साँसों में घुलता जहर


पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया के कारण होने वाली मौत का 50 फीसद पार्टिकुलेट पदार्थों के कारण होती है, जो उनके शरीर में प्रदूषित हवा के साँस लेने के कारण जाता है। निमोनिया और कई अन्य बीमारियों के अलावा पक्षाघात, फेफड़े का कैंसर, दमा और हृदय रोग वायु प्रदूषण के कारण होता है। शहरों में जो वायु प्रदूषण होता है, उसका बहुत बड़ा स्रोत वहाँ लगे प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखाने और मोटर वाहन होते हैं।

जरा इन आँकड़ों पर गौर कीजिए, दुनिया में 70 लाख लोग हर साल प्रदूषित वायु में साँस लेने के कारण मरते हैं। 2016 मेें घर के बाहर की हवा के प्रदूषित होने के कारण 42 लाख लोगों की मौत हुई; 38 लाख लोगों की मौत घर से निकले धुओं व प्रदूषणकारी तकनीकों के कारण हुई। वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में से 90 फीसद से अधिक निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोग होते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के ये नवीनतम आँकड़े कम-से-कम एक बात तो एकदम ही स्पष्ट करते हैं कि हमारी हवा बेहद जहरीली हो गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी भू-मध्य सागर के क्षेत्र और दक्षिण पूर्व एशिया की हवा सर्वाधिक जहरीली है।

डब्ल्यूएचओ की न्यूनतम निर्धारित सीमा की तुलना में इन क्षेत्रों में प्रदूषण 5 गुणा अधिक है। वायु प्रदूषण में घरों में होने वाले प्रदूषण का हिस्सा काफी बड़ा है। इस प्रदूषण का सर्वाधिक खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है।

दुनिया की अपेक्षाकृत अमीर बस्तियाँ जैसे यूरोप के अधिकांश हिस्से वायु प्रदूषण की इस मार से बच जाते हैं। आज भी दुनिया में तीन अरब लोग अपने घरों में केरोसिन या लकड़ी या गोबर या फिर कोयला का ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं हमारे गाँवों में खाना पकाने व अन्य कार्यों के लिये ईंधन के रूप में इन वस्तुओं का प्रयोग काफी ज्यादा धुआँ पैदा करता है।

घर के अन्दर तैयार होने वाली प्रदूषित वायु लोगों में कई तरह की बीमारियों को जन्म दे रही है, जिसकी वजह से उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। ईंधन इकट्ठा करने में ही काफी वक्त जाया होता है, जो कि अन्य उत्पादक कार्यों में लगाया जा सकता था। इस तरह यह पहले से कम आय वाले परिवारों की आय को और ज्यादा प्रभावित करता है।

पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया के कारण होने वाली मौत का 50 फीसद पार्टिकुलेट पदार्थों के कारण होती है, जो उनके शरीर में प्रदूषित हवा के साँस लेने के कारण जाते हैं। निमोनिया और कई अन्य बीमारियों के अलावा पक्षाघात, फेफड़े का कैंसर, दमा और हृदय रोग वायु प्रदूषण के कारण होता है। शहरों में जो वायु प्रदूषण होता है, उसका बहुत बड़ा स्रोत वहाँ लगे प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखाने और मोटर वाहन होते हैं।

डब्ल्यूएचओ के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 14 भारत के हैं। कानपुर इस तालिका में सबसे ऊपर है। तालिका में वाराणसी, लखनऊ और आगरा, बिहार के गया, पटना , मुजफ्फरपुर, हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गाँव और राजस्थान के जयपुर और जोधपुर शामिल हैं।

सूची में बहुत सारे शहर ऐसे हैं, जो औद्योगिक मानचित्र में कहीं नहीं हैं। तो फिर सवाल उठता है कि इनके ज्यादा प्रदूषित होने के क्या कारण हैं? इण्डियन एक्सप्रेस (3 मई 2018) में छपे एक विश्लेषण में इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने का प्रयास किया गया है। गया, पटना, मुजफ्फरपुर, कानपुर, वाराणसी और लखनऊ जैसे शहरों में पार्टिकुलेट पदार्थ 2.5 (पीएम 2.5) का सामान्य से काफी अधिक होना अचरज पैदा करता है।

अखबार ने जिन विशेषज्ञों से बात की है, उनका मानना है कि गांगेय घाटी का सम्पूर्ण क्षेत्र प्रदूषण के लिहाज से सर्वाधिक खतरनाक क्षेत्र बनकर उभर रहा है। इन विशेषज्ञों की मानें तो इस क्षेत्र का प्रदूषण उसका अपना नहीं है, बल्कि उत्तर पश्चिम से चलने वाली हवाओं के कारण है। साल में ज्यादा समय तक यही हवा बहती है।

उत्तर मेें हिमालय और दक्षिण में विंध्य पर्वत होने के कारण ये हवा गांगेय घाटी से बाहर नहीं निकल पाती है। पूरे क्षेत्र के जमीन से घिरे होने के कारण यह प्रदूषित हवा यही रहती है। फिर स्थानीय रूप से पैदा होने वाले धुआँ व अन्य स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण की स्थिति को और बिगाड़ देते हैं। पूर्वांचल का यही वह इलाका है जो आर्थिक रूप से बदहाल भी है और प्रदूषण की मार भी इसे ही झेलनी पड़ रही है। गरीब लोगों तक खाना पकाने वाली गैस की उपलब्धता को बढ़ाना धुएँ पर पाबन्दी का बेहतर उपाय है।

सरकार के दावों के बावजूद आज भी बड़े पैमाने पर ग्रामीण इलाकों के गरीब लोगों को यह नसीब नहीं हुआ है। ग्रामीण इलाकों में खाना पकाने वाली गैस की डिलीवरी नहीं होती और जब इस तरह की अनिश्चितता होती है, तो वे गैस के आसरे बैठे भी नहीं रह सकते। एक बड़ी समस्या गैस का महंगा होना भी है।

लिहाजा ग्रामीण अपने परम्परागत ईंधन की ओर ही लौट आते हैं। सरकार यह कह सकती है कि इस क्षेत्र से जहरीली हवा को यहाँ से नहीं निकालने के लिये वह कोई हवा तो नहीं चला सकती पर वह ऐसा तो जरूर कर सकती है ताकि लोग धुआँ उत्पादन करने वाले ईंधन के प्रयोग से बचें।


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Post By: RuralWater
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