सहस्त्रधारा

ओ सहस्त्रधारा!
ओ विमुक्त, ओ अबाध
अयि सदा विश्रृंखले
शैल-अंक, केलि-मग्न
विविध अकारा
ओ सहस्त्रधारा!

राशि-राशि नीर भर
तुंग शैल से उतर
कहीं दौड़ती अधीर
कहीं थिरकती निडर
दिखाती कला अनेक
पद -क्षेप द्वारा
ओर सहस्त्रधारा!

क्षुद्र तरु-पुंज में
वन्य घास में कहीं
एक क्षण को फँसी
क्रुद्ध स्वर फिर वही
मोड़ मुख, तोड़ती
शिलाखंड-कारा
ओ सहस्त्रधारा!

कहीं शांति-कुंज में
भावना-निमग्न-सी
पक्षी कलरव में
विश्व गान ढूँढ़ती
मंद-मंद छाया वस्त्र
छोड़ के निकलती
तू रहस्य-भारा
ओ सहस्त्रधारा!

सूर्य के प्रकाश में
तरल रश्मि-लास में
वायु की हिलोर में
पक्षीकुल-शोर में
मृदु-स्पंदन मृदुल रव;
थिरकता प्रभागर्भ
वारि-वपु प्यारा
ओ सहस्त्रधारा!

शत-शत शैल स्रोत
सौ-सौ निर्झर
स्फीत जल-राशि में
मिल जाते सत्वर
घूमती विभक्त हो
वितत गिरि-देह पर
ऊर्मि आधारा
ओ सहस्त्रधारा!

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