सहस्त्रधारा देहरादून में स्थित एक अत्यन्त मनोरम एवं दर्शनीय स्थान है, जो शहर से लगभग 11 कि.मी. दूर है। यहाँ बूँद-बूँद कर जल चूना पत्थर से टपकता रहता है और हजारों धाराओं वाले झरने का निर्माण करता है, यह झरना छिछला और लगभग 9 मीटर गहरा है। झरने का जल बाल्दी नदी से मिलता है और अन्ततः पवित्र गंगा में विलीन हो जाता है।



वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वर्षा का जल, भूमि से होकर गुजरता है और मृदा में उपस्थित कार्बन-डाइऑक्साइड को अवशोषित कर अम्लीय जल में परिवर्तित कर देता है। यह अम्लीय जल दरारों के माध्यम से चूना-पत्थर चट्टानों में प्रवेश करता है तथा चूना-पत्थर चट्टानों को घोलने लगता है जिससे गुफाओं का निर्माण होता है। अन्ततः जल चूने से संतृप्त हो जाता है और गुफा की छतों से टपकता है। जैसे ही जल हवा भरी गुफा की छत से टपकता है, कार्बन-डाइऑक्साइड का विमोचन हो जाता है एवं अतिरिक्त कैल्शियम गुफा निक्षेप के रूप में निक्षेपित होने लगता है जिससे विभिन्न संरचनाओं का निर्माण होता है जैसे स्टेलैक्टाइट जोकि गुफा की छत से नीचे की ओर बढ़ने वाली संरचनाएं होती हैं। स्टैलगमाइट गुफा की सतह से ऊपर की ओर बढ़ने वाली संरचनाएं होती हैं। ये दोनों संरचनाएं आपस में मिलकर स्तम्भों का निर्माण करती हैं। सोडा नली पतली लंबी नली के समान संरचनायें होती है। धारा शैल चादर के समान चूने पत्थर की संरचनायें होती हैं जो गुफा की दीवारों एवं सतहों पर चूना संतृप्त जल के बहने के कारण बनती हैं। इस प्रकार कटाव, खुदाई एवं निक्षेपण जैसी कई भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं के बाद इन गुफाओं का निर्माण होता है, जो विभिन्न संरचनाओं से अंलकृत होते हैं।



गुफा निक्षेप एवं उनके महत्व
गुफा निक्षेप उत्कृष्ट अद्वितीय स्थलीय प्राकृतिक संपदा है जिनका अधिकांश देशों में खनन संग्रह एवं बिक्री निषेध है। गुफा निक्षेपों का उद्भव एवं विकास पर्यावरणीय घटकों जैसे वर्षा, तापमान आर्द्रता, वनस्पति प्रकार एवं आच्छादन, मृदा प्रकार इत्यादि कारकों पर निर्भर करता है तथा इन कारकों के साक्ष्य इन गुफा निक्षेपों में संरक्षित होते हैं। इस प्रकार गुफा निक्षेपों के अध्ययन से प्राचीन जलवायु, पर्यावरण, मानसून, ताप इत्यादि तथ्यों को जानने में सहायता मिलती है। गुफा निक्षेप का उपयोग अब पुरामानसून की जानकारी के लिये अरब सागर, ओमान, चीन एवं संसार के अन्य गुफाओं में सफलतापूर्वक किया जा चुका है इससे हमें दक्षिण - पश्चिम एवं पूर्वी एशिया में प्रतिवर्ष आने वाले मानसून चक्र की जानकारी प्राप्त होती है।
ऑक्सीजन समस्थानिक के अध्ययन द्वारा हम पुरामानसून के बारे में पता लगा सकते हैं। ऐसा देखा गया है कि वर्षा के जल में 18O एवं 16O का अनुपात कम होता है। इस प्रकार गुफा के छत से टपकने वाले जल तथा गुफा निक्षेपों में भी इनका अनुपात ऋणात्मक होता है। यदि δ18O का अनुपात अधिक ऋणात्मक हो तो यह अतिवृष्टि दर्शाती है।

असमय सूखा, प्रचण्ड बाढ़, बादल फटने जैसी घटनायें मानसून चक्र बिगड़ने के साक्ष्य हैं। यद्यपि भारतीय मानसून मुख्यतः हिन्द महासागर, भारतीय उपमहाद्वीप एवं बंगाल की खाड़ी में होने वाले जलवायु परिवर्तन पर निर्भर करता है परन्तु वैश्विक जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक तापमान का बढ़ना, समुद्री ताप में परिवर्तन, विश्वतापीकरण जैसी घटनायें भारतीय मानसून को प्रभावित करती हैं। चूँकि सहस्त्रधारा मानसून प्रभावित क्षेत्र है अतः यहाँ के गुफा निक्षेपों के अध्ययन से जलवायु परिवर्तन एवं मानसून चक्र को समझने में सहायता मिलेगी, जिससे प्राचीन जलवायु एवं वर्तमान परिदृश्य में सामंजस्य स्थापित किया जा सकेगा जो भविष्य में जलवायु एवं मानसून परिवर्तन का अनुमान लगाने में कारगर होंगे। इस प्रकार गुफा निक्षेप, अतीत की कुंजी होंगे, जोकि अमूल्य है।
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जूली जायसवाल
वा. हि. भूवि. सं., देहरादून
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