पानी के इन गुणों के फलस्वरूप जल और थल समीरों का जन्म होता है तथा तट के निकट के स्थानों के रात और दिन के तापों में अधिक अंतर नहीं हो पाता। दिन के समय थल सागर की अपेक्षा अधिक गरम हो जाता है। उसके ऊपर की वायु भी जल्दी गर्म होकर ऊपर उठने लगती है। इसे वहां वायु का दबाव कम हो जाता है। उस समय सागर के ताप के अपेक्षाकृत कम होने के कारण वहां वायु का दबाव अपेक्षाकृत अधिक होता है और वायु के अधिक दबाव वाले क्षेत्र से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर बहने के गुण के फलस्वरूप वह सागर से थल की ओर बहने लगती। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि पानी की ऊष्माधारिता अपेक्षाकृत बहुत अधिक है। इसका अर्थ हुआ कि पानी और किसी अन्य वस्तु, उदाहरणार्थ रेल, पत्थर आदि की समान मात्राएं लेकर उन्हें एक समान ताप गरम करें तो पानी को अधिक उष्मा की जरूरत होगी। इसका यह अर्थ भी हुआ कि पानी अपेक्षाकृत अधिक ‘ऊष्मा’ धारण कर सकता है। इसीलिए सागर की बड़ी-बड़ी जलधाराएं बहुत बड़ी मात्रा में ऊष्मा का विनिमय करती है। वे ऊष्मा की विशाल मात्राओं को दूर-दूर तक ले जाती है। उदाहरण के तौर पर गल्फ स्ट्रीम को ही लीजिए। यह उष्णकटिबंध से ऊष्मा की विशाल मात्रा ब्रिटेन और उत्तरी सागर तक ले जाती है। इसलिए सर्दी के दिनों में उत्तरी सागर नहीं जमता और ब्रिटेन की जलवायु भी काफी सुखद रही आती है, जबकि उन्हीं अक्षांशों में स्थित बाल्टिक सागर जम जाता है और जर्मनी में कड़ाके की ठंड पड़ती है।
पानी की उच्च ऊष्माधारिता के कारण ही वह थल की अपेक्षा देर में गरम और देर में ठंडा होता है। इस घटा में पानी का एक और गुण भी सहायक होता है। पानी पर पड़ने वाली सौर ऊर्जा उसकी ऊपर की सतह में सांद्रित न रहकर काफी दूर तक विपरित हो जाती हैं। इसके विपरीत थल पर पड़ने वाली सौर ऊर्जा उसकी कुछ सेंमी. मोटी तह में ही रह जाती है।
पानी के इन गुणों के फलस्वरूप जल और थल समीरों का जन्म होता है तथा तट के निकट के स्थानों के रात और दिन के तापों में अधिक अंतर नहीं हो पाता। दिन के समय थल सागर की अपेक्षा अधिक गरम हो जाता है। उसके ऊपर की वायु भी जल्दी गर्म होकर ऊपर उठने लगती है। इसे वहां वायु का दबाव कम हो जाता है। उस समय सागर के ताप के अपेक्षाकृत कम होने के कारण वहां वायु का दबाव अपेक्षाकृत अधिक होता है और वायु के अधिक दबाव वाले क्षेत्र से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर बहने के गुण के फलस्वरूप वह सागर से थल की ओर बहने लगती है। वह ठंडे जल पर से आती है, इसलिए उसका ताप भी कम होता है। इससे थल का ताप भी कम होने लगता है। यह जल समीर होती है।
रात में क्रिया विपरीत दिशा में होती है। उस समय सागर की अपेक्षा थल अधिक ठंडा होता है। इसलिए वायु थल से सागर की ओर बहती है। इससे थल का ताप इतना कम नहीं हो पाता, जितना अन्यथा हो जाता है।
गर्मी और ठंडी की ऋतुओं में भी ये क्रियाएं होती है। इसीलिए तट के निकट स्थित शहरों की जलवायु रात और दिन में ही नहीं, गर्मी और सर्दी में भी सम रहती है। किसी भी स्थान की जलवायु का अनुमान लगाने से पहले सागर से उसकी दूरी को अवश्य ध्यान में रखा जाता है।
पानी की उच्च ऊष्माधारिता के कारण ही वह थल की अपेक्षा देर में गरम और देर में ठंडा होता है। इस घटा में पानी का एक और गुण भी सहायक होता है। पानी पर पड़ने वाली सौर ऊर्जा उसकी ऊपर की सतह में सांद्रित न रहकर काफी दूर तक विपरित हो जाती हैं। इसके विपरीत थल पर पड़ने वाली सौर ऊर्जा उसकी कुछ सेंमी. मोटी तह में ही रह जाती है।
पानी के इन गुणों के फलस्वरूप जल और थल समीरों का जन्म होता है तथा तट के निकट के स्थानों के रात और दिन के तापों में अधिक अंतर नहीं हो पाता। दिन के समय थल सागर की अपेक्षा अधिक गरम हो जाता है। उसके ऊपर की वायु भी जल्दी गर्म होकर ऊपर उठने लगती है। इसे वहां वायु का दबाव कम हो जाता है। उस समय सागर के ताप के अपेक्षाकृत कम होने के कारण वहां वायु का दबाव अपेक्षाकृत अधिक होता है और वायु के अधिक दबाव वाले क्षेत्र से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर बहने के गुण के फलस्वरूप वह सागर से थल की ओर बहने लगती है। वह ठंडे जल पर से आती है, इसलिए उसका ताप भी कम होता है। इससे थल का ताप भी कम होने लगता है। यह जल समीर होती है।
रात में क्रिया विपरीत दिशा में होती है। उस समय सागर की अपेक्षा थल अधिक ठंडा होता है। इसलिए वायु थल से सागर की ओर बहती है। इससे थल का ताप इतना कम नहीं हो पाता, जितना अन्यथा हो जाता है।
गर्मी और ठंडी की ऋतुओं में भी ये क्रियाएं होती है। इसीलिए तट के निकट स्थित शहरों की जलवायु रात और दिन में ही नहीं, गर्मी और सर्दी में भी सम रहती है। किसी भी स्थान की जलवायु का अनुमान लगाने से पहले सागर से उसकी दूरी को अवश्य ध्यान में रखा जाता है।
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