प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से किसानों को जैविक खेती की पद्धति का बारीक प्रशिक्षण दिया गया। नतीजतन, आज शेखावाटी का पूरा इलाका अर्द्ध रेगिस्तान में हरित क्षेत्र की तरह हो गया है। आज यहां दूर-दूर तक फसलें लहलहाती नजर आती हैं। खाद्यान्नों में दलहन और तिलहन ही नहीं, बल्कि हरी सब्जियां भी बहुतायत में पैदा हो रही हैं। फाउंडेशन की कोशिशों के परिणाम इतने उत्साहवर्द्धक हैं कि साल के बारहों महीने शेखावाटी क्षेत्र में पैदा हुई हरी सब्जियां मसलन टमाटर, बैगन, हरी मिर्च, प्याज, लहसुन, गाजर, करेला एवं मटर आदि दिल्ली और मुंबई के बाजारों में सीधे पहुंच रही हैं।
कुछ वक्त पहले तक लोग ऑर्गेनिक फूड की खूबियों से वाकिफ नहीं थे। यह विदेशियों की पसंद ज्यादा हुआ करता था, पर अब हालात बदल चुके हैं। अब भारतीय बाजार न सिर्फ ऑर्गेनिक उत्पादों से भरे पड़े हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर जैविक खेती भी की जा रही है। भारत में जैविक उत्पादों को बढ़ावा देने का श्रेय देश के मशहूर उद्योगपति कमल मोरारका द्वारा संचालित मोरारका फाउंडेशन को जाता है। मोरारका फाउंडेशन ने वर्षों की मेहनत और सतत प्रयास के जरिए न सिर्फ जैविक खेती को एक आंदोलन के रूप में तब्दील कर दिया, बल्कि शेखावाटी के लाखों किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाया है। गौरतलब है कि जैविक खेती पैदावार, बचत और सेहत के नजरिए से भी किसानों के लिए फायदेमंद है। लिहाजा किसान जैविक खेती की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं। इससे न सिर्फ पैदावार बढ़ती है, बल्कि उत्पादों की गुणवत्ता में भी इजाफा होता है। इतना ही नहीं, जैविक खेती करने वाले किसानों की फसलों को अन्य फसलों की तुलना में किमत भी ज्यादा मिलती है, जिससे वे आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं।
फिलहाल मोरारका फाउंडेशन कुल पंद्रह राज्यों में जैविक खेती करा रहा है। मोरारका आर्गेनिक के कार्यकारी अध्यक्ष मुकेश गुप्ता के मुताबिक आईसीसीओए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऑर्गेनिक उत्पादों की मार्केटिंग करने का काम करता है। मुकेश गुप्ता कहते हैं कि वर्ष 2008 तक भारत में 8.65 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर ऑर्गेनिक खेती हो रही थी, जो देश के कुल 14.2 करोड़ हेक्टेयर कृषि क्षेत्र का महज 0.61 प्रतिशत है, लेकिन यह जागरूकता का ही नतीजा है कि यह आंकड़ा 2012 तक 20 लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। मुकेश गुप्ता बताते हैं कि भारत में ऑर्गेनिक उत्पादों का कारोबार हर वर्ष दोगुना होता जा रहा है। इस रफ्तार से यह उम्मीद बंधी है कि वर्ष 2012 तक भारत से जैविक खाद्यान्नों का निर्यात 4500 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।
देश खाद्यान्न की कमी से जूझ रहा है। खाद्य पदार्थों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं और इन हालात में भी देश में हर साल करीब 60 हजार करोड़ रुपये के खाद्यान्न की बर्बादी हो रही है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन जैविक खेती के जरिए इस बर्बादी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि ऑर्गेनिक फूड लंबे समय तक खराब नहीं होते। उनके संरक्षण के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता नहीं पड़ती। जैविक खेती के माध्यम से सूखे जैसी स्थितियों से भी निपटा जा सकता है, क्योंकि जैविक खेती में फसलों की सिंचाई के लिए पानी की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। जैविक खेती से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहती है। मोरारका फाउंडेशन का मानना है कि आज जबकि खाने की विभिन्न वस्तुओं में मिलावट होने से लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है, ऐसे में ऑर्गेनिक फूड की अहमियत काफी बढ़ जाती है, क्योंकि जैविक उत्पादों में शुद्धता की गारंटी है। जैविक खेती के विकास और जैविक मिट्टी के महत्व को समझते हुए मोरारका फाउंडेशन ने राजस्थान के शेखावाटी समेत देश के कई हिस्सों में काम करना शुरू किया।
फाउंडेशन ने इस बारे में बैठकें की, सेमिनार किए और घर-घर जाकर किसानों को जैविक खेती के फायदे के बारे में बताया और समझाया। क्षेत्र की बंजर मिट्टी, पानी एवं बाजार आदि पर शोध करके फाउंडेशन ने उसका सीधा फायदा क्षेत्र के किसानों को पहुंचाया। प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से किसानों को जैविक खेती की पद्धति का बारीक प्रशिक्षण दिया गया। नतीजतन, आज शेखावाटी का पूरा इलाका अर्द्ध रेगिस्तान में हरित क्षेत्र की तरह हो गया है। आज यहां दूर-दूर तक फसलें लहलहाती नजर आती हैं। खाद्यान्नों में दलहन और तिलहन ही नहीं, बल्कि हरी सब्जियां भी बहुतायत में पैदा हो रही हैं। फाउंडेशन की कोशिशों के परिणाम इतने उत्साहवर्द्धक हैं कि साल के बारहों महीने शेखावाटी क्षेत्र में पैदा हुई हरी सब्जियां मसलन टमाटर, बैगन, हरी मिर्च, प्याज, लहसुन, गाजर, करेला एवं मटर आदि दिल्ली और मुंबई के बाजारों में सीधे पहुंच रही हैं। यह काम मोरारका फाउंडेशन के निर्देशन में ही संभव हो पाया है। किसान मनवीर बताते हैं कि जैविक खेती से सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि लागत 80 फीसदी कम हो गई है, कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और किसानों की आमदनी 30 से 40 प्रतिशत बढ़ गई है।
मुकेश गुप्ता बताते हैं कि किसानों को कृषि से व्यवसाय जैसी आमदनी हो, इसके लिए फाउंडेशन उन्हें कई उपयोगी सलाह भी देता है, मसलन फसल का चुनाव, खेती करने के उन्नत तरीके, कृषि संबंधी आधुनिक सूचनाएं और फसल कटने के बाद वे कैसे बेहतर मूल्य पा सकते हैं। साथ ही फसल का बीमा और खाद एवं बीज की उपलब्धता आदि के बारे में भी शिविरों के माध्यम से बराबर प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके लिए मोरारका फाउंडेशन ने नवलगढ़ कस्बे में बस स्टैंड, तहसील, पंचायत समिति और कोर्ट के पास एग्री बिजनेस सेंटर भी स्थापित किए हैं। इन केंद्रों पर किसानों से अनाज और सब्जियों की खरीद बेहतर मूल्य देकर की जाती है। इस तरह के कई खरीद केंद्र स्थापित किए गए हैं। खरीदे गए कृषि उत्पाद को जयपुर स्थित मोरारका आर्गेनिक की प्रोसेसिंग यूनिट में लाया जाता है, जहां सैकड़ों की संख्या में मजदूर अनाज की सफाई, छंटाई और पैकेजिंग का काम करते हैं। पैकेजिंग में किसी तरह की कोई खामी न रहे, इसके लिए प्रोसेसिंग यूनिट में मशीनों के अलावा बड़े पैमाने पर महिला श्रमिक भी रखी गई हैं।
डाउन टू अर्थ
मोरारका ऑर्गेनिक अपने रिटेल स्टोर डाउन टू अर्थ के नाम से ऑर्गेनिक उत्पादों की खुदरा बिक्री के क्षेत्र में भी सामने आया है। डाउन टू अर्थ खाद्य पदार्थों की बड़ी रेंज उपलब्ध कराता है, जिसमें दाल, चावल, आटा, मसालें, मिक्स मसाले, गाय का देसी घी, डेयरी उत्पाद और सीधे खाने योग्य दाल ढाबा तड़का, पंजाबी राजमा मसाला, कढ़ी, दाल मखानी, बाजरा खीचड़ा, स्नैक्स, सूजी के मीठे कुकीज, रोस्टेड नमकीन एवं नानखटाई आदि शामिल है। इन रिटेल स्टोरों के जरिए किसानों को बाजार मुहैया कराया जाता है। डाउन टू अर्थ के रिटेल स्टोर मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, जयपुर एवं नोएडा समेत कई शहरों में मौजूद हैं। उल्लेखनीय है कि मोरारका आर्गेनिक के प्रोडक्ट अपनी बेहतरीन गुणवत्ता और शुद्धता के लिए देश और विदेशों में जाने जाते हैं। फिलवक्त डाउन टू अर्थ के स्टोरों में दो सौ से ज्यादा ऑर्गेनिक उत्पाद उपलब्ध हैं। हालांकि इस वक्त देश में ऑर्गेनिक उत्पादों के लगभग 30 मिलियन उपभोक्ता हैं, लेकिन उन्हें इन उत्पादों को खरीदने में बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए मोरारका ऑर्गेनिक ने डाउन टू अर्थ रिटेल स्टोर की शुरुआत की, जिससे उपभोक्ताओं से लेकर किसानों को भी फायदा पहुंच रहा है। इससे किसान बिचौलियों के चंगुल में आए बिना अपनी फसल का उचित मूल्य पाते हैं।
जैविक खेती मौजूदा समय की जरूरत
वर्तमान समय में किसानों द्वारा रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल करने से कृषि में प्रति इकाई उत्पादन लागत बढ़ रही है। यही नहीं, रसायनों और कीटनाशकों की वजह से पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ रहा है। मोरारका फाउंडेशन ने जैविक कृषि का प्रचार-प्रसार न केवल शेखावाटी, बल्कि संपूर्ण भारत में किया है। वर्तमान समय की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए और किसानों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए मोरारका फाउंडेशन ने कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों से भी करार किया है। फिलहाल फाउंडेशन करीब एक लाख एकड़ भूमि में जैविक खेती का विकास कर चुका है। इसके लिए फाउंडेशन वर्मी कल्चर का अधिक से अधिक इस्तेमाल कर रहा है। वर्ष 1995 में राजस्थान सरकार ने राज्य के दस हजार किसानों के साथ जैविक खेती की शुरुआत करने का प्रस्ताव मोरारका फाउंडेशन के सामने रखा था। आज दो लाख से ज्यादा किसान इस फाउंडेशन के साथ जुड़कर जैविक खेती कर रहे हैं। ये किसान जैविक खादों का प्रयोग कर बेहतरीन गुणवत्ता के फल, सब्ज़ी, दलहन, तिलहन और मसालों का उत्पादन कर रहे हैं।
मोरारका फाउंडेशन से किसानों को मिलने वाले फायदे
1. खरीफ की फसल में जैविक बीजों की उपलब्धता।
2. फसल तैयार होने के बाद किसानों से प्रीमियम रेट (लाभांश मूल्य) पर खरीद।
3. खेतों का आईएमओ सर्टिफिकेशन (इसका खर्च 10-15 हजार रुपये तक आता है, सभी खर्च फाउंडेशन की ओर से)।
4. हर किसान को ग्रुप सर्टिफिकेशन उपलब्ध कराना।
5. खरीफ में तिल और रबी में काबुली चने के अलावा अन्य उत्पादों को अन्यत्र बेचने के लिए किसानों को ट्रांसफर सर्टिफिकेट।
6. खेत से फसलों की उठान से लेकर और खरीद तक सभी संबंधित खर्चों का फाउंडेशन द्वारा वहन।
7. हर सीजन में फसलों की बुवाई के 15-20 दिन पहले किसानों को प्रशिक्षण
मोरारका फाउंडेशन किसानों को गोबर एवं केंचुआ से जैविक खाद और वर्मी वाश के रूप में कीटनाशक बनाने की ट्रेनिंग देता है। गोमूत्र, नीम, हल्दी एवं लहसुन से हर्बल स्प्रे बनाया जाता है। जैविक खेती आज इन किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। फाउंडेशन इन किसानों द्वारा उपजाए गए जैविक अनाज के लिए बाजार भी उपलब्ध करा रहा है। नतीजतन किसानों को अपने उत्पादों के लिए बाजार तो मिल ही रहा है, साथ ही अपनी उपज का बेहतर दाम भी मिल रहा है। गांव बलरिया, जिला झुंझुनू के किसान मेवा राम का कहना है कि आज से कुछ साल पहले वह रासायनिक खाद का प्रयोग करते थे, लेकिन मोरारका फाउंडेशन से जुड़ने के बाद रासायनिक खादों से उन्होंने तौबा कर ली। मेवा राम के मुताबिक, जैविक खेती करने से उन्हें काफी फायदा हो रहा है। गांव मकंदगढ़, जिला झुंझुनू के किसान बलवंत के पास 15 बीघा जमीन है, जिसमें वह जैविक खेती करते हैं। उनके घर के आसपास फैली हरियाली उनकी कामयाबी की जीती-जागती मिसाल है। नाथासर तहसील, जिला सीकर निवासी प्रमोद जांगिड़ एक पढ़े-लिखे किसान हैं। उन्होंने हिसार (हरियाणा) से कृषि शास्त्र में डिप्लोमा किया है। प्रमोद के पास 25 बीघा जमीन है, जिसमें वह जैविक खेती करते हैं। प्रमोद ने मौजूदा सीजन में चार बीघा जमीन पर उड़द की खेती की है। उनका कहना है कि उड़द की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद हैं। प्रमोद के अनुसार, मोरारका फाउंडेशन ने शेखावाटी इलाके में दूसरी हरित क्रांति लाने का काम किया है। जैविक खेती से देसी प्रजाति के अनाज की खेती को बढ़ावा मिला है। पहले किसान हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल कर रहे थे, लेकिन जैविक खेती का प्रचलन बढ़ने से देसी किस्मों के अनाजों के दिन दोबारा वापस आ गए हैं। जैविक अनाज स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी फायदेमंद है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में मोरारका फाउंडेशन किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग दे रहा है।
वैश्विक स्तर पर भारत का ऑर्गेनिक कारोबार
भारत में हाल के दिनों में ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर में वृद्धि होने से ऑर्गेनिक उत्पाद के कारोबार में भी तेजी दिखाई देने लगी है। आज ऑर्गेनिक क्षेत्र प्रगति की ओर अग्रसर दिखाई दे रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में कुल 30.4 मिलियन हेक्टेयर भूमि जैविक खेती के लिए इस्तेमाल की जाती है। यही वजह है कि विश्व बाजार में जैविक उत्पाद का कारोबार लगभग 38.6 बिलियन यूएस डॉलर है। वहीं जैविक उत्पादों में भारत की भागीदारी महज 0.2 फीसदी है यानी भारत लगभग 300 करोड़ रुपये का ऑर्गेनिक उत्पाद सालाना निर्यात करता है। मोरारका फाउंडेशन के अधिकारियों का कहना है कि ऑर्गेनिक उत्पादों का देसी बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है। लिहाजा उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्ष 2012 तक भारत 2.5 फीसदी निर्यात का लक्ष्य हासिल कर सकेगा।
मोरारका ऑर्गेनिक
भारतीय परंपरा और समाज में परोपकार की अहम भूमिका रही है। एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार में जन्मे जाने-माने उद्योगपति कमल मोरारका ने वर्ष 1991 में एम आर मोरारका जीडीसी रूरल रिसर्च फाउंडेशन की नींव रखी। इसे उन्होंने अपने पिता स्वर्गीय एम आर मोरारका की याद में स्थापित किया, जिन्होंने एमएस गैनन डूंकेरले एंड कंपनी लिमिटेड की स्थापना की थी। फाउंडेशन की शुरुआत राजस्थान की नवलगढ़ तहसील में हुई थी। वर्ष 1993-94 से फाउंडेशन ने शेखावाटी के दस हजार लोगों को अपनी सेवाएं देना शुरू किया। मौजूदा समय में मोरारका फाउंडेशन 15 राज्यों में अपनी गतिविधियां चला रहा है और करीब दस लाख लोगों को अपनी सेवाएं मुहैया करा रहा है। मोरारका ऑर्गेनिक ने भारत से बाहर नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, मलेशिया, कोस्टारिका, इंग्लैंड और अमेरिका के साथ अन्य कई देशों से भी कई करार किए हैं।
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