सारांश
आज के समय में इंटरनेट ने सामाजिक संचार की एक अलग ही दुनिया खड़ी कर दी है और हमारा जीवन साइबर अर्थात इलेक्ट्रानिक प्रौद्योगिकी से अनछुआ नहीं है। आधुनिक इंटरनेट प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसी को परेशान या शर्मिंदा करने, धमकी देने, या किसी व्यक्ति को निशाना बनाने को साइबर बुलीइंग कहते हैं। सेलफोन, कंप्यूटर, टैबलेट तथा सामाजिक संचार उपकरण जैसे आधुनिक प्रौद्योगिकी इस सकारात्मक विचार के साथ बनाए गए थे कि इनके माध्यम से दोस्तों और परिवार से संपर्क में रहा जा सकता था, विद्यार्थी अपने विद्यालय से जुड़कर ज्ञानवर्धन कर सकते थे। परन्तु आज के समय में अफवाहें फैलाने, सामाजिक नेटवर्किंग साइटों पर अवांछित पोस्ट, शर्मनाक तस्वीरों, वीडियो तथा वेबसाइट द्वारा इनका दुरुपयोग हो रहा है। साइबर बुलीइंग युवा स्तर पर साइबर हरासमेंट कहलाता है। साइबर बुलीइंग किसी भी समय, किसी भी रूप में और जानबूझकर या अनजाने में हो सकती है। अब समय है जब अपने लिये युवाओं को एक सख्त कदम लेने की जरूरत है तथा साइबर आचार के बारे में जागरूकता फैलाकर स्टॉप साइबर बुलीइंग की ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।
Abstract : Now a days, the Internet has created a whole new world of Social communication for us and our Life is not untouched with “Cyber” i.c. the electronic technology. Cyberbullying is the use of modern internet technology to harass, threaten, embarrass, or target another person. The modern technologies like cell phone, computers, and tablets and social communication tools like social media sites, text messages, chat, and website were designed with the positive thought of their involvement in the activities like connecting people with friends and family, helping students with school, imparting education and for entertainment etc. But they are now a days used with a negative approach to spread rumours, undesired posts on social networking sites, posting of unwanted and embarrassing pictures, videos, websites or fake profiles Cyber bullying can be said as cyber harassment at the youth level. The cyber bullying is more traumatic since it is harsh, public and moreover anonymous where youth has incomplete, wrong or sometimes no information about nameless attackers. Cyber bullying can happen in various forms at any time of day and night and also intentionally or accidently. It is one of the most sensitive issued to be considered.
एक दशक पहले तक साइबर बुलीइंग शब्द अस्तित्व में नहीं था, फिर भी आज के समय में यह समस्या अपनिहार्य है। प्रौद्योगिकी के जरिये किसी को निरन्तर धमकी देने, परेशान तथा अपमानित किये जाने को साइबर बुलीइंग कहते हैं। साइबर बुलीइंग एक तरह का अपराध है जो बच्चों या फिर टीनेजर्स को टॉर्चर करने के लिये किया जाता है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो 20 प्रतिशत बच्चे साइबर बुलीइंग का शिकार होते हैं। इसके अलावा 79 प्रतिशत बच्चों को ऑनलाइन कई बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है जिससे उनके दिमाग पर नकारात्मक असर होता है। साइबर बुलीइंग शब्द साइबर और बुलीइंग शब्दों को मिलाकर के बना है। ये वे शब्द हैं जिनका सामना हर किसी ने अपने जीवन में कभी न कभी और कहीं न कहीं किया है। आज के समय में इटरनेट ने सामाजिक संचार की एक अलग ही दुनिया खड़ी कर दी है और हमारा जीवन साइबर अर्थात इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकी से अनछुआ नहीं है।
आज के भागदौड़ तथा प्रतिस्पर्धा भरे समय में हर कोई किसी भी कीमत पर सफल और सर्वश्रेष्ठ बनना चाहता है, जिसके लिये वो किसी को हानि तक पहुँचा सकता है अर्थात ‘‘बुलीइंग’’ तक कर सकता है। अतः आधुनिक इंटरनेट प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसी को परेशान या शर्मिंदा करने, धमकी देने, या किसी व्यक्ति को निशाना बनाने को साइबर बुलीइंग कहते हैं। सेल फोन, कंप्यूटर, टेबलेट तथा सामाजिक संचार उपकरण जैसे आधुनिक प्रौद्योगिकी इस सकारात्मक विचार के साथ बनाए गए थे कि इनके माध्यम से दोस्तों और परिवार से संपर्क में रहा जा सकता था, विद्यार्थी अपने विद्यालय से जुड़कर अपना ज्ञानवर्धन कर सकते थे। परन्तु आज के समय में अफवाहें फैलाने, सामाजिक नेटवर्किंग साइटों पर अवांछित पोस्ट, शर्मनाक तस्वीरों, वीडियो तथा वेबसाइट द्वारा इनका दुरुपयोग हो रहा है।
साइबर बुलीइंग युवा स्तर पर साइबर हरासमेंट कहलाता है, साइबर बुलीइंग किसी भी समय, किसी भी रूप में और जानबूझकर या अनजाने में हो सकती है। हाल के शोध यह बताते हैं कि करीब 4 में से 1 टीनएजर साइबर बुलीइंग का शिकार हुआ है और 6 में से 1 ने यह माना है कि उन्होंने किसी को साइबर बुली किया है। समस्याएँ तब पैदा होती हैं जब इस अनैतिक कृत्य के कारण पीड़ित को उस दुनिया में धकेल दिया जाता है जो कि अकेलेपन, डर तथा शर्मिंदगी से भरी है। 10 में से केवल 1 पीड़ित अपने माता-पिता अथवा किसी भरोसेमतंद वयस्क को इसके बारे में बताता है और परिणाम स्वरूप पीड़ित 2 से 9 बार खुदकुशी करने की सोचता है।
स्कूल के बच्चों की आपसी खींचतान उतनी बुरी नहीं है क्योंकि वहाँ चीजें कुछ देर में सामान्य हो जाती हैं। लेकिन जब बच्चे ऑनलाइन छींटाकशी करते हैं, तो वहाँ वे एक बड़े नेटवर्क में होते हैं। साइबर बुलीइंग ज्यादा खतरनाक इसलिये भी है क्योंकि सोशल मीडिया के कारण यह सार्वजनिक रूप से देखी जा सकती है। परिणाम स्वरूप पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आने लगता है। वह अपना बचाव करने में असमर्थ हो जाता है। वह नए लोगों से मिलने में कतराता है। अतः पीड़ित ख़ुदकुशी जैसा भयावह कदम उठाने पर मजबूर हो जाता है। ऐसी घटनाओं से कई बार निजी जिंदगी बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है और कुछ हादसों में लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है। साइबर बुलीइंग अनजाने में भी हो सकती है। संदेशों की अवैयक्तिक प्रकृति के कारण भेजने वाले का लहजा नहीं समझ आता है- किसी के द्वारा किया गया मजाक किसी को अपनी बेइज्जती लग सकती है। फिर भी बार-बार भेजे गए ईमेल, संदेशों तथा ऑनलाइन पोस्ट शायद ही अनजाने में भेजे जायें।
जानकारों के अनुसार साइबर बुलीइंग एक तरह का ऐसा बर्ताव है जो ऑनलाइन किया जाता है। इसमें झूठी अफवाहें, गंदी तस्वीरों के द्वारा बच्चों को टॉर्चर किया जाता है। कई बार ऑनलाइन गेम्स भी बच्चों पर साइबर बुलीइंग जैसा बर्ताव करते हैं। लेकिन साइबर बुलीइंग खतरनाक तब साबित होता है जब बच्चे इससे जुड़ी बातें अपने माता-पिता को नहीं बताते। आंकड़ों के अनुसार बच्चे रोज 6 से 7 घंटे सोशल नेटवर्किंग साइटों के अलावा दूसरी साइटों में बिताते हैं। 2013-2014 स्कूल क्राइम सप्लीमेंट (नेशनल सेंटर फॉर एजुकेशन स्टेटिस्टिक्स एंड ब्यूरो ऑफ जस्टिस स्टेटिस्टिक्स) यह इंगित करता है कि कक्षा 6-12 के 7 प्रतिशत छात्रों ने साइबर धमकी का अनुभव किया। 2013 युथ रिस्क बिहेवियर सर्विलैंस सर्वे के मुताबिक 15 प्रतिशत हाई स्कूल छात्र साइबर बुली हुए।
आज के समय में साइबर बुलीइंग जैसा अपराध अपना वर्चस्व जमाने में इसलिये भी कामयाब हो रहा है क्योंकि लोग अपनी दिनचर्या का ज्यादातर हिस्सा प्रौद्योगिकी को समर्पित कर रहे हैं जो कि उनको अपने करीबियों से जोड़े रखने में सहायक है। साइबर बुलिंग से निपटने के दो तरह के विकल्प हैं :
निजी स्तर पर-
1. अगर किसी फोरम पर कोई आपको तंग कर रहा है तो उस फोरम से निकल जाइए।
2. यदि आपको धमकी मिले तो इस पर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए।
3. अगर पुलिस एक्शन न ले तो सीधे वकील के जरिए केस दायर किया जा सकता है।
कानून की मदद से - सेक्शन 66 ए का क्लाज बी बुलिंग के लिये ठीक बैठता है, ये कानून इंटरनेट से जुड़े कानूनों का हिस्सा है, इनमें तीन साल तक की सजा होती है। यह कहना बहुत ही कठिन है कि माता-पिता को कब और कैसे हस्तक्षेप करना चाहिए। परंतु जिस तरह वे अपने बच्चों की असल जिन्दगी में शामिल रहते हैं, उसी प्रकार उनके साइबर जगत में भी साथ रह कर उनको साइबर बुलीइंग जैसे खतरों से बचा सकते हैं। सही ही कहा गया है- हमारा भविष्य हमारा वर्तमान पर निर्भर करता है। अतएव यही समय है जब अपने लिये युवाओं को एक सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है तथा साइबर आचार के बारे में जागरूकता फैलाकर स्टॉप साइबर बुलीइंग की ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है साथ ही साथ युवा ये प्रतिज्ञा लें कि : न किसी को साइबर बुली करें और न उसका शिकार हों।
संदर्भ
1. ब्राउन, टी. (दिसम्बर 5, 2010) साइबर बुलीइंग-बींग प्रोटेक्टिव, इन 21 सेंचुरी बुलीइंग ‘‘साइबर बुलीइंग’’ एण्ड द नीड फॉर टेक्निकल इंटरनेट सेफ्टी, रिट्रीव्ड फ्रॉम वेबमास्टर गू्रव्ज स्कूल।
2. गोमेज, एन. (दिसम्बर 8, 2010) साइबर बुलीइंग- द नेशन्स न्यून एपिडेमिक, रिट्रीव्ड फ्रॉम कन्वर्ज वेबसाइटः
http://www.convergemag.com/policy/cyberbullying-The-Nations-New-Epidemic-html
3. साइबर बुलीइंग (2010) रिट्रीव्ड फ्रॉम नेशनल क्राइम प्रिवेंशन काउंसिलः
http://www.nepc.org/topics/cyberbullying
शालिनी लाम्बा
अध्यक्ष, कम्प्यूटर विभाग, नेशनल पी.जी. कॉलेज, लखनऊ-226001, उ.प्र. भारत
shalinilamba22@gmail.com
श्वेता सिन्हा
असिस्टेन्ट प्रोफेसर, कम्प्यूटर विज्ञान विभाग, नेशनल पी.जी. कॉलेज, लखनऊ-226001, उ.प्र. भारत
shweta2005@yahoo.com
प्रनती त्रिपाठी
छात्रा बी.सी.ए., नेशनल पी.जी. कॉलेज, लखनऊ-226001, उ.प्र. भारत
pranatitripathi@gmail.com
प्राप्त तिथि-31.07.2016 स्वीकृत, तिथि-25.08.2016
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