शरीर में क्षार तत्व की कमी के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण होने लगती है एवं रक्त में सफेद कोशिकाएं कम होने लगती हैं। हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। अम्लपित्त, गैस, जोड़ों में दर्द एवं कब्जियत जैसे रोगों की संभावना बढ़ने लगती है। जिससे शरीर को सुचारू रूप से संचालित करने वाला सारा तंत्र अनियंत्रित होने लगता है तथा शरीर रोगों का घर बन जाता है। ऐसी स्थिति में प्रकृति शरीर के अन्य तंतुओं से क्षार तत्व खींचकर अपना पोषण करने लगती है। परिणाम स्वरूप शरीर के वे अवयव जिसमें से क्षार तत्व शोषित कर लिए जाते हैं, निःसत्व, निर्बल एवं रोगी हो जाते हैं।
शरीर में जल के कार्य
हवा के पश्चात शरीर में दूसरी सबसे बड़ी आवश्यकता पानी की होती है। पानी के बिना जीवन लम्बे समय तक नहीं चल सकता। शरीर में लगभग दो तिहाई भाग पानी का होता है। शरीर के अलग-अलग भागों में पानी की आवश्यकता अलग-अलग होती है। जब पानी के आवश्यक अनुपात में असंतुलन हो जाता है तो, शारीरिक क्रियाएँ प्रभावित होने लगती हैं।
हमारे शरीर में जल का प्रमुख कार्य भोजन पचाने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं में शामिल होना तथा शरीर की संरचना का निर्माण करना होता है। जल शरीर के भीतर विद्यमान गंदगी को आंखों से आंसुओं, नाक से श्लेष्मा, मुँह से कफ, त्वचा से पसीने एवं आंतों से मल-मूत्र द्वारा शरीर से बाहर निकालने में सहयोग करता है। शरीर में जल की कमी से कब्ज, थकान, ग्रीष्म ऋतु में लू आदि की संभावना रहती है। जल के कारण ही हमें छः प्रकार के रसों-मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, तीखा और कसैला आदि का अलग-अलग स्वाद अनुभव होता है।
जल के कारण ही शरीर का तापक्रम नियंत्रित होता है। शारीरिक शुद्धि के लिए भी जल आवश्यक होता है। शरीर के निर्माण तथा पोषण में अपनी अति-महत्वपूर्ण भूमिका के कारण किसी भी परिस्थिति अथवा रोग में पानी पीना वर्जित नहीं होता है। अतः हमें यह जानना और समझना आवश्यक है कि हम कैसा पानी पियें और कैसा पानी न पिएं, पानी का उपयोग हम कब और कैसे करें? पानी कितना, कैसा और कब पियें, पानी का उपयोग कब और कैसे न करें?
जल की विशेषताएँ
पानी अपने सम्पर्क में आने वाले विभिन्न तत्वों को सरलता से अपने अंदर समाहित कर लेता है। चुम्बक, पिरामिड के प्रभाव क्षेत्र में पानी को कुछ समय तक रखने से उसमें चुम्बकीय और पिरामिड ऊर्जा के गुण आ जाते हैं। सोना, चांदी, तांबा, लोहा आदि बर्तनों अथवा धातुओं के सम्पर्क में पानी को कुछ अवधि तक रखने से पानी संबंधित धातु के गुणों वाला बन जाता है। रंगीन बोतलों को पानी से भरकर सूर्य की धूप में रखने से पानी संबंधित रंगों के स्वास्थ्यवर्धक गुणों से परिपूर्ण होने लगता है। इसी प्रकार मंत्रों द्वारा मंत्रित करने, रत्नों एवं क्रिस्टल के सम्पर्क से पानी उनसे प्रभावित हो जाता है। अतः यथासंभव पीने के उपयोग में आने वाले पानी को मिट्टी के बर्तनों में संग्रह करना चाहिए। आजकल शुद्ध पानी के नाम से वितरित बोतलबंद मिनरल पानी प्रायः प्लास्टिक बोतलों अथवा पाउचों में उपयोग में लेने से पूर्व बहुत दिनों तक संग्रहित रहता है। ऐसा पानी प्लास्टिक के हानिकारक रासायनिक तत्वों से प्रभावित न हो असंभव ही लगता है। जिसका अन्धानुकरण कर ऐसा पानी पीने वालों को दुष्प्रभावों के प्रति सजगता हेतु सम्यक चिंतन करना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय से भी जनहित में इस विषय पर सम्यक स्पष्टीकरण अपेक्षित है।
पीने योग्य पानी कैसा होना चाहिए?
शुद्ध एवं स्वच्छ, हल्का, छाना हुआ, शरीर के तापक्रम के अनुकूल पानी जनसाधारण के पीने हेतु उपयोगी होता है। अतः यदि पानी गंदा हो तो पीने से पूर्व किसी भी विधि द्वारा पानी को शुद्ध करना चाहिए। रोगाणुओं एवं जीवाणुओं से रहित ऐसा पानी ही प्रायः पीने योग्य होता है। शुद्ध पानी में भी जलवायु एवं वातावरण के अनुसार निश्चित समय पश्चात् जीवों की उत्पत्ति की पुनः संभावना रहती है। अतः उपयोग में लाते समय इस तथ्य की छानबीन कर लेनी चाहिए एवं आशंका होने पर पीने से पूर्व पुनः छानकर ही पीना चाहिए। इसी कारण हमारे यहाँ प्रतिदिन पीने के पानी को छानने का प्रचलन था।
स्वास्थ्य हेतु क्षारीय पानी गुणकारी
पानी की दूसरी महत्वपूर्ण आवश्यकता उसके अम्ल-सार के अनुपात की होती है। जिसको Ph के आधार पर मापा जा सकता है। पानी का Ph जब 7 होता है तो इसमें अम्ल एवं क्षार तत्व बराबर मात्रा में होते हैं। Ph यदि 7 से कम होता है तो पानी अम्ल की अधिकता वाला और 7 से अधिक 9 वाला पानी क्षार गुणों वाला होता है।
स्नायु एवं मज्जा के पोषण हेतु शरीर में अम्ल तत्व की बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। रक्त में आवश्यकता से अधिक अम्ल होने से रक्त विषाक्त बन अनेक रोगों का कारण बन जाता है। शरीर में अधिकांश विजातीय तत्वों के जमाव एवं रोगों में अम्ल तत्व की आवश्यकता से अधिक उपलब्धता भी प्रमुख कारण होती है। हमारे शरीर में गुर्दे का मुख्य कार्य अम्ल की अधिकता को बाहर निकालना एवं शरीर में अम्ल एवं क्षार का संतुलन बनाए रखना होता है।
शरीर में क्षार तत्व की कमी के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण होने लगती है एवं रक्त में सफेद कोशिकाएं कम होने लगती हैं। हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं। अम्लपित्त (Acidity), गैस, जोड़ों में दर्द एवं कब्जियत जैसे रोगों की संभावना बढ़ने लगती है। जिससे शरीर को सुचारू रूप से संचालित करने वाला सारा तंत्र अनियंत्रित होने लगता है तथा शरीर रोगों का घर बन जाता है। ऐसी स्थिति में प्रकृति शरीर के अन्य तंतुओं से क्षार तत्व खींचकर अपना पोषण करने लगती है। परिणाम स्वरूप शरीर के वे अवयव जिसमें से क्षार तत्व शोषित कर लिए जाते हैं, निःसत्व, निर्बल एवं रोगी हो जाते हैं। डॉ. शेरी रोजर्स (Dr Sherry Rogers), डॉ. इंगफ्रेइड हॉबर्ड ( Dr Ingfreid Hobered), टोकियो जापान की पानी संस्था के निदेशक डॉ. हिडेमित्सु हयासी (Dr Hidemitu Hayashi - Director of The Water Institute Tokyo, Japan), डॉ. डेविड कारपेन्टर (Dr David Carpenter), डॉ. मुर्शीक जॉन (Dr Murshik John), डॉ. विलियम केली (Dr Villiam Kelly), डॉ. नीताबेन गोस्वामी, जयेशभाई पटेल, जमशेदपुर के वैज्ञानिक डॉ. जीवराजजी जैन आदि पीने योग्य पानी पर शोधकर्ताओं के अनुसार क्षारीय पानी नियमित पीने से समय के पूर्व वृद्धावस्था के लक्षण प्रकट नहीं होते। हड्डियों का घनत्व बढ़ता है तथा अम्लपित्त, गैस कब्ज, जोड़ों का दर्द जैसे रोगों की संभावनाएं अपेक्षाकृत कम रहती हैं। हमारे आहार में 20 प्रतिशत अम्लीय एवं 80 प्रतिशत क्षारीय पदार्थ होने चाहिए। परन्तु आजकल अधिकांश व्यक्तियों के भोजन में अम्ल तत्व बहुत ज्यादा और क्षार तत्वों की बहुत कमी होती है। वर्तमान में चटपटा, फास्टफूड, आम्लिक जैसा आहार अधिकांश लोगों द्वारा किया जाता है, उससे ऐसे रोगों की संभावनाएं बहुत अधिक हो गई हैं। शरीर में अम्ल की अतिरिक्त मात्रा को दूर करने के लिए नियमित क्षारीय पानी पीना सबसे सहज, सरल, सस्ता, दुष्प्रभावों से रहित, अहिंसक, स्वावलम्बी प्रभावशाली विकल्प है।
मिनरल पानी का अंधानुकरण कितना आवश्यक है?
आज सरकार द्वारा आवश्यक पीने योग्य शुद्ध पानी की उपलब्धता न करवा पाने के कारण चन्द प्रक्रियाओं द्वारा शुद्ध किया हुआ पानी गत चन्द वर्षों से बाजार में महंगे मिनरल पानी के नाम से वितरित हो रहा है। आज देश में ऐसे पानी का अरबों रुपयों का व्यापार हो रहा है और जिसमें प्रतिवर्ष 40 से 50 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है।
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्यों क्षीण होती है?
आज मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी न होने के कारण आधुनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ मिनरल पानी पीने हेतु विशेष प्रेरणा देते हैं। अतः हमें इस तथ्य पर चिंतन करना होगा कि हमारी रोग निरोधक क्षमता क्यों क्षीण होती है और उससे कैसे स्वयं को सुरक्षित रखा जा सकता है?
बाल्यकाल में लगाये जाने वाले रोग निरोधक इंजेक्शनों, गर्भावस्था एवं उसके बाद में ली जाने वाली आधुनिक आधुनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ मिनरल वाटर पीने का सुझाव देते हैं
दवाइयों से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण होने लगती हैं। भारत में लगभग दो प्रतिशत जनता ही बोतल बंद पानी का सेवन करती है। यद्यपि इन दो प्रतिशत लोगों की भी रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी कमजोर नहीं होती परन्तु मिनरल जल के भ्रामक, लुभावने विज्ञापनों के कारण वे अपने स्वास्थ्य से कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहते परन्तु आत्मविश्वास की कमी, स्वयं की क्षमता के प्रति नासमझी के कारण मिनरल पानी का सेवन करते हैं।
बोतल बंद पानी का सेवन करने वाले भी अधिकांश व्यक्ति कुल्ला करने के लिए तो प्रायः नल के पानी का ही उपयोग करते हैं, परन्तु इससे इनको किसी प्रकार का प्रायः संक्रमण नहीं होता, जबकि घूंट भर दूषित पानी में ही इतने विषाणु होते हैं कि वे हमें अपनी चपेट में ले सकते हैं।
सरकार की असजगता का दुष्परिणाम सरकार की उपेक्षावृत्ति के मन चाहे दामों पर शुद्ध पानी के नाम से भोली-भाली जनता का शोषण किया जा रहा है। प्रतिदिन शादियों एवं सामूहिक आयोजनों में ऐसे महंगे पानी का जो अपव्यय होता है, उससे गरीब व्यक्ति को न चाहते हुए भी अन्धानुकरण एवं प्रतिष्ठा के नाम पर हजारों रुपयों का अनावश्यक खर्च पानी के लिए करने हेतु विवश होना पड़ रहा है, जिस पर सम्यक् चिन्तन है। ताकि कम से कम राष्ट्र की भोली-भाली जनता को तो सामूहिक आयोजनों में पानी के नाम पर होने अपव्यय से राहत मिल सके।
क्या मिनरल पानी न पीने वाले सभी व्यक्ति वायरस से प्रभावित होते हैं? चन्द वर्षो पूर्व जब मिनरल जल का प्रचलन नहीं था, तो क्या जनसाधारण वायरस से ग्रस्त था? वास्तव में मिनरल जल का उपयोग आज पैसों की बर्बादी एवं सम्यक चिन्तन के अभाव का प्रतीक है।
आज व्यावसायिक स्थलों एवं सामूहिक आयोजनों में जिन जाएं में पानी वितरित किया जाता है, उनकी स्वच्छता भी पूर्णतया उपेक्षित होती हैं। अतः ऐसा पानी कैसे स्वास्थ्यवर्धक हो सकता है, मिनरल पानी के बढ़ते व्यवसाय से पानी पीने के पश्चात जिन खाली प्लास्टिक बोतलों एवं पाउचों को फेंक दिया जाता है उससे पर्यावरण एवं प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले रही है फिर भी सरकार का ध्यान उस ओर क्यों नहीं जा रहा है जो कि चिन्तन एवं चिंता का विषय है।
स्वास्थ्यवर्धक शुद्ध पानी के अन्य विकल्प
शुद्ध पानी पीने के लिए आज एक्वागार्ड एवं आर.ओ. जैसे विकल्पों का प्रचलन बढ़ रहा है। जैसा कि पूर्व में स्पष्ट किया गया है कि पानी को चुम्बक, पिरामिड, रत्नों, धातुओं, धूप की किरणों में रंगीन बोतलों में पानी को रखने अथवा विभिन्न रंगों की किरणों से उसे स्वास्थ्यवर्धक एवं दवा के रूप में तैयार किया जा सकता है, परन्तु यह जनसाधारण के लिए संभव नहीं विकल्प की आवश्यकता है जो जनसाधारण बिना किसी अन्य समस्या के सहजता से अपना सके।
आयुर्वेद में रोगोपचार हेतु विविध प्रकार की भस्मों का उपयोग होता आ रहा है। स्वच्छ पानी में गाय के गोबर की राख सही अनुपात में मिला दी जाए तो शुद्ध शक्तिवर्धक रोग नाशक पीने योग्य पानी घर-घर में सहजता से उपलब्ध हो सकता है। राख मिश्रित पानी पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है। संक्रामक रोगों से बचाव होता है। पानी बैक्टीरिया रहित बन जाता है। आवेश नियन्त्रित होते हैं। शरीर में रक्त कणों की संख्या में वृद्धि होती है। मधुमेह, यकृत, गुर्दे एवं अन्य रोगों में जल्दी राहत मिलती है।
क्षारीय पानी हेतु गाय के गोबर की राख मिश्रित पानी अच्छा विकल्प
गाय का गोबर रोगाणु एवं विषाणु नाशक होता है। गोबर के रस का सेवन करने से रक्त की शुद्धि होती है एवं त्वचा संबंधी रोगों में शीघ्र लाभ होता है। गाय के ताजे गोबर की गंध से मलेरिया एवं तपेदिक रोगाणु नहीं पनप सकते। इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी.ई. ब्रिगेड के अनुसार मलेरिया एवं तपेदिक के रोगाणु प्रारम्भिक अवस्था में तो गोबर की गंध से ही भाग जाते हैं हैजा और अतिसार का रोग होने पर जिस पानी मे हैजे के रोगाणु हो जाते हैं, उस पानी में गोबर डालने से उनका आतंक समाप्त हो जाता है। अतः बहुत से चिकित्सक तपेदिक के रोगियों को गायों के बाड़ों में विश्राम करने का परामर्श देते हैं, क्योंकि गोबर एवं गोमूत्र की गंध में ऐसे वायरस नहीं रह सकते ।
गोबर के राख की विशेषताएँ
आयुर्वेद में विभिन्न धातुओं एवं पदार्थों की भस्म से असाध्य रोगों का उपचार हमारे देश में हजारों वर्षों से हो रहा है। गाय के गोबर को जलाने की राख में गोबर के गुणों के अलावा अन्य गुण भी होते हैं। राख की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है। अतः चोट लगने एवं रक्त आने की स्थिति दर्द में आराम होने लगता है एवं घाव शीघ्र ठीक हो जाता है। नागा बाबा आज भी अपने शरीर पर राख लगाते हैं, जिससे मच्छर एवं अन्य वायरस से उनकी सुरक्षा होती है। जैन साधु अपने बालों का लोंचन करते समय राख का उपयोग करते हैं, जिससे बाल खींचते समय घाव न हों।
अनाज में राख मिलाकर रखने से उसे दीर्घ काल तक सुरक्षित संग्रहित रखा जा सकता है। घर में चींटियों, मकोड़ों या अन्य जीवों का उपद्रव होने घर, उस स्थान पर राख डालने से वे वहाँ से तुरन्त दूर होने लगते है। चर्म रोग, दाद, खुजली, फोड़े-फुन्सियों आदि के रोगों का उपचार किया जा सकता है।
पर राख लगाने से तुरन्त आराम होने लगता है। घुटनों के अन्य जोड़ों के दर्द तथा अस्थमा में फेंफड़ों पर राख का मसाज करने से तुरन्त राहत मिलने लगती है। मधु मक्खी अथवा जहरीला जीव के काटने पर वहां राख लगाने से विष का प्रभाव क्षीण होने लगता है एवं दर्द ठीक हो जाता है। राख के दंतमंजन की गणना सर्वश्रेष्ठ दंत मंजन में होती है। पानी में राख मिलाने से उसमें क्षारीय गुण आ जाते हैं तथा पानी में 8-0 घंटे तक जीवोत्पत्ति की संभावना नहीं रहती।
विविध पानी के नमूने के आभा मण्डल से लिए गए चित्रों से इस बात की पुष्टि हुई है, कि ऐसे पानी के स्वास्थ्यवर्धक गुण एवं ऊर्जा अन्य सभी प्रकार के उपलब्ध प्रचलित पानी से अधिक होती है। रासायनिक प्रयोगशालाओं में परीक्षणों से गोबर राख मिश्रित पानी का Ph प्रायः 8 से अधिक पाया गया है। ऐसा पानी पीने से विचारों में भी अपेक्षाकृत अधिक सात्विकता रहती है।
गाय के गोबर की राख से मिश्रित क्षारीय पानी कैसे तैयार करें?
उपयोग में आने योग्य पानी को आवश्यकतानुसार छानकर उसमें गाय के गोबर को जलाने से बनी राख इतनी मात्रा में ही मिलाए ताकि पानी में घुलने के पश्चात् राख पानी के बर्तन में नीचे जमने लगे। इस पानी को निथार कर उपयोग हेतु अन्य बर्तन में संग्रहित लें। यह पानी राख के गुणों वाला स्वास्थ्य के लिए उपयोगी, क्षारीय गुणों वाला शक्तिवर्धक रोग नाशक बन जाता है। ऐसा पानी सहजता से कहीं भी तैयार किया जा सकता है। ऐसे पानी में चंद घंटों तक जीवोत्पत्ति भी नहीं होती। अनादिकाल से जैन ब्रतधारी साधकों में ऐसे धोवन पानी के नाम से विख्यात पानी पीने का प्रचलन है। ऐसा क्षारीय जल आवश्यकतानुसार गरीब भी अपने घरों में तैयार कर सकते हैं। अतः राख मिश्रित पानी पीने से सहज ही पानी से होने वाले रोगों से राहत मिल सकती है । आवश्यकता है दृढ़ मनोबल एवं भ्रामक विज्ञापनों से भ्रमित हो अन्धानुकरण न कर तथ्या नुसार पानी के उपयोग करने की।
स्वास्थ्य मंत्रालय एवं चिकित्सा से जुड़े चिकित्सकों से सविनय अनुरोध है कि वे जनता का सही मार्गदर्शन कर, गरीब जनता को पानी के कारण होने वाले रोगों से सुरक्षा हेतु गोबर की राख मिश्रित पानी के लाभ से परिचित करावें तथा उसका सम्यक उपयोग करने हेतु जनता को प्रेरित करें। सामूहिक आयोजनों में मिनरल पानी के स्थान पर ऐसे पानी के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए।
- लेखक संपर्क, डॉ. चंचलमल चोरड़िया, चोरड़िया भवन, जालोरी गेट के बाहर, जोधपुर-342 003 (राज.) ईमेल: cmchordia.jodhpur@gmail.com
/articles/sabasae-acachaa-sakataivaradhaka-painae-kaa-paanai-kaaisaa-hao