यह पहाड़ी ढ़लानों पर खेती करने की पीढ़ियों से चली आ रही सामान्य विधि है। इस विधि द्वारा ढाल की लम्बाई को तोड़कर / छोटाकर एवं ढ़ाल की तीब्रता को कम करके मृदा एंव मृदा नमी (Soil and Soil Moisture) का संरक्षण किया जाता है। सीढ़ीदार खेत सिंचाई जल का प्रभावी उपयोग हेतु भी आवश्यक है। इस प्रकार के खेतों को बनाने के लिए मूल रूप (तीब्र ढलान) को कृषि उपकरणों के सहयोग से सीढ़ीनुमा आकार में एक के बाद एक समतल या लगभग समतल पट्टियों का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार बनाई गई समतल पट्टियों को स्कंधबंध (Soulder bunds) की सहायता से दृढ़ता प्रदान की जाती है।
सीढ़ीदार खेती में हालांकि अत्यधिक श्रम तथा दक्षता की आवश्यकता होती है। सीढ़ीदार खेतों को पुरातन यंत्रों से जोतना एक कठिन कार्य भी है।
उपयुक्तता: पहाड़ी क्षेत्रों में सामान्यतया 33 प्रतिशत ढाल तक के क्षेत्रों को सीढ़ीदार खेतों में बदला जा सकता है।
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