सिद्ध शब्द का अर्थ है उपलब्धि। सिद्धकर्ता के रूप प्रसिद्ध संत-समुदाय ने विभिन्न युगों के दौरान सिद्ध चिकित्सा प्रणाली का विकास किया है। ‘सिद्धकर्ता शब्द’ की व्युत्पत्ति सिद्धि से हुइ है, जिसका अर्थ है ‘शाश्वत परमानंद सिद्धकर्ताओं ने जड़ी-बूटी औषधि में सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त किया और आध्यात्मिकता का भी ज्ञान फैलाया है। संक्षेप में सिद्ध औषधि का अर्थ है ‘ऐसी औषधि जो सदा अचूक है।
सिद्ध औषधि प्रणाली लगभग दस हजार वर्ष पुरानी है। सिद्ध प्रणली भारत में सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है। इस चिकित्सा प्रणाली के विकास में अनेक सिद्धकर्ताओं में योगदान दिया है, जिनमें से 18 प्रख्यात सिद्धकर्ता है। इनमें अगस्तियार सबसे प्रमुख माने जाते हैं और सिद्ध औषधि में उनके द्वारा किया गया कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। अगस्तियार को वही स्थान प्राप्त है जो औषधि के पितामह माने जाने वाले ग्रीक फिजिशियन हिप्पोक्रेट्स को प्राप्त था। तमिलनाडु में पलानी पर्वत औषधीय पौधों में प्रचुर है और यह सिद्धकर्ताओं की स्थली रहा है। सिद्ध औषधि साहित्य प्राचीन तमिल में उपलब्ध है और यह मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी भाग में प्रचलित हैं।
सिद्धकर्ताओं की मूल संकल्पना भोजन ही औषधि है और औषधि ही भोजन भारतीय औषधि प्रणाली का आधार है। सिद्ध औषधि के अनुसार सात तत्व अर्थात प्लाविका, रक्त, मांसपेशी, वसा, अस्थि, स्नायु तथा शुक्र मानव शरीर के शारीरिक, शारीरिक क्रिया एवं मनोवैज्ञानिक कार्यों के आधार हैं। ये सातों तत्व तीन तत्वों अर्थात वायु, अग्नि या ऊर्जा तथा जल द्वारा सक्रिय होते हैं। माना जाता है कि सामान्यतः ये तीनों तत्व हमारे शरीर में एक विशेष अनुपात में होते हैं। जब हमारे शरीर में इन तीनों तत्वों का संतुलन बिगड़ता है तब विभिन्न रोग होते हैं। हमारे शरीर में इन तत्वों को प्रभावित करने वाले कारक हैं:- पथ्य या आहार, शारीरिक गतिविधियां पर्यावरण तथ्य एवं तनाव।
अन्य भारतीय औषधि प्रणालियों की तुलना में सिद्ध औषधि में धातुओं तथा खनिजों का प्रयोग प्रमुख हैं। शरीर में रोगों का पता लगाने के लिए नाड़ी पठन, शरीर को छूकर, आवाज, रंग, नेत्र, जिह्वा, पेशाब एवं शौच की जांच करना निदान के मुख्य आधार हैं। सिद्ध औषधि मर्मस्थानों के लिए भी उपयोग में लाई जाती है।
सिद्ध चिकित्सा चिकित्सा अवधि के दौरान रोगियों को ‘‘क्या करें और क्या न करें’’ का पालन करने की भी शिक्षा देती है। सिद्ध चिकित्सा उपचार का ध्येय शरीर में तीन तत्वों का संतुलन बनाए रखकर सात तत्वों को सामान्य स्थिति में रखना है ताकि शरीर एवं मस्तिष्क स्वस्थ रह सकें।
सिद्ध चिकित्साकर्ता बनने के लिए एक औपचारिक चिकित्सा शिक्षा अनिवार्य है। ऐसे कई सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय हैं जो निम्नलिखित अधिस्नातक डिग्री देते हैं, जैसे-सिद्ध औषधि एवं शल्य चिकित्सा स्नातक (बी.एस. एम.एस.) यह 5-1/2 वर्षीय पाठ्यक्रम है, जिसमें छह महीने या एक वर्ष की इंटर्नशिप अवधि भी शामिल है। इस पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद कोई भी व्यक्ति सिद्ध औषधि में स्नातकोत्तर डिग्री अर्थात एम.डी. (सिद्ध) कर सकता है, जो 3 वर्षीय पाठ्यक्रम है। बी.एस.एम.एस. पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए न्यूनतम पात्रता भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव-विज्ञान, या वनस्पति विज्ञान, तथा प्राणिविज्ञान विषयों के साथ हायर सेकेण्डरी पाठ्यक्रम (10+2) है। इस पाठ्यक्रम के लिए प्रवेश/चयन सामान्यतः एक सामान्य प्रवेश परीक्षा के आधार पर किया जाता है। सिद्ध चिकित्सा में अधिस्नातक और/या स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाने वाले राजकीय तथा निजी चिकित्सा महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा संस्थाओं की सूची नीचे दी गई हैं:-
1. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, अरुम्पक्कम, चेन्नई -600106 (बी.एस.एम.एस तथा एम.डी.सिद्ध, दोनों पाठ्यक्रम चलाता है)
2. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, पलायम कोट्टई 627002, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस एवं एम.डी सिद्ध)
3. राष्ट्रीय सिद्ध संस्थान, तम्बरम सेनेटोरियम, चेन्नई -600047 (एम.डी.सिद्ध)
4. तमिलनाडु डॉ.एम.जी.आर. चिकित्सा विश्वविद्यालय, 69, अन्ना सलै, ग्विन्डी, चेन्नई-600032 (एम.डी. सिद्ध)
5. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, पलानी-624601, डिंडगिल जिला, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.)
6. श्री साईराम सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, साई लियोनगर पूंथन्डलम, पश्चिम तंबरम, चैन्नई-600044 (बी.एस.एम.एस.)
7. आर.वी.एस.सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय तथा अस्पताल, कुमारम, कोट्टम, कन्नमपलायम, कोयम्बत्तूर-641402, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.)
8. ए.टी.एस.वी.एस. सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, मुंचीरई, पुडुक्कइड-डाक, कन्याकुमारी जिला, तमिलनाडु-पिन-629171 (बी.एस.एम.एस)
9. वेलु मैलु सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, नं.-48, ग्रैंड वेस्ट ट्रंक रोड, श्रीपेरुम्बुदूर-602105, कांचीपुरम जिला, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.)
10. सिवराज सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, सिद्धार कोविल रोड, थुंवाथुलीपट्टी, सलेम-636307, तमिलनाडु (बी. एस.एम.एस)
11. सांथिगिरि सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, सांथिगिरि डाकघर, पोथेन्कोड, तिरुवनंतपुरम-695584, केरल (बी.एस. एम.एस)
(सूची केवल उदाहरण है)
सिद्ध चिकित्सा प्रणाली कई तरह से अद्वितीय है, जो कई खतरनाक रोगों को ठीक कर सकती है। इसके श्रेष्ठ संभावित उपयोग के लिए इसे आम जनता में लोकप्रिय किए जाने की आवश्यकता है। मानवता को दर्दनाक रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए अधिकाधिक सिद्ध डॉक्टरों की आवश्यकता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आज अधिक से अधिक सिद्ध चिकित्सा कॉलेजों/विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थाओं की आवश्यकता है। इसलिए सुझाव है कि भारत के बड़े शहरों या नहीं तो कम से कम महानगरों में अधिकाधिक ऐसी शैक्षिक तथा अनुसंधान संस्थाएं खोली जाएं जो सिद्ध औषधि दे सकें और जो समाज को व्यापक स्तर पर रोगमुक्त रखने में योगदान देंगी।
सिद्ध चिकित्सा एक वैकल्पिक औषधि प्रणाली होने तथा आधुनिक औषधि की तुलना में न्यूनतम अन्य विपरीत प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) वाली होने के कारण आज भारत तथा विदेश-दोनों में व्यापक लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। कोई भी व्यक्ति इसे अध्यापन या अनुसंधान के क्षेत्रा में कॅरिअर के रूप में चुन सकता है। सिद्ध चिकित्सा में कॅरिअर के रूप में चुन सकता है। सिद्ध चिकित्सा में कॅरिअर चुनने वालों के लिए रोज़गार के व्यापक अवसर उपलब्ध हैं। अपनी योग्यता तथा अनुभव के आधार पर कोई भी व्यक्ति देश के विभिन्न स्थानों में स्थित विभिन्न सरकारी तथा निजी अस्पतालों, क्लीनिक्स, नर्सिंग होम्स, स्वास्थ्य विभागों, चिकित्सा महाविद्यालयों, औषधि अनुसंधान संस्थानों, भेषज उद्योगों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति सिद्ध क्लीनिक खोज कर सिद्ध-फिजिशियन के रूप प्राइवेट प्रेक्टिस भी कर सकता है।
(लेखक फार्माकोग्नोसी अनुभाग, भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण, हावड़ा-711103 में वैज्ञानिक है।)
ई-मेल: abd_selvam@yahoo.co.in
उद्भव एवं विकास
सिद्ध औषधि प्रणाली लगभग दस हजार वर्ष पुरानी है। सिद्ध प्रणली भारत में सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है। इस चिकित्सा प्रणाली के विकास में अनेक सिद्धकर्ताओं में योगदान दिया है, जिनमें से 18 प्रख्यात सिद्धकर्ता है। इनमें अगस्तियार सबसे प्रमुख माने जाते हैं और सिद्ध औषधि में उनके द्वारा किया गया कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। अगस्तियार को वही स्थान प्राप्त है जो औषधि के पितामह माने जाने वाले ग्रीक फिजिशियन हिप्पोक्रेट्स को प्राप्त था। तमिलनाडु में पलानी पर्वत औषधीय पौधों में प्रचुर है और यह सिद्धकर्ताओं की स्थली रहा है। सिद्ध औषधि साहित्य प्राचीन तमिल में उपलब्ध है और यह मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी भाग में प्रचलित हैं।
मूल संकल्पना तथा सिद्धांत
सिद्धकर्ताओं की मूल संकल्पना भोजन ही औषधि है और औषधि ही भोजन भारतीय औषधि प्रणाली का आधार है। सिद्ध औषधि के अनुसार सात तत्व अर्थात प्लाविका, रक्त, मांसपेशी, वसा, अस्थि, स्नायु तथा शुक्र मानव शरीर के शारीरिक, शारीरिक क्रिया एवं मनोवैज्ञानिक कार्यों के आधार हैं। ये सातों तत्व तीन तत्वों अर्थात वायु, अग्नि या ऊर्जा तथा जल द्वारा सक्रिय होते हैं। माना जाता है कि सामान्यतः ये तीनों तत्व हमारे शरीर में एक विशेष अनुपात में होते हैं। जब हमारे शरीर में इन तीनों तत्वों का संतुलन बिगड़ता है तब विभिन्न रोग होते हैं। हमारे शरीर में इन तत्वों को प्रभावित करने वाले कारक हैं:- पथ्य या आहार, शारीरिक गतिविधियां पर्यावरण तथ्य एवं तनाव।
अन्य भारतीय औषधि प्रणालियों की तुलना में सिद्ध औषधि में धातुओं तथा खनिजों का प्रयोग प्रमुख हैं। शरीर में रोगों का पता लगाने के लिए नाड़ी पठन, शरीर को छूकर, आवाज, रंग, नेत्र, जिह्वा, पेशाब एवं शौच की जांच करना निदान के मुख्य आधार हैं। सिद्ध औषधि मर्मस्थानों के लिए भी उपयोग में लाई जाती है।
सिद्ध चिकित्सा चिकित्सा अवधि के दौरान रोगियों को ‘‘क्या करें और क्या न करें’’ का पालन करने की भी शिक्षा देती है। सिद्ध चिकित्सा उपचार का ध्येय शरीर में तीन तत्वों का संतुलन बनाए रखकर सात तत्वों को सामान्य स्थिति में रखना है ताकि शरीर एवं मस्तिष्क स्वस्थ रह सकें।
औपचारिक चिकित्सा शिक्षा
सिद्ध चिकित्साकर्ता बनने के लिए एक औपचारिक चिकित्सा शिक्षा अनिवार्य है। ऐसे कई सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय हैं जो निम्नलिखित अधिस्नातक डिग्री देते हैं, जैसे-सिद्ध औषधि एवं शल्य चिकित्सा स्नातक (बी.एस. एम.एस.) यह 5-1/2 वर्षीय पाठ्यक्रम है, जिसमें छह महीने या एक वर्ष की इंटर्नशिप अवधि भी शामिल है। इस पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद कोई भी व्यक्ति सिद्ध औषधि में स्नातकोत्तर डिग्री अर्थात एम.डी. (सिद्ध) कर सकता है, जो 3 वर्षीय पाठ्यक्रम है। बी.एस.एम.एस. पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए न्यूनतम पात्रता भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव-विज्ञान, या वनस्पति विज्ञान, तथा प्राणिविज्ञान विषयों के साथ हायर सेकेण्डरी पाठ्यक्रम (10+2) है। इस पाठ्यक्रम के लिए प्रवेश/चयन सामान्यतः एक सामान्य प्रवेश परीक्षा के आधार पर किया जाता है। सिद्ध चिकित्सा में अधिस्नातक और/या स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाने वाले राजकीय तथा निजी चिकित्सा महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा संस्थाओं की सूची नीचे दी गई हैं:-
1. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, अरुम्पक्कम, चेन्नई -600106 (बी.एस.एम.एस तथा एम.डी.सिद्ध, दोनों पाठ्यक्रम चलाता है)
2. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, पलायम कोट्टई 627002, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस एवं एम.डी सिद्ध)
3. राष्ट्रीय सिद्ध संस्थान, तम्बरम सेनेटोरियम, चेन्नई -600047 (एम.डी.सिद्ध)
4. तमिलनाडु डॉ.एम.जी.आर. चिकित्सा विश्वविद्यालय, 69, अन्ना सलै, ग्विन्डी, चेन्नई-600032 (एम.डी. सिद्ध)
5. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, पलानी-624601, डिंडगिल जिला, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.)
6. श्री साईराम सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, साई लियोनगर पूंथन्डलम, पश्चिम तंबरम, चैन्नई-600044 (बी.एस.एम.एस.)
7. आर.वी.एस.सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय तथा अस्पताल, कुमारम, कोट्टम, कन्नमपलायम, कोयम्बत्तूर-641402, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.)
8. ए.टी.एस.वी.एस. सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, मुंचीरई, पुडुक्कइड-डाक, कन्याकुमारी जिला, तमिलनाडु-पिन-629171 (बी.एस.एम.एस)
9. वेलु मैलु सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, नं.-48, ग्रैंड वेस्ट ट्रंक रोड, श्रीपेरुम्बुदूर-602105, कांचीपुरम जिला, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.)
10. सिवराज सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, सिद्धार कोविल रोड, थुंवाथुलीपट्टी, सलेम-636307, तमिलनाडु (बी. एस.एम.एस)
11. सांथिगिरि सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, सांथिगिरि डाकघर, पोथेन्कोड, तिरुवनंतपुरम-695584, केरल (बी.एस. एम.एस)
(सूची केवल उदाहरण है)
सिद्ध चिकित्सा प्रणाली कई तरह से अद्वितीय है, जो कई खतरनाक रोगों को ठीक कर सकती है। इसके श्रेष्ठ संभावित उपयोग के लिए इसे आम जनता में लोकप्रिय किए जाने की आवश्यकता है। मानवता को दर्दनाक रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए अधिकाधिक सिद्ध डॉक्टरों की आवश्यकता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आज अधिक से अधिक सिद्ध चिकित्सा कॉलेजों/विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थाओं की आवश्यकता है। इसलिए सुझाव है कि भारत के बड़े शहरों या नहीं तो कम से कम महानगरों में अधिकाधिक ऐसी शैक्षिक तथा अनुसंधान संस्थाएं खोली जाएं जो सिद्ध औषधि दे सकें और जो समाज को व्यापक स्तर पर रोगमुक्त रखने में योगदान देंगी।
कार्य-अवसर
सिद्ध चिकित्सा एक वैकल्पिक औषधि प्रणाली होने तथा आधुनिक औषधि की तुलना में न्यूनतम अन्य विपरीत प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) वाली होने के कारण आज भारत तथा विदेश-दोनों में व्यापक लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। कोई भी व्यक्ति इसे अध्यापन या अनुसंधान के क्षेत्रा में कॅरिअर के रूप में चुन सकता है। सिद्ध चिकित्सा में कॅरिअर के रूप में चुन सकता है। सिद्ध चिकित्सा में कॅरिअर चुनने वालों के लिए रोज़गार के व्यापक अवसर उपलब्ध हैं। अपनी योग्यता तथा अनुभव के आधार पर कोई भी व्यक्ति देश के विभिन्न स्थानों में स्थित विभिन्न सरकारी तथा निजी अस्पतालों, क्लीनिक्स, नर्सिंग होम्स, स्वास्थ्य विभागों, चिकित्सा महाविद्यालयों, औषधि अनुसंधान संस्थानों, भेषज उद्योगों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति सिद्ध क्लीनिक खोज कर सिद्ध-फिजिशियन के रूप प्राइवेट प्रेक्टिस भी कर सकता है।
(लेखक फार्माकोग्नोसी अनुभाग, भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण, हावड़ा-711103 में वैज्ञानिक है।)
ई-मेल: abd_selvam@yahoo.co.in
Path Alias
/articles/saidadha-caikaitasaa-maen-raojagaara-kae-avasara
Post By: Hindi