हिमाचल प्रदेश सरकार बर्बाद सेबों का उपयोग खाद बनाने के लिए करेगी। किसानों से खरीदे गये सेबों में से संग्रहण केन्द्रों पर 10 प्रतिशत से भी ज्यादा सेब सड़ जाते हैं। बागवानी विभाग के निदेशक गुरूदेव सिंह ने बताया कि प्रदेश का बागवानी विभाग सड़ रहे सेबों से खाद (उर्वरक) बनाने के मकसद से तकनीकी सहयोग के लिए वाइ एस परमार बागवानी और वन विभाग के साथ संपर्क में है।
हिमाचल प्रदेश बागवानी उत्पाद विपणन एवं प्रसंस्करण कार्पोरेशन लिमिटेड (एचपीएमसी) के प्रबंध निदेशक कश्मीर चंद ने कहा कि (सड़े हुए सेबों से उर्वरक बनाने का काम) इसी सत्र से शुरू होने की उम्मीद है। चांद ने कहा कि बर्बाद फलों को लेकर यह योजना लागत की कुछ भरपार्इ करने के मकसद से तैयार की गर्इ है। खरीद स्थल से संग्रहण केन्द्र तक लाने के दौरान लगभग 10 प्रतिशत फल रास्ते में देरी तथा बरसात के कारण बर्बाद हुए। हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष सेब का रिकार्ड 3.2 करोड़ पेटी (एक पेटी 20 किग्रा) उत्पादन होने की उम्मीद है। प्रदेश में सेब की अब तक की सबसे ज्यादा खरीद हुर्इ है जो लगभग 60,000 टन के आसपास है।
वार्इ एस परमार विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक जी पी उपाध्याय, जो जैविक खेती में भी विशेषज्ञ हैं, ने कहा कि सेब से तैयार हुआ खाद गुणवत्ता में कहीं बेहतर होगा क्योंकि इस फल में नाइट्रोजन अधिक मात्रा में पाया जाता है। उन्होंने कहा कि इस फल में चीनी की अधिक मात्रा होने के कारण इसके खाद में तब्दील होने में काफी कम समय लगेगा। वर्मी कम्पोस्ट को सड़े सेबों, गोबर और बायोमास खोंतों के बचे खर पतवार को बराबर मात्रा में मिलाकर तैयार किया जायेगा। वैज्ञानिक ने कहा कि उन्होंने सड़े हुए सेबों से खाद बनाने की व्यवहार्यता के बारे में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है और खाद बनाने का काम राज्य में चार जगहों पर दो से तीन सप्ताह में शुरू होने की उम्मीद है।
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