उत्तर प्रदेश राज्य जल निगम की इटावा शाखा द्वारा पेयजल के लिए गए नमूनों में जिस प्रकार से पेयजल के अवयवों में फ्लोराइड आयरन एवं नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाने से यह पानी लोगों की अपंगता का कारण बनता जा रहा है। वहीं नाइट्रेट की बढ़ी मात्रा तो बच्चों की मौत का कारण तक बन जाती है। आश्चर्यजनक यह है कि पेयजल के लिए गए नमूनों के बाद शोधकर्ताओं ने साफ किया कि पानी के अवयवों का संतुलन नहीं बनाया जा सकता है और इसका एकमात्र उपाय यही है कि पेयजल की आपूर्ति पानी की टंकी के माध्यम से की जाए। जल ही जीवन है परंतु उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के तमाम ब्लाकों का पानी जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा है। फ्लोराइड की अधिकता बढ़ने के कारण इटावा के कई गांव के बासिंदों में बढ़ रहा है अपंगता का खतरा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जिला इटावा में दर्जनों ऐसे गांव है जहां के सरकारी हैंडपंपों के पानी में लगातार फ्लोराइड की मात्रा बढ़ती चली जा रही है नतीजतन पानी का इस्तेमाल करने वालों के सामने कई किस्म के खतरे खड़े हो रहे हैं। पानी में पनप रहे इन्हीं ख़तरों की आशंकाओं के मद्देनज़र उत्तर प्रदेश सरकार की ओर स्वजलधारा योजना की शुरूआत करने की कवायद कर दी गई है लेकिन इस योजना पर भी प्रभावित लोगों की ओर से सवाल खड़े किये जा रहे हैं प्रभावित लोगों का कहना है कि राजनीति से प्रेरित होकर इस योजना को लागू कराया जा रहा है। मौसम में लगातार हो रहे असंतुलन ने भूजल को बुरी तरह प्रदूषित किया है। पीने के लिए सरकार द्वारा लगवाए गए हैंडपंपों के पानी में जिस प्रकार से रासायनिक अवयवों का संतुलन बिगड़ा है, उससे यह पानी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। उत्तर प्रदेश राज्य जल निगम की इटावा शाखा द्वारा पेयजल के लिए गए नमूनों में जिस प्रकार से पेयजल के अवयवों में फ्लोराइड आयरन एवं नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाने से यह पानी लोगों की अपंगता का कारण बनता जा रहा है।
वहीं नाइट्रेट की बढ़ी मात्रा तो बच्चों की मौत का कारण तक बन जाती है। आश्चर्यजनक यह है कि पेयजल के लिए गए नमूनों के बाद शोधकर्ताओं ने साफ किया कि पानी के अवयवों का संतुलन नहीं बनाया जा सकता है और इसका एकमात्र उपाय यही है कि पेयजल की आपूर्ति पानी की टंकी के माध्यम से की जाए। जल ही जीवन है परंतु उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के तमाम ब्लाकों का पानी जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा है। जल निगम की प्रयोगशाला में हैंडपंपों से लिए गए नमूनों के आए परिणामों ने जो खुलासा किया है उससे प्रशासन की नींद उड़ गई है। जनपद के ताखा, भर्थना एवं जसवंतनगर ब्लाक के गाँवों का पानी अब ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। जल निगम की प्रयोगशाला की पेयजल के नमूनों की जांच करने वाले अनिल कुमार सक्सेना बताते हैं कि शुद्ध पेयजल के लिए जो भारतीय मानक संस्था द्वारा जो मानक तय किए गए हैं उसके मुताबिक पानी में फ़्लोराइड की मात्रा 1-5 मिग्रा प्रति लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
मगर जांच में यह तथ्य सामने आया है कि जसवंतनगर ब्लाक के ककरई गांव के पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा 3-2 मिग्रा, नगला रामताल में 2-9 मिग्रा, बीबामऊ में 2-9, चांदनपुर बीबाम, में फ्लोराइड की मात्रा 2-9 मिग्रा, लीटर पाई गई है। जबकि भर्थना ब्लाक के ग्राम कुनैठी में 1-9 मिग्रा, मेंढ़ी दुधी में 2-0 मिग्रा, खुजरिया में 2-2 मिग्रा तथा नगला कालू में 3-1 मिग्रा, लीटर एवं बराह में 2-8 मिग्रा फ्लोराइड की मात्रा पाई गई है। जल निगम द्वारा कराई गई पानी की जांच में यह भी सामने आया है कि इटावा जनपद के अन्य ब्लाकों में ताखा ब्लाक के ग्राम रौरा में 1-92, महेवा ब्लाक के अहेरीपुर में 1-8 मिग्रा फ्लोराइड की मात्रा पाई गई है। इसके साथ ही जसवंतनगर ब्लाक के ही ग्राम शाहजहांपुर में 1-6, दर्शनपुरा में 1-8, खनाबाग में 1-6, ताखा ब्लाक के ग्राम नगला ढकाऊ में 1-8 मिग्रा, नगला कले में 1-6, भर्थना ब्लाक के ग्राम हरनारायणपुर में फ्लोराइड की मात्रा 1-6 मिग्रा, लीटर पाई गई है जो निर्धारित मानकों से काफी अधिक है।
पानी के बारे में जानकारी रखने वाले जल परीक्षक अनिल कुमार सक्सेना बताते हैं कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक हो जाने से दांत कुरूप हो जाते हैं, टेढ़े मेढ़े हो जाते हैं इसके बाद शरीर में अपंगता के लक्षण आना शुरू होते हैं जो इंसान को अपंग बना देती है। पेट की नसें चढ़ जातीं हैं जिससे शरीर में पीड़ा का अहसास होता रहता है। उनके मुताबिक फ्लोराइड की मात्रा कम होने से दाँतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है परंतु जांच में अभी तक फ्लोराइड की कम मात्रा का मामला प्रकाश में नहीं आया है। जनपद के पेयजल का माध्यम बनने वाले हैंडपंपों का पानी जनपदवासियों के लिए किस कदर खतरनाक है कि तमाम स्थानों के पानी में कठोरता पाई गई है जिससे बालों की सौंदर्यता प्रभावित होती है और बालों के तमाम रोग उत्पन्न होते हैं। वहीं बढ़पुरा ब्लाक में जिस प्रकार से नाइट्रेट की मात्रा में अधिकता पाई गई है। जिसके कारण बच्चों में ब्लू बेरी का रोग होने लगता है जिसके कारण बच्चों का शरीर नीला पड़ जाता है और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत तक हो सकती है।
भर्थना ब्लाक के हथनौली एवं नगला छिदद गांव में जिस प्रकार से पीने के पानी में आयरन की अधिकता है उससे ग्रामीणों की पाचन प्रक्रिया पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है। यहां तक कि आयरन की बढ़ती मात्रा के कारण हैंडपंपों के पाइप तक गल जाते हैं। इस पानी को पीने के कारण इन गाँवों के लोग शारीरिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं। आयरन की अधिकता के कारण शरीर टेढ़ा मेढ़ा हो जाता है और कमर झुक जाती है। इतना ही नहीं आयरन की बढ़ती मात्रा से शरीर में लगातार पीड़ा होती रहती है।इटावा में फ्लोराइड की अधिकता वाले पानी को लेकर 2003 में उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव की सरकार में मंत्री रहे कांग्रेस नेता विनोद यादव ने विधानसभा में दूषित पानी को रखकर विधानसभा अध्यक्ष का ध्यान इस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया था तब जाकर इस पूरे प्रकरण पर जांच कराई गई थी लेकिन जांच रिपोर्ट को आजतक सार्वजनिक नहीं किया गया। एक बार फिर से फ्लोराइड की अधिकता वाले पानी की रिपोर्ट जल निगम की ओर से जारी की गई है जिससे पीड़ित इलाके में बेचैनी देखी जा रही है। रही बात स्वास्थ्य विभाग की तो वह यह बात तो मानते हैं कि फ्लोराइड की अधिकता से पानी दूषित हो रहा है लेकिन यह समस्या उनकी नजर में गंभीर नहीं क्योंकि देश के अन्य राज्य जैसे राजस्थान और कर्नाटक इलाकों में इससे कहीं अधिक फ्लोराइड की अधिकता वाला पानी पीकर लोग जीवनयापन कर रहे हैं।
इसे विडंबना ही कहा जायेगा है कि जिस गांव के पानी में फ्लोराइड की अधिकता की वजह से लोग पलायन को मजबूर हों, उस गांव का नाम पानी की टंकी बनाने वाली योजना में न हो। ग्रामीण इसे लेकर अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक गुहार लगा चुके हैं लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा। उधर, चयन किन मानकों पर किया गया है इसको लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।
विकासखंड ताखा में स्वजलधारा योजना के तहत कैबनिट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के निर्देश पर 15 गाँवों को चयनित किया गया है। इन सभी गाँवों में पानी की टंकियों का निर्माण कराया जाना है। पाइपलाइन के द्वारा ग्रामीणों को पानी की आपूर्ति की जाएगी। चयनित गाँवों में पुरैला, कदमपुर, नुनार, बराहार, नगला ढकाऊ आदि शामिल हैं। इन गाँवों में नुनार और बराहार गाँवों को यदि छोड़ दिया जाए तो किसी भी गांव में ऐसी समस्या नहीं है जहां पर पानी में खारापन हो। पायकलां गांव में पानी में अत्यधिक फ्लोराइड होने से जवानी में ही सैकड़ों लोगों की हड्डियां कमजोर हो चुकी है। कई परिवार तो ऐसे हैं जो इस कारण से पलायन कर चुके हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब विकास खंड ताखा के 15 गांव स्वजलधारा योजना में चयनित हुए तो उसमें पेयजल के विकट संकट से जूझ रहे पायकलां को क्यों छोड़ दिया गया। चयन के मानकों को लेकर ग्रामीणों में चर्चा उठने लगी है कि आखिरकार वह कौन सी वजह रही जो इस गांव को योजना से दूर रखा गया। गांव के प्रदीप यादव बताते हैं कि जब कैबनिट मंत्री शिवपाल सिंह यादव द्वारा ताखा क्षेत्र में पानी की समस्या को देखते हुए पानी की टंकियां बनवाने के निर्देश दिया गया था तो लोगों को पूरा विश्वास था कि उनके गांव को शामिल कर लिया जाएगा। गांव के युवा रवि यादव ने आरोप लगाया कि मानकों की अनदेखी की गई है।
वहीं नाइट्रेट की बढ़ी मात्रा तो बच्चों की मौत का कारण तक बन जाती है। आश्चर्यजनक यह है कि पेयजल के लिए गए नमूनों के बाद शोधकर्ताओं ने साफ किया कि पानी के अवयवों का संतुलन नहीं बनाया जा सकता है और इसका एकमात्र उपाय यही है कि पेयजल की आपूर्ति पानी की टंकी के माध्यम से की जाए। जल ही जीवन है परंतु उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के तमाम ब्लाकों का पानी जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा है। जल निगम की प्रयोगशाला में हैंडपंपों से लिए गए नमूनों के आए परिणामों ने जो खुलासा किया है उससे प्रशासन की नींद उड़ गई है। जनपद के ताखा, भर्थना एवं जसवंतनगर ब्लाक के गाँवों का पानी अब ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। जल निगम की प्रयोगशाला की पेयजल के नमूनों की जांच करने वाले अनिल कुमार सक्सेना बताते हैं कि शुद्ध पेयजल के लिए जो भारतीय मानक संस्था द्वारा जो मानक तय किए गए हैं उसके मुताबिक पानी में फ़्लोराइड की मात्रा 1-5 मिग्रा प्रति लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
मगर जांच में यह तथ्य सामने आया है कि जसवंतनगर ब्लाक के ककरई गांव के पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा 3-2 मिग्रा, नगला रामताल में 2-9 मिग्रा, बीबामऊ में 2-9, चांदनपुर बीबाम, में फ्लोराइड की मात्रा 2-9 मिग्रा, लीटर पाई गई है। जबकि भर्थना ब्लाक के ग्राम कुनैठी में 1-9 मिग्रा, मेंढ़ी दुधी में 2-0 मिग्रा, खुजरिया में 2-2 मिग्रा तथा नगला कालू में 3-1 मिग्रा, लीटर एवं बराह में 2-8 मिग्रा फ्लोराइड की मात्रा पाई गई है। जल निगम द्वारा कराई गई पानी की जांच में यह भी सामने आया है कि इटावा जनपद के अन्य ब्लाकों में ताखा ब्लाक के ग्राम रौरा में 1-92, महेवा ब्लाक के अहेरीपुर में 1-8 मिग्रा फ्लोराइड की मात्रा पाई गई है। इसके साथ ही जसवंतनगर ब्लाक के ही ग्राम शाहजहांपुर में 1-6, दर्शनपुरा में 1-8, खनाबाग में 1-6, ताखा ब्लाक के ग्राम नगला ढकाऊ में 1-8 मिग्रा, नगला कले में 1-6, भर्थना ब्लाक के ग्राम हरनारायणपुर में फ्लोराइड की मात्रा 1-6 मिग्रा, लीटर पाई गई है जो निर्धारित मानकों से काफी अधिक है।
पानी के बारे में जानकारी रखने वाले जल परीक्षक अनिल कुमार सक्सेना बताते हैं कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक हो जाने से दांत कुरूप हो जाते हैं, टेढ़े मेढ़े हो जाते हैं इसके बाद शरीर में अपंगता के लक्षण आना शुरू होते हैं जो इंसान को अपंग बना देती है। पेट की नसें चढ़ जातीं हैं जिससे शरीर में पीड़ा का अहसास होता रहता है। उनके मुताबिक फ्लोराइड की मात्रा कम होने से दाँतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है परंतु जांच में अभी तक फ्लोराइड की कम मात्रा का मामला प्रकाश में नहीं आया है। जनपद के पेयजल का माध्यम बनने वाले हैंडपंपों का पानी जनपदवासियों के लिए किस कदर खतरनाक है कि तमाम स्थानों के पानी में कठोरता पाई गई है जिससे बालों की सौंदर्यता प्रभावित होती है और बालों के तमाम रोग उत्पन्न होते हैं। वहीं बढ़पुरा ब्लाक में जिस प्रकार से नाइट्रेट की मात्रा में अधिकता पाई गई है। जिसके कारण बच्चों में ब्लू बेरी का रोग होने लगता है जिसके कारण बच्चों का शरीर नीला पड़ जाता है और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत तक हो सकती है।
भर्थना ब्लाक के हथनौली एवं नगला छिदद गांव में जिस प्रकार से पीने के पानी में आयरन की अधिकता है उससे ग्रामीणों की पाचन प्रक्रिया पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है। यहां तक कि आयरन की बढ़ती मात्रा के कारण हैंडपंपों के पाइप तक गल जाते हैं। इस पानी को पीने के कारण इन गाँवों के लोग शारीरिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं। आयरन की अधिकता के कारण शरीर टेढ़ा मेढ़ा हो जाता है और कमर झुक जाती है। इतना ही नहीं आयरन की बढ़ती मात्रा से शरीर में लगातार पीड़ा होती रहती है।इटावा में फ्लोराइड की अधिकता वाले पानी को लेकर 2003 में उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव की सरकार में मंत्री रहे कांग्रेस नेता विनोद यादव ने विधानसभा में दूषित पानी को रखकर विधानसभा अध्यक्ष का ध्यान इस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया था तब जाकर इस पूरे प्रकरण पर जांच कराई गई थी लेकिन जांच रिपोर्ट को आजतक सार्वजनिक नहीं किया गया। एक बार फिर से फ्लोराइड की अधिकता वाले पानी की रिपोर्ट जल निगम की ओर से जारी की गई है जिससे पीड़ित इलाके में बेचैनी देखी जा रही है। रही बात स्वास्थ्य विभाग की तो वह यह बात तो मानते हैं कि फ्लोराइड की अधिकता से पानी दूषित हो रहा है लेकिन यह समस्या उनकी नजर में गंभीर नहीं क्योंकि देश के अन्य राज्य जैसे राजस्थान और कर्नाटक इलाकों में इससे कहीं अधिक फ्लोराइड की अधिकता वाला पानी पीकर लोग जीवनयापन कर रहे हैं।
इसे विडंबना ही कहा जायेगा है कि जिस गांव के पानी में फ्लोराइड की अधिकता की वजह से लोग पलायन को मजबूर हों, उस गांव का नाम पानी की टंकी बनाने वाली योजना में न हो। ग्रामीण इसे लेकर अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक गुहार लगा चुके हैं लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा। उधर, चयन किन मानकों पर किया गया है इसको लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।
विकासखंड ताखा में स्वजलधारा योजना के तहत कैबनिट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के निर्देश पर 15 गाँवों को चयनित किया गया है। इन सभी गाँवों में पानी की टंकियों का निर्माण कराया जाना है। पाइपलाइन के द्वारा ग्रामीणों को पानी की आपूर्ति की जाएगी। चयनित गाँवों में पुरैला, कदमपुर, नुनार, बराहार, नगला ढकाऊ आदि शामिल हैं। इन गाँवों में नुनार और बराहार गाँवों को यदि छोड़ दिया जाए तो किसी भी गांव में ऐसी समस्या नहीं है जहां पर पानी में खारापन हो। पायकलां गांव में पानी में अत्यधिक फ्लोराइड होने से जवानी में ही सैकड़ों लोगों की हड्डियां कमजोर हो चुकी है। कई परिवार तो ऐसे हैं जो इस कारण से पलायन कर चुके हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब विकास खंड ताखा के 15 गांव स्वजलधारा योजना में चयनित हुए तो उसमें पेयजल के विकट संकट से जूझ रहे पायकलां को क्यों छोड़ दिया गया। चयन के मानकों को लेकर ग्रामीणों में चर्चा उठने लगी है कि आखिरकार वह कौन सी वजह रही जो इस गांव को योजना से दूर रखा गया। गांव के प्रदीप यादव बताते हैं कि जब कैबनिट मंत्री शिवपाल सिंह यादव द्वारा ताखा क्षेत्र में पानी की समस्या को देखते हुए पानी की टंकियां बनवाने के निर्देश दिया गया था तो लोगों को पूरा विश्वास था कि उनके गांव को शामिल कर लिया जाएगा। गांव के युवा रवि यादव ने आरोप लगाया कि मानकों की अनदेखी की गई है।
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