शहरों के बढ़ते प्रदूषण से बचाएगा नेसोफिल्टर


नई दिल्ली। दिल्ली आईआईटी के तीन पूर्व छात्रों और प्रोफेसरों की टीम ने शहरों में बढ़ते प्रदूषण से बचने के लिये एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया है, जो प्रदूषण की मार से बचाने में कारगर साबित हो सकता है। इस यंत्र को बनाने में राजस्थान के दो छात्रों की मुख्य भूमिका रही है। बीकानेर के प्रतीक शर्मा और उदयपुर के तुषार वैश्य का साथ दिया है उत्तर प्रदेश के जतिन केवलानी ने। आईआईटी के तीनों पूर्व छात्रों ने प्रोफेसरों की देख-रेख में इस महत्त्वपूर्ण यंत्र को बनाने में सफलता हासिल की है। इन छात्रों को पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्टार्टअप नेशनल अवार्ड से भी पुरस्कृत किया था। इस सम्बन्ध में पत्रिका संवाददाता रितु राज ने प्रतीक शर्मा से खास बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश-

वायु प्रदूषणनेसोफिल्टर क्या है और यह कैसे काम करता है?
हमने वायु प्रदूषण जैसी गम्भीर समस्या से निपटने के लिये नैनो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर यह नेसोफिल्टर बनाया है। यह एक फिल्टर है, इसकी पकड़ पैच की तरह होती है जो नाक में आसानी से चिपक जाता है। यह हवा में मौजूद प्रदूषित कणों और बैक्टीरिया को रोक कर उसे प्यूरीफाई कर ऑटो क्लीन कर देता है।

अन्य प्रदूषण मास्कों से नेसोफिल्टर किस प्रकार अलग है। क्या वाकई नेसोफिल्टर पीएम 2.5 लेवल प्रदूषण को कंट्रोल कर पाएगा?
हमने नैनो टेक्नोलॉजी से नैनो फाइबर बनाए हैं, जो ज्यादा एफिसिएंट हैं, ये पीएम 2.5 माइक्रो पार्टिकल को रोकने में सक्षम हैं। यदि मैं इसकी तुलना फेस मास्क से करूँ तो फेस मास्क हमारे चेहरे के आधे हिस्से को ढक देता है, जबकि नेसोफिल्टर सिर्फ नाक के होल के पास एक पैच की तरह इस्तेमाल किया जाता है, जिससे चेहरे का लुक भी खराब नहीं होता। मास्क में सफोकेशन की दिक्कत रहती है, जबकि नेसोफिल्टर लगाकर बात तो आसानी से कर ही सकते हैं और इससे खाना खाने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी। यह काफी सहज है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने इसे बनाया है। इसे लगाकर इंसान हर काम कर सकता है।

इसका इस्तेमाल किस उम्र के लोग कर सकते हैं? क्या अस्थमा के मरीज भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं?
इसका इस्तेमाल 6 साल की उम्र से लेकर हर वर्ग के लोग कर सकते हैं। ऐसे अस्थमा रोगी जिन्हें एलर्जी होती है, उनके लिये यह काफी लाभदायक है। क्योंकि यह डस्ट को पूरी तरह से कंट्रोल करता है।

नेसोफिल्टर बनाने का आइडिया कहाँ से आया?
देश में बढ़ते प्रदूषण की वजह से मेरे दिमाग में यह आइडिया आया। मेरी माँ अस्थमा की मरीज थी। मेरे मन में बचपन से ही यह बात थी कि मैं कोई ऐसा उपकरण बनाऊँ जिसे अस्थमा रोगी इस्तेमाल कर सकें। तभी मैंने इस नैनो टेक्नोलॉजी पर काम करना शुरू किया और लगभग दो साल की मेहनत के बाद यह सम्भव हो पाया।

यह उपकरण बाजार में कब तक उपलब्ध हो पाएगा?
यह हमारी वेबसाइट और ई-कॉमर्स वेबसाइट पर उपलब्ध है। हमारा प्रयास है कि यह जनवरी तक देश के सभी रिटेल शॉप पर पहुँच जाएगा।

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