नई दिल्ली,5 फरवरी।
विश्व में जलवायु संकट से निपटने के लिए जवाबदेही और जिम्मेदारियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र की महासचिव बान की मून ने जहां जलवायु परिवर्तन के मामले में विकासशील देशों से और प्रयास करने पर जोर दिया वहीं विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी का मानना है कि इस मामले में विकसित देशों को बहानेबाजी से काम नहीं लेना चाहिए। उनका कहना था कि जलवायु संकट के लिए कोई बेलआउट नहीं है। वित्तीय संकट, अपनी वचनबद्धताओं से मुकरने के लिए विकसित देशों के लिए कोई बहाना नहीं होना चाहिए। दिल्ली सतत विकास शिखर बैठक में परिचर्चा सत्र में शामिल बान की मून ने कहा कि विकासशील देशों को औद्योगिक देशों के साथ मिलकर जलवायु संकट का हल तलाशना होगा।
उन्होंने कहा कि ब्राजील जैव ईंधन और वनीकरण नीतियों को लागू करने के मामले में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। चीन और भारत भी इस दिशा में कदम उठा रहे हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं। उन्हें और पहल करनी होगी। बान ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से निपटने की जिम्मेदारी साझी है। दुनिया के देशों को इस बहस मे शामिल नही होना चाहिए कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए कौन कितना ज्यादा या कम योगदान दे रहा है। बान को एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से सस्टेनेबल डेवलपमेंट लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित किया गया है। बान ने कहा कि हमें यह तर्क नहीं करना चाहिए कि कौन ज्यादा जिम्मेदार है और कौन कम। किसे ज्यादा करना चाहिए और किसे कम। दरअसल यह सामान्य और साझी जिम्मेदारी है।
कोपेनहेगन में होने वाले सम्मेलन के प्रति आशांवित बान ने कहा कि राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि हम कोपेनहेगन में समझौता कर सकते हैं। यह पूर्व बुश प्रशासन में संभव नहीं था ओबामा पहले ही घरेलू स्तर पर इस दिशा में कुछ कदम उठा चुके हैं। मुझे पूरा विश्वास है हम कोपेनहेगन में समझौते को अमली जामा पहना देंगे।
Tags- Global Warming in Hindi, Climate Change in Hindi, Kopenhegan, Obama, Moon, Energy Research Institute, Sustainable Development in Hindi, Fossil fuel in Hindi
विश्व में जलवायु संकट से निपटने के लिए जवाबदेही और जिम्मेदारियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र की महासचिव बान की मून ने जहां जलवायु परिवर्तन के मामले में विकासशील देशों से और प्रयास करने पर जोर दिया वहीं विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी का मानना है कि इस मामले में विकसित देशों को बहानेबाजी से काम नहीं लेना चाहिए। उनका कहना था कि जलवायु संकट के लिए कोई बेलआउट नहीं है। वित्तीय संकट, अपनी वचनबद्धताओं से मुकरने के लिए विकसित देशों के लिए कोई बहाना नहीं होना चाहिए। दिल्ली सतत विकास शिखर बैठक में परिचर्चा सत्र में शामिल बान की मून ने कहा कि विकासशील देशों को औद्योगिक देशों के साथ मिलकर जलवायु संकट का हल तलाशना होगा।
उन्होंने कहा कि ब्राजील जैव ईंधन और वनीकरण नीतियों को लागू करने के मामले में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। चीन और भारत भी इस दिशा में कदम उठा रहे हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं। उन्हें और पहल करनी होगी। बान ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से निपटने की जिम्मेदारी साझी है। दुनिया के देशों को इस बहस मे शामिल नही होना चाहिए कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए कौन कितना ज्यादा या कम योगदान दे रहा है। बान को एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से सस्टेनेबल डेवलपमेंट लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित किया गया है। बान ने कहा कि हमें यह तर्क नहीं करना चाहिए कि कौन ज्यादा जिम्मेदार है और कौन कम। किसे ज्यादा करना चाहिए और किसे कम। दरअसल यह सामान्य और साझी जिम्मेदारी है।
कोपेनहेगन में होने वाले सम्मेलन के प्रति आशांवित बान ने कहा कि राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि हम कोपेनहेगन में समझौता कर सकते हैं। यह पूर्व बुश प्रशासन में संभव नहीं था ओबामा पहले ही घरेलू स्तर पर इस दिशा में कुछ कदम उठा चुके हैं। मुझे पूरा विश्वास है हम कोपेनहेगन में समझौते को अमली जामा पहना देंगे।
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