(1972 का अधिनियम संख्यांक 13)
{20 अप्रैल, 1972}
सामुद्रिक उत्पाद उद्योग के विकास के लिये संघ के नियंत्रणाधीन एक प्राधिकरण की स्थापना का तथा उससे सम्बन्धित विषयों का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम
भारत गणराज्य के तेईसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-
अध्याय 1
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1972 है।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे;
परन्तु इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिये भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी।
2. संघ द्वारा नियंत्रण की समीचीनता के सम्बन्ध में घोषणा
इसके द्वारा यह घोषित किया जाता है कि लोकहित में यह समीचीन है कि सामुद्रिक उत्पाद उद्योग को संघ अपने नियंत्रण में ले ले।
3. परिभाषाएँ
इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) “प्राधिकरण” से धारा 4 के अधीन स्थापित सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(ख) “अध्यक्ष” से प्राधिकरण का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(ग) “वाहन” के अन्तर्गत वाहक जलयान या यान भी है;
(घ) “व्यवहारी” से किसी भी सामुद्रिक उत्पाद का व्यवहारी अभिप्रेत है;
(ङ) “निदेशक” से धारा 7 के अधीन नियुक्त सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास निदेशक अभिप्रेत है;
(च) “निर्यात” और “आयात” से भूमि, समुद्र या वायु-मार्ग द्वारा, क्रमशः, भारत से बाहर ले जाना, या भारत में लाना, निदेशक अभिप्रेत है;
(छ) “मछली पकड़ने का जलयान” से ऐसा पोत या ऐसी नाव अभिप्रेत है जो नोदन के यांत्रिक साधनों से युक्त हो और जो, लाभ के लिये, समुद्र से मछलियाँ पकड़ने में अनन्य रूप से लगी हुई हो;
(ज) “सामुद्रिक उत्पाद” के अन्तर्गत सभी प्रकार के मीन उत्पाद जो वाणिज्यिक रूप से श्रिम्प, प्रान, लौब्स्टर, क्रैब, मछली, शंखमीन के नाम से ज्ञात हैं; और अन्य जलचर या पौधे या उनके भाग तथा कोई अन्य ऐसे उत्पाद भी हैं, जिन्हें प्राधिकरण, भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये सामुद्रिक उत्पाद घोषित करे;
(झ) “सदस्य” से प्राधिकरण का सदस्य अभिप्रेत है;
(ञ) मछली पकड़ने के किसी जलयान के सम्बन्ध में या सामुद्रिक उत्पादों के किसी प्रसंस्करण संयंत्र या भण्डारकरण परिसर के सम्बन्ध में या सामुद्रिक उत्पादों के परिवहन के लिये प्रयुक्त किसी वाहन के सम्बन्ध में “स्वामी” के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं:-
(1) स्वामी का कोई अभिकर्ता; तथा
(2) कोई बन्धकदार, पट्टेदार या अन्य व्यक्ति, जिसका मछली पकड़ने के जलयान, प्रसंस्करण संयंत्र, भण्डारकरण परिसर या वाहन पर वास्तविक कब्जा हो;
(ट) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ठ) सामुद्रिक उत्पादों के सम्बन्ध में, “प्रसंस्करण” के अन्तर्गत उक्त उत्पादों का परिरक्षण, जैसे कि डिब्बों में भरना, ठंडा करना, सुखाना, नमक लगाना, धूमन करना, छीलना या टुकड़े करना तथा प्रसंस्करण का कोई अन्य ऐसा ढंग भी है जिसे प्राधिकरण, भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
अध्याय 2
सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण
4. प्राधिकरण की स्थापना और उसका गठन
(1) उस तारीख से, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये एक प्राधिकरण स्थापित किया जाएगा जिसे सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण कहा जाएगा।
(2) प्राधिकरण शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला पूर्वोक्त नाम से एक निगमित निकाय होगा जिसे जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने तथा संविदा करने की शक्ति होगी और वह उक्त नाम से वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा।
(3) प्राधिकरण में निम्नलिखित सदस्य होंगे, अर्थात:-
(क) अध्यक्ष, जिसे केन्द्रीय सरकार नियुक्त करेगी;
(ख) सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास निदेशक; पदेन;
(ग) संसद के तीन सदस्य, जिनमें से दो लोकसभा द्वारा और एक राज्यसभा द्वारा निर्वाचित होंगे;
(घ) निम्नलिखित विषयों से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों में से प्रत्येक का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक-एक सदस्य जो कुल मिलाकर पाँच होंगे:-
(i) कृषि,
(ii) वित्त,
(iii) विदेश व्यापार,
(iv) उद्योग, तथा
(v) नौवहन और परिवहन;
(ङ) बीस से अनधिक उतनी संख्या में अन्य सदस्य जितनी केन्द्रीय सरकार समीचीन समझे, जिन्हें वह सरकार ऐसे व्यक्तियों में से, जो उसकी राय में निम्नलिखित का प्रतिनिधित्व करने में समर्थ हों, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियुक्त करेगी:-
(i) उन राज्यों या संघ राज्य क्षेत्रों की सरकारें जहाँ समुद्र तट हो;
(ii) मछली पकड़ने के जलयानों, सामुद्रिक उत्पादों के प्रसंस्करण-संयंत्रों, या भण्डारकरण परिसरों, तथा सामुद्रिक उत्पादों के परिवहन में प्रयुक्त वाहनों के स्वामियों के हित;
(iii) व्यवहारियों के हित;
(iv) सामुद्रिक उत्पाद उद्योग में नियोजित व्यक्तियों के हित;
(v) उक्त उद्योग से सम्बन्धित अनुसन्धानों में लगी हुई अनुसन्धान संस्थाओं में नियोजित व्यक्तियों के हित; तथा
(6) ऐसे अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों का वर्ग जिनका, केन्द्रीय सरकार की राय में, प्राधिकरण में प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
(4) उपधारा (3) के खण्ड (ङ) में विनिर्दिष्ट प्रत्येक प्रवर्ग में से सदस्यों के रूप में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्तियों की संख्या, उस उपधारा के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट सदस्य से भिन्न सदस्यों की पदावधि और सदस्यों में होने वाली रिक्तियों को भरने की रीति तथा सदस्यों द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया वह होगी जो विहित की जाये।
(5) जब केन्द्रीय सरकार के किसी अधिकारी को, जो प्राधिकरण का सदस्य न हो, उस सरकार द्वारा इस निमित्त प्रतिनियुक्त किया जाता है, तब उसे प्राधिकरण के अधिवेशनों में उपस्थित होने और उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा, किन्तु वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
(6) प्राधिकरण अपने सदस्यों में से एक उपाध्यक्ष निर्वाचित करेगा जो अध्यक्ष की ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा और ऐसे कृत्यों का पालन करेगा जो विहित किये जाएँ या जो अध्यक्ष द्वारा उसे प्रत्यायोजित किये जाएँ।
5. प्राधिकरण या उसकी समितियों के कार्यों या कार्यवाहियों का अविधिमान्य होना
प्राधिकरण का या धारा 8 के अधीन उसके द्वारा नियुक्त किसी समिति का कोई कार्य या कार्यवाही केवल निम्नलिखित के कारण अविधिमान्य नहीं हो जाएगी-
(क) प्राधिकरण या ऐसी समिति में कोई रिक्ति या उसके गठन में कोई त्रुटि; अथवा
(ख) प्राधिकरण के या ऐसी समिति के सदस्य के रूप में कार्य करने वाले किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि; अथवा
(ग) प्राधिकरण की या ऐसी समिति की प्रक्रिया में कोई ऐसी अनियमितता जिसका मामले के गुणागुण पर कोई प्रभाव न पड़ता हो।
6. अध्यक्ष का वेतन और भत्ते
अध्यक्ष ऐसे वेतन और भत्तों का तथा छुट्टी, पेंशन, भविष्य-निधि और अन्य विषयों की बाबत सेवा की ऐसी शर्तों का हकदार होगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर नियत की जाएँ।
7. प्राधिकरण के कार्यपालक अधिकारी तथा अन्य कर्मचारीवृन्द
(1) केन्द्रीय सरकार एक सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास निदेशक नियुक्त करेगी जो अध्यक्ष के अधीन ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो विहित किये जाएँ या अध्यक्ष द्वारा सौंपे जाएँ।
(2) केन्द्रीय सरकार प्राधिकरण के लिये एक सचिव नियुक्त करेगी जो अध्यक्ष के अधीन ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो विहित किये जाएँ या जो अध्यक्ष द्वारा उसे प्रत्यायोजित किये जाएँ।
(3) निदेशक और प्राधिकरण का सचिव ऐसे वेतन और भत्तों के हकदार होंगे और छुट्टी, पेंशन, भविष्य-निधि और अन्य विषयों की बाबत सेवा की ऐसी शर्तों के हकदार होंगे जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियत की जाएँ।
(4) प्राधिकरण, ऐसे नियंत्रण और निर्बन्धनों के अधीन रहते हुए जो विहित किये जाएँ, ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा जो उसके कृत्यों के दक्ष पालन के लिये आवश्यक हों और उन्हें ऐसे वेतन और भत्ते सन्दत्त करेगा जो वह समय-समय पर अवधारित करे।
(5) प्राधिकरण का अध्यक्ष, निदेशक, सचिव, और अन्य कर्मचारी केन्द्रीय सरकार की अनुज्ञा के बिना कोई ऐसा कार्य अपने हाथ में नहीं लेंगे जो इस अधिनियम के अधीन उनके कर्तव्यों से असम्बद्ध हो।
8. प्राधिकरण की समितियाँ
(1) प्राधिकरण ऐसी समितियाँ नियुक्त कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन उसके कर्तत्यों के दक्ष निर्वहन और कृत्यों के पालन के लिये आवश्यक हों।
(2) प्राधिकरण को यह शक्ति होगी कि वह ऐसे अन्य व्यक्तियों को, जो प्राधिकरण के सदस्य न हों, उतनी संख्या में, जितनी वह ठीक समझे, उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किसी समिति के सदस्यों के रूप में सहयोजित करे।
9. प्राधिकरण के कृत्य
(1) प्राधिकरण का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे उपायों द्वारा, जिन्हें वह ठीक समझे, केन्द्रीय सरकार के नियंत्रण के अधीन सामुद्रिक उत्पाद उद्योग के विकास की, निर्यात को विशेष रूप से दृष्टि में रखते हुए, अभिवृद्धि करे।
(2) उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उसमें निर्दिष्ट उपायों में निम्नलिखित के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा:-
(क) समुद्र तट से हटकर और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के कार्य का विकास और विनियमन तथा समुद्र तट से हटकर और गहरे समुद्र के मीनक्षेत्र के संरक्षण और प्रबन्ध के लिये उपाय करना;
(ख) मछली पकड़ने के जलयानों, सामुद्रिक उत्पादों के प्रसंस्करण-संयंत्रों या भण्डारकरण परिसरों और सामुद्रिक उत्पादों के परिवहन में प्रयुक्त वाहनों को रजिस्टर करना;
(ग) निर्यात के प्रयोजनार्थ सामुद्रिक उत्पादों के स्तर और विशिष्टियाँ नियत करना;
(घ) समुद्र तट से हटकर और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के काम में लगे जलयानों के स्वामियों को और सामुद्रिक उत्पादों के प्रसंस्करण-संयंत्रों या भण्डारकरण परिसरों तथा सामुद्रिक उत्पादों के परिवहन में प्रयुक्त वाहनों के स्वामियों को वित्तीय या अन्य सहायता देना, और ऐसी राहत तथा सहायकी स्कीमों के लिये, जो प्राधिकरण को सौंपी जाएँ, अभिकरण के रूप में कार्य करना;
(ङ) मछली पकड़ने के किसी जलयान, प्रसंस्करण-संयंत्र, भण्डारकरण परिसर, वाहन या अन्य ऐसे स्थान का, जहाँ सामुद्रिक उत्पाद रखे जाते हैं या उनकी देखभाल की जाती है, ऐसे उत्पादों की क्वालिटी सुनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ निरीक्षण करना;
(च) सामुद्रिक उत्पादों का निर्यात विनियमित करना;
(छ) सामुद्रिक उत्पादों के भारत के बाहर विपणन में सुधार करना;
(ज) सामुद्रिक उत्पादों के निर्यातकर्ताओं को, ऐसी फीसों के सन्दाय पर, जो विहित की जाएँ, रजिस्टर करना;
(झ) मछली पकड़ने या अन्य सामुद्रिक उत्पादों के निकालने के काम में लगे हुए व्यक्तियों, सामुद्रिक उत्पादों के प्रसंस्करण संयंत्रों या भण्डारकरण परिसरों तथा सामुद्रिक उत्पादों के परिवहन में प्रयुक्त वाहनों के स्वामियों, ऐसे उत्पादों के निर्यातकर्ताओं तथा अन्य ऐसे व्यक्तियों से, जो विहित किये जाएँ, सामुद्रिक उत्पाद उद्योग से सम्बन्धित किसी विषय पर आँकड़े एकत्र करना और इस प्रकार एकत्रित आँकड़ों को या उनके अंशों या उनसे उद्धरणों को, प्रकाशित करना;
(ञ) सामुद्रिक उत्पाद उद्योगों के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण देना;
(ट) अन्य ऐसे विषय जो विहित किये जाएँ।
(3) प्राधिकरण इस धारा के अधीन अपने कृत्यों का पालन ऐसे नियमों के अनुसार और उनके अधीन रहते हुए करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए जाएँ।
10. प्राधिकरण का विघटन
(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, तथा उसमें विनिर्दिष्ट कारणों से निदेश दे सकेगी कि प्राधिकरण का विघटन उस तारीख से और ऐसी अवधि के लिये हो जाएगा जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाये;
परन्तु केन्द्रीय सरकार, ऐसी कोई अधिसूचना जारी करने से पूर्व, प्राधिकरण को प्रस्थापित विघटन के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिये उचित अवसर देगी और प्राधिकरण के अभ्यावेदनों पर, यदि कोई हों विचार करेगी।
(2) जब प्राधिकरण उपधारा (1) के उपबन्धों के अधीन विघटित हो जाये तब,-
(क) सब सदस्य, इस बात के होते हुए भी कि उनकी पदावधि का अवसान नहीं हुआ है, विघटन की तारीख से ऐसे सदस्यों के रूप में अपने पद रिक्त कर देंगे;
(ख) विघटन की अवधि के दौरान प्राधिकरण की सभी शक्तियों का प्रयोग और सभी कर्तव्यों का पालन ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त किये जाएँ;
(ग) प्राधिकरण में निहित सब निधियाँ और सम्पत्ति, विघटन की अवधि के दौरान, केन्द्रीय सरकार में निहित हो जाएँगी; तथा
(घ) विघटन की अवधि का अवसान होते ही प्राधिकरण का पुनर्गठन इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार किया जाएगा।
अध्याय 3
रजिस्ट्रीकरण
11. मछली पकड़ने के जलयान, प्रसंस्करण-संयंत्र, आदि का रजिस्ट्रीकरण
(1) मछली पकड़ने के जलयान, सामुद्रिक उत्पादों के प्रसंस्करण-संयंत्र या भण्डारकरण परिसर या सामुद्रिक उत्पादों के परिवहन में प्रयुक्त वाहन का प्रत्येक स्वामी उस तारीख से, जिसको वह ऐसे मछली पकड़ने के जलयान, प्रसंस्करण-संयंत्र, भण्डारकरण परिसर, या वाहन का प्रथम बार स्वामी बना हो, एक मास के अवसान के पूर्व या इस धारा के प्रवृत्त होने की तारीख से तीन मास के अवसान के पूर्व, दोनों में से जो भी बाद की तारीख हो, अपने स्वामित्वाधीन मछली पकड़ने के ऐसे प्रत्येक जलयान, प्रसंस्करण-संयंत्र, भण्डारकरण परिसर या वाहन के इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये प्राधिकरण को आवेदन करेगा;
परन्तु प्राधिकरण, रजिस्ट्रीकरण के लिये समय-सीमा को पर्याप्त कारण से, उतनी अवधि के लिये बढ़ा सकेगा जितनी वह ठीक समझे।
(2) एक बार किया गया रजिस्ट्रीकरण तब तक प्रवृत्त बना रहेगा जब तक वह प्राधिकरण द्वारा रद्द न कर दिया जाये।
12. रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन, उसका रद्दकरण, उसके लिये सन्देय फीस और उससे सम्बन्धित अन्य विषय
धारा 11 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये तथा ऐसे रजिस्ट्रीकरण के रद्दकरण के लिये आवेदन का प्रारूप, ऐसे आवेदनों पर सन्देय फीस, ऐसे आवेदनों में सम्मिलित की जाने वाली विशिष्टियाँ, रजिस्ट्रीकरण करने और उसे रद्द करने में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया तथा प्राधिकरण द्वारा रखे जाने वाले रजिस्टर ऐसे होंगे जो विहित किये जाएँ।
13. स्वामियों द्वारा विवरणियों का दिया जाना
(1) धारा 11 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक स्वामी विहित समय पर और विहित रीति से प्राधिकरण को ऐसी विवरणियाँ देगा जो विहित की जाएँ।
(2) प्राधिकरण इस धारा के अधीन बनाई गई किसी विवरणी की शुद्धता को सत्यापित करने के लिये, मछली पकड़ने के किसी भी जलयान, प्रसंस्करण-संयंत्र, भण्डारकरण परिसर या वाहन का किसी भी समय निरीक्षण करने के लिये किसी सदस्य को या अपने अधिकारियों में से किसी को प्राधिकृत कर सकेगा।
अध्याय 4
वित्त, लेखा और लेखापरीक्षा
16. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान और उधार
केन्द्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त सम्यक विनियोग किये जाने के पश्चात प्राधिकरण को अनुदानों और उधारों के रूप में ऐसी धनराशियाँ दे सकेगी जो वह आवश्यक समझे।
17. निधि का गठन
(1) सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास निधि के नाम से एक निधि गठित की जाएगी जिसमें निम्नलिखित जमा किये जाएँगे:-
(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकरण को दिये गए उपकर के आगम;
(ख) इस अधिनियम के अधीन किये गए रजिस्ट्रीकरण या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन उद्ग्रहीत और संगृहीत सब फीसें;
(ग) कोई अन्य फीस, जो प्राधिकरण द्वारा इस अधिनियम की बाबत उद्ग्रहीत और संगृहीत की जाये;
(घ) कोई अनुदान या उधार, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये दिये जाएँ;
(ङ) कोई अनुदान या उधार जो किसी संस्था द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये दिये जाएँ; तथा
(च) वे सब राशियाँ जो धारा 9 में निर्दिष्ट उपायों को कार्यान्वित करने में प्राधिकरण द्वारा वसूल की जाएँ।
(2) निधि का उपयोग निम्नलिखित के लिये किया जाएगा-
(क) प्राधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन, भत्तों और अन्य पारिश्रमिक की पूर्ति;
(ख) प्राधिकरण के अन्य प्रशासनिक व्ययों की पूर्ति;
(ग) धारा 9 में निर्दिष्ट उपायों के खर्चों की पूर्ति; तथा
(घ) केन्द्रीय सरकार या किसी संस्था द्वारा दिये गए किन्हीं उधारों का प्रतिसन्दाय।
18. प्राधिकारी की उधार लेने की शक्तियाँ
ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए जो इस निमित्त बनाए जाएँ, प्राधिकरण को सामुद्रिक उत्पाद निर्यात विकास निधि या किसी अन्य आस्ति की प्रतिभूमि पर, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये, उधार लेने की शक्ति होगी।
19. लेखे और लेखापरीक्षा
(1) प्राधिकरण उचित लेखे और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा तथा एक वार्षिक लेखा विवरण, जिसके अन्तर्गत लाभ और हानि लेखा तथा तुलनपत्र भी हैं, ऐसे प्रारूप में तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से विहित किया जाये।
(2) प्राधिकरण के लेखाओं की परीक्षा भारत के नियंत्रक -महालेखा परीक्षक द्वारा ऐसे अन्तरालों पर की जाएगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ और ऐसी लेखापरीक्षा के सम्बन्ध में उपगत व्यय प्राधिकरण द्वारा नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को सन्देय होगा।
(3) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के तथा प्राधिकरण के लेखाओं की परीक्षा के सम्बन्ध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के ऐसी लेखापरीक्षा के सम्बन्ध में वे ही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे जो नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को सरकारी लेखाओं की परीक्षा के सम्बन्ध में होते हैं और विशिष्टतया उसे बहियाँ, लेखे, सम्बद्ध वाउचर तथा अन्य दस्तावेज और कागज पेश किये जाने की माँग करने और प्राधिकरण के कार्यालयों में से किसी का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।
(4) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथा प्रमाणित प्राधिकरण के लेखे तद्विषयक लेखापरीक्षा रिपोर्ट सहित केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष भेजे जाएँगे और वह सरकार उन्हें संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।
अध्याय 5
केन्द्रीय सरकार द्वारा नियंत्रण
20. सामुद्रिक उत्पादों के आयात और निर्यात को प्रतिषिद्ध करने या नियंत्रित करने की शक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, सामुद्रिक उत्पादों के आयात या निर्यात को, या तो साधारणतया या किन्हीं विनिर्दिष्ट वर्गों के मामलों में प्रतिषिद्ध, निर्बन्धित या अन्यथा नियंत्रित करने का उपबन्ध कर सकेगी।
(2) वे सब सामुद्रिक उत्पाद, जिनको उपधारा (1) के अधीन किया गया कोई आदेश लागू होता है, ऐसे माल समझे जाएँगे जिनका आयात या निर्यात सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52) की धारा 11 के अधीन प्रतिषिद्ध कर दिया गया है और उस अधिनियम के सब उपबन्ध तद्नुसार प्रभावी होंगे।
(3) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन किये गए किसी आदेश का उल्लंघन करेगा तो वह, किसी ऐसे अधिहरण या शास्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, जिससे वह उपधारा (2) द्वारा यथा लागू किये गए सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52) के उपबन्धों के अधीन दण्डनीय हो, कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा।
21. केन्द्रीय सरकार द्वारा निदेश
प्राधिकरण उन निदेशों का पालन करेगा जो उसे इस अधिनियम के दक्ष क्रियान्वयन के लिये केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर दिये जाएँ।
22. विवरणियाँ और रिपोर्टें
(1) प्राधिकरण केन्द्रीय सरकार को ऐसे समय पर और ऐसे प्रारूप में तथा ऐसी रीति से, जो विहित की जाये, या जैसा केन्द्रीय सरकार निदेश दे, ऐसी विवरणियाँ और कथन तथा सामुद्रिक उत्पाद उद्योग की अभिवृद्धि और विकास के लिये प्रतिस्थापित या विद्यमान कार्यक्रम के सम्बन्ध में ऐसी विशिष्टियाँ देगा जिनकी केन्द्रीय सरकार समय-समय पर अपेक्षा करे।
(2) उपधारा (1) के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, प्राधिकरण प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पश्चात यथासम्भव शीघ्र, केन्द्रीय सरकार को ऐसे प्रारूप में और ऐसी तारीख के पूर्व, जो विहित की जाये, एक रिपोर्ट देगा जिसमें पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलापों, नीति और कार्यक्रमों का पूर्ण ब्यौरा दिया जाएगा।
(3) उपधारा (2) के अधीन प्राप्त रिपोर्ट की एक प्रति संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी।
अध्याय 6
प्रकीर्ण
23. मिथ्या विवरणियाँ देने के लिये शास्ति
कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन कोई विवरणी दी जाने की अपेक्षा की जाने पर ऐसी विवरणी देने में असफल रहेगा या ऐसी विवरणी देगा जिसमें कोई ऐसी विशिष्टि है जो मिथ्या है और जिसके बारे में वह जानता है कि वह मिथ्या है या यह विश्वास नहीं कि वह सत्य है वह जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
24. प्राधिकरण के किसी सदस्य या अधिकारी के कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालने और बहियाँ और अभिलेख पेश करने में असफल रहने के लिये शास्तियाँ
कोई व्यक्ति-
(क) जो अध्यक्ष द्वारा लिखित रूप से प्राधिकृत किसी सदस्य को या प्राधिकरण द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत उसके किसी अन्य अधिकारी या कर्मचारी अथवा केन्द्रीय सरकार या प्राधिकरण द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति को इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में या उस पर अधिरोपित कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालेगा; अथवा
(ख) किसी लेखा-बही या अन्य अभिलेख को, जो उसके नियंत्रण या अभिरक्षा में हो, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन ऐसी अपेक्षा की जाने पर उस बही या अभिलेख को पेश करने में असफल रहेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा।
25. अन्य शास्तियाँ
जो कोई इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों का, उन उपबन्धों को छोड़कर जिनके उल्लंघन के लिये दण्ड का उपबन्ध धारा 20, 23 और 24 में किया गया है, उल्लंघन करेगा या उल्लंघन करने का प्रयत्न करेगा या उल्लंघन का दुष्प्रेरण करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा और उल्लंघन जारी रहने की दशा में अतिरिक्त जुर्माने से, जो प्रथम उल्लंघन के लिये दोषसिद्धि के पश्चात ऐसे प्रत्येक दिन के लिये, जिसके दौरान ऐसा उल्लंघन जारी रहता है, पचास रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
26. कम्पनियों द्वारा अपराध
(1) यदि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है तो प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किये जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिये उस कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कम्पनी भी ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएँगे और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने के भागी होंगे;
परन्तु इस धारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किये जाने का निवारण करने के लिये सब सम्यक तत्परता बरती थी।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है और यह साबित होता है कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहाँ ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और और दण्डित किये जाने का भागी होगा।
स्प्ष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये-
(क) “कम्पनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; तथा
(ख) फर्म के सम्बन्ध में “निदेशक” से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है।
27. न्यायालय की अधिकारिता
प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट से अवर कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा।
28. केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी
इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिये कोई अभियोजन केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं किया जाएगा।
29. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये संरक्षण
इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही सरकार के अथवा प्राधिकरण के या उसके द्वारा नियुक्त किसी समिति के अथवा प्राधिकरण के या ऐसी समिति के किसी सदस्य के अथवा सरकार के या प्राधिकरण के किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी के अथवा सरकार या प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी।
30. प्रत्यायोजन की शक्ति
केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचित आदेश द्वारा, निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा प्रयोक्तव्य (धारा 33 के अधीन नियम बनाने की शक्ति से भिन्न) कोई शक्ति, ऐसे मामलों में और ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, ऐसे अधिकारी या प्राधिकरण द्वारा भी, जो उसमें विनिर्दिष्ट किया जाये, प्रयोक्तव्य होगी।
31. अधिनियम के प्रवर्तन का निलम्बन
(1) यदि केन्द्रीय सरकार का समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं जिनके कारण यह आवश्यक हो गया है कि इस अधिनियम द्वारा अधिरोपित निर्बन्धनों में से कुछ निर्बन्धन अधिरोपित नहीं किये जाने चाहिए या वह ऐसा करना लोकहित में आवश्यक या समीचीन समझती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के सब या किन्हीं उपबन्धों को या तो अनिश्चित काल के लिये या ऐसी अवधि के लिये, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाये, निलम्बित कर सकेगी या एक विनिर्दिष्ट सीमा तक शिथिल कर सकेगी।
(2) जहाँ इस अधिनियम के किसी उपबन्ध का प्रवर्तन उपधारा (1) के अधीन अनिश्चित काल के लिये निलम्बित या शिथिल कर दिया गया है वहाँ ऐसा निलम्बन या शिथिलीकरण किसी भी समय, जबकि यह अधिनियम प्रवृत्त बना रहे, केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, हटाया जा सकेगा।
32. अन्य विधियों का लागू होना वर्जित नहीं
इस अधिनियम के उपबन्ध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अतिरिक्त होंगे न कि उनके अल्पीकरण में।
33. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये नियम बना सकेगी।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी विषयों या उनमें से किसी के लिये उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात:-
(क) धारा 4 की उपधारा (3) के खण्ड (ङ) में विनिर्दिष्ट प्रत्येक प्रवर्ग में से सदस्यों के रूप में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्तियों की संख्या, सदस्यों की पदावधि और सेवा की अन्य शर्तें, ऐसे सदस्यों में होने वाली रिक्तियों को भरने की रीति तथा उनके द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया;
(ख) वे परिस्थितियाँ जिनमें और वह प्राधिकरण जिसके द्वारा सदस्य को हटाया जा सकेगा;
(ग) प्राधिकरण के प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले अधिवेशनों की न्यूनतम संख्या;
(घ) प्राधिकरण के अधिवेशनों में कामकाज के संचालन के लिये अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया तथा सदस्यों की वह संख्या जिससे अधिवेशन की गणपूर्ति होगी;
(ङ) प्राधिकरण द्वारा किये गए कारबार के अभिलेखों का प्राधिकरण द्वारा रखा जाना तथा उनकी प्रतियों का केन्द्रीय सरकार को दिया जाना;
(च) व्यय उपगत करने के बारे में प्राधिकरण, उसके अध्यक्ष, निदेशक और प्राधिकरण की समितियों की शक्तियाँ;
(छ) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए प्राधिकरण भारत के बाहर व्यय उपगत कर सकेगा;
(ज) प्राधिकरण की आय और व्यय के बजट प्राक्कलन तैयार करना और वह प्राधिकारी जिसके द्वारा प्राक्कलन मंजूर किये जाने हैं;
(झ) वह प्रारूप जिसमें और वह रीति जिससे प्राधिकरण द्वारा लेखे रखे जाने चाहिए;
(ञ) प्राधिकरण की निधियों का बैंकों में जमा किया जाना और ऐसी निधियों का विनिधान;
(ट) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए प्राधिकरण उधार ले सकेगा;
(ठ) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए और वह रीति जिससे प्राधिकरण द्वारा या उसकी ओर से संविदाएँ की जा सकेंगी;
(ड) वे अतिरिक्त विषय जिनके बारे में प्राधिकरण अपने कृत्यों के निर्वहन के लिये उपाय कर सकेगा;
(ढ) धारा 10 की उपधारा (2) के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट व्यक्ति या व्यक्तियों को सन्देय पारिश्रमिक और अन्य भत्ते;
(ण) इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण को दी जाने वाली किन्हीं विवरणियों या रिपोर्टों के प्रारूप और उनमें दी जाने वाली विशिष्टियाँ;
(त) रजिस्ट्रीकरण के लिये और प्राधिकरण द्वारा उसके रद्द किये जाने के लिये आवेदनों का प्रारूप और आवेदन करने की रीति, ऐसे आवेदनों पर सन्देय फीस और रजिस्ट्रीकरण करने और उसे रद्द करने में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया तथा ऐसे रजिस्ट्रीकरण को लागू होने वाली शर्तें;
(थ) सामुद्रिक उत्पादों के बारे में किसी जानकारी या आँकड़ों का एकत्रित किया जाना;
(द) कोई अन्य विषय जो इस अधिनियम के अधीन नियमों द्वारा विहित या उपबन्धित किया जाना है या किया जा सकता है।
(3) इस धारा के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाते हैं तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाते हैं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
34. विनियम बनाने की शक्ति
(1) प्राधिकरण, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन में अपने को समर्थ बनाने के लिये, ऐसे विनियम बना सकेगा जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों से असंगत न हों।
(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियम निम्नलिखित सभी विषयों या उनमें से किसी के लिये उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात:-
(क) प्राधिकरण द्वारा नियुक्त समितियों के अधिवेशनों में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया तथा सदस्यों की वह संख्या जिनसे ऐसे अधिवेशनों की गणपूर्ति होगी;
(ख) इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण की शक्तियों और कर्तव्यों में से किन्हीं का प्राधिकरण के अध्यक्ष, सदस्य, निदेशक, सचिव या अन्य अधिकारियों को प्रत्यायोजन;
(ग) प्राधिकरण के और उसकी समितियों के सदस्यों के यात्रा भत्ते और अन्य भत्ते;
(घ) प्राधिकरण के अधिकारियों (जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारियों से भिन्न हों) और अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते तथा छुटी और सेवा की अन्य शर्तें;
(ङ) उसके लेखाओं को बनाए रखना;
(च) प्राधिकरण और उसकी विभिन्न समितियों के रजिस्टरों और अन्य अभिलेखों को बनाए रखना;
(छ) प्राधिकरण के कृत्यों में से किन्हीं का उसकी ओर से निर्वहन करने के लिये उसके द्वारा अभिकर्ताओं की नियुक्ति;
(ज) वे व्यक्ति जिनके द्वारा और वह रीति जिससे प्राधिकरण की ओर से सन्दाय, निक्षेप और विनिधान किये जा सकेंगे।
(3) प्राधिकरण द्वारा बनाया गया कोई विनियम तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक वह केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित न कर दिया जाये और राजपत्र में प्रकाशित न हो जाये तथा केन्द्रीय सरकार किसी विनियम की पुष्टि करते समय उसमें कोई ऐसा परिवर्तन कर सकेगी जो उसे आवश्यक प्रतीत हो।
(4) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी ऐसे विनियम को रद्द कर सकेगी जिसकी उसने पुष्टि की हो और तब वह विनियम प्रभावी नहीं रहेगा।
1{(5) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक विनियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।}
सन्दर्भ
1. 1 2006 के अधिनियम सं० 24 की धारा 2 और पहली अनुसूची द्वारा निरसित।
2. 1 1986 के अधिनियम सं० 4 की धारा 2 और अनुसूची द्वारा अन्तःस्थापित।
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