समुद्र के गर्भ में अपार सम्पदा छिपी है। कहते हैं कि प्राचीनकाल में देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया था परिणामस्वरूप समुद्र के गर्भ से बेशुमान बहुमूल्य रत्न निकले। समुद्र-मंथन हुआ अथवा नहीं, कहना कठिन है किन्तु आधुनिक सागरीय अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ है कि समुद्र की गहराइयों में अनेक उपयोगी एवं मूल्यवान वस्तुएँ जैसे- खनिज पिण्ड, वनस्पतियाँ एवं जीव-जन्तु मौजूद हैं। कहते हैं समुद्रों में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और बड़ी-बड़ी नदियाँ भी हैं।
हमारे समुद्र ऊर्जा और खनिज पदार्थों के बड़े भंडार हैं। सागरीय ऊर्जा लहरों, धाराओं, लवण प्रवणता, उष्मा प्रवणता एवं ज्वार-भाटों के रूप में मौजूद रहती है। जाहिर है पृथ्वी का अधिकांश भाग समुद्र से घिरा है। सूर्य की तीन-चौथाई ऊर्जा समुद्रों को प्राप्त होती है। समुद्री वनस्पतियाँ इस ऊर्जा का प्रयोग कर प्रकाश-संश्लेषण द्वारा खाद्य पदार्थों का निर्माण करती हैं। बेशुमार किस्म की छोटी-बड़ी मछलियाँ तथा दूसरे जीव-जन्तु भी समुद्र की विभिन्न गहराइयों में मौजूद रहते हैं जो प्रोटीन, खनिज लवण और विटामिन के अच्छे स्रोत हैं। कहते हैं हिन्द महासागर से प्रतिवर्ष एक से दो करोड़ टन तक मछलियाँ निकाली जा सकती हैं। किन्तु विभिन्न कारणों से अभी तक महज 25-50 लाख टन मछलियाँ ही निकाली जा रही हैं। इन मछलियों के निर्यात से बहुमूल्य विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। ये मछलियाँ प्रोटीन का प्रमुख स्रोत हैं।
वस्तुतः समुद्र तेल और खनिज पदार्थों के अक्षय भंडार हैं। सम्पूर्ण विश्व में खपत होने वाले तेल का एक चौथाई हिस्सा समुद्रों से प्राप्त होता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक पचास प्रतिशत तक तेल हमें समुद्रों से प्राप्त होने लगेगा। भारतीय समुद्रों में भी तेल के विशाल भंडार मौजूद हैं। मुंबई और गुजरात के समुद्रों से तेल और गैस निकालने का कार्य आरम्भ हो गया है।
समुद्र तल पर धातु-पिण्डों के विशाल भंडार बिखरे पाए गए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये धातु-पिण्ड अरबों-खरबों टनों की मात्रा में समुद्र तल में मौजूद हैं। बहरहाल इनमें मैंगनीज, ताम्बा, निकल, जस्ता जैसे खनिज विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
समुद्र वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हिन्द महासागर के बीच में ऐसी बहुमूल्य धातुएँ तकरीबन एक लाख पचास हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हैं। भारत को इस क्षेत्र से कोई 30 लाख टन धातु-पिण्ड प्रति वर्ष मिलने की आशा है।
समुद्री लहरों से ऊर्जा प्राप्त करने के प्रयास जापान और नार्वे के साथ भारत में भी किए जा रहे हैं। इसमें दो मत नहीं कि समुद्रों से मिलने वाली बिजली सस्ती और सुविधाजनक होगी। ताजा वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि समुद्र न केवल तेल और खनिज पदार्थों के वरन औषधियों और अनेक रसायनों के भी विशाल भंडार के रूप में पृथ्वी पर मौजूद हैं। तात्पर्य यह है कि समुद्र के गर्भ में बेशुमार बहुमूल्य वस्तुएँ छिपी हैं।
अथाह जलराशि युक्त दुनिया भर के समुद्र आज प्रदूषण की चपेट में हैं सच तो यह है कि वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि-प्रदूषण की तरह समुद्र प्रदूषण की समस्या भी दिनोंदिन गम्भीर होती जा रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि तटवर्ती क्षेत्रों में तमाम किस्म का जहरीला छीजन और औद्योगिक मलबा समुद्र में गिराया जा रहा है। जाहिर है खाड़ी युद्ध के दौरान समुद्र में फैले लाखों लीटर पेट्रोल के कारण बेशुमार समुद्री जीव-जन्तु बेमौत मारे गए थे। तेलवाहक जहाजों के दुर्घटनाग्रस्त होने से बड़ी मात्रा में तेल समुद्र की सतह पर फैल जाता है जो समुद्री जीवों और वनस्पतियों के लिए सर्वथा हानिकारक होता है। अटलांटिक महासागर से चीन सागर तक सभी जगह समुद्र में भारी धातुओं और डी.डी.टी आदि रसायनों के विषैले भंवर बन गए हैं। इनमें फँसकर समुद्री जीव-जन्तु मौत के शिकार बन जाते हैं। इसी प्रकार हिन्द महासागर के तटीय क्षेत्रों में बसे 95 करोड़ लोगों की अंधी बस्तियों में मल-जल के निकास की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण सारा गंदा पानी समुद्र में छोड़ दिया जाता है। भूमध्य सागर संसार का सर्वाधिक प्रदूषित सागर माना जाता है। जाहिर है भूमध्य सागर के तट पर बसे 10 करोड़ लोग और प्रतिवर्ष यहाँ आने वाले 10 करोड़ से अधिक पर्यटकों के कारण भूमध्य सागर सर्वाधिक प्रदूषित सागर बन गया है। अरबों टन घरेलू गन्दगी नदियों के माध्यम से या सीधे भूमध्य सागर में बहा दी जाती है। इस प्रकार विश्व के लगभग सभी समुद्र कमोबेश प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं।
समुद्रों के बढ़ते प्रदूषण से विश्व के सभी देश चिन्तित हैं। सागर संरक्षण का मसला सर्वप्रथम जून, 1972 में स्टॉकहोम में सम्पन्न हुए 113 देशों के अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में उठाया गया था। इसके फलस्वरूप एक नई अन्तरराष्ट्रीय संस्था- ‘महासागर तथा तटवर्ती क्षेत्र कार्यक्रम केन्द्र’ यानि ‘ओकापाक’ का उदय हुआ। यह संस्था पूरे विश्व में सागर संरक्षण के लिए कटिबद्ध है। इस संस्था ने सर्वप्रथम सर्वाधिक प्रदूषित भूमध्य सागर की सफाई का अभियान आरम्भ किया। सभी तटवर्ती देश इस बात पर सहमत हो गए हैं कि पारे और संखिया जैसे प्राणघाती जहर समुद्र में न फेंके जाएँ। अब तो ‘ओकापाक’ की अनुमति से ही आवश्यकतानुसार खतरनाक और विषैले पदार्थ समुद्र तट से दूर गहराई में गिराए जा सकते हैं। डुबाने के पूर्व इन्हें ऐसा बना दिया जाता है कि ये सीधे पानी में मिलकर समुद्री जीवों को नुकसान न पहुँचा सकें।
तेलीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए ‘रीजनल ऑयल कंबेटिंग सेंटर’ नामक संस्था का निर्माण किया गया है। माल्टा के मैनोल द्वीप में स्थित इस संस्थान के दस्ते आग बुझाने वाली गाड़ियों की तरह तमाम साजो-सामान वाले जहाजों से लैस हैं। भूमध्य सागर में कहीं भी तेल फैल जाए तो आग बुझाने वाले संयन्त्र और तेल निगलने वाले उपकरण तुरन्त सक्रिय हो जाते हैं। संयुकत राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशंस एन्वायरमेंट प्रोग्राम) के अधीन पहली बार 17 देशों में 120 प्रयोगशालाएँ बनाई गई जो सागर प्रदूषण की गतिविधियों को दर्ज करती रहती हैं। यह भी पता चला है कि भूमध्य सागर में बहाया गया 85 प्रतिशत मल-जल अनुपचारित होता है। नतीजतन 14 भूमध्य-सागरीय देशों के एक-चौथाई समुद्र-तट स्नान करने योग्य नहीं रहे हैं समुद्री प्रदूषण के कारण अनेक समुद्री जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है क्योंकि प्रदूषित जल में समुद्री जीव बेचैनी महसूस करते हैं और उनका जीवन दूभर हो जाता है।
सागर-संरक्षण के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा। कैरीबियन सागर के 29 तटवर्ती देशों ने सागर की सफाई का संकल्प लिया है। निश्चय ही यह एक शुभ संकेत है। आज वैज्ञानिक समुद्री कछुओं, प्रवाल-शैलों, एवं दलदली जमीन में उगने वाली मैंग्रोव वनस्पतियों को बचाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं।
सागर संरक्षण की सबसे सुंदर मिसाल पेश की है फ्रांस ने, जहाँ समुद्रतट पर 43 निगरानी केन्द्र बनाए गए हैं। सागर की स्वच्छता के लिए 2400 लाख डालर की धनराशि भी इकट्ठी की गई है। फ्रांस में सागर संवेदना को जगाने का श्रेय कमांडर कोस्तू को है जिन्होंने दुनियाभर में सागर अभियान का श्रीगणेश किया। उन्होंने सागर की गहराईयों में पल रहे समुद्री जीव-जन्तुओं के प्रति जन-चेतना जागृत की है किन्तु कई मुद्दों पर आज भी अन्तरराष्ट्रीय विवाद जारी है। परमाणु कचरे को समुद्र में डुबाने का मामला ऐसा ही है। अमेरिका और जापान परमाणु कचरे को जलरोधी पेटियों में बंद कर तटवर्ती क्षेत्रों से दूर समुद्र में डुबाने के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि यह कचरा समुद्र तल में अनंतकाल तक निरापद पड़ा रहेगा। किन्तु पर्यावरणविद इनसे होने वाले सम्भावित प्रदूषण से चिन्तित हैं। बहरहाल हमारे बहतर कल के लिए यह लाजिमी है कि समुद्र प्रदूषण-मुक्त हों और समुद्री जीव-जन्तु और उपयोगी समुद्री वनस्पतियाँ प्रदूषण की चपेट में न आएँ।
भारत का राष्ट्रीय महासागर विज्ञान संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी) भारतीय समुद्रों पर पैनी नजर रखता है। वैसे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में तेल-मार्ग होने के कारण जगह-जगह तेल फैला है। तात्पर्य यह है कि दूसरे समुद्रों की तरह हमारे महासागर भी तेलाक्रांत हैं। समुद्री जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों और खनिज पदार्थों से हमारा गहरा सरोकार है। अतः समुद्र को प्रदूषण-मुक्त रखना अत्यन्त आवश्यक है। इसी में समाज, राष्ट्र और विश्व का कल्याण निहित है।
(लेखक के.एस.आर. कालेज, सरायरंजन, समस्तीपुर के जंतु विज्ञान विभाग में अध्यक्ष हैं।)
हमारे समुद्र ऊर्जा और खनिज पदार्थों के बड़े भंडार हैं। सागरीय ऊर्जा लहरों, धाराओं, लवण प्रवणता, उष्मा प्रवणता एवं ज्वार-भाटों के रूप में मौजूद रहती है। जाहिर है पृथ्वी का अधिकांश भाग समुद्र से घिरा है। सूर्य की तीन-चौथाई ऊर्जा समुद्रों को प्राप्त होती है। समुद्री वनस्पतियाँ इस ऊर्जा का प्रयोग कर प्रकाश-संश्लेषण द्वारा खाद्य पदार्थों का निर्माण करती हैं। बेशुमार किस्म की छोटी-बड़ी मछलियाँ तथा दूसरे जीव-जन्तु भी समुद्र की विभिन्न गहराइयों में मौजूद रहते हैं जो प्रोटीन, खनिज लवण और विटामिन के अच्छे स्रोत हैं। कहते हैं हिन्द महासागर से प्रतिवर्ष एक से दो करोड़ टन तक मछलियाँ निकाली जा सकती हैं। किन्तु विभिन्न कारणों से अभी तक महज 25-50 लाख टन मछलियाँ ही निकाली जा रही हैं। इन मछलियों के निर्यात से बहुमूल्य विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। ये मछलियाँ प्रोटीन का प्रमुख स्रोत हैं।
तेल और खनिज भंडार
वस्तुतः समुद्र तेल और खनिज पदार्थों के अक्षय भंडार हैं। सम्पूर्ण विश्व में खपत होने वाले तेल का एक चौथाई हिस्सा समुद्रों से प्राप्त होता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक पचास प्रतिशत तक तेल हमें समुद्रों से प्राप्त होने लगेगा। भारतीय समुद्रों में भी तेल के विशाल भंडार मौजूद हैं। मुंबई और गुजरात के समुद्रों से तेल और गैस निकालने का कार्य आरम्भ हो गया है।
समुद्र तल पर धातु-पिण्डों के विशाल भंडार बिखरे पाए गए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये धातु-पिण्ड अरबों-खरबों टनों की मात्रा में समुद्र तल में मौजूद हैं। बहरहाल इनमें मैंगनीज, ताम्बा, निकल, जस्ता जैसे खनिज विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
समुद्र वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हिन्द महासागर के बीच में ऐसी बहुमूल्य धातुएँ तकरीबन एक लाख पचास हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हैं। भारत को इस क्षेत्र से कोई 30 लाख टन धातु-पिण्ड प्रति वर्ष मिलने की आशा है।
समुद्री लहरों से ऊर्जा प्राप्त करने के प्रयास जापान और नार्वे के साथ भारत में भी किए जा रहे हैं। इसमें दो मत नहीं कि समुद्रों से मिलने वाली बिजली सस्ती और सुविधाजनक होगी। ताजा वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि समुद्र न केवल तेल और खनिज पदार्थों के वरन औषधियों और अनेक रसायनों के भी विशाल भंडार के रूप में पृथ्वी पर मौजूद हैं। तात्पर्य यह है कि समुद्र के गर्भ में बेशुमार बहुमूल्य वस्तुएँ छिपी हैं।
प्रदूषण की चपेट में समुद्र
अथाह जलराशि युक्त दुनिया भर के समुद्र आज प्रदूषण की चपेट में हैं सच तो यह है कि वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि-प्रदूषण की तरह समुद्र प्रदूषण की समस्या भी दिनोंदिन गम्भीर होती जा रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि तटवर्ती क्षेत्रों में तमाम किस्म का जहरीला छीजन और औद्योगिक मलबा समुद्र में गिराया जा रहा है। जाहिर है खाड़ी युद्ध के दौरान समुद्र में फैले लाखों लीटर पेट्रोल के कारण बेशुमार समुद्री जीव-जन्तु बेमौत मारे गए थे। तेलवाहक जहाजों के दुर्घटनाग्रस्त होने से बड़ी मात्रा में तेल समुद्र की सतह पर फैल जाता है जो समुद्री जीवों और वनस्पतियों के लिए सर्वथा हानिकारक होता है। अटलांटिक महासागर से चीन सागर तक सभी जगह समुद्र में भारी धातुओं और डी.डी.टी आदि रसायनों के विषैले भंवर बन गए हैं। इनमें फँसकर समुद्री जीव-जन्तु मौत के शिकार बन जाते हैं। इसी प्रकार हिन्द महासागर के तटीय क्षेत्रों में बसे 95 करोड़ लोगों की अंधी बस्तियों में मल-जल के निकास की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण सारा गंदा पानी समुद्र में छोड़ दिया जाता है। भूमध्य सागर संसार का सर्वाधिक प्रदूषित सागर माना जाता है। जाहिर है भूमध्य सागर के तट पर बसे 10 करोड़ लोग और प्रतिवर्ष यहाँ आने वाले 10 करोड़ से अधिक पर्यटकों के कारण भूमध्य सागर सर्वाधिक प्रदूषित सागर बन गया है। अरबों टन घरेलू गन्दगी नदियों के माध्यम से या सीधे भूमध्य सागर में बहा दी जाती है। इस प्रकार विश्व के लगभग सभी समुद्र कमोबेश प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं।
सागर-संरक्षण के प्रयास
समुद्रों के बढ़ते प्रदूषण से विश्व के सभी देश चिन्तित हैं। सागर संरक्षण का मसला सर्वप्रथम जून, 1972 में स्टॉकहोम में सम्पन्न हुए 113 देशों के अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में उठाया गया था। इसके फलस्वरूप एक नई अन्तरराष्ट्रीय संस्था- ‘महासागर तथा तटवर्ती क्षेत्र कार्यक्रम केन्द्र’ यानि ‘ओकापाक’ का उदय हुआ। यह संस्था पूरे विश्व में सागर संरक्षण के लिए कटिबद्ध है। इस संस्था ने सर्वप्रथम सर्वाधिक प्रदूषित भूमध्य सागर की सफाई का अभियान आरम्भ किया। सभी तटवर्ती देश इस बात पर सहमत हो गए हैं कि पारे और संखिया जैसे प्राणघाती जहर समुद्र में न फेंके जाएँ। अब तो ‘ओकापाक’ की अनुमति से ही आवश्यकतानुसार खतरनाक और विषैले पदार्थ समुद्र तट से दूर गहराई में गिराए जा सकते हैं। डुबाने के पूर्व इन्हें ऐसा बना दिया जाता है कि ये सीधे पानी में मिलकर समुद्री जीवों को नुकसान न पहुँचा सकें।
तेलीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए ‘रीजनल ऑयल कंबेटिंग सेंटर’ नामक संस्था का निर्माण किया गया है। माल्टा के मैनोल द्वीप में स्थित इस संस्थान के दस्ते आग बुझाने वाली गाड़ियों की तरह तमाम साजो-सामान वाले जहाजों से लैस हैं। भूमध्य सागर में कहीं भी तेल फैल जाए तो आग बुझाने वाले संयन्त्र और तेल निगलने वाले उपकरण तुरन्त सक्रिय हो जाते हैं। संयुकत राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशंस एन्वायरमेंट प्रोग्राम) के अधीन पहली बार 17 देशों में 120 प्रयोगशालाएँ बनाई गई जो सागर प्रदूषण की गतिविधियों को दर्ज करती रहती हैं। यह भी पता चला है कि भूमध्य सागर में बहाया गया 85 प्रतिशत मल-जल अनुपचारित होता है। नतीजतन 14 भूमध्य-सागरीय देशों के एक-चौथाई समुद्र-तट स्नान करने योग्य नहीं रहे हैं समुद्री प्रदूषण के कारण अनेक समुद्री जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है क्योंकि प्रदूषित जल में समुद्री जीव बेचैनी महसूस करते हैं और उनका जीवन दूभर हो जाता है।
सागर-संरक्षण के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा। कैरीबियन सागर के 29 तटवर्ती देशों ने सागर की सफाई का संकल्प लिया है। निश्चय ही यह एक शुभ संकेत है। आज वैज्ञानिक समुद्री कछुओं, प्रवाल-शैलों, एवं दलदली जमीन में उगने वाली मैंग्रोव वनस्पतियों को बचाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं।
सागर संरक्षण की सबसे सुंदर मिसाल पेश की है फ्रांस ने, जहाँ समुद्रतट पर 43 निगरानी केन्द्र बनाए गए हैं। सागर की स्वच्छता के लिए 2400 लाख डालर की धनराशि भी इकट्ठी की गई है। फ्रांस में सागर संवेदना को जगाने का श्रेय कमांडर कोस्तू को है जिन्होंने दुनियाभर में सागर अभियान का श्रीगणेश किया। उन्होंने सागर की गहराईयों में पल रहे समुद्री जीव-जन्तुओं के प्रति जन-चेतना जागृत की है किन्तु कई मुद्दों पर आज भी अन्तरराष्ट्रीय विवाद जारी है। परमाणु कचरे को समुद्र में डुबाने का मामला ऐसा ही है। अमेरिका और जापान परमाणु कचरे को जलरोधी पेटियों में बंद कर तटवर्ती क्षेत्रों से दूर समुद्र में डुबाने के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि यह कचरा समुद्र तल में अनंतकाल तक निरापद पड़ा रहेगा। किन्तु पर्यावरणविद इनसे होने वाले सम्भावित प्रदूषण से चिन्तित हैं। बहरहाल हमारे बहतर कल के लिए यह लाजिमी है कि समुद्र प्रदूषण-मुक्त हों और समुद्री जीव-जन्तु और उपयोगी समुद्री वनस्पतियाँ प्रदूषण की चपेट में न आएँ।
भारत का राष्ट्रीय महासागर विज्ञान संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी) भारतीय समुद्रों पर पैनी नजर रखता है। वैसे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में तेल-मार्ग होने के कारण जगह-जगह तेल फैला है। तात्पर्य यह है कि दूसरे समुद्रों की तरह हमारे महासागर भी तेलाक्रांत हैं। समुद्री जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों और खनिज पदार्थों से हमारा गहरा सरोकार है। अतः समुद्र को प्रदूषण-मुक्त रखना अत्यन्त आवश्यक है। इसी में समाज, राष्ट्र और विश्व का कल्याण निहित है।
(लेखक के.एस.आर. कालेज, सरायरंजन, समस्तीपुर के जंतु विज्ञान विभाग में अध्यक्ष हैं।)
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