जिस जहर का बिकना ही प्रतिबंधित उसका भी खुलेआम छिड़काव
पटियाला। पंजाब का किसान गेहूं-धान के द्वीफसलीय चक्र में उलझा है तो किसान के बच्चे सुबह घर से निकलते हैं और दिन भर बस अड्डे पर चक्कर लगाकर शाम होते-होते बाजार से सब्जी खरीद घर ले जाते हैं, जबकि होना ठीक इसके विपरीत चाहिए। खेत का पर्याय कहा जाने वाला किसान ही जब सब्जी खरीद कर खा रहा है तो सब्जी में पौष्टिक तत्व कम हैं और पेस्टीसाइड ज्यादा यह कोई सोचने वाला कोई नहीं है। सब्जियों में हमें क्या कुछ परोसा जा रहा है, इस पर गैर सरकारी संगठन वॉयस ने विभिन्न सब्जियों के सैंपल ले सरकारी प्रयोगशालाओं में ही परीक्षण करवाए तो सामने आया कि जिन तथाकथित दवाओं को बेचने पर ही प्रतिबंध लगा है वे भी सब्जियों में भारी मात्रा में मौजूद है। दिलचस्प है कि मंडी में फल अथवा सब्जी की गुणवत्ता पर किसी तरह का सरकारी नियंत्रण लागू न होने के चलते मात्र आढ़ती या फिर दवा विक्रेता की सलाह पर पेस्टीसाइड-इंसेक्टीसाइड का छिड़काव हो रहा है। संगठन के चेयरमैन मिश्रिर घोष बताते हैं कि चर्म रोग, किडनी का नुकसान और नर्वस सिस्टम पर असर करने वाली प्रतिबंधित एनड्रीन, कलोडेन व हैप्टाकोर का चलन आम है। 1969 में यूरोप में कानूनी रोक के अधीन आईडीडीटी भारत में बिक रही है।
जहरीले कीटनाशकों की मात्रा यूरोप के मापदंड की तुलना में 750 गुणा ज्यादा है। भिंडी में कप्तान नामक कीटनाशक का स्तर 15 हजार पार्ट्स पर बिलियन देखा गया, जबकि यूरोप में 20 पीपीबी से ज्यादा की भिंडी बाजार में नहीं बिक सकती। गोभी में मैलाथीन यूरोप के स्टैंडर्ड से 150 गुणा ज्यादा है। सर्वेक्षण में आम आदमी के आलू से लेकर टमाटर, खीरा, ककड़ी जैसे कच्चे खाए जाने वाले सलाद और बैंगन पर जहर का असर न मिटने वाला और ज्यादा खतरनाक पाया गया। 12 प्रमुख फलों की परख में सामने आया कि बाग-बाग न होकर रसायन की फैक्ट्री हो गए हैं। फलों पर आने वाले कीटों को मारने के बाद इसमें बचा रहने वाला रैजीड्यू पश्चिमी देशों के स्टैंडर्ड से कहीं अधिक है। फलों में पाए जाने वाले प्रतिबंधित रसायनों की लिस्ट ज्यादा लंबी है। इनमें सन-एंडसुलडान, कप्तान, थाईकलोपरित, पारथीअन और डीडीटी आम है। घोष कहते हैं कि देश में फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी बनी हुई है पर फल-सब्जियों में कीटनाशकों के रैजीड्यू की कितनी इजाजत है, इसकी पिछले तीन दशक में सीमा का पुनर्निधारण नहीं किया गया है, जबकि पेस्टीसाइड की मात्रा, जहरीलापन और संख्या लगातार बढ़ रही है।
लोगों को जागरूक करने के सिवाय कुछ नहीं..
खेत में उगी सब्जी कैसी है इसकी जांच सेहत विभाग नहीं कर सकता, कंटेमिनेटिड फूड पकने के बाद कैसा है इसकी जांच कर सकता है तो जिला प्रशासन कटे, गले व खुले में रखे फल सब्जियों पर कार्रवाई कर सकता है। ऐसी स्थिति में मुख्य कृषि अधिकारी एससी खुराना कहते हैं कि किसान ने अपनी फसल बचानी है, दवा चाहे जो हो, चाहे कोई भी साइड इफेक्ट करती हो, उसे इससे कोई मतलब नहीं। ऐसे में सिवाय लोगों को जागरूक करने के कोई भी कुछ नहीं कर सकता। विभाग विभिन्न शिविर लगाकर न्यूनतम पेस्टीसाइड अथवा इससे मुक्त खेती की सलाह देता है। वे कहते हैं कि इसमें मीडिया की भूमिका अहम है जो इस गंभीर समस्या से अनजान किसानों को भली-भांति जागरूक कर सकती है।
/articles/sabajai-maen-paausataikataa-kama-paesataisaaida-jayaadaa