पूरे भारत में लोग नल, हैंडपंप ट्यूबवेल या बोरवेल, नहर, नदी अथवा नालों, टैंक या तालाब और अन्य स्रोत से पेयजल प्राप्त करते हैं। एक ओर शहरीकरण और औद्योगीकरण से जल चक्र प्रभावित हो रहा है, वहीं भूजल के रिचार्ज में भी कमी आई है। अपशिष्ट निपटान से जल निकायों में भौतिक-रासायनिक गुणों में बदलाव होने से जल की गुणवत्ता भी खराब हो रही है। वैज्ञानिकों ने ऐसे परिवर्तनों को चिन्हित करके पेयजल स्रोतों की पहचान करने के सुझाव दिए हैं।
वास्को-द-गामा (गोवा) : जलवायु परिवर्तन और पेयजल की बढ़ रही मांग के चलते दुनिया में पेयजल स्रोतों को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन भारत में सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता की स्थिति संतोषजनक नहीं है। एक नए सर्वेक्षण में यह बात उभरकर आई है।वर्ष 1990 और 2010 के दौरान ओशिनिया, एशिया और अफ्रीका सहित दुनिया भर में पाइप और अन्य संशोधित के माध्यमों से पेयजल आपूर्ति के आंकड़ों का आकलन करने पर पाया गया है कि आज भी दुनिया की बहुत बड़ी आबादी इन सुविधाओं से वंचित है। इस अध्ययन के दौरान दस देशों के साथ भारत में पेयजल सुविधा की तुलना की गई थी। हालाँकि भारत में 85.5 प्रतिशत घरों में सुरक्षित पेयजल की सुविधा उपलब्ध है, फिर भी दक्षिण एशियाई देशों की सूची में भारत आठवें स्थान पर है।
इस अध्ययन में वर्ष 2011 की भारतीय जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करके सुरक्षित पेयजल और बुनियादी स्वच्छता के आधार पर पेयजल क्षेत्र का मूल्यांकन किया है। ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, सोनीपत के वैज्ञानिकों श्रीरूप चौधरी और मिमी रॉय द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।
अध्ययन के अनुसार नागरिकों के लिये उपलब्ध पेयजल सुविधाओं में शहरी व ग्रामीण स्तर पर 20 से 45 प्रतिशत तक असमानता है। लगभग 70 प्रतिशत शहरी घरों में पीने के लिये नल का पानी उपयोग किया जाता है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 31 प्रतिशत घरों में ही नल के पानी की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। वहीं, लगभग 12 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 50 प्रतिशत से अधिक परिवार भूजल पर आश्रित हैं।
राज्यों में भी पेयजल की उपलब्धता को लेकर अलग-अलग स्थिति है। राजस्थान में 78 प्रतिशत घरों में 'सुरक्षित' पेयजल स्रोत होने के बावजूद 48 प्रतिशत से अधिक लोग पेयजल के लिए भूजल पर निर्भर हैं। राजस्थान के सिर्फ 32 प्रतिशत घरों में ही उपचारित नल का पानी आता है। गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में 39-48 प्रतिशत तथा बिहार, नागालैंड, लक्षद्वीप, असम, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में 15 प्रतिशत से कम परिवारों को नल का उपचारित पानी मिल पाता है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में भूजल की गुणवत्ता सबसे ज्यादा संकटग्रस्त पाई गई है।
पूरे भारत में लोग नल, हैंडपंप ट्यूबवेल या बोरवेल, नहर, नदी अथवा नालों, टैंक या तालाब और अन्य स्रोत से पेयजल प्राप्त करते हैं। एक ओर शहरीकरण और औद्योगीकरण से जल चक्र प्रभावित हो रहा है, वहीं भूजल के रिचार्ज में भी कमी आई है। अपशिष्ट निपटान से जल निकायों में भौतिक-रासायनिक गुणों में बदलाव होने से जल की गुणवत्ता भी खराब हो रही है। वैज्ञानिकों ने ऐसे परिवर्तनों को चिन्हित करके पेयजल स्रोतों की पहचान करने के सुझाव दिए हैं।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार “जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए सतत निगरानी तंत्र विकसित करने के अलावा शहरी एवं औद्योगिक अपशिष्ट निपटान गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए सख्त नीतिगत पहल और विशिष्ट बजटीय प्रावधान जरूरी हैं।” ग्रामीण इलाकों में खुले में शौच की प्रचलित प्रथा के कारण जल संसाधनों में सूक्ष्म जैविक प्रदूषण की ओर भी अध्ययन में रेखांकित किया गया है।
विकसित देशों में प्रायः पेयजल संबंधी जानकारियों के आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होते हैं, जिसका उपयोग वैज्ञानिक कर सकते हैं। लेकिन भारत में इस तरह के आंकड़े या तो अनुपलब्ध हैं। वैज्ञानिक अध्ययन के लिये इन आंकड़ों को प्राप्त करने के लिये लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। भारत में भी ऐसी ही सुविधाओं की जरूरत है, जिससे पेयजल आंकड़े आसानी से प्राप्त किए जा सकें और जलाशय स्तर पर जल संसाधनों का गहन अध्ययन किया जा सके।
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