राजस्थान के ग्रामीण विद्यालय बेयरफूट कॉलेज का एक अनुभव
'बेस्ट प्रेक्टिसिज इन वाटर मैनेजमैंट- केस स्टडीज फ्रॉम रूरल इण्डिया-2005 जर्मन एग्रो एक्शन- 2005
2003 में जलसंसाधन मंत्रालय ने देश में 13 राज्यों में 20 ग्रामीण 'कम्यूनिटि बेस्ट ऑर्गेनाइजेशन' के माध्यम से 100 ग्रामीण विद्यालयों में वर्षा जल संचयन के लिए एक प्रमुख परियोजना की अनुमति दी। परियोजना का उद्देश्य वर्षाजल को विद्यालय के भवन की छत से भूमिगत 'वाटर टैंकों' में एकत्रित करके पीने और सफाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध कराना था। बेयरफूट कॉलेज, तिलोनिया ने एक बहुत ही सरल और सस्ती पारम्परिक तकनीक को अपनाया है जो ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालय के बच्चों के लिए पेयजल के स्थायी स्रोत के रूप में काम कर रही है।
छतों पर वर्षा जल संचयन करना एक ऐसी सरल-सस्ती तकनीक है जो भारत के मरूस्थलों में हजारों सालों से अपनाई जा रही है। पिछले 20-25 सालों से बेयरफूट कॉलेज 15 राज्यों के ग्रामीण अंचलों के विद्यालयों में, विद्यालय की छतों पर इकठ्ठा हुए वर्षा जल को, भूमिगत टैंकों में संचित करके लगभग 320 लाख लोगों को पेयजल उपलब्ध करा रहा है। कॉलेज इस तकनीक को मात्र विकल्प नही बल्कि टिकाऊ समाधान के रूप में देखता है। यह संरचना दो उद्देश्यों की पूर्ति करती है-
--- पेयजल स्रोत, विशेषत: शुष्क मौसम में (4-5 मास)
--- स्वच्छता सुविधाओं में सुधार के लिए वर्ष-भर जल का प्रावधान, जैसे- सार्वजनिक शौचालयों आदि के लिए.....
स्थानीय तकनीकों के द्वारा, विशेषत: ग्रामीण क्षेत्रों में, समाज के विभिन्न वर्गों के अनेक प्रकार से प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है, जैसे--
--- विद्यालयों में पानी उपलब्धता का प्रत्यक्ष प्रमाण विद्यालय में बालिकाओं की उपस्थिति में वृद्धि होना है । क्योंकि जल की कमीं और दूर से पानी ढोना, खासकर शुष्क मौसम में , बालिकाओं और स्त्रियों पर एक बोझ है जिसके कारण बालिकाओं की शिक्षा को नजरअंदाज किया जा रहा था।
--- अब बच्चे पानी लाने में समय बर्बाद करने के बजाय लिखने-पढ़ने पर अधिक ध्यान दे सकते हैं।
--- साफ पेयजल उपलब्ध होने से, प्रदूषित जल द्वारा फैलने वाले रोगों से होने वाली घटनाओं में भी कमीं आई है।
--- वर्षा जल संचयन संरचनाओं को प्राथमिक विद्यालयों व अन्य सामुदायिक स्थानों से जोड़ देने से क्षमता निर्माण पर प्रभाव पड़ा है, इसे पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रमों और संशोधित स्वच्छता और पोषण की शिक्षा से भी जोड़ा जा सकता है।
--- रुफटोप वर्षा जल संचयन के साथ अन्य लघु जल संचयन व्यवस्थाओं का उपयोग करके सब्जी आदि के बागीचों की सिंचाई के लिए भी जल प्राप्त किया जा सकता है।
--- दूर-दराज के ग्रामीण अंचलों में साफ-सुरक्षित पेयजल उपलब्ध होने से खाद्य-सुरक्षा, पोषण, स्वास्थ्य और स्वच्छता बढ़ती है।
भूजल पुनर्भरण द्वारा वर्षा जल संचयन
|
मुदायिक पाइपों द्वारा जलापूर्ति |
टैंकों का निर्माण |
गांव के तालाबों की खुदाई (नदियां) |
अप्रयुक्त खुदे हुए कुओं को छत से पाइपों द्वारा जोड़ना |
1. व्यवस्थाओं की कुल संख्या |
13 |
571 |
223 |
41 |
2. भण्डारण क्षमता (ली.में) |
- |
320 लाख |
5250 लाख |
150 लाख |
3. स्थान- ग्रामीण विद्यालय |
- |
- |
- |
- |
राज्य |
13 |
- |
- |
- |
4. स्थानीय लोगों के लिए रोजगार |
26 |
15,000 |
35000 |
50 |
5. सामुदायिक योगदान |
30 रू/प्रतिमाह/प्रति परिवार |
कुल खर्च का 10 फीसदी |
2 दिन मुफ्त मजदूरी/प्रतिमाह/प्रति मजदूर |
- |
6. प्रयोक्ता |
15,000 लोग |
50,000 |
1,25,000लोग/मवेशी |
4,500 लोग |
सामुदायिक स्तर पर कार्य करते हुए बेयरफूट कॉलेज ने यह भी अनुभव किया कि देशज संस्थाओं और ज्ञान का प्रयोग करके समस्याओं का हल ढूंढने के सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। जैसे -- रोजगार के अवसर, सहभागिता, शक्ति, स्थानीय संस्थाओं और समुदायों की क्षमता का निर्माण, विकेन्द्रीकृत सस्ता समाधान, पारदर्शिता और जवाबदेही आदि।
विद्यालय के लिए वर्षा जल संचयन योजना
पहली बार इस प्रकार के कार्य के लिए मंत्रालय द्वारा स्वीकृति दी गई। यह योजना 20 गांवों की 'कम्यूनिटि बेस्ट ऑग्रेनाइजेशन' द्वारा ली गई थी।
इस योजना का मुख्य लक्ष्य साफ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना था। यह योजना, हाशिये के लोगों विशेषत: बच्चों और महिलाओं के लिए थी, जिन्हें दैनिक आवश्यकताओं के लिए 10 किमी. से भी ज्यादा दूरी से पानी लाना पड़ता था। बच्चे तो पानी लाने के कारण विद्यालय भी नहीं जा पाते थे।
राजस्थान में प्रयोग किए जा रहे वर्षा जल संचयन के विभिन्न डिजाईन की यह तकनीक पहाड़ी क्षेत्रों में भी अपनाई जा सकती है।
पिछले 20-25 वर्षों में कालेज ने राजस्थान में 442 विद्यालयों/सामुदायिक केंद्र भवनों में 30,000 बच्चों के लिए और 13 अन्य राज्यों में 129 संरचनाएं स्थानीय बेयरफूट इन्जीनियरों द्वारा 392 गांवों में बनाई गई थी।
संरचना निर्माण के लिए सामग्री, मजदूरी, और एक शौचालय का खर्च 2 रू प्रति लीटर आया है। यह एक प्रबन्धन मुक्त तकनीकी और दीर्घकालीन टिकाऊ जलस्रोत है।
वर्षाजलसंचयन के निर्माण की प्रक्रिया
वर्षाजल के भंडारण के लिए भूमिगत टैंक क्यों बनाए गए हैं?
---- केवल चूने और स्थानीय सामग्री से बना भूमिगत टैंक ही अगले बरसाती मौसम तक वर्षा जल को ताजा रख सकता है।
---- यह एक प्राकृतिक जल भंडारण उपकरण है- जो गर्मियों में ठण्ड़ा और सर्दियों में गर्म पानी उपलब्ध कराता है।
---- भूमिगत टैंक अधिक टिकाऊ और प्रबन्धन युक्त है।
विद्यालयों का चयन
उन विद्यालयों/सामुदायिक केन्द्रों की सूची बनाना, जहां निम्न कारणों से पानी की समस्या है :-
--- न्यूनतम मौसमी वर्षा
--- भूजल में अत्याधिक लवणता
--- जल में विषैले खनिजों का पाया जाना
--- सतही जल स्रोतों- तालाब, नदी, टैंक आदि की कमी
--- सतही जल स्रोतों में बैक्टीरिया की उपस्थिति
जल स्रोतों को चिन्हित करना
--- योजना के शुरुआती दौर में ही जल संसाधनों को चिन्हित करना, इसमें वर्षा, विद्यमान जल स्रोतों की बुनियादी जानकारी शामिल है।
--- गांव में सभी प्रकार के विद्यमान जल स्रोतों (कुएं, हेण्डपंप, पाइपों द्वारा जलापूर्ति, तालाब, नदियां, नहरों, नालों आदि) और उनकी प्रबंधन पद्धति की सामान्य जानकारी हासिल करना।
--- सभी स्रोतों से मौसमी पेयजल उपलब्धता, जल की गुणवत्ता, समुदाय द्वारा जल की मांग की मात्रा आदि की जानकारी एकत्रित करना।
--- ग्रामीणों/अध्यापकों/विद्यार्थियों द्वारा सामुदायिक योगदान/मांग आदि का सर्वेक्षण किया जा सकता है।
सामान्य जानकारी
--- विद्यालय/समुदाय भवन की छत का उपलब्ध क्षेत्र (वर्ग मी. फीट में)
--- छत की बनावट (चपटी, सीमेंट-कंक्रीट छत या टिन की छत)
--- भवन/क्षेत्र के चारों ओर वनस्पतियों का प्रकार
--- वर्षा का औसतन वार्षिक डाटा
--- छत से जल निकासी व्यवस्था का प्रकार- जमीन तक पाइप द्वारा या मुक्त बहाव।
मिट्टी का प्रकार
--- मिट्टी की कठोरता या कोमलता भी निर्माण को प्रभावित करती है।
--- मूरम (सफेद चूना)
--- कठोर चट्टाने
--- कठोर चट्टानों का मौसमी निर्माण
टैंकों का स्थान
--- टैंक मुख्य भवन के समीप होना चाहिए ताकि विद्यार्थी सरलता से पानी प्राप्त कर सकें।
--- भवन से टैंक की दूरी क्षेत्र पर निर्भर करती है- कठोर सतह पर 3-5 फुट और कोमल सतह पर 10 फुट तक दूरी हो सकती है।
--- छोटी लम्बाई के पाइपों का प्रयोग होना चाहिए। बड़े डायामीटर (लगभग 4 इंच) वाले पाइप छत से टैंकों को जोड़ने के लिए प्रयोग किए जाने चाहिए।
--- कठोर सतह पर गहरा गङ्ढा न खोदें। टैक 1/3 भूमि के ऊपर और 2/3 नीचे बनाया जा सकता है।
निर्माण के लिए सामग्री-
--- स्थानीय निर्माण सामग्री (ईंट/पत्थर)
--- चूना/सीमेंट
--- वाटर प्रूफिंग पाउडर (जिप्सम)
--- रेत
--- छत के लिए सामग्री
--- वाहन
टैंक का आकार मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करता है। पारम्परिक डिजाईन चतुर्भुजाकार या बेलनाकार होते हैं। कठोर चट्टानों वाले क्षेत्र में चतुर्भुजाकार टैंक उचित हैं । एक गङ्ढा खोदो और स्थानीय पत्थरों से बनी छत से इसे ढक दो। छत पर बने इसे टैंक को सर्दियों में कक्षा लगाने या विद्यालय में स्टेज आदि के लिए प्रयोग किया जा सकता है। |
मरूस्थलीय क्षेत्रों के लिए बेलनाकार डिजाईन ही उपयुक्त है। थार मरुस्थल के स्थानीय मिस्त्रियों और आर्केटेक्ट स्थानीय उपलब्ध सामग्री से बेलनाकार टैंक और 100 मीटर तक गहरे कुंए बना सकते हैं। ऐसे बेलनाकार टैंक बनाना प्रशिक्षित इन्जीनियरों के लिए भी एक चुनौती है। |
साभार -: जर्मन एग्रो एक्शन- केस स्टडी
/articles/rauphataopa-varasaa-jala-sancayana