सौर ऊर्जा से रोशन होते गांव

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साफ-सुथरी नदी व कल-कल बहता पानी और उसमें खेलते बच्चे। स्नान करने आए स्त्री-पुरूष। कम संसाधनों में आजादी से रहने वाला आदिवासी समाज। बैगा, कमार, उरांव और गोंड आदिवासी यहां के निवासी हैं। सरई के घने जंगल के बीच बसे इस गांव की प्राकृतिक सुंदरता जितनी ज्यादा है, उस गांव के निवासियों का जीवन उतना ही कठिन है। लेकिन कुछ सरकारी व कुछ निजी स्तर पर लोगों द्वारा ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं जिनसे इस क्षेत्र के निवासियों को कुछ सुविधाएं मिलने लगी हैं। देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में ऊर्जा क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन आज देश में ऊर्जा के दो प्रमुख माध्यम बिजली और पेट्रोलियम पदार्थों की कमी होने से वैज्ञानिकों का ध्यान पुनः ऊर्जा के अन्य स्रोतों की ओर गया है।

भारत ने अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 25,000 मेगावाट से बढ़ाकर 2017 तक दोगुना से भी ज्यादा यानी 55000 मेगावाट करने का लक्ष्य रखा है। ग्रीनहाउस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को वैकल्पिक ऊर्जा प्रणालियों में निजी और सरकारी स्तर पर 2050 तक 6,10000 रुपए सालाना निवेश करने की जरूरत बताई गई है।

किसी देश के लिए ऊर्जा के मायने होते हैं कि वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा की आपूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग इससे लाभान्वित हो सकें। साथ ही साथ पर्यावरण पर इसका कोई प्रभाव न पड़े और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन।

प्राकृतिक स्रोतों का जिस तरह से दोहन हो रहा है उसने केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों की भी नींद उड़ाकर रख दी है। ऊर्जा की कमी को दूर करने के लिए ऊर्जा के नए स्रोत तलाश किए जा रहे हैं।

भारत भी सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के दोहन के लिए पर्याप्त कदम उठा रहा है। इसका अंदाजा मुझे उस वक्त हुआ जब मैंने अचानक छत्तीसगढ़ के टाईगर रिजर्व के दूरस्थ गांव बम्हनी में कार्यरत स्वास्थ्य कार्यकर्ता से फोन पर बात की और मेरा दिल उछल पड़ा। इसकी वजह फोन से बात करना नहीं बल्कि ऐसे फोन से बात करना था, जो सोलर बैटरी से चलता है। यहां बिजली नहीं है। बावजूद यहां सोलर बैटरी से मोबाइल, फ्रिज और पानी के मोटर को चलते हुए देख सकते हैं। यहां यह प्रयास सरकारी व गैर सरकारी दोनों तरह से किया जा रहा है।

पिछले दिनों अचानक मुझे टाईगर रिजर्व के कई गांवों का दौरा करने का मौका मिला और मैंने यहां के जीवन में चल रही उथल-पुथल व जनजीवन का जायजा लिया। इस दौरान क्षेत्र में हुए सोलर एनर्जी के काम से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। मनियारी नदी के किनारे बम्हनी गांव का प्राकृतिक परिवेश बहुत मोहता है।

यह ऐसी रमणीक जगह है, जहां लंबे समय तक समय गुजारा जा सकता है। साफ-सुथरी नदी व कल-कल बहता पानी और उसमें खेलते बच्चे। स्नान करने आए स्त्री-पुरूष। कम संसाधनों में आजादी से रहने वाला आदिवासी समाज। बैगा, कमार, उरांव और गोंड आदिवासी यहां के निवासी हैं।

सरई के घने जंगल के बीच बसे इस गांव की प्राकृतिक सुंदरता जितनी ज्यादा है, उस गांव के निवासियों का जीवन उतना ही कठिन है। लेकिन कुछ सरकारी व कुछ निजी स्तर पर लोगों द्वारा ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं जिनसे इस क्षेत्र के निवासियों को कुछ सुविधाएं मिलने लगी हैं।

ऐसा ही एक प्रयास है-सोलर लाइट का है। जन स्वास्थ्य सहयोग नामक एक गैर सरकारी संस्था, जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करती है, उसने क्षेत्र में सोलर लाइट उपलब्ध कराने का काम किया है। साथ ही सरकार के ऊर्जा विकास ने भी इस क्षेत्र के गांवों में सोलर प्लांट लगाकर रोशनी पहुंचाई है। जन स्वास्थ्य सहयोग के डॉ. योगेश जैन कहते हैं कि चाहे रात्रि में भोजन करने की बात हो या पैदल चलने की, चाहे खेत जाने की बात हो या रात्रि विश्राम करने की सभी में पर्याप्त रोशनी की जरूरत होती है।

लेकिन ऐसे गावों में जहां बिजली नहीं है या ज्यादा बिजली कटौती होती है, वहां रोशनी की व्यवस्था करवा पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए गांवों में सस्ते दामों पर आसानी से सोलर लाइट उपलब्ध कराने की जरूरत महसूस हुई। पिछले तीन वर्षों से यह काम जन स्वास्थ्य सहयोग द्वारा किया जा रहा है।

मुंगेली जिले के लोरमी व बिलासपुर के कोटा क्षेत्र के गांवों में यह सोलर लाइट उपलब्ध कराई गई है। इसकी कीमत 5 सौ रुपए है लेकिन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को ढाई सौ और ग्रामीण दाईयों को सौ रुपए में लाइट उपलब्ध कराई गई हैं। यहां के जंगल के गांवों में जहां बिजली नहीं है, वहां सरकारी ऊर्जा विभाग ने भी अपने सोलर प्लांट लगाकर रोशनी की व्यवस्था की है। लेकिन बरसात के दिनों में यह प्रायः बंद रहते हैं, क्योंकि सूरज ही नहीं निकलता। जबकि उन्हीं दिनों रोशनी की सबसे ज्यादा जरूरत रहती हैं।

चूंकि आमतौर पर आदिवासी लोग धरती पर सोते हैं, उनके घर पलंग या खटिया नहीं होती तब सांप या बिच्छू काटने की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं। लेकिन जब से यहां के लोगों को सोलर लाइट उपलब्ध कराई गई है तब से यह समस्या नहीं आ रही है। जन स्वास्थ्य सहयोग के कार्यकर्ता संतकुमार कहते हैं कि हम जो लाइट उपलब्ध कराते हैं उससे उर्जा की बचत होती है।

बैटरी एक बार रिचार्ज होने परे दो दिन चलती है। इसकी खास बात यह है कि यह आकाश में बादल छाए जाने के बावजूद भी यह चार्ज हो जाती है। इस गांव का भ्रमण करने के बाद जब मैं अचानक एक दूरदराज व जंगल के बीच बसे गांव चिरईगोड़ा में सोलर लाइट देखने गया तो वहां के धनीराम एक्का से मिला। यहां घनी बसाहट नहीं है, बल्कि दूर-दूर बने घरों में उरांव आदिवासी रहते हैं। धनीराम एक्का ने बताया कि उनके पास दो सोलर लाइट हैं जिसमें से एक ही चालू हालत में है।

सोलर लाइट में उनके बच्चे पढ़ते हैं, खाना पकाया जाता है, आने-जाने में सुविधा होती है। सोलर बल्व के उजाले में ढेंकी से धान कुटाई की जाती है। इसके अलावा, जंगली जानवरों से फसल को बचाने के लिए पेड़ पर लाइट को टांग दिया जाता है जिससे जानवर भाग जाते हैं। वह आगे बताते हुए कहते हैं कि हमें राशन की दुकान से पर्याप्त मिट्टी का तेल नहीं मिलता था। महीने में सिर्फ एक लीटर मिट्टी का तेल दिया जाता था। इसलिए हमें भारी दिक्कत का सामना करना पड़ता था।

जब मैं विदा होने लगा तो उन्होंने कहा माफ करें, मैं आपको चाय नहीं पिला पाया। लेकिन जब वह सोलर लाइट के बारे में बता रहे थे तो उनकी आंखें चमक रही थी। वास्तव में एक छोटे से बल्ब की रोशनी से उनके जीवन में उजाला हो गया है। यहां से चलकर हम बहाउड़ पहुंचे। यह टाईगर रिजर्व से विस्थापित गांव है, यहां हमने सोलर एनर्जी से चलने वाली पानी की मोटर देखी जिससे महिलाएं पानी भर रही थीं। यहां के कई गांवों में सरकार ने सोलर लाइट की व्यवस्था की है, जो अच्छे से संचालित हो रही है।

हाल ही छत्तीसगढ़ सरकार ने सोलर लाइट आदिवासी गांवों में पहुंचाने की बात की है, जो सराहनीय होने के साथ अनुकरणीय भी है। संतकुमार कहते हैं कि सरकारी सोलर प्लांटों की सर्विस अच्छी नहीं होती है क्योंकि वे मरम्मत के अभाव में बंद पड़े रहते हैं। इसलिए हमने मुंबई की कंपनी से लाइट लिए हैं उसने हमें एक साल की गारंटी दी है। अगर इस बीच लाइट खराब होती है तो वह कंपनी इसके बदले नई लाइट देगी या मरम्मत करके देगी।

आगामी समय में हम एक प्रशिक्षित मैकेनिक तैयार करना चाहते हैं जो इन लाइट की मरम्मत स्थानीय स्तर पर ही कर सके। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि सोलर एनर्जी व लाइट के लिए यहां सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर बहुत ही अच्छा काम हुआ है, जो सही दिशा में उठाया गया बहुत ही उपयोगी कदम है। इसका अनुकरण पूरे देश में किया जाना चाहिए।

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