उद्योगों द्वारा जो प्रदूषित पानी वाला कचरा इन नदियों में डाला जाता है वह पानी जमीन के नीचे से खींचा गया पेयजल होता है। अर्थात स्वच्छ पेयजल को निकालकर पहले तो उसे प्रदूषित किया जा रहा है तथा बाद में उससे नदियों को बर्बाद किया जा रहा है। ऐसा करने से उद्योगों के आस-पास के क्षेत्र के भूजल में भी लगातार गिरावट आती जा रही है। इन नदियों के सम्बन्ध में अगर यह कहा जाये कि इनके उद्गम स्थल अब बदल चुके हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिन नदियों को सभ्यताओं की जननी कहा जाता था, जो नदियाँ आस्थाओं का प्रतीक हुआ करती थीं व जो नदियाँ सदानीरा कहलाती थीं, आज उनकी दर्दनाक स्थिति से पूरा देश वाक़िफ़ है। जैसी गंगा को भगीरथ धरती पर लेकर आये थे आज गंगा वैसी नहीं रही है, गंगा मैली हो चुकी है। वर्ल्ड वाइल्ड फंड के शोध की मानें तो गंगा वर्ष 2035 तक लुप्त भी हो जाएगी।
इलाहाबाद में चल रहे कुम्भ मेले में साधुओं ने जब गंगा में प्रदूषण बढ़ने के कारण स्नान करने से मना कर दिया तो आनन-फानन में उसमें डलने वाले नालों पर अस्थाई बाँध बनाए गए हैं व कुछ उद्योगों को अस्थाई रूप से बन्द भी किया गया है। यमुना नदी का हाल आखिर किससे छिपा है। यमुना को सबसे अधिक प्रदूषित देश की राजधानी दिल्ली ही करती है। हालांकि दिल्ली में इसकी दूरी मात्र बाईस किलोमीटर ही है। लेकिन इस दूरी में ही यह नदी सर्वाधिक प्रदूषित होती है।
यमुना को प्रदूषित करने में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उद्योग भी घिनौनी भूमिका अदा करते हैं। हिण्डन नदी जोकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छः जनपदों के उद्योगों का गैर-शोधित कचरा लेकर बहती है और अन्त में यमुना में ही विलय हो जाती है।
गौरतलब है कि हिण्डन नदी सहारनपुर जनपद के ‘पुर का टाँका’ गाँव के निकट से निकलती है। अपने उद्गम स्थल से सहारनपुर, मुज़फ़्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद व गौतमबुद्धनगर जनपदों से होते हुए करीब 260 किलोमीटर की दूरी तय करके तिलवाड़ा गाँव के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। इस बीच इसमें दो मध्यम दूरी की नदियाँ काली (पश्चिम) व कृष्णी भी क्रमशः मेरठ जनपद के पिठलोकर व बागपत जनपद के ऐतिहासिक बरनावा गाँवों में आकर मिलती हैं।
उल्लेखनीय है कि ये दोनों नदियाँ भी सहारनपुर जनपद के ही दो विभिन्न गाँवों से निकलती हैं। कृष्णी नदी तो हिण्डन के पश्चिम की ओर से बहती हुई करीब 78 किलोमीटर की दूरी तय करती है जबकि काली (पश्चिम) नदी हिण्डन के पूर्व से बहते हुए करीब 75 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
पिछले एक दशक से हिण्डन व उसकी दोनों सहायक नदियाँ उद्योगों का गैर-शोधित तरल कचरा ढोने का साधन मात्र बनी हुई हैं। हिण्डन को हरनन्दी भी कहा जाता है, इसका वास्तविक स्रोत कतई सूख चुका है। फिलहाल इसका प्रारम्भ सहारनपुर के एक प्रसिद्ध पेपर मिल के गैर-शोधित कचरे से होता है।
हिण्डन नदी के उद्गम से लेकर इसके यमुना नदी में विलय होने तक एक संगठन के अध्ययन में चौंकाने वाले तथ्य निकल कर सामने आये हैं। नदी में बहने वाले पानी में लैड, क्रोमियम व केडमियम जैसे भारी तत्व भरपूर मात्रा में पाये गए हैं। यही नहीं इसमें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबन्धित किये जा चुके पॉप्स (परसिसटेंट ऑरगेनिक पाल्यूटेंटस) भी पाए गए हैं।
हिण्डन नदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छः जनपदों में मौजूद दर्जनों गन्ना मिलों, पेपर मिलों, कमेलों, छोटे उद्योगों व शहर तथा कस्बों के गैर-शोधित सीवेज़ को ढोती है। कुछ उद्योगों का गैर-शोधित कचरा इसमें सीधे गिरता है तो कुछ का कृष्णी व काली नदियों के माध्यम से इसमें आकर मिलता है। अब यह नदी न होकर प्रदूषित नाला बन चुकी है। हिण्डन में दो और छोटी नदियाँ पाँवधोई व धमोला भी सहारनपुर जनपद का सीवेज उड़ेल चुकी होती हैं।
इन दोनों नदियों को वर्तमान पीढ़ी नाला ही समझती है जबकि गाँवों के बुजुर्ग इन नदियों के नाला बन जाने पर मन-मसोस कर ही रह जाते हैं। धमोला के माध्यम से करीब 58000 किलो लीटर सीवेज प्रतिदिन हिण्डन नदी में आकर गिरता है। धमोला द्वारा जो तरल कचरा हिण्डन में डाला जाता है उसमें 1.79 मिलीग्राम/लीटर लैड, 4.15 मिलीग्राम/लीटर क्रोमियम व 0.017 मिलीग्राम/लीटर केडमियम की मात्रा मौजूद है। इसमें बी.एच.सी., हेप्टाक्लोर एपोक्साइड, फिपरोनिल व एल्ड्रिन जैसे कीटनाशक भी पाये गए हैं। गौरतलब है कि बी.एच.सी., हेप्टाक्लोर एपोक्साइड व एल्ड्रिन पॉप्स की श्रेणी के अन्तर्गत आने वाले कीटनाशक हैं।
काली (पश्चिम) नदी जोकि हिण्डन के पूर्व से धनकपुर गाँव के निकट से प्रारम्भ हो चुकी होती है। यह नदी सहारनपुर व मुजफ़्फरनगर जनपद से होती हुई मेरठ जनपद के गाँव पिठलोकर में आकर हिण्डन में मिल जाती है। इस बीच इसमें करीब पच्चीस पेपर मिलों, केमिकल प्लांटों, दर्जनों अन्य छोटे-बड़े उद्योगों, छोटे-बड़े कस्बों का सीवेज व कमेले का करीब 85 हजार किलोलीटर गैर-शोधित तरल कचरा रोज़ाना डाला जाता है।
यह नदी इस तमाम कचरे को ढोती हुई अन्त में पिठलोकर गाँव के निकट हिण्डन में उड़ेल देती है। यहाँ से आगे हिण्डन नदी में प्रदूषण का बोझा और अधिक बढ़ जाता है। इन दोनों नदियों के मिलन के पश्चात् हिण्डन के पानी में लैड 0.92 मिलीग्राम/लीटर व क्रोमियम 5.65 मिलीग्राम/लीटर पाया गया है। इसमें हेप्टाक्लोर एपोक्साइड व फिपरानिल जैसे कीटनाशक भी मौजूद हैं।
सहारनपुर जनपद में ही हिण्डन नदी के पश्चिम में कैरी गाँव के निकट से प्रारम्भ होने वाली कृष्णी नदी सर्वाधिक प्रदूषित नदी है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से ननौता कस्बे तक सूखी हुई है। ननौता में स्थित उत्तर प्रदेश सरकार का गन्ना मिल व उसकी आसवनी (डिस्टलरी) के गैर-शोधित कचरे से कृष्णी नदी का प्रारम्भ होता है। यह दुखद ही है कि जिस सरकार पर नदियों के प्रदूषण को रोकने की जिम्मेवारी है वही सरकार नदी को प्रदूषण का घर बना रही है।
यह नदी जैसे ही ननौता के कचरे को लेकर आगे बढ़ती है तो इसमें चरथावल, थानाभवन, सिक्का व शामली के उद्योगों का गैर-शोधित तरल कचरा व इनका सीवेज विभिन्न नालों के माध्यम से मिलता रहता है। कृष्णी नदी अन्त में अपना तमाम प्रदूषित कचरा महाभारतकालीन बरनावा गाँव के निकट हिण्डन नदी में डाल देती है। जब कृष्णी नदी हिण्डन में मिल चुकी होती है तो उसमें भारी तत्वों व कीटनाशकों की मात्रा और अधिक बढ़ जाती है। कृष्णी नदी के लिये दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नदी पर सल्फा, काबडोत, कुडाना, बनत, केडी, गोसगढ़ व धकोड़ी गाँवों में सात चेकडैम (छोटे बाँध) बनाए गए हैं।
इन बाँधों को बनाने के पीछे तर्क प्रस्तुत किया गया है कि ऐसा करने से आस-पास के क्षेत्र का भूजल स्तर तो बढ़ेगा ही साथ ही किसानों को सिंचाई के लिये पानी भी सुलभता से उपलब्ध होगा। अन्धे हो चुके सरकारी विभागों से यह पूछने वाला कोई नहीं है कि जिस पानी में हर रोज दो दर्जन छोटे-बड़े उद्योगों का करीब दस हजार किलोलीटर गैर-शोधित तरल कचरा डाला जाता हो उस पानी की गुणवत्ता कैसी होगी? इस पानी में 0.12 मिलीग्राम/लीटर लैड व 3.50 मिलीग्राम/लीटर क्रोमियम जैसे भारी तत्व मौजूद हैं, यही नहीं प्रतिबन्धित कीटनाशक हेप्टाक्लोर, हेप्टाक्लोर एपोक्साइड, एल्ड्रिन व बी.एच.सी. भी इस पानी में घुले हुए हैं। जब यह पानी भूजल में रिसेगा या किसान इससे अपनी फसलों की सिंचाई करेंगे तो क्या हालात होंगे?
बरनावा से मोहननगर तक के सफ़र में हिण्डन नदी में और भी दर्जनों छोटे-बड़े उद्योगों का गैर-शोधित कचरा मिलता है, इस बीच इसमें एक नहर के माध्यम से बालैनी के निकट साफ पानी भी डाला जाता है लेकिन वह भी इसकी गुणवत्ता में कोई खास अन्तर नहीं ला पाता है। मोहननगर के बैराज़ पर हिण्डन के बहाव को रोककर इसके प्रदूषित पानी को एक नहर के माध्यम से सत्ताईस द्वारों वाले कालिन्दी कुंज के बैराज (ओखला बैराज) से पहले यमुना में डाल दिया जाता है। मोहननगर हिण्डन बैराज से आगे नदी में बहुत कम मात्रा में पानी बचता है। इसमें प्रदूषण घोलता है वैशाली कॉलोनी का सीवेज।
यहाँ से आगे बढ़ने पर हिण्डन में इन्दिरापुरम सीवेज वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का नाला भी मिल जाता है। हिण्डन नदी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है तो उसमें छितारसी के बदरपुर प्लांट का कचरा, कुलेसरा, भंगेल, नोएडा व ग्रेटर नोएडा का सीवेज तथा गाजियाबाद व गौतमबुद्धनगर जनपदों में मौजूद तरल कचरा निकालने वाले उद्योगों का गैर-शोधित कचरा आकर मिलता रहता है। इन सब के कारण हिण्डन में प्रदूषण का स्तर एक बार पुनः बढ़ जाता है। इस स्थान पर भी हिण्डन में भारी तत्व व प्रतिबन्धित कीटनाशक अत्यधिक मात्रा में पाये गए हैं।
हिण्डन के यमुना में मिल जाने के पश्चात् जब यमुना नदी के पानी का परीक्षण किया गया तो उसमें लैड 1.12, क्रोमियम 6.78 व केडमियम 0.014 मिलीग्राम/लीटर पाये गए। यही नहीं इस स्थान पर बी.एच.सी. व हेप्टाक्लोर जैसे पॉप्स भी सर्वाधिक मात्रा में पाये गए। अध्ययन के दौरान की गई बॉयोमॉनिटिरिंग में हिण्डन व उसकी दोनों सहायक नदियों में किसी भी स्थान पर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मौजूद नहीं है। नदी में एक-दो स्थानों को छोड़कर कहीं पर भी जलीय सूक्ष्म जीव भी नहीं पाये गए हैं।
देश के एक जाने-माले औद्योगिक घराने ने पिछले दो वर्षों में ही हिण्डन के किनारे गगनोली, बुढ़ाना व किनौनी में तथा कृष्णी नदी के किनारे थानाभवन में चार गन्ना मिल स्थापित किये हैं। किनौनी में तो आसवनी भी लगाई गई है। इन चारों का गैर-शोधित तरल कचरा नालों के माध्यम से हिण्डन व कृष्णी नदियों में डाला जा रहा है।
सहारनपुर, मुजफ़्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाज़ियाबाद व गौतमबुद्धनर के प्रदूषण विभागों की मानें तो हिण्डन नदी में उद्योगों, कस्बों व शहरों का करीब 98 हज़ार किलोलीटर कचरा सीधे व करीब 95 हज़ार किलोलीटर कृष्णी व काली नदी (पश्चिम) के माध्यम से आकर हर रोज गिरता है। हिण्डन नदी प्रत्येक दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छः जनपदों के उद्योगों व शहरों का करीब एक लाख नब्बे हज़ार किलोलीटर गैर-शोधित तरल कचरा लेकर बहती है तथा इसे यमुना नदी में डाल देती है।
सर्वाधिक दुख यह सोचकर होता है कि उद्योगों द्वारा जो प्रदूषित पानी वाला कचरा इन नदियों में डाला जाता है वह पानी जमीन के नीचे से खींचा गया पेयजल होता है। अर्थात स्वच्छ पेयजल को निकालकर पहले तो उसे प्रदूषित किया जा रहा है तथा बाद में उससे नदियों को बर्बाद किया जा रहा है। ऐसा करने से उद्योगों के आस-पास के क्षेत्र के भूजल में भी लगातार गिरावट आती जा रही है। इन नदियों के सम्बन्ध में अगर यह कहा जाये कि इनके उद्गम स्थल अब बदल चुके हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि इन तीनों नदियों में से कोई भी अपने वास्तविक स्रोत से अब नहीं बहती है।
ऐसी स्थिति में यमुना को साफ करने की बात कहने वालों को पहले हिण्डन नदी की सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए। यही नहीं हिण्डन को साफ बनाए रखना है तो उससे भी पहले धमोला, कृष्णी व काली (पश्चिम) नदी के पानी को भी प्रदूषण मुक्त बनाना होगा। हिण्डन को भी यमुना एक्शन प्लान में पूरी तरह से शामिल करना होगा। यहाँ प्रदूषण विभाग पर निःसंदेह सन्देह किया जा सकता है। यह विभाग सफेद हाथी बन चुका है। विभाग के सभी अधिकारियों की नाक के नीचे ही नदियों को नाला बनाया जा रहा है, लेकिन अधिकारी न जाने क्यों अनजान बने हुए हैं।
ऐसी स्थितियों में दो ही सवाल मन मेें आते हैं कि या तो प्रदूषण विभाग के अधिकारी काबिल नहीं हैं या फिर घूसखोर हैं। नदियों को साफ करने का बीड़ा उठाने वाली सरकारों व गैर-सरकारी संगठनों को प्रदूषण विभाग की कार्य प्रणाली में भी बदलाव लाने होंगे। नदियों की सफाई में आम आदमी की भी अहम भूमिका है। नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की सकारात्मक भूमिका की प्रशंसा अवश्य करनी होगी, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकि है।
अन्त में एक अपील ही समाज के समस्त लोगों से की जा सकती है कि नदियाँ हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं व हमारा जीवन हैं, अतः चन्द कागज के टुकड़ों की खातिर इनसे खिलवाड़ न करें। एक तो नदियों में पहले ही पानी की कमी होती जा रही है दूसरे उसमें प्रदूषण का बढ़ना भविष्य के लिये खतरनाक संकेत है। इतिहास कहता है कि सभ्यताएँ नदियों के किनारे बसती थीं तथा विकसित होती थीं। लेकिन वर्तमान में ये सभ्यताएँ अपने चरम पर पहुँच कर मिटने के कगार पर हैं।
लेखक नीर फाउंडेशन से सम्बन्धित हैं।
इलाहाबाद में चल रहे कुम्भ मेले में साधुओं ने जब गंगा में प्रदूषण बढ़ने के कारण स्नान करने से मना कर दिया तो आनन-फानन में उसमें डलने वाले नालों पर अस्थाई बाँध बनाए गए हैं व कुछ उद्योगों को अस्थाई रूप से बन्द भी किया गया है। यमुना नदी का हाल आखिर किससे छिपा है। यमुना को सबसे अधिक प्रदूषित देश की राजधानी दिल्ली ही करती है। हालांकि दिल्ली में इसकी दूरी मात्र बाईस किलोमीटर ही है। लेकिन इस दूरी में ही यह नदी सर्वाधिक प्रदूषित होती है।
यमुना को प्रदूषित करने में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उद्योग भी घिनौनी भूमिका अदा करते हैं। हिण्डन नदी जोकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छः जनपदों के उद्योगों का गैर-शोधित कचरा लेकर बहती है और अन्त में यमुना में ही विलय हो जाती है।
गौरतलब है कि हिण्डन नदी सहारनपुर जनपद के ‘पुर का टाँका’ गाँव के निकट से निकलती है। अपने उद्गम स्थल से सहारनपुर, मुज़फ़्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद व गौतमबुद्धनगर जनपदों से होते हुए करीब 260 किलोमीटर की दूरी तय करके तिलवाड़ा गाँव के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। इस बीच इसमें दो मध्यम दूरी की नदियाँ काली (पश्चिम) व कृष्णी भी क्रमशः मेरठ जनपद के पिठलोकर व बागपत जनपद के ऐतिहासिक बरनावा गाँवों में आकर मिलती हैं।
उल्लेखनीय है कि ये दोनों नदियाँ भी सहारनपुर जनपद के ही दो विभिन्न गाँवों से निकलती हैं। कृष्णी नदी तो हिण्डन के पश्चिम की ओर से बहती हुई करीब 78 किलोमीटर की दूरी तय करती है जबकि काली (पश्चिम) नदी हिण्डन के पूर्व से बहते हुए करीब 75 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
पिछले एक दशक से हिण्डन व उसकी दोनों सहायक नदियाँ उद्योगों का गैर-शोधित तरल कचरा ढोने का साधन मात्र बनी हुई हैं। हिण्डन को हरनन्दी भी कहा जाता है, इसका वास्तविक स्रोत कतई सूख चुका है। फिलहाल इसका प्रारम्भ सहारनपुर के एक प्रसिद्ध पेपर मिल के गैर-शोधित कचरे से होता है।
हिण्डन नदी के उद्गम से लेकर इसके यमुना नदी में विलय होने तक एक संगठन के अध्ययन में चौंकाने वाले तथ्य निकल कर सामने आये हैं। नदी में बहने वाले पानी में लैड, क्रोमियम व केडमियम जैसे भारी तत्व भरपूर मात्रा में पाये गए हैं। यही नहीं इसमें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबन्धित किये जा चुके पॉप्स (परसिसटेंट ऑरगेनिक पाल्यूटेंटस) भी पाए गए हैं।
हिण्डन नदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छः जनपदों में मौजूद दर्जनों गन्ना मिलों, पेपर मिलों, कमेलों, छोटे उद्योगों व शहर तथा कस्बों के गैर-शोधित सीवेज़ को ढोती है। कुछ उद्योगों का गैर-शोधित कचरा इसमें सीधे गिरता है तो कुछ का कृष्णी व काली नदियों के माध्यम से इसमें आकर मिलता है। अब यह नदी न होकर प्रदूषित नाला बन चुकी है। हिण्डन में दो और छोटी नदियाँ पाँवधोई व धमोला भी सहारनपुर जनपद का सीवेज उड़ेल चुकी होती हैं।
इन दोनों नदियों को वर्तमान पीढ़ी नाला ही समझती है जबकि गाँवों के बुजुर्ग इन नदियों के नाला बन जाने पर मन-मसोस कर ही रह जाते हैं। धमोला के माध्यम से करीब 58000 किलो लीटर सीवेज प्रतिदिन हिण्डन नदी में आकर गिरता है। धमोला द्वारा जो तरल कचरा हिण्डन में डाला जाता है उसमें 1.79 मिलीग्राम/लीटर लैड, 4.15 मिलीग्राम/लीटर क्रोमियम व 0.017 मिलीग्राम/लीटर केडमियम की मात्रा मौजूद है। इसमें बी.एच.सी., हेप्टाक्लोर एपोक्साइड, फिपरोनिल व एल्ड्रिन जैसे कीटनाशक भी पाये गए हैं। गौरतलब है कि बी.एच.सी., हेप्टाक्लोर एपोक्साइड व एल्ड्रिन पॉप्स की श्रेणी के अन्तर्गत आने वाले कीटनाशक हैं।
काली (पश्चिम) नदी जोकि हिण्डन के पूर्व से धनकपुर गाँव के निकट से प्रारम्भ हो चुकी होती है। यह नदी सहारनपुर व मुजफ़्फरनगर जनपद से होती हुई मेरठ जनपद के गाँव पिठलोकर में आकर हिण्डन में मिल जाती है। इस बीच इसमें करीब पच्चीस पेपर मिलों, केमिकल प्लांटों, दर्जनों अन्य छोटे-बड़े उद्योगों, छोटे-बड़े कस्बों का सीवेज व कमेले का करीब 85 हजार किलोलीटर गैर-शोधित तरल कचरा रोज़ाना डाला जाता है।
यह नदी इस तमाम कचरे को ढोती हुई अन्त में पिठलोकर गाँव के निकट हिण्डन में उड़ेल देती है। यहाँ से आगे हिण्डन नदी में प्रदूषण का बोझा और अधिक बढ़ जाता है। इन दोनों नदियों के मिलन के पश्चात् हिण्डन के पानी में लैड 0.92 मिलीग्राम/लीटर व क्रोमियम 5.65 मिलीग्राम/लीटर पाया गया है। इसमें हेप्टाक्लोर एपोक्साइड व फिपरानिल जैसे कीटनाशक भी मौजूद हैं।
सहारनपुर जनपद में ही हिण्डन नदी के पश्चिम में कैरी गाँव के निकट से प्रारम्भ होने वाली कृष्णी नदी सर्वाधिक प्रदूषित नदी है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से ननौता कस्बे तक सूखी हुई है। ननौता में स्थित उत्तर प्रदेश सरकार का गन्ना मिल व उसकी आसवनी (डिस्टलरी) के गैर-शोधित कचरे से कृष्णी नदी का प्रारम्भ होता है। यह दुखद ही है कि जिस सरकार पर नदियों के प्रदूषण को रोकने की जिम्मेवारी है वही सरकार नदी को प्रदूषण का घर बना रही है।
यह नदी जैसे ही ननौता के कचरे को लेकर आगे बढ़ती है तो इसमें चरथावल, थानाभवन, सिक्का व शामली के उद्योगों का गैर-शोधित तरल कचरा व इनका सीवेज विभिन्न नालों के माध्यम से मिलता रहता है। कृष्णी नदी अन्त में अपना तमाम प्रदूषित कचरा महाभारतकालीन बरनावा गाँव के निकट हिण्डन नदी में डाल देती है। जब कृष्णी नदी हिण्डन में मिल चुकी होती है तो उसमें भारी तत्वों व कीटनाशकों की मात्रा और अधिक बढ़ जाती है। कृष्णी नदी के लिये दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नदी पर सल्फा, काबडोत, कुडाना, बनत, केडी, गोसगढ़ व धकोड़ी गाँवों में सात चेकडैम (छोटे बाँध) बनाए गए हैं।
इन बाँधों को बनाने के पीछे तर्क प्रस्तुत किया गया है कि ऐसा करने से आस-पास के क्षेत्र का भूजल स्तर तो बढ़ेगा ही साथ ही किसानों को सिंचाई के लिये पानी भी सुलभता से उपलब्ध होगा। अन्धे हो चुके सरकारी विभागों से यह पूछने वाला कोई नहीं है कि जिस पानी में हर रोज दो दर्जन छोटे-बड़े उद्योगों का करीब दस हजार किलोलीटर गैर-शोधित तरल कचरा डाला जाता हो उस पानी की गुणवत्ता कैसी होगी? इस पानी में 0.12 मिलीग्राम/लीटर लैड व 3.50 मिलीग्राम/लीटर क्रोमियम जैसे भारी तत्व मौजूद हैं, यही नहीं प्रतिबन्धित कीटनाशक हेप्टाक्लोर, हेप्टाक्लोर एपोक्साइड, एल्ड्रिन व बी.एच.सी. भी इस पानी में घुले हुए हैं। जब यह पानी भूजल में रिसेगा या किसान इससे अपनी फसलों की सिंचाई करेंगे तो क्या हालात होंगे?
बरनावा से मोहननगर तक के सफ़र में हिण्डन नदी में और भी दर्जनों छोटे-बड़े उद्योगों का गैर-शोधित कचरा मिलता है, इस बीच इसमें एक नहर के माध्यम से बालैनी के निकट साफ पानी भी डाला जाता है लेकिन वह भी इसकी गुणवत्ता में कोई खास अन्तर नहीं ला पाता है। मोहननगर के बैराज़ पर हिण्डन के बहाव को रोककर इसके प्रदूषित पानी को एक नहर के माध्यम से सत्ताईस द्वारों वाले कालिन्दी कुंज के बैराज (ओखला बैराज) से पहले यमुना में डाल दिया जाता है। मोहननगर हिण्डन बैराज से आगे नदी में बहुत कम मात्रा में पानी बचता है। इसमें प्रदूषण घोलता है वैशाली कॉलोनी का सीवेज।
यहाँ से आगे बढ़ने पर हिण्डन में इन्दिरापुरम सीवेज वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का नाला भी मिल जाता है। हिण्डन नदी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है तो उसमें छितारसी के बदरपुर प्लांट का कचरा, कुलेसरा, भंगेल, नोएडा व ग्रेटर नोएडा का सीवेज तथा गाजियाबाद व गौतमबुद्धनगर जनपदों में मौजूद तरल कचरा निकालने वाले उद्योगों का गैर-शोधित कचरा आकर मिलता रहता है। इन सब के कारण हिण्डन में प्रदूषण का स्तर एक बार पुनः बढ़ जाता है। इस स्थान पर भी हिण्डन में भारी तत्व व प्रतिबन्धित कीटनाशक अत्यधिक मात्रा में पाये गए हैं।
हिण्डन के यमुना में मिल जाने के पश्चात् जब यमुना नदी के पानी का परीक्षण किया गया तो उसमें लैड 1.12, क्रोमियम 6.78 व केडमियम 0.014 मिलीग्राम/लीटर पाये गए। यही नहीं इस स्थान पर बी.एच.सी. व हेप्टाक्लोर जैसे पॉप्स भी सर्वाधिक मात्रा में पाये गए। अध्ययन के दौरान की गई बॉयोमॉनिटिरिंग में हिण्डन व उसकी दोनों सहायक नदियों में किसी भी स्थान पर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मौजूद नहीं है। नदी में एक-दो स्थानों को छोड़कर कहीं पर भी जलीय सूक्ष्म जीव भी नहीं पाये गए हैं।
देश के एक जाने-माले औद्योगिक घराने ने पिछले दो वर्षों में ही हिण्डन के किनारे गगनोली, बुढ़ाना व किनौनी में तथा कृष्णी नदी के किनारे थानाभवन में चार गन्ना मिल स्थापित किये हैं। किनौनी में तो आसवनी भी लगाई गई है। इन चारों का गैर-शोधित तरल कचरा नालों के माध्यम से हिण्डन व कृष्णी नदियों में डाला जा रहा है।
सहारनपुर, मुजफ़्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाज़ियाबाद व गौतमबुद्धनर के प्रदूषण विभागों की मानें तो हिण्डन नदी में उद्योगों, कस्बों व शहरों का करीब 98 हज़ार किलोलीटर कचरा सीधे व करीब 95 हज़ार किलोलीटर कृष्णी व काली नदी (पश्चिम) के माध्यम से आकर हर रोज गिरता है। हिण्डन नदी प्रत्येक दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छः जनपदों के उद्योगों व शहरों का करीब एक लाख नब्बे हज़ार किलोलीटर गैर-शोधित तरल कचरा लेकर बहती है तथा इसे यमुना नदी में डाल देती है।
सर्वाधिक दुख यह सोचकर होता है कि उद्योगों द्वारा जो प्रदूषित पानी वाला कचरा इन नदियों में डाला जाता है वह पानी जमीन के नीचे से खींचा गया पेयजल होता है। अर्थात स्वच्छ पेयजल को निकालकर पहले तो उसे प्रदूषित किया जा रहा है तथा बाद में उससे नदियों को बर्बाद किया जा रहा है। ऐसा करने से उद्योगों के आस-पास के क्षेत्र के भूजल में भी लगातार गिरावट आती जा रही है। इन नदियों के सम्बन्ध में अगर यह कहा जाये कि इनके उद्गम स्थल अब बदल चुके हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि इन तीनों नदियों में से कोई भी अपने वास्तविक स्रोत से अब नहीं बहती है।
ऐसी स्थिति में यमुना को साफ करने की बात कहने वालों को पहले हिण्डन नदी की सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए। यही नहीं हिण्डन को साफ बनाए रखना है तो उससे भी पहले धमोला, कृष्णी व काली (पश्चिम) नदी के पानी को भी प्रदूषण मुक्त बनाना होगा। हिण्डन को भी यमुना एक्शन प्लान में पूरी तरह से शामिल करना होगा। यहाँ प्रदूषण विभाग पर निःसंदेह सन्देह किया जा सकता है। यह विभाग सफेद हाथी बन चुका है। विभाग के सभी अधिकारियों की नाक के नीचे ही नदियों को नाला बनाया जा रहा है, लेकिन अधिकारी न जाने क्यों अनजान बने हुए हैं।
ऐसी स्थितियों में दो ही सवाल मन मेें आते हैं कि या तो प्रदूषण विभाग के अधिकारी काबिल नहीं हैं या फिर घूसखोर हैं। नदियों को साफ करने का बीड़ा उठाने वाली सरकारों व गैर-सरकारी संगठनों को प्रदूषण विभाग की कार्य प्रणाली में भी बदलाव लाने होंगे। नदियों की सफाई में आम आदमी की भी अहम भूमिका है। नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की सकारात्मक भूमिका की प्रशंसा अवश्य करनी होगी, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकि है।
अन्त में एक अपील ही समाज के समस्त लोगों से की जा सकती है कि नदियाँ हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं व हमारा जीवन हैं, अतः चन्द कागज के टुकड़ों की खातिर इनसे खिलवाड़ न करें। एक तो नदियों में पहले ही पानी की कमी होती जा रही है दूसरे उसमें प्रदूषण का बढ़ना भविष्य के लिये खतरनाक संकेत है। इतिहास कहता है कि सभ्यताएँ नदियों के किनारे बसती थीं तथा विकसित होती थीं। लेकिन वर्तमान में ये सभ्यताएँ अपने चरम पर पहुँच कर मिटने के कगार पर हैं।
लेखक नीर फाउंडेशन से सम्बन्धित हैं।
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