गंगाभक्त, प्रोफेसर जी डी अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद) के आमरण अनशन को शुक्रवार को 100 दिन पूरे हो गए लेकिन वे अपने संकल्प पर अडिग हैं।
स्वामी सानंद 22 जून से अलकनंदा, मन्दाकिनी और नंदाकिनी आदि गंगा की सहायक नदियों पर निर्माणाधीन और प्रस्तावित सभी जलविद्युत परियोजनाओं को बन्द करने, 2012 के गंगा एक्ट को संसद द्वारा पास कराए जाने, हरिद्वार के कुम्भ क्षेत्र में सभी खनन गतिविधियों को बन्द करने के साथ ही गंगा भक्त परिषद के गठन की माँग को लेकर आमरण अनशन पर हैं। लेकिन सरकार द्वारा उनकी माँगों को पूरा करने की दिशा में अब तक कोई भी ठोस प्रयास नहीं किया गया है।
केन्द्रीय जल संसाधन एवं नदी विकास मंत्री नितिन गडकरी की तरफ से अब तक स्वामी सानंद के पास दो पत्र और विभागीय अफसरों की कुछ टीम भर भेजी गई है। नितिन गडकरी ने अपने पत्रों में नमामि गंगे योजना के तहत गंगा को प्रदूषण मुक्त किये जाने के लिये मंत्रालय द्वारा किये जा रहे प्रयासों का हवाला देते हुए उनसे अनशन तोड़ने की माँग की थी। पत्र में उन्होंने यह भी आश्वासन दिया था कि गंगा एक्ट को पास करने के लिये सरकार द्वारा पहल की जा रही है और जल्द ही इसके लिये कैबिनेट की बैठक आयोजित की जाएगी। लेकिन सरकार द्वारा इस सन्दर्भ में अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
इतना ही नहीं केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती भी स्वामी सानंद से मिलने अनशन स्थल, मातृसदन गई थीं। उन्होंने भी गंगा संरक्षण के लिये सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों का हवाला देते हुए स्वामी जी से अनशन त्याग देने का आग्रह किया था। इतना ही नहीं, मिली जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ता भी कुछ दिनों पहले अनशन तोड़ने के आग्रह को लेकर स्वामी सानंद से मिले थे इसके बावजूद भी सरकार ने उनकी माँगों पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है।
गौरतलब है कि प्रोफेसर जी डी अग्रवाल देश के सबसे प्रतिष्ठित पर्यावरणविदों में से एक हैं। इन्होंने कई वर्षों तक आईआईटी कानपुर में अध्यापन का कार्य किया है। ये केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सचिव भी रहे और गंगा के जीर्णोंद्धार और संरक्षण को लेकर बनाई गई कई सारी समितियों के सदस्य भी रहे। गंगा और उसकी सहायक नदियों पर ताबड़तोड़ बनाई जा रही जलविद्युत परियोजनाओं के ये प्रबल विरोधी हैं। इनका मानना है कि इन परियोजनाओं के लिये बनाए गए जलाशयों से गंगाजल में विद्यमान रोगनाशिनी शक्ति का ह्रास हो रहा है। इनका कहना है कि कई शोधों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि गंगाजल में रोगों का विनाश करने की अद्भुत क्षमता है और यदि समय रहते चेता नहीं गया तो आने वाली पीढ़ी इस विलक्षणता के लाभ से वंचित रह जाएगी।
अनशन की अवधि लम्बी हो जाने का नकारात्मक असर स्वामी सानंद के स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। उनके खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए हरिद्वार जिला प्रशासन द्वारा अब तक दो बार ऋषिकेश एम्स में दाखिल किया जा चुका है। हालांकि अस्पताल में इलाजरत रहने के दौरान भी उन्होंने किसी भी प्रकार की दवा लेने से इनकार कर दिया था। वे पिछले 110 दिनों से रोज केवल तीन बार नींबू-पानी और शहद ले रहे हैं। सरकार द्वारा उनकी माँगों पर अब तक कोई विचार नहीं किये जाने से व्यथित होकर उन्होंने 10 अक्टूबर से पानी भी त्याग देने का एलान किया है। मिली जानकारी के अनुसार अब तक उनके वजन में 20 किलोग्राम की गिरावट आई है। उनका वजन 64 किलोग्राम से घटकर 44 किलोग्राम हो गया है।
इतना ही नहीं उन्होंने प्राण त्यागने के बाद अपने शरीर को ऋषिकेश एम्स को दान दे देने का भी ऐलान किया है। इसके लिये सभी जरूरी प्रक्रियाएँ भी पूरी की जा चुकी हैं।
गंगाभक्त स्वामी सानंद द्वारा गंगा की अविरलता और निर्मलता को बचाने के लिये अब तक किया गया यह छठा अनशन है। इससे पूर्व वे पाँच बार (2008 में जून 13 से 30 तक, 2009 में जनवरी 14 से फरवरी 20 तक, 2010 में 20 जुलाई से 23 अगस्त तक, 2012 में 14 जनवरी से 16 अप्रैल तक और 2013 में 13 जून से 13 अक्टूबर तक) अनशन कर चुके हैं। इन्हीं के अनशन का परिणाम था कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने भैरोघाटी, पाला मनेरी और लोहारी नागपाला के प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था। इतना ही नहीं सरकार ने भागीरथी के 125 किलोमीटर ऊपरी क्षेत्र को परिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील हिस्सा घोषित कर दिया। ये सभी कदम चूँकि यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान लिये गए थे इसीलिये स्वामी सानंद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को गंगा और उससे जुड़े मसलों के प्रति ज्यादा संवेदनशील मानते हैं।
वर्तमान सरकार द्वारा गंगा की सफाई के लिये नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई है। इसके लिये केन्द्र सरकार ने 2015 में कुल 20,000 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी है। यह नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का हिस्सा है। गंगा को साफ करने के लिये अब तक की यह सबसे बड़ी बजटीय स्वीकृति है। राजीव गाँधी द्वारा 1985 में शुरू किये गए गंगा पुनरोद्धार कार्यक्रम के तहत वर्ष 2015 तक करीब 4000 करोड़ रुपए खर्च किये गए थे। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत कुल 285 योजनाओं को शामिल किया गया है जिन्हें पाँच वर्षों में पूरा किया जाना है। लेकिन अभी तक इस योजना का प्रभाव देखने को नहीं मिला है। नदी के प्रदूषण के स्तर अभी तक कोई गुणात्मक कमी नहीं आई है।
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