पृष्ठभूमि
भारत जैसे कल्याणकारी देश में पेयजल को अक्सर सार्वजनिक माल (पब्लिक गुड्स) की श्रेणी में गिना जाता है, और जल आपूर्ति योजनाओं के बल पर चलाई जाने वाली सरकारी नीतियों को बाज़ार की किसी भी नाकामयाबी से निपटने के अमोघ अस्त्र के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा 73वें संविधान संशोधन ने पेयजल को संविधान की 11वीं अनुसूची में डाल कर उसके प्रबंधन की ज़िम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंप दी है। वैसे तकनीकी रूप से देखा जाए तो पेयजल पूर्णतः सार्वजनिक माल नहीं है, क्योंकि पेयजल की सीमित मात्रा को देखते हुए इसे लेकर प्रतिद्वंदिता तो चलती ही रहती है। इस दृष्टिकोण से तो पेयजल को वास्तव में एक साझा संसाधन माना जाना चाहिए, क्योंकि परिभाषा के नज़रिये से तो किसी वस्तु या सेवा को सार्वजनिक माल तभी कहा जा सकता है जब उससे जुड़े दो सवालों - कि क्या कोई उससे वंचित है, तथा, क्या उसे ले कर लोगों में प्रतिद्वंदिता है? - के जवाब 'नहीं' में हों। और, पेयजल की सीमित उपलब्धता को देखते हुए ये जवाब यहाँ 'नहीं' में नहीं हैं।
सार्वजनिक माल और साझे संसाधनों, दोनों के ही बाहरी पहलू भी हैं, क्योंकि दोनों का ही कुछ न कुछ मूल्य अवश्य होता है। सार्वजनिक माल को ले कर क्योंकि मुफ्तखोरों की समस्या जुड़ी होती है, इसलिए निजी क्षेत्र के कारोबारी ऐसे माल की सप्लाई करने से दूर ही रहते हैं। कल्याणकारी अर्थव्यवस्था के सिद्धांतो के अनुसार सरकारें ऐसे माल / सेवाओं की आपूर्ति तब करती हैं जब समाज को उनसे होने वाले फायदे उन्हें उपलब्ध कराने की समग्र लागत से ज़्यादा दिखाई पड़ते हैं। सरकारें इन कल्याणकारी सेवाओं का खर्च सामान्य कर राजस्व और / अथवा क्रॉस-सब्सिडी के जरिये उठाती हैं।
पेयजल जैसे साझे संसाधनों से कुछ नकारात्मक बाहरी पहलू जुड़े होते हैं। इनके उपभोक्ता आम तौर पर इनका काफी दुरुपयोग करते हैं, क्योंकि उन्हें इनकी कीमत नहीं चुकानी पड़ती। शुद्ध पेयजल की आपूर्ति करने में एक पूरी उत्पादन प्रक्रिया शामिल होती है, जिसमें श्रमशक्ति, समय, खास तरह के ज्ञान और अनुभव तथा धनराशि की ज़रूरत होती है। इसप्रकार, लोगों को उनके ही घर में नल से जल उपलब्ध कराने के लिए एक निश्चित लागत तो आती ही है, और इससे बचा भी नहीं जा सकता। मगर साथ ही, पेयजल की पेचीदीगियों को देखते हुए. इसे बाज़ार की शक्तियों के भरोसे भी नहीं छोड़ा जा सकता है, क्योंकि ऐसे में उसका समतापूर्ण और कुशल वितरण संभव नहीं हो पाएगा।
आदर्श मूल्य-निर्धारण सिद्धान्त
पेयजल आपूर्ति के मूल में चूंकि स्थानीय प्रबंधन का ही स्थान है, अतः उसे सफल बनाने की कुंजी भी उसे स्थानीय स्तर पर आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने में ही है। ऐसे में, पेयजल के उपयोगकर्ताओं से पेयजल व्यवस्था को चलाने और उसके रखरखाव के लिए अंशदान के रूप में उपयोग-शुल्क (यूजर चार्ज) लेना एक स्वीकार्य और प्रभावकारी नीति के रूप में स्थापित हो चुकाहै। शुल्क निर्धारित करते समय इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखा जाना चाहिए, साथ ही समता के सिद्धान्त को भी नज़र में रखा जाना चाहिए. मौजूदा परिस्थितियों में और भावी पीढ़ियों के दृष्टिकोण से भी।
पेयजल के लिए शुल्क-निर्धारण के दौरान न केवल सामान्य वस्तुओं के मूल्य-निर्धारण संबंधी आर्थिक सिद्धांतों का अनुपालन किया जाना चाहिए, बल्कि उसके लिए 'अवसर लागत' (ऑपोर्चुनिटी कॉस्ट) के संदर्भ में विभिन्न पहलुओं पर भी विचार किया जाना चाहिए। जिन प्रमुख पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए, वे हैं:
i.) प्रचालन और रखरखाव (ओएंडएम) लागत: उपयोग-शुल्क इस तरह हो कि ओएंडएम पर खर्च होने वाली समस्त राशि वसूल हो जाए, और इसमें इन गतिविधियों से जुड़ी हर लागत शामिल की जानी चाहिए; और
ii.) अवसर लागत: भूजल जैसे खत्म होने वाले संसाधन के दोहन का परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ता है। जल उपयोग-- -शुल्क वर्तमान निर्धारित करते समय य-निर्धारण सिद्धांतों के तहत मूल्य-1 इस पहलू को भी ध्यान में रखा जाना होगा। निर्धारित सर्विस लेवल से ज़्यादा मात्रा में जल के उपयोग को हतोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि निर्धारित सर्विस लेवल सामान्यतः : बुनियादी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई घर (5 सदस्यों को औसत संख्या मान कर ) 55 एलपीसीडी के मानक सर्विस लेवल, यानि प्रति माह 8,250 लीटर (मोटे तौर पर 8,500 मान लें) से ज़्यादा पानी इस्तेमाल करे तो उससे उसी अनुपात उपयोग-शुल्क वसूला जाना चाहिए।
लागत-लाभ विश्लेषण
साधारण शब्दों में कहें तो किसी भी सरकारी नीति या कार्यक्रम के लागत लाभ विश्लेषण (कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस) का तात्पर्य होता है उस पर आने वाली लागत के मुक़ाबले उससे समाज को होने वाले समग्र फायदे की गणना। ऐसे कार्यक्रमों की वास्तविक प्रभावकारिता को पहचानने या उपायों में और सुधार करने के लिए आवश्यक होता है कि संबन्धित इलाकों / आबादी का सही मूल्यांकन किया जाए।
लाभों का आंकलन हर बार की परिस्थितियों के आधार पर वैकल्पिक व्यवस्थाओं की तुलना में हासिल की गई बेहतरी को माप कर किया जाता है। संसाधनों की प्रकृति को देखते हुए भूजल के मामले में, लागत लाभ विश्लेषण के तहत स्पष्ट तौर से दिखने वाली आर्थिक लागत के साथ ही कई बार अवसर लागत को भी शामिल कर लिया जाता है। दूसरी ओर, लाभों के अंतर्गत शामिल किए जाने वाले पहलू है: पानी ढो कर न लाने के फलस्वरूप जो समय बचा वह बीमारियों पर खर्च होने वाले धन की बचत, स्वस्थ रहने से आय में हुई वृद्धि और उससे होने वाले अन्य फायदे, आदि। सरलता के लिए लागत और लाभ विश्लेषण हेतु निम्नलिखित मॉडल प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसके लिए कुछ तथ्यों को मान कर चला है, जो इस प्रकार हैं:
i) लाभार्थी पर में व्यक्ति रहते हैं,
ii) जेजेएम के तहत लगाए गए नल कनेक्शन से 55 एलपीसीडी शुद्ध पेयजल की नियमित रूप से आपूर्ति हो रही है
iii) ओएंडएम लागत 20 रुपये प्रति किलोलीटर है, यानि प्रति दिन प्रति परिवार के लिए ओएंडएम पर 5:50 रुपये खर्च हो रहे हैं:
iv) प्रति घरेलू नल कनेक्शन पर औसत पूंजीगत खर्च 15,000.2 है, अर्थात 3 रुपये प्रति दिन, यह मानते हुए कि कम से कम अगले 15 वर्षों तक और कोई पूंजीगत खर्च नहीं आएगा;
(V) एक स्वस्थ भारतीय व्यक्ति सामान्य परिस्थितियों में अपनी जीविका अर्जित करने के लिए साल में 52 हफ्तों के दौरान प्रति सप्ताह 40 घंटे कार्य करता है, यानि प्रति वर्ष 2,080 घंटे,
(Vi) ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी की औसत दिहाड़ी शहरी क्षेत्रों के मुकाबले आधी है
(vii) भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 1,900 अमरीकी डॉलर 3 है, यानि मौजूदा विनिमय दर 4 पर लगभग 1.48 लाख रुपये। इस हिसाब से प्रति घंटा औसत आय 71 रुपये बैठती है अगर वह व्यक्ति प्रति वर्ष 2.80 घंटे कार्य करता हो; और
(viii) हर गाँव में अब घरों में जेजेएम के तहत लगे नल कनेक्शन से हर आधे दिन में औसतन आधे घंटे की बचत होती है, यानि प्रति दिन पानी ढोने पर बर्बाद होने वाले 1 घंटे की अब बचत होती है। यह मान कर चला जा रहा है कि इस बचे समय का सदुपयोग उत्पादक कार्यों के लिए किया जाने लगा है।
उपरोक्त परिस्थितियों को मानते हुए 5 सदस्यों के एक ग्रामीण घर को 55 एलपीसीडी शुद्ध पेयजल की आपूर्ति पर प्रति दिन की लागत 8.50 रुपये बैठती है, जबकि लाभ की बात करें तो केवल बहुमूल्य समय की बचत से ही हर घर को 71 रुपये का लाभ होता है। इस प्रकार, नल कनेक्शन से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी व्यापक फायदे और अन्य प्रकार के अनेक लाभों को न भी गिनें तो भी लाभ: लागत का अनुपात 8 से ज़्यादा ही बैठता है, यानि नल कनेक्शन देने पर आने वाली लागत के मुक़ाबले इससे पहुँचने वाले लाभ बहुत ज़्यादा हैं।
निर्धारित गुणवत्ता वाले शुद्ध पेयजल की आपूर्ति से कई और फायदे भी होते हैं। जैसे कि, जल- जनित बीमारियों के कम होने से इलाज पर होने वाले खर्च की बचत होगी, पानी को हर बार शुद्ध करने पर होने वाले खर्च की बचत, बीमार न पड़ने के कारण ऐसे अतिरिक्त दिनों की आय का फायदा, बच्चों के भी बीमार न पड़ने के कारण अभिभावकों के कामकाजी दिन बर्बाद होने से बचेंगे, किसी की अकाल मृत्यु न होने से अमूल्य जीवन की सौगात, आदि।
जल जीवन मिशन का एक उद्देश्य स्थानीय समुदाय की भागीदारी से देश में दीर्घकालीन जल सुरक्षा स्थापित करना भी है। मिशन के ‘यूटिलिटी' दृष्टिकोण, परिसंपत्तियों के निर्माण और पानी समिति के जरिये हर स्तर पर स्थानीय समुदाय की भागीदारी के फलस्वरूप देश के ग्रामीण इलाकों को नई शक्ति, नई ऊर्जा प्राप्त हो सकेगी।
स्रोत :- जल-जीवन संवाद, अंक 22 , जुलाई 2022
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