सामना करने में देश सक्षम

climate change
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भीषण जनसंख्या और पशुओं के दबाव के बावजूद भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहाँ वनों में वृद्धि हो रही है। भारत के वन नेट कार्बन में गिरावट का काम करते हैं। भारत के जीएचजी उत्सर्जन में 12 फीसद की गिरावट केवल एलयूएलयूसीएफ सेक्टर के चलते हैं।

भारत के राष्ट्रीय तयशुदा सहयोग (एनडीसी यानी नेशनली डिटरमिंड कॉन्ट्रिब्यूशन) को बेहद पवित्र तरीके से देखे जाने की जरूरत है। एनडीसी के 8 मात्रात्मक और गुणात्मक ढाँचे के भीतर बड़े स्तर पर विकास हासिल करने का लक्ष्य है। प्रति मात्रात्मक एनडीसी के हिसाब से भारत की योजना का लक्ष्य : 2005 के मुकाबले 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता को जीडीपी के 33-35 फीसद तक कम कर देना है और जीवाश्म मुक्त ऊर्जा स्रोतों से होने वाले कुल विद्युत उत्पादन में 2030 तक 40 फीसद की वृद्धि कर देना है। साथ ही, अतिरिक्त वन और पेड़ों के कवर के जरिए 2.5 से लेकर 3 बिलियन टन तक अतिरिक्त कार्बन को खत्म करना है। 2010 में प्रति व्यक्ति 1.397 मीट्रिक टन उत्सर्जन जो मात्रा में उस साल हुए कुल 1884.3 मिलियन टन उत्सर्जन के बराबर है और यह उस साल देश की 1657 डॉलर जीडीपी के सापेक्ष थी और कुल मिलाकर दुनिया के औसत का एक तिहाई है। इस लिहाज से भारत की महत्त्वाकांक्षा सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय दृष्टि से साफ-सुथरी होने के साथ पर्याप्त है। अन्तरराष्ट्रीय फलक पर भारत के एनडीसी की स्वीकारोक्ति की दर बहुत ऊँची है।

क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर और क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी जैसे पर्यावरणीय समूह जी-20 देशों के दूसरे देशों के मुकाबले भारत को बहुत ऊँचे स्थान पर रखे हुए हैं। भारत की एनडीसी 2 डिग्री पाथवे के साथ अपनी निरन्तरता बनाए हुए है और अगर कुछ और शर्तें पूरी की जा सकें तो इसके1.5 डिग्री तक आने की सम्भावना है। एनडीसी को हासिल करने में भारत की प्रगति भी बेहद असरदार रही है। 2010 के उत्सर्जन इस्टीमेट पर आधारित ग्रीनहाउस गैस खोजों पर भारत की पहली द्विवार्षिक अपडेट रिपोर्ट दिखाती है कि 2005 के मुकाबले 2010 में भारत के उत्सर्जन में जीडीपी के सापेक्ष 12 फीसद की दर से कमी आयी है। भारत अपनी मौजूदा रणनीति की गति को अगर निरन्तर बनाए रखता है तो बैलेंस को समय के भीतर हासिल कर लिया जाएगा। इसमें इंडस्ट्री, कॉमर्शियल बिल्डिंग और उपकरणों, अक्षय ऊर्जा के साथ ऊर्जा के संक्रमण के जरिए उसकी क्षमता को बढ़ाना और सकारात्मक रूप से पौधारोपण के कार्यक्रमों को जारी रखना शामिल है।

महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम

2010 में भारत का 71 फीसद उत्सर्जन ऊर्जा क्षेत्र से था। फिर भी संकेत ऐसे हैं कि ऊर्जा क्षमता में बढ़त की एक आक्रामक नीति भारत के ऊर्जा खपत की वृद्धि दर को स्थिर और निरन्तर बनाए रखेगी। अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता में 2012 से लेकर 2017 तक के काल में 13 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है जबकि इसी दौरान जी-20 देशों की औसत गिरावट 11 फीसद थी। ये उत्सर्जन की ऊर्जा-तीव्रता में एक तरह की बढ़त के बावजूद ऐसा हो रहा है। ऐसा ऊर्जा की पहुँच में बढ़ोत्तरी और बड़े पैमाने पर व्यावसायिक ऊर्जा के इस्तेमाल के चलते हो रहा है। (जबकि बायोमास आधारित ऊर्जा ग्रामीण इलाकों में है।) भारत के उद्योगों में उत्सर्जन की तीव्रता में गिरावट दर्ज की गयी है। ये दर 2010 से 2015 के बीच 9.8 फीसद थी जबकि इसी दौरान जी-20 देशों में ये 8.2 फीसद थी। इस क्षेत्र में लगातार प्रगति तकनीकी क्षेत्र में ईधनों की खोज समेत कई दूसरे उपायों पर निर्भर करता है।

दुनिया के सबसे महत्त्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम रखने वाले देशों में भारत एक है और ये विद्युत उत्पादन के लिये गैर जीवाश्म ईंधन आधारित 40 फीसद क्षमता के लक्ष्य को बहुत जल्द हासिल कर लेगा। जैसा कि अक्टूबर 2018 तक भारत पहले से ही 124 गीगावाट तक अक्षय ऊर्जा पैदा करने की क्षमता (बड़े और छोटे हाइड्रो, सोलर, नाभिकीय, वायु और बायो गैस से) हासिल कर चुका है। जो इसके अब तक स्थापित विद्युत उत्पादन की 346.05 गीगावाट क्षमता का 35.8 फीसद हो गया है।

2005 तक अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी जो 2.15 फीसद थी, वह 2018 में 20.8 फीसद तक बढ़ गयी है। सौर पीवी आधारित ऊर्जा उत्पादन की लागत कोयला आधारित पॉवर से बहुत कम हो गयी है। हालांकि ऊर्जा स्टोरेज के जरिए विद्युत बैलेंस की जरूरत को पूरा करने के लिये अक्षय ऊर्जा में परिवर्तन, अक्षय ऊर्जा को बड़े स्तर पर ग्रिड से जोड़ने के लिये इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण और ग्रिड ऑपरेशन का प्रबन्धन अभी भी कुछ समय के लिये बड़ी चुनौती बना हुआ है।

भारत के विद्युत ट्रांजिशन के रूप में स्टेशनरी स्टोरेज की तकनीकी और स्टोरेज आधारित एप्लीकेशन को विकसित करना मुख्य चालक तत्व होंगे। अगर भारत को गैर जीवाश्म ईंधन आधारित विद्युत लक्ष्यों को हासिल करने के साथ ही उन्हें बनाए रखना है तो अक्षय के साथ स्टोरेज एप्लीकेशन निश्चित तौर पर सस्ता होना चाहिए। और इसे 2020 के शुरू से मध्य तक उठाने के और लोड फॉलोइंग पावर के जरिए हासिल किया जा सकता है। ढाँचागत कारकों और उभरती तकनीकों के चलते परम्परागत र्थमल पॉवर सेक्टर में फँसी संपत्तियाँ उभर कर सामने आ रही हैं। छोटे अन्तराल में इसे ऊर्जा ट्रांजीशन की लागत के तौर पर देखा जा सकता है लेकिन लम्बे समय में इसे न केवल ट्रांजीशन बल्कि पूरी रणनीति के हिस्से के तौर पर सावधानीपूर्वक हल करना होगा।

भीषण जनसंख्या और पशुओं के दबाव के बावजूद भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहाँ वनों में वृद्धि हो रही है। भारत के वन नेट कार्बन में गिरावट का काम करते हैं। भारत के जीएचजी उत्सर्जन में 12 फीसद की गिरावट केवल एलयूएलयूसीएफ सेक्टर के चलते हैं। भारत ने आक्रामक पौधारोपण और वनों के बाहर ग्रीन कवर के जरिए अपने 21.54 फीसद वन के क्षेत्र को कुल भौगोलिक इलाके का 33 फीसद करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें 7 बिलियन टन के मौजूदा कार्बन स्टॉक में 2.5 से 3 बिलयन तक जोड़ने का लक्ष्य है।

19.50 मिलियन टन के हिसाब से सालाना बढ़ने वाला कार्बन स्टॉक 71.5 मिलियन टन के बराबर है। भारत का लक्ष्य इस शर्त के साथ हासिल किया जा सकता है कि स्वप्नशील और भागीदारी वाली नीतियाँ अपने स्थान पर हों। प्राथमिक प्राक्कलन बताते हैं कि एनडीसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये खुले वनों की बहाली पर्याप्त नहीं होगा। एनडीसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये टीओएफ के सम्बन्ध में कार्रवाई बहुत ज्यादा मददगार साबित होगी। टीओएफ के प्रमोशन में प्रमुख चुनौतियों में किसानों को बाजार का समर्थन, संचालन सम्बन्धी बाधाएँ और संस्थागत तंत्र शामिल हैं।

इलेक्ट्रिसिटी चार्जिंग स्टेशन

भारत ने राष्ट्रीय विद्युत मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 की घोषणा की है और 2015 से ही वह फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्यूफैक्चरिंग आफ इलेक्ट्रिक वेहिकल (एफएएमई) के लिये एक कार्यक्रम लागू कर रहा है। जिसका लक्ष्य मैन्यूफैक्चरिंग इकोसिस्टम और इलेक्ट्रिक एंड हाइब्रिड वेहिकल को जल्द से जल्द अपनाने पर है। मौजूदा समय में पूरा केन्द्रीकरण देश के पैमाने पर इलेक्ट्रिसिटी चार्जिंग स्टेशनों के लिये पर्याप्त ढाँचा निर्मित करने पर है। और इसे ईवी के जनता द्वारा हासिल करने के जरिये बड़े स्तर पर बढ़ाया जा सकता है।

क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के मुताबिक इस गैप को खत्म करने में भारत जी-20 देशों में सबसे आगे है। अगर दुनिया की सरकारों के दूसरे सभी लक्ष्य इस दायरे में रहें तो इसकी एनडीसी 2 डिग्री सेल्सियस से भी कम रहकर अगुवाई करेगी। इस तरह से इसकी एनडीसी पेरिस समझौते द्वारा तय किये गए 1.5 डिग्री सेल्सियस के बिल्कुल करीब पहुँच जाएगी। अप्रैल 2018 में नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान को जारी करने के साथ ही भारत अपने एनडीसी के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते पर आगे बढ़ चुका है और अगर भारत आगे नए कोल-आग वाले पॉवर प्लांटों को बन्द करने की योजना पर काम करता है तो ये वैश्विक जलवायु नेता बन सकता है। और फिर क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस की दर का दर्जा दे देंगे।

(लेखक सहायक निदेशक, टेरी हैं)

 

 

 

 

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