आज देश के विभिन्न शहरों में पानी का संकट खड़ा हो रहा है और यह संकट सतही ओर भूजल दोनों के अभाव से उपजा है। इस संकट से निपटने के लिए हमें गांव के साथ-साथ शहरों में भी जल संग्रहण के विभिन्न तरीकों का उपयोग करना होगा। लेकिन अब सवाल उठता है कि शहरों में इसे कैसे क्रियान्वित किया जाए। दरअसल ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में वर्षा जल संग्रहण का समान अर्थ है। फर्क बस इतना है कि ग्रामीण इलाकों में जल पंढाल प्रबधंन कार्यक्रम के जरिए मिट्टी संरक्षण के साथ-साथ जल संग्रहण किया जाता है। वहीं दूसरी ओर शहरी इलाकों में जगह की कमी के कारण छत पर जल संग्रहण करना ज्यादा मुनासिब होता है।
शहरों में पहले से निर्मित भवनों में भी जल संग्रहण करना संभव है। बरसात के पानी का मुख्यत: दो उद्देश्यों से संग्रहण किया जाता हैः
• पानी का तुरंत उपयोग करने के लिए जमीन पर अथवा जमीन के अंदर टंकी में पानी का भण्डारण किया जाता है। (इसके लीए चित्र-1 देखें)
• बाद में उपयोग करने के लिए बारिश के पानी को जमीन के अंदर छोड़ा जाता है, जिससे भूजल भण्डारण का पुनर्भरण होता है।
जल संग्रहण के प्रमुख घटक
• जल ग्रहण क्षेत्र वह क्षेत्र होता है, जिस पर वर्षा का पानी सीधे गिरता है। इस क्षेत्र की सतह पक्का बंधा हुआ अथवा फर्शयुक्त हो सकता है, जैसे : घर की छत, आंगन या खुला मैदान या बगीचा, वगैरह। इसमें तम्बूनुमा ढालू छत अथवा शेड की झुकी हुई छत जैसे अस्थाई ढांचों का भी जल ग्रहण क्षेत्र के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
• पाइप द्वारा जल ग्रहण क्षेत्र या छत से बारिश का पानी टंकी तक पहुंचता है।
• बारिश के पानी का संग्रहण करने के लिए आरसीसी, ईंट अथवा प्लास्टिक की टंकियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
• पुनर्भरण व्यवस्था के तहत कुओं, नलकूपों, खाइयों तथा पुनर्भरण गड्ढो के जरिए भूमिगत जल भंडारण का पुनर्भरण किया जा सकता है।
जल संग्रहण के तरीके
जैसा कि पहले बताया गया है कि पानी के सीधे उपयोग के लिए पाइपों के जरिए छत के पानी को खाली टंकी में पहुंचाया जाता है।
प्रत्येक टंकी के लिए ओवर फ्लो व्यवस्था का प्रावधान किया जाना चाहिए, जिससे टंकी का अतिरिक्त पानी बाहर निकलता रहे।
यद्यपि वर्षा जल का पानी फ्लोराइड तथा कैल्शियम जैसे खनिज प्रदूषकों से मुक्त होता है, लेकिन इसमें वायुमंडलीय प्रदूषक तथा सतही प्रदूषक तत्व (जैसे महीन रेत, घूल इत्यादि) मौजूद रहते हैं।
अत: वायुमंडलीय प्रदूषण से बचने के लिए पहले दस-बीस मिनट की वर्षा से प्राप्त पानी को संग्रहित करने की बजाय इसे कहीं और बहा दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे वायु मंडलीय प्रदूषण से बचने के साथ-साथ छत की गंदगी भी साफ हो जाएगी।
प्रबधंन और रखरखाव
प्रत्येक बारिश से पहले और बाद में सम्पूर्ण जल संग्रहण व्यवस्था के घटकों (छत, पाइप, जाली, पहले बारिश को अन्य स्थान पर ले जाने की व्यवस्था, वगैरह) का पूरा परीक्षण किया जाना चाहिए।
कुएं का पुनर्भरण करने के लिए इसके अस्तर में समान दूरी पर छेद किए जाते हैं, जिससे इसमें बेहतर ढंग से पानी प्रवेश करे। मच्छरों के प्रकोप से बचने के लिए इसे ढक कर रखना चाहिए इसी प्रकार इसमें रेत या तैरने वाली वस्तु को रोकने की भी व्यवस्था की जानी चाहिए, नहीं तो इस पुनर्भरण ढांचे के अवरुद्ध होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: आर के श्रीनिवासन / सुरेश बाबू एस वी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन इकाई, सेंटर फॉर साइन्स एण्ड इन्वायरन्मेंट 41, तुगलकाबाद इंस्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली- 110062
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