरकारें इसे लेकर गंभीर नहीं हैं। कोई सामाजिक संगठन भी इस विषय को उठाने की स्थिति में नहीं है। पंचायत सरकारें भी इसे लेकर जागरूक नहीं हैं। लिहाजा ग्रामीणों के आर्थिक, शैक्षिक और सामुदायिक विकास के ठोस पहल नहीं हो रही है।

कंपनियों को ग्रामीण खेलों के विकास और खिलाड़ियों को विधिवत प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। यह विषय सीएसआर नियम के तहत कंपनियों की गतिविधियों में शामिल है। गांव में बढ़ई, बेंत-बांस, मिट्टी, लोहे और चमड़े के सामान बनाने वाले लोगों की बड़ी संख्या है। बहुत सारे लोगों का यह खानदानी पेशा भी है। उन्हें अपने सामानों को बाजार की मांग के अनुसार तैयार करने का प्रशिक्षण इन कंपनियों के जरिए दिलायी जा सकती है।

उसी तरह पीने के पानी, मिट्टी के कटाव को रोकने, नदियों और दूसरे जल स्रोतों के संरक्षण, सिंचाई के साधन, पशुओं के लिए चारागाह आदि की व्यवस्था करने के लिए कंपनियों को मजबूर किया जा सकता है। गांव की लड़कियों और बेरोजगार युवाओं को रोजगार संबंधी प्रशिक्षण देना भी कंपनियों के सामाजिक दायित्व में शामिल है। हम यह काम भी करा सकते हैं। खेती-किसानी में भी कंपनियों को सीएसआर के तहत खर्च करना है। भले कंपनी कृषि क्षेत्र में काम नहीं भी करती हो।

पंचायत सरकारें कर सकती हैं पहल


पंचायत सरकारें इसे लेकर पहल कर सकती हैं। उनके पास बड़ी ताकत है। चूंकि कोई कंपनी गांवों का नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं, इसलिए उन्हें पंचायत सरकारों की शरण में आना ही है। अभी हो यह रहा है कि कंपनियों को चूंकि पता है कि राज्य सरकारें उन पर दबाव नहीं बना रही हैं। गांव के लोग भी इसे लेकर जागरूक नहीं हैं। लिहाजा छोटे-मोटे सतही गतिविधि चला कर लोगों को खुश कर रहे हैं, जबकि उनका ऐसी गतिविधियों को चलाना दायित्व है।

वे गांव के लोगों के बीच कुछ भी कर रहे हैं, तो यह कोई उपकार नहीं है। इसलिए जब भी कोई कंपनी पंचायत क्षेत्र में कोई गतिविधि चलाने का प्रस्ताव लेकर आए, तो पंचायत सरकार उससे उसके पूरे कार्यक्रम की जानकारी ले सकती हैं और जो ठोस लाभ दिलाने वाला कार्यक्रम हो, उसे अपने क्षेत्र में लागू करने के लिए उन्हें तैयार कर सकती हैं।

दूसरा कि पंचायत सरकार अपने क्षेत्र के लिए कुछ ठोस लाभकारी कार्यक्रम बना सकती हैं और उसे कार्यान्वित करने के लिए कॉरपोरेट क्षेत्र की कंपनियों को प्रस्ताव भेज सकती हैं। संभव है कि पहले ही प्रयास में उन्हें सफलता नहीं मिले, लेकिन लगातार प्रयास से उन्हें ठोस नतीजे मिलेंगे ही। इससे उनकी पंचायत और वहां के लोगों का भला हो सकेगा।

ऐसे बनाएं दबाव


कॉरपोरेट क्षेत्र की कंपनियों को सीएसआर के तहत अपने लाभ की 2% प्रतिशत राशि में से अपने गांव-इलाके में खर्च करने के लिए आप तैयार कर सकते हैं। इसके लिए उन पर दबाव भी बना सकते हैं। यह काम सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 से संभव है।

आप सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सभी बड़ी कंपनियों और कारोबारियों से उसके मुनाफे, सीएसआर नीति, सीएसआर की घोषित गतिविधियों तथा उस पर किए गए खर्च का हिसाब मांग सकते हैं। इससे आपके सामने उन कंपनियों की सीएसआर की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और फिर उसके मुताबिक आप अपने क्षेत्र को लाभ दिलाने के लिए पहल कर सकते हैं।

सीएसआर के मानक


कंपनियों के लिए सीएसआर के भी मानक तय हैं। उनके मुताबिक ही कंपनियों को अपने सामाजिक उत्तरदायित्व संबंधी गतिविधियों का संचालन करना होता है। इस मामले में कंपनियों को स्पष्ट दिशा निर्देश भी नियम में दिया गया है, ताकि वे अपने लाभ या अपने कारोबार के लिए चलाई जाने वाली गतिविधियों को सीएसआर के खाते में नहीं गिना दें।

दरअसल कंपनियों के इस तरह के भी काम और इस तरह की गतिविधियां भी होती हैं, जिनका संबंध समुदाय और समाज से होता है, लेकिन वे वास्तव में कंपनी की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए होती हैं। समाज और समुदाय को उन गतिविधियों का लाभ भी मिलता है, लेकिन उन्हें सीएसआर का हिस्सा नहीं कहा जा सकता।

इस बात की आशंका रहती है कि कंपनियां कोई काम अपने लाभ के लिए और अपनी नियमित गतिविधियों के तहत करें और उस पर हुए खर्च को साएसआर के तहत किया गया खर्च बता कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का दायरा कम कर लें। इसलिए नियम में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर कोई कंपनी नियमित व्यापार के तहत कोई गतिविधि चलाती है, तो वह सीएसआर के दायरे में नहीं आएगा। नियम के मुताबिक हर कंपनी में सीएसआर समिति होती है।

इस समिति और कंपनी के बोर्ड में यह तय होता है कि कंपनी को कौन-सी गतिविधि, कब और कहां चलानी है। इस तरह तय गतिविधि ही सीएसआर के दायरे में आती है। इसे लेकर सीएसआर नीति का उसे पालन करना होता है। नए नियम में सीएसआर समिति के गठन और सीएसआर नीतियों की निगरानी, बोर्ड के निदेशकों की भूमिका आदि भी परिभाषित कर दी गई है, लेकिन राज्य सरकारों की लापरवाही से कई राज्यों में इसे लेकर कोई जागरूकता नहीं है।

बिहार-झारखंड जैसे राज्यों में तो सरकार को ऐसी कंपनियों और उनकी सीएसआर नीतियों का पता भी नहीं है। लिहाजा कंपनियां भी पूरी मनमानी कर रही हैं और उसका नुकसान राज्य के क्षेत्र विशेष के लोगों को हो रहा है। सबसे खराब स्थिति कृषि क्षेत्र की है। कृषि कंपनियां झारखंड-बिहार में कोई ठोस सीएसआर गतिविधि नहीं चला रही हैं। यहां सरकारें भी इसे लेकर कंपनियों पर दबाव नहीं बना रही हैं। लिहाजा कंपनियां भी मनमानी कर रही हैं।

सरकार और उसके अधिकारी भी इसे लेकर गंभीर और सजग नहीं हैं। लिहाजा अधिकांश कंपनियां कारोबार तो पूरे देश में करती हैं, लेकिन सीएसआर की गतिविधियां वहीं संचालित करती हैं, जहां उन्हें ज्यादा सुविधा होती है या अपनी परियोजना को बढ़ाना होता है या फिर जहां की राज्य सरकारें इसे लेकर गंभीर हैं।

बिहार-झारखंड जैसे राज्यों में तो सरकार को ऐसी कंपनियों और उनकी सीएसआर नीतियों का पता भी नहीं है। लिहाजा कंपनियां भी पूरी मनमानी कर रही हैं और उसका नुकसान राज्य के क्षेत्र विशेष के लोगों को हो रहा है। सबसे खराब स्थिति कृषि क्षेत्र की है। कृषि कंपनियां झारखंड-बिहार में कोई ठोस सीएसआर गतिविधि नहीं चला रही हैं। यहां सरकारें भी इसे लेकर कंपनियों पर दबाव नहीं बना रही हैं। लिहाजा कंपनियां भी मनमानी कर रही हैं।

मानव संसाधन पर खर्च की सीमा है तय


अब एक बड़ा प्रश्न यह कि किसी आयोजन, कार्यक्रम, गतिविधि या परियोजना के संचालन में कंपनी को अपने आदमी भी लगाने होते हैं। ये आदमी उसके कर्मचारी भी हो सकते हैं और किराए पर लगाए गए तात्कालिक सहयोगी भी।

कुछ कंपनियां अपनी सीएसआर गतिविधियों के संचालन के लिए एजेंसियां भी बहाल करती हैं। जाहिर है कि इस पर कंपनी का खर्च होता है। इस खर्च को सीएसआर के खर्च में शामिल किया जा सकता है या नहीं? यह मामला पेंचीदा भी है।

कंपनी के कर्मचारी या उसके दूसरे मानव संसाधन पर कंपनी का खर्च अधिक हो सकता है। ऐसे में वे समुदाय को होने वाले लाभ के मद में थोड़े-बहुत वास्तविक खर्च को बाकी के खर्च से जोड़ कर अपनी जिम्मेदारी निभाने का दावा कर सकती हैं। इसलिए नियम में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी सीएसआर गतिविधि में मानव संसाधन और एजेंट कोई कंपनी कितना खर्च कर सकती है या उसके द्वारा पर किए गए कितने प्रतिशत खर्च को उचित माना जाएगा। नियम के मुताबिक कोई कंपनी किसी सीएसआर गतिविधि पर होने वाले कुल खर्च का केवल 5% ही मान संसाधन या एजेंट पर खर्च कर सकती है। बाकी 95 प्रतिशत वास्तविक खर्च समुदाय के लाभ के लिए ही होगा।

ये हैं सीएसआर की मान्य गतिविधियां


नियम में वैसी गतिविधि की सूची दी गई है, जो सीएसआर के दायरे में आती हैं। यह सूची नियम की 7वीं अनुसूची में शामिल हैं। कंपनियों को इन्हीं में से अपने सीएसआर के लिए गतिविधियों का चयन करना है।

1. राष्ट्रीय धरोहर, कला और संस्कृति की सुरक्षा, जिसमें ऐतिहासिक महत्व वाली इमारतें और स्थल एवं कला शामिल हैं।
2. पारंपरिक कला एवं हस्तशिल्प को बढ़ावा देना और उनका विकास।
3. सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना।
4. अनाथालय और छात्रावास की स्थापना, उनके लिए भवन का निर्माण, उनका रख रखाव व संचालन।
5. वृद्धाश्रम की स्थापना, उनके लिए भवन का निर्माण, उनका रख -रखाव व संचालन।
6. डे केयर केंद्रों की स्थापना, उनके लिए भवन का निर्माण, उनका रख-रखाव व संचालन।
7. महिलाओं के लिए घर और छात्रावासों की स्थापना।
8. ग्रामीण खेलों, राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त खेलों, ओलंपिक खेलों और पैरालंपिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण मुहैया कराना।
9. केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शैक्षणकि संस्थानों में स्थित प्रौद्योगिकी इनक्यूबेटरों के लिए फंड मुहैया कराना।
10. शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए काम करना।
11. मिट्टी, हवा और जल की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए काम करना।
12. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
13. पारिस्थितिक संतुलन को सुनिश्चित करना।
14. वनस्पतियों, जीव संरक्षण, पशु कल्याण, कृषि वानिकी का संरक्षण।
15. ग्रामीण विकास परियोजनाएं।
16. जीविका वृद्धि संबंधी परियोजनाएं।
17. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता को बढ़ावा देना।
18. असामानता का दंश झेल रहे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों के लिए काम करना।
19. युद्ध में मारे गए शहीदों की विधवाओं, सशस्त्र बलों के वीरों और उनके आश्रितों के लाभ से जुड़े काम।

कौन देगा, कहां से मांगें सूचना


सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां तो सीधे तौर पर सूचनाधिकार अधिनियम के दायरे में आती हैं। वहां हर स्तर पर जन सूचना पदाधिकारी और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी नामित हैं। आप उनके जन सूचना पदाधिकारी को दस रुपए सूचना शुल्क के साथ अर्जी देकर सूचना मांग सकते हैं।

सूचना नहीं मिलने, गलत, भ्रामक, देर से या अधूरी सूचना मिलने पर आप उसके प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष प्रथम अपील भी दायर कर सकते हैं। वहां से भी सही और पूरी सूचना नहीं मिलने पर राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील दाखिल कर सकते हैं।

झारखंड में किसी भी अपील के लिए कोई फीस भी नहीं देनी होती है। रही बात निजी कंपनियों की। ऐसी कंपनियां सीधे तौर पर सूचनाधिकार अधिनियम के दायरे में नहीं आती हैं। इसलिए उनसे आप सीधी सूचना नहीं मांग सकते, लेकिन वहां से भी सूचना निकाले के उपाय हैं। जैसा कि हम बता चुके हैं कंपनियों का सामाजिक दायित्व का मामला केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के अधीन आता है।

हर कंपनी को सीएसआर नियम के मुताबिक उसे अपनी नीति, गतिविधि, कार्यक्रम, खर्च और कार्यान्वयन की रिपोर्ट सौंपनी होती है। आप वहां से सूचना मांग सकते हैं। चूंकि यर रिपोर्ट समुदाय की भलाई के लिए किये गए खर्च से जुड़ी होती है। इसलिए इसे सार्वजनिक करने में बाधा नहीं आएगी।

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