नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के समय भी पुर्नवास कि स्थिति भी बहुत खराब थी। जगह-जगह पुनर्वास के लिए आन्दोलन चल रहे थे। वादियों ने अगले दिन ही 30 अक्टूबर 2005 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। लगभग 7 वर्ष से चल रहे मुकदमें में 40 से ज्यादा आदेशों द्वारा विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया आगे बढ़ी साथ ही टिहरी बांध का जलाशय अभी भी 820 मीटर से ऊपर भरने की इजाजत नहीं है। उत्तराखंड में भागीरथी पर बने टिहरी बांध पर सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमें की अंतिम सुनवाई चालू हो गई है। माननीय न्यायाधीश ने अक्टूबर 2005 से चल रहे एन0 डी0 जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार, टीएचडीसी व अन्य मुकदमें में अंतिम सुनवाई की शुरुआत करते हुये 22-8-2012 को पहले वादियों से उनके सभी मुद्दों पर बिंदुवार जानकारी चाही जिनको बांध का जलाशय के पूरा भरने से पहले बांध प्रयोक्ता, टिहरी जलविद्युत निगम को पूरा करना चाहिये। जिनके लिए उन्हें तीन हफ्ते का समय दिया गया था।वादियों द्वारा दी गई जानकारी के बाद बांध कंपनी और सरकारें उस पर तीन हफ्ते में अपना जबाब दाखिल करेंगी। जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय अंतिम सुनवाई चालू करेगा। माटू जनसंगठन इस मुकदमों से संबधित जमीनी कार्य से जुड़ा है।
ज्ञातव्य है कि टिहरी बांध के खिलाफ एन0 डी0 जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार, टीएचडीसी व अन्य लगभग 12 वर्ष पुराने मुकदमें का फैसला 2003 में आया था। जिसमें टिहरी बांध को पर्यावरण व पुनर्वास की शर्तों का अनुपालन करने के साथ बनाने की इजाजत दी गई थी। साथ ही कोई समस्या होने पर स्थानीय हाईकोर्ट में जाने को कहा गया था। पर्यावरण व पुर्नवास की शर्तों का अनुपालन किये बिना बांध का काम आगे बढ़ाने जाने पर वादियों ने 18.12.04 को नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिसका फैसला 29 अक्टूबर 2005 को आया। इस फैसले के समय भी पुर्नवास कि स्थिति भी बहुत खराब थी। जगह-जगह पुनर्वास के लिए आन्दोलन चल रहे थे। वादियों ने अगले दिन ही 30 अक्टूबर 2005 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। लगभग 7 वर्ष से चल रहे मुकदमें में 40 से ज्यादा आदेशों द्वारा विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया आगे बढ़ी साथ ही टिहरी बांध का जलाशय अभी भी 820 मीटर से ऊपर भरने की इजाजत नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किये गये नोट में 21 वर्षों से टिहरी बांध पर दायर जनहित याचिका के अधिवक्ता संजय पारिख ने अदालत को पूरे मुकदमें का सारांश व अदालती कार्यवाही की तिथिवार सूची दाखिल की है। जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण तरह से टिहरी बांध से जुड़ी पर्यावरणीय व पुर्नवास की समस्याओं को रेखांकित किया है। जिसका हम सारांश नीचे दे रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के 1/9/2003 के आदेश में इसका उल्लेख किया गया था। सूचना के अधिकार के तहत भी जानकारी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और टीएचडीसी ने यह उपलब्ध नहीं कराया है।
वादियों ने शुरू से अदालत को यह बताया है कि इस पर सही तौर पर काम नहीं किया गया है।
जलसंग्रहण क्षेत्र में भूस्खलन भू-क्षरण बहुत तेजी से हो रहे हैं। हाल ही में अगस्त 2012 में भारी मात्रा में लकड़ी, पेड़, मिट्टी, मलबा, जलाशय में दाखिल हुआ है। वादियों की और से सुझाव दिया गया है कि केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा एक समिती बने जो पुरे टिहरी बांध क्षेत्र का आकलन करे।
पुर्नवास पुर्नस्थापना अभी भी पूरा नहीं हुआ है राज्य सरकार वह टीएचडीसी की संयुक्त निरीक्षण समिति 2010 की रिपोर्ट के अनुसार भी यह सिद्ध होता है। अभी तक सभी विस्थापितों को भूमिधर अधिकार तक नहीं दिए गये हैं।
राज्य सरकार के शपथ पत्र 12/12/2011 के अनुसार भी ग्रामीण दुकानदारों को मुआवजा नहीं मिला है। 156 केस शिकायत विभाग के सामने लंबित है। जलाशय स्तर 820 मीटर से 835 मीटर के बीच 202 परिवार रहते है। शेष प्रभावित परिवारों के लिए जंगल भूमि के लिए जरूरत है। टिहरी जिलाधिकारी व पुनर्वास निदेशक का कार्यभार एक ही व्यक्ति के पास होना, पुनर्वास कार्य की गति को बाधित करता है इसलिए आवश्यक है की पुर्नवास निदेशक आवश्यक स्टाफ के साथ अलग ही नियुक्ति हो। पुराने टिहरी शहर का संस्कृति केंद्र का बनना है। ग्रामीण पुनर्वास स्थल शिवालिक नगर और रानीपुर में समुदाय सेवाओं का बनना है। जलाशय स्तर 820 मीटर से 835 मीटर के बीच बेनाप भूमि धारकों मुआवजा और अन्य समुदायिक सेवाओं को बनाने में छह महीने लगने है। टिहरी बांध जलाशय के खतरनाक हिस्सों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जानमाल की रक्षा हेतु के अनुसार तार बाढ़ बननी है। इसके अलावा ग्रामीण पुनर्वास स्थलों पर अस्पताल, कृषि-भूमि का रखरखाव, जंगली जानवरों से सुरक्षा हेतु तार-बाढ़, पीने के पानी की सही व्यवस्था, पंचायतों का गठन आदि नहीं हुआ। अनेकों पुनर्वास स्थलों में शिक्षा व्यवस्था का न होना, पथरी भाग एक से चार व सुमन नगर में यातायात का प्रबंध नहीं है। यह सब काम अभी होने है। सरकार ने प्रति प्रभावित परिवारों को 100 यूनिट बिजली देने की घोषणा की थी पर उसे पूरा नहीं किया है। टिहरी बांध जलाशय की सीमा रेखा परिवर्तन के कारण 45 गाँव में प्रभावित परिवारों का पुर्नवास होना है।
कट ऑफ एरिया के लिये प्रस्तावित तीन पुलों में से डोबरा चांटी पुल अभी कुछ ही बन पाया है। शेष दोनों चिन्याली सौड़ और घोंटी पुलों पर अभी काम तक चालू नहीं हुआ है। राज्य सरकार के शपथ पत्र 12/12/2010 के अनुसार इन पुलों को पूरा होने में लगभग दो साल लगने थे।
रोलाकोट, नकोट, संयासु और अन्य गाँव जो कि टिहरी बांध जलाशय से पानी भरने के कारण से प्रभावित हुए है। इधर सभी के लिये एक ही तरह की नीति अपनाई जानी चाहिए। यह किसी भी तरह से सही नहीं होगा की इन तीन गाँवों के लिए ही पुनर्वास/पुनर्स्थापना नीति हो जबकी संविधान की धारा 21 के अनुसार भी एक समान तरह से प्रभावितों के लिये एक नीति होनी चाहिये। टिहरी बांध की पर्यावरण स्वीकृति 19.07.90 में भी साफ लिखा है कि पुनर्वास पैकेज कोटेश्वर बांध और जलाशय से प्रभावित आबादी तथा वे लोग जो बांध की झील के रिम क्षेत्र में रहते हों और प्रभावित हो रहे हों, उनके पुनर्वास का पैकेज 31-3-1991 से पूर्व तैयार हो जाये।’’ टिहरी बांध जलाशय में पानी भरने के कारण हो रहे भूस्खलन को अलग आपदा वर्ग में नहीं रखा जा सकता। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण द्वारा सर्वे लगातार होना चाहिये ताकि जो गांव धसक रहे हैं या भूस्खलित हो रहे हैं उनकी समुचित मदद और पुनर्वास/पुनर्स्थापना पहले ही हो जाये।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये 17/9/2010 और 9/11/2010 के आदेशों का पालन नहीं हुआ है। जिसमें स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्वास संबंधित विषयों को रेखांकित किया था।
टिहरी बांध के जलसंग्रहण क्षेत्र और प्रभावित गांवों की लगातार निगरानी की जरुरत है जिसके लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत एक विशेषज्ञ समिति बने। यह समिति लगातार सुरक्षा, पर्यावरण और प्रभावितों के पुनर्वास पर अपनी रिर्पोट लगातार देती रहे ताकि त्रासदी को पहले ही दूर किया जा सके और प्रभावितों की सुरक्षा, पुनर्वास निश्चित हो सके।
आज कि परिस्थिति में जब राज्य व केंद्र में समान दलों की सरकारें हैं और दोनों ही उत्तराखंड में नए बांधों की वकालत कर रही है तो उन्हें उत्तराखंड के सबसे बड़े पर्यावरणीय व विस्थापन की त्रासदी पैदा करने वाले टिहरी बांध के विस्थापितों के पुनर्वास की समस्या को आसानी से सुलझा लेना चाहिए। उत्तराखंड राज्य के दीर्घकालीन विकास को देखते हुये पर्यावरण से जुड़े सवालों को विकास के नाम पर उपेक्षित नहीं करना चाहिये।
ज्ञातव्य है कि टिहरी बांध के खिलाफ एन0 डी0 जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार, टीएचडीसी व अन्य लगभग 12 वर्ष पुराने मुकदमें का फैसला 2003 में आया था। जिसमें टिहरी बांध को पर्यावरण व पुनर्वास की शर्तों का अनुपालन करने के साथ बनाने की इजाजत दी गई थी। साथ ही कोई समस्या होने पर स्थानीय हाईकोर्ट में जाने को कहा गया था। पर्यावरण व पुर्नवास की शर्तों का अनुपालन किये बिना बांध का काम आगे बढ़ाने जाने पर वादियों ने 18.12.04 को नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिसका फैसला 29 अक्टूबर 2005 को आया। इस फैसले के समय भी पुर्नवास कि स्थिति भी बहुत खराब थी। जगह-जगह पुनर्वास के लिए आन्दोलन चल रहे थे। वादियों ने अगले दिन ही 30 अक्टूबर 2005 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। लगभग 7 वर्ष से चल रहे मुकदमें में 40 से ज्यादा आदेशों द्वारा विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया आगे बढ़ी साथ ही टिहरी बांध का जलाशय अभी भी 820 मीटर से ऊपर भरने की इजाजत नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किये गये नोट में 21 वर्षों से टिहरी बांध पर दायर जनहित याचिका के अधिवक्ता संजय पारिख ने अदालत को पूरे मुकदमें का सारांश व अदालती कार्यवाही की तिथिवार सूची दाखिल की है। जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण तरह से टिहरी बांध से जुड़ी पर्यावरणीय व पुर्नवास की समस्याओं को रेखांकित किया है। जिसका हम सारांश नीचे दे रहे हैं।
कमांड एरिया
सर्वोच्च न्यायालय के 1/9/2003 के आदेश में इसका उल्लेख किया गया था। सूचना के अधिकार के तहत भी जानकारी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और टीएचडीसी ने यह उपलब्ध नहीं कराया है।
जलसंग्रहण क्षेत्र उपचार योजना
वादियों ने शुरू से अदालत को यह बताया है कि इस पर सही तौर पर काम नहीं किया गया है।
जलसंग्रहण क्षेत्र में भूस्खलन भू-क्षरण बहुत तेजी से हो रहे हैं। हाल ही में अगस्त 2012 में भारी मात्रा में लकड़ी, पेड़, मिट्टी, मलबा, जलाशय में दाखिल हुआ है। वादियों की और से सुझाव दिया गया है कि केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा एक समिती बने जो पुरे टिहरी बांध क्षेत्र का आकलन करे।
पुर्नवास पुर्नस्थापना अभी भी पूरा नहीं हुआ है राज्य सरकार वह टीएचडीसी की संयुक्त निरीक्षण समिति 2010 की रिपोर्ट के अनुसार भी यह सिद्ध होता है। अभी तक सभी विस्थापितों को भूमिधर अधिकार तक नहीं दिए गये हैं।
राज्य सरकार के शपथ पत्र 12/12/2011 के अनुसार भी ग्रामीण दुकानदारों को मुआवजा नहीं मिला है। 156 केस शिकायत विभाग के सामने लंबित है। जलाशय स्तर 820 मीटर से 835 मीटर के बीच 202 परिवार रहते है। शेष प्रभावित परिवारों के लिए जंगल भूमि के लिए जरूरत है। टिहरी जिलाधिकारी व पुनर्वास निदेशक का कार्यभार एक ही व्यक्ति के पास होना, पुनर्वास कार्य की गति को बाधित करता है इसलिए आवश्यक है की पुर्नवास निदेशक आवश्यक स्टाफ के साथ अलग ही नियुक्ति हो। पुराने टिहरी शहर का संस्कृति केंद्र का बनना है। ग्रामीण पुनर्वास स्थल शिवालिक नगर और रानीपुर में समुदाय सेवाओं का बनना है। जलाशय स्तर 820 मीटर से 835 मीटर के बीच बेनाप भूमि धारकों मुआवजा और अन्य समुदायिक सेवाओं को बनाने में छह महीने लगने है। टिहरी बांध जलाशय के खतरनाक हिस्सों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जानमाल की रक्षा हेतु के अनुसार तार बाढ़ बननी है। इसके अलावा ग्रामीण पुनर्वास स्थलों पर अस्पताल, कृषि-भूमि का रखरखाव, जंगली जानवरों से सुरक्षा हेतु तार-बाढ़, पीने के पानी की सही व्यवस्था, पंचायतों का गठन आदि नहीं हुआ। अनेकों पुनर्वास स्थलों में शिक्षा व्यवस्था का न होना, पथरी भाग एक से चार व सुमन नगर में यातायात का प्रबंध नहीं है। यह सब काम अभी होने है। सरकार ने प्रति प्रभावित परिवारों को 100 यूनिट बिजली देने की घोषणा की थी पर उसे पूरा नहीं किया है। टिहरी बांध जलाशय की सीमा रेखा परिवर्तन के कारण 45 गाँव में प्रभावित परिवारों का पुर्नवास होना है।
पुलों का ना बनना
कट ऑफ एरिया के लिये प्रस्तावित तीन पुलों में से डोबरा चांटी पुल अभी कुछ ही बन पाया है। शेष दोनों चिन्याली सौड़ और घोंटी पुलों पर अभी काम तक चालू नहीं हुआ है। राज्य सरकार के शपथ पत्र 12/12/2010 के अनुसार इन पुलों को पूरा होने में लगभग दो साल लगने थे।
रोलाकोट, नकोट, संयासु और अन्य गाँव जो कि टिहरी बांध जलाशय से पानी भरने के कारण से प्रभावित हुए है। इधर सभी के लिये एक ही तरह की नीति अपनाई जानी चाहिए। यह किसी भी तरह से सही नहीं होगा की इन तीन गाँवों के लिए ही पुनर्वास/पुनर्स्थापना नीति हो जबकी संविधान की धारा 21 के अनुसार भी एक समान तरह से प्रभावितों के लिये एक नीति होनी चाहिये। टिहरी बांध की पर्यावरण स्वीकृति 19.07.90 में भी साफ लिखा है कि पुनर्वास पैकेज कोटेश्वर बांध और जलाशय से प्रभावित आबादी तथा वे लोग जो बांध की झील के रिम क्षेत्र में रहते हों और प्रभावित हो रहे हों, उनके पुनर्वास का पैकेज 31-3-1991 से पूर्व तैयार हो जाये।’’ टिहरी बांध जलाशय में पानी भरने के कारण हो रहे भूस्खलन को अलग आपदा वर्ग में नहीं रखा जा सकता। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण द्वारा सर्वे लगातार होना चाहिये ताकि जो गांव धसक रहे हैं या भूस्खलित हो रहे हैं उनकी समुचित मदद और पुनर्वास/पुनर्स्थापना पहले ही हो जाये।
आदेशों का पालन नहीं
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये 17/9/2010 और 9/11/2010 के आदेशों का पालन नहीं हुआ है। जिसमें स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्वास संबंधित विषयों को रेखांकित किया था।
बांध की निगरानी
टिहरी बांध के जलसंग्रहण क्षेत्र और प्रभावित गांवों की लगातार निगरानी की जरुरत है जिसके लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत एक विशेषज्ञ समिति बने। यह समिति लगातार सुरक्षा, पर्यावरण और प्रभावितों के पुनर्वास पर अपनी रिर्पोट लगातार देती रहे ताकि त्रासदी को पहले ही दूर किया जा सके और प्रभावितों की सुरक्षा, पुनर्वास निश्चित हो सके।
आज कि परिस्थिति में जब राज्य व केंद्र में समान दलों की सरकारें हैं और दोनों ही उत्तराखंड में नए बांधों की वकालत कर रही है तो उन्हें उत्तराखंड के सबसे बड़े पर्यावरणीय व विस्थापन की त्रासदी पैदा करने वाले टिहरी बांध के विस्थापितों के पुनर्वास की समस्या को आसानी से सुलझा लेना चाहिए। उत्तराखंड राज्य के दीर्घकालीन विकास को देखते हुये पर्यावरण से जुड़े सवालों को विकास के नाम पर उपेक्षित नहीं करना चाहिये।
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