भारत देश एक संघीय ढाँचे के रूप में कार्य करने वाला देश है। जिस कारण केन्द्र एवं राज्य सरकार अपने-अपने अधिकार व कर्तव्य के अनुरूप अपनी जिम्मेदारी का संवैधानिक निर्वहन करती है। पर्यावरण, जंगल, जीव-जन्तु के साथ ही वर्षाजल संरक्षण को लेकर यह कर्तव्य के निर्वहन की जिम्मेदारी आज के समय में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है जबकि सम्पूर्ण विश्व के देश अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियों के बाद भी पीने के पानी को लेकर चिन्तित हैं। पौराणिक काल में राजा महाराजाओं द्वारा बनाए गए किलों में भी पीने के पानी के बचाव के लिये विशेष निर्माण किये गए हैं जिसमें लखनऊ का इमामबाड़ा एवं मध्य-दक्षिणी भारत के राजाओं के किलों की निर्माण शैली भी देखी जा सकती है। पर्यावरणविदों द्वारा आशंका भी व्यक्त की गई है कि तीसरा विश्व युद्ध पीने के पानी के लिये होगा और चौथा विश्व युद्व पत्थरों से लड़ा जाएगा। हम आकलन कर सकते हैं कि पीने का पानी आज विश्व स्तर पर एक बड़ी समस्या का रूप लेता जा रहा है।
वर्तमान में भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा वर्षाजल के संरक्षण हेतु अनेक बिन्दुओं पर कार्य किया जाता रहा है जिसमें घरों की छतों पर गिरकर व्यर्थ बहने वाले वर्षाजल का एकत्रीकरण एवं संरक्षण प्रमुख है। वर्षा का जल नालियों के द्वारा बहकर नदियों के माध्यम से समुद्र में जाकर जमा हो जाता है जो वाष्पित होकर उस क्षेत्र में वर्षा कराने में सहायक होता है जहाँ वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत खेत-खलिहान व आबादी क्षेत्र वर्षा से वंचित रह जाता है। यदि केवल शहरी क्षेत्रों में घरों एवं व्यावसायिक भवनों की छत पर गिरने वाले वर्षाजल को एकत्र कर जमीन के अन्दर पहुँचा दिया जाये तो जमीन के अन्दर पानी की भरपूर मात्र हो जाएगी जो हैण्डपम्प, बोरिंग वेल आदि को सूखने नहीं देगी। बेकार में बहकर बर्बाद हो रहे वर्षाजल को एकत्र कर जमीन में डालकर इसका संरक्षण करना एक सराहनीय एवं अतिआवश्यक कदम है। राज्यों के सहयोग की इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका हो जाती है क्योंकि भवन निर्माण की नियमावली को लागू कराना राज्य की जिम्मेदारी है।
परन्तु आज के वास्तविक हालात यह हैं कि शहरी क्षेत्रों में होने वाले भवन निर्माण में वर्षाजल के संरक्षण की अनिवार्यता के बजाय राज्य सरकारें इस ओर अपना ध्यान नहीं दे पा रही हैं। साथ ही शहरों के वर्तमान में उपलब्ध जलस्रोत समाप्त होने के कगार पर आ गए हैं। वर्तमान में लागू नीति के अन्तर्गत सभी आवसीय एवं व्यावसायिक भवनों में नक्शा पारित करते समय यह निर्धारित एवं सुनिश्चित किया जाता है कि भवन निर्माण के साथ-साथ छतों पर गिरने वाले वर्षाजल को बेकार बहने देने के बजाय उसके जमीन में संचयन की व्यवस्था की जाएगी। ऐसा न होने पर जुर्माने आदि का भी प्रावधान है। परन्तु इस महत्त्वपूर्ण विषय की अनदेखी कर अमूल्य जल को बर्बाद किया जा रहा है। महानगरों में लाखों रुपए खर्च कर पानी के टैंकरों से गली मुहल्लों में पीने के पानी की सप्लाई तो की जा रही है परन्तु वर्षाजल के संरक्षण के उपायों पर ध्यान न देकर मूल समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सभी नागरिकों को भी चाहिए कि अपने वर्तमान आवासों में भी सम्भव हो सके तो वर्षाजल तथा दैनिक उपयोग के उपरान्त बहने वाले पानी के संरक्षण के लिये व्यापक उपाय करें।
सरकार के स्तर पर शहरों में एक और प्रयास वर्षा एवं दैनिक प्रयोग के जल संरक्षण का उपाय किया जा सकता है। शहरों में कम क्षेत्रफल में ज्यादा लोग रहते हैं और ज्यादा पानी का प्रयोग कर नाली में बहा देते हैं। सरकारी एवं नगर निकायों के स्तर पर नालों के साथ-साथ कुछ ऐसे कुओं का निर्माण किया जा सकता है जो रोजाना बहने वाले पानी को साफ कर इन कुओं के माध्यम से जमीन के अन्दर जल की मात्रा को बढ़ा सकें। संलग्न चित्र में ऐसे ही नाले के साथ लगे रिचार्ज कुओं के माध्यम से वर्षाजल के साथ-साथ रोजाना प्रयोग होने वाले जल का भी संरक्षण किया जा रहा है। ऐसा ही प्रयोग चेन्नई में किया जा रहा है। वहाँ पर शहर से बाहर जाने वाले दैनिक प्रयोग का बेकार जाने वाला पानी के नालों के पास चित्र में दिखाए गए रिचार्ज कुओं के माध्यम से नाले के पानी को प्राथमिक रूप से थोड़ा परिशोधित कर जमीन में डाल दिया जाता है। चेन्नई नगर में कई जगह पर ऐसे ही रिचार्ज कुओं का निर्माण किया गया है। इस प्रकार जहाँ एक ओर बेकार बह रहे पानी का संरक्षण किया जा रहा है वहीं नगर के नालों में क्षमता से अधिक पानी आने पर यह रिचार्ज कुओं के कारण व्यवस्थित बना रहता है।
वर्तमान में आवश्यक रूप से सभी आवसीय एवं व्यावसायिक भवनों के वर्षाजल के संचयन के लिये वर्षाजल को एकत्र करने हेतु रिचार्ज कुओं के निर्माण को आवश्यक बनाया जाये। जिन भवनों में रिचार्ज कुओं का निर्माण नहीं किया जाता है उन भवनों का नक्शा स्वीकृति रद्द कर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए। गैर-सरकारी एवं सामाजिक संस्थाओं को रिचार्ज कुओं के निर्माण के लिये आमजन को जागरूक करना इस ओर एक बेहतर कदम साबित हो सकता है। यहाँ तक कि गैर-सरकारी संस्थाएँ, राजनैतिक दल, कारपोरेट क्षेत्र एवं खाप पंचायतें भी वर्षाजल संरक्षण के प्रति सक्रियता दिखाकर इस ओर भी जागरुकता फैलाएँ। हम सभी को चाहिए कि चर्चा के साथ-साथ एक कदम बढ़ाएँ और आज से ही वर्षाजल एवं दैनिक प्रयोग के व्यर्थ बहने वाले जल को संरक्षित करने का काम करें।
संपर्क- आशीष सैनी ए-12, 13, सरस्वती विहार सुनहरा रोड़, रुड़की हरिद्वार - 247667, उत्तराखण्ड
Path Alias
/articles/saharai-kasaetara-maen-jala-sanrakasana
Post By: Hindi