विदेशी तरीके से बने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को लगाने में 50-60 लाख रुपये का खर्च आता है, जबकि मोरारका फाउंडेशन ने महज 5-6 लाख रुपये में नेचुरल तरीके से इस प्लांट को तैयार किया है। मोरारका फाउंडेशन ने सितंबर 2009 में नवलगढ़ में पानी को साफ करने का यह प्लांट लगाया था। इसमें प्रतिदिन दस हजार लीटर गंदे पानी को साफ किया जाता है। गंदे पानी को साफ करने के लिए देशी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कोयला, रेत, बजरी, वर्मी कंपोस्ट, इंदौरी घास और ग्रीन नेट। इन वस्तुओं की सहायता से गंदे पानी में पाए जाने वाले तमाम बैक्टीरिया और अशुद्धता को दूर करके पानी को बहुत हल्का और साफ कर दिया जाता है।
पानी हमारे जीवन की मूल्यवान वस्तु है। जल के बिना हम जीवन का तसव्वुर भी नहीं कर सकते। आज विश्व के हर कोने में पानी का अभाव होने लगा है। पानी के स्रोत तेजी से घटते जा रहे हैं। यह समस्या इतनी जटिल होती जा रही है कि अब लोग यह तक कहने लगे हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा। पानी के भूमिगत स्तर में तेजी से होने वाली कमी ने खासकर किसानों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। हमारे देश में पानी की कमी के कारण फसलें बर्बाद होने से किसान आए दिन आत्महत्याएं करने लगे हैं। चाहे वे किसान विदर्भ के हों या बुंदेलखंड के, पानी की कमी की मार सब पर पड़ रही है। ऐसे में न सिर्फ सरकार को, बल्कि देश के वैज्ञानिकों को भी किसानों की इस मूल समस्या का उपाय ढूंढना होगा। खुशी की बात यह है कि मुल्क के कुछ हिस्सों में इस किस्म के प्रयास शुरू हो चुके हैं, जिनमें राजस्थान पहले नंबर पर है।क्षेत्रफल के हिसाब से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन 3,42,239 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस राज्य का लगभग एक तिहाई भाग मरुस्थल है। कुछ हिस्से अर्द्ध मरुस्थल हैं, जहां पर किसानों को खेती-बाड़ी करने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। राजस्थान के बारे में हम सब जानते हैं कि मुल्क के दूसरे भागों की अपेक्षा यहां के लोग पानी की कमी की मार सबसे ज्यादा झेल रहे हैं। किसानों को अगर वक्त पर पानी ही नहीं मिलेगा तो वे भला खेती कैसे करेंगे और फिर हमारे घरों तक अनाज कैसे पहुंचेगा। बड़ी अच्छी बात है कि मोरारका रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े वैज्ञानिक राजस्थान के किसानों को इस बात की ट्रेनिंग देने में जुटे हैं कि पानी का कम से कम प्रयोग करके अधिक से अधिक फसल कैसे उगाई जाए। ये वैज्ञानिक हाइड्रोपोनिक तकनीक, ट्रे कल्टीवेशन, ड्रिप सिस्टम आदि के द्वारा इन किसानों को खेती करना सिखा रहे हैं, जिनमें पानी का कम से कम इस्तेमाल होता है। आइए देखते हैं कि राजस्थान के किसान इन तकनीकों से किस तरह लाभांवित हो रहे हैं।
हाइड्रोपोनिक तकनीक
पिछली एक शताब्दी के दौरान कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सब्जियों और अन्य फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायनों के प्रयोग से कुछ समय के लिए उत्पादन तो बढ़ा, परंतु धीरे-धीरे भूमि की भौतिक दशा खराब हो गई और दूसरी तरफ उर्वरा शक्ति भी कम होती चली गई। इन परिस्थितियों पर नियंत्रण पाने के लिए गत वर्षों से वैज्ञानिकों ने कई तकनीकों का आविष्कार किया और कई प्रयोग किए। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इन परिस्थितियों में किसानों को कृषि की दशा सुधारने के लिए हाइड्रोपोनिक तकनीक से सहयोग प्राप्त हो सकता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक की विशेषता यह है कि इसमें मिट्टी के बिना और पानी के कम से कम इस्तेमाल से सब्जियां उगाई जाती हैं। चूंकि इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता, इसलिए पौधों के साथ न तो अनावश्यक खर-पतवार उगते हैं और न इन पौधों पर कीड़े-मकोड़े लगने का कोई डर रहता है।
इस तकनीक की दूसरी विशेषता यह है कि इसके लिए आपको खेत की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि अगर आप किसी शहर में रह रहे हैं तो अपने मकान की छत पर भी बड़ी आसानी से सब्जियां उगा सकते हैं। इसलिए न सिर्फ भारत के विभिन्न शहरों, बल्कि इंडोनेशिया, सिंगापुर, सऊदी अरब, कोरिया और चीन जैसे देशों से इस तकनीक की मांग आने लगी है। इस तकनीक में क्यारी बनाने और पौधों में पानी देने की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए इसमें परिश्रम और लागत कम है। हाइड्रोपोनिक तकनीक द्वारा लगातार पैदावार की जा सकती है और इसमें सभी सब्जियां किसी भी ऋतु में पैदा की जा सकती हैं। साथ ही जल और एग्री इनपुट्स की बर्बादी भी कम होती है। यह तकनीक पत्ते वाली सब्जियों के लिए ज्यादा उपयुक्त है। हाइड्रोपोनिक तकनीक की सबसे बड़ी विशेषता इसमें पानी का कम प्रयोग है। एक किलो सब्जी को खेत में उगाने पर 1800 से 3000 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक तकनीक द्वारा हम केवल 15 लीटर पानी की मदद से एक किलो सब्जी उगा सकते हैं। अगर यह तकनीक कामयाब होती है तो यह न सिर्फ हमारे देश, बल्कि पूरे विश्व के किसानों के लिए एक वरदान साबित होगी।
ट्रे कल्टीवेशन
कम पानी और कम मिट्टी में अधिक सब्जियां उगाने की एक और तकनीक है ट्रे कल्टीवेशन। इस तकनीक में प्लास्टिक की ट्रे में मिट्टी रखकर सब्जियां उगाई जाती हैं। इससे कम लागत में उत्तम गुणवत्ता वाली सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है। इसके लिए सर्वप्रथम ट्रे में ग्रीन नेट एवं जूट बिछाकर उसमें वर्मी कंपोस्ट डाला जाता है, फिर उसमें उपचारित बीज या पौधे लगाते हैं। इसके बाद ट्रे में एग्री इनपुट्स एवं पोषक तत्वों का समय-समय पर छिड़काव किया जाता है। यह तकनीक वे सब्जियां उगाने के लिए ज्यादा कारगर है, जिनका उपयोग हम अपने रोजमर्रा के भोजन में करते हैं, जैसे टमाटर, मिर्च, बैगन, भिंडी, करेला, ककड़ी, ग्वारफली इत्यादि। इन तमाम सब्जियों को बड़ी आसानी से डेढ़ इंच मिट्टी में उगाया जा सकता है। इस विधि द्वारा एक किलो सब्जी उगाने में सिर्फ 30 से 70 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसमें कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि ट्रे के ऊपर नेट लगा देने से कीड़े-मकोड़े सब्जियों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते।
इस विधि में फसल चक्र की भी आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ट्रे के अंदर एक सब्जी तैयार होते ही आप उसमें कोई दूसरी सब्जी लगा सकते हैं। ट्रे कल्टीवेशन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके लिए आपको एक किसान की वेशभूषा में नहीं आना पड़ेगा, बल्कि आप कोट-पैंट, टाई लगाकर भी अपने घर की छत या बालकनी में इस विधि द्वारा सब्जियां उगा सकते हैं। मोरारका फाउंडेशन ने सबसे पहले 2001 में दिल्ली में एक प्रदर्शनी लगाकर इस तकनीक को दुनिया के सामने पेश किया था। यह तकनीक जब गांव में पहुंची तो किसानों ने इसे हाथों-हाथ लिया, क्योंकि इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसान खेतों के मुकाबले ट्रे कल्टीवेशन द्वारा कम लागत पर ज्यादा सब्जियां उगाकर अधिक से अधिक पैसा कमा सकते हैं।
गंदे पानी को सिंचाई लायक बनाना
ऊपर जिन तकनीकों का वर्णन किया गया, उनमें पानी का इस्तेमाल बहुत कम होता है, लेकिन इन प्रयासों के अलावा मोरारका रूरल रिसर्च फाउंडेशन ने राजस्थान के झुझुनूं जिले की शेखावाटी तहसील के किसानों को अतिरिक्त पानी उपलब्ध कराने का भी बेड़ा उठाया है। फाउंडेशन ने यहां के नवलगढ़ शहर के गंदे पानी को रिसाइकिल करके उसे दोबारा इस्तेमाल लायक बनाने की एक नई तकनीक विकसित की है। यह तकनीक काफी सस्ती है, प्राकृतिक है और इको फ्रेंडली भी। यहां पर एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया है, जो शहर के गंदे पानी को साफ करके उसे खेतों में सिंचाई लायक बनाता है। विदेशी तरीके से बने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को लगाने में 50-60 लाख रुपये का खर्च आता है, जबकि मोरारका फाउंडेशन ने महज 5-6 लाख रुपये में नेचुरल तरीके से इस प्लांट को तैयार किया है।
मोरारका फाउंडेशन ने सितंबर 2009 में नवलगढ़ में पानी को साफ करने का यह प्लांट लगाया था। इसमें प्रतिदिन दस हजार लीटर गंदे पानी को साफ किया जाता है। गंदे पानी को साफ करने के लिए देशी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कोयला, रेत, बजरी, वर्मी कंपोस्ट, इंदौरी घास और ग्रीन नेट। इन वस्तुओं की सहायता से गंदे पानी में पाए जाने वाले तमाम बैक्टीरिया और अशुद्धता को दूर करके पानी को बहुत हल्का और साफ कर दिया जाता है। इससे न सिर्फ वातावरण को स्वच्छ बनाने में मदद मिल रही है, बल्कि राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के किसानों को खेती-बाड़ी के लिए अतिरिक्त पानी भी मिल पा रहा है। मोरारका फाउंडेशन ने इस पानी का प्रयोग वाटर फिल्ट्रेशन प्लांट के बगल में बन रही फायर ब्रिगेड की इमारत के निर्माण में भी किया है। ऐसे प्लांट अगर मुल्क के दूसरे हिस्सों में लगाए जाएं तो उन इलाकों के किसान भी जरूर लाभांवित होंगे।
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