रॉयल डिलिशियस सेब में तुड़ाई-पूर्व थैलाबंदी का फलों के रंग, गुणवत्ता एवं गम्भीर गर्त कार्यात्मक विकास पर प्रभाव (Effect of pre-harvest fruit bagging on colour, quality and bitter pit disorder in ‘Royal Delicious’ apple)


सारांश:


‘रॉयल डिलिशियस’ सेब के फलों पर तुड़ाई-पूर्व थैलाबंदी के प्रभाव को जानने हेतु सन 2010-12 के दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन हेतु फलों को प्रत्येक वर्ष स्पन के कपड़े से बने थैलों से तुड़ाई के लगभग एक माह पहले (15 जुलाई) ढका गया एवं इन थैलों को प्रत्येक वर्ष तुड़ाई से 3 दिन पहले निकाला गया। तुड़ाई के तुुरन्त बाद फलों के रंग, दृढ़ता कैल्शियम की सांद्रता, लॉक्स एंजाइम की सक्रियता, कुल घुलनशील पदार्थ एवं एस्कार्बिक अम्ल की सांद्रता ज्ञात की एवं फलों को 2±10C तापमान व 90-95% सापेक्ष आर्द्रता पर 6 माह के लिये भण्डारित किया गया। भण्डारण अवधि के अंत में भी फलों में रंग, दृढ़ता, कैल्शियम की सांद्रता लॉक्स एंजाइम की सक्रियता, कुल घुलनशील पदार्थ एवं एस्कार्बनिक अम्ल की सांद्रता ज्ञात की। अध्ययन के परिणामों से ज्ञात हुआ है कि तुड़ाई के समय थैलाबंद सेबों में बिना-थैलाबंद सेबों की अपेक्षा रंग, दृढ़ता, कैल्शियम की सांद्रता कुल घुलनशील पदार्थ (13.6%) एवं एस्कर्बिक अम्ल की सांद्रता (13.0 मि. ग्राम/100 ग्राम गूदा) काफी अधिक थी, परन्तु भण्डारण के अंत में थैलाबंद एवं बिना-थैलाबंद सेबों में इन सभी गुणों में काफी कमी आई। इसके विपरीत थैलाबंद सेबों में लॉक्स एंजाइम की सक्रियता बिना-थैलाबंद की अपेक्षा कम थी, परन्तु भण्डारण के अंत में इस एंजाइम की सक्रियता थैलाबंद एवं बिना थैलाबंद सेबों में काफी बढ़ी हुई पाई गई। भण्डारण अवधि के दौरान थैलाबंद सेबों में गम्भीर गर्त का आपतन (2.2%) बिना-थैलाबंद सेबों की अपेक्षा काफी कम (16.6%) पाया गया। अतः ‘रॉयल डिलिशियस’ सेब में तुड़ाई-पूर्व थैलाबंदी फलों में आकर्षक रंग पैदा कर उनमें दृढ़ता, गुणवत्ता में आश्चर्यजनक सुधार एवं भण्डारण के दौरान गम्भीर गत विकार में कमी लाती है।

Abstract


Studies were conducted at Division of Post Harvest Technology of Indian Agricultural Research Institute, New Delhi to observe the effect of pre-harvest bagging on colour, quality and bitter pit disorder ‘Royal Delicious’ apple. Bagging was done about a month before harvesting with spun-bound fabric light-yellow coloured cloth and removed 3 day before harvesting. Bagged and non-bagged fruits were stored at 20C ±10C and 90%-95% RH. Observations were recorded on colour, fruit quality at harvest and during storage. The results have shown that bagged fruits have better colour development (Hunter “a”=52) than non-bagged apples at harvest (Hunter “a”=38), which declined slightly during storage. Similarly, at harvest, bagged fruits contained high amounts of Ca (5.38mg/100g) but exhibited lower activity of LOX than non-bagged apples. Similarly bagged apples had better SSC and ascorbic acid contents than non-bagged fruits, and there was a decline in all recorded parameters during storage. During storage bagged fruits exhibited lower incidence of bitter pit (2.2%) than non-bagged fruits. Thus, it can be concluded that pre-harvest fruit bagging in ‘Royal Delicious’ is very useful as it maintains higher fruit firmness, Ca contents and better quality and lower incidence of bitter pit during storage than non-bagged fruits.

प्रस्तावना


विश्वभर में सेब सबसे महत्त्वपूर्ण फल है। हमारे देश में भी सेब पाँचवा महत्त्वपूर्ण फल है, जिसे पहाड़ी राज्यों जैसे जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड एवं कुछ हद तक उत्तर-पूर्वी राज्यों में उगाया जाता है। पहाड़ों से फलों को भण्डारण या विपणन हेतु मैदानी क्षेत्रों में भेजा जाता है। उत्पादन के दौरान सेब में कई प्रकार के कीट एवं रोग लगते हैं जिन्हें नियंत्रित करने हेतु कई प्रकार के पीड़कनाशियों का प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त बाजार में उपभोक्ता सेब के लाल रंग के प्रति आकर्षित होते हैं एवं ऐसे सेबों के ऊँचे दाम भी मिलते हैं। परन्तु सेब उत्पादित निचले क्षेत्रों में अक्सर सेबों में आकर्षक लाल रंग नहीं आ पाता है। अतः बागवान सेब में तुड़ाई-पूर्व इथरिल नामक रसायन का छिड़काव करते हैं। इथरिल से फलों में आकर्षक रंग तो आ जाता है परन्तु इससे फलों की तुड़ाई-पूर्व झड़न व पत्तियों का झड़ना शुरू हो जाता है एवं निधानी जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त सेब की तुड़ाई उपरांत एवं भण्डारण के दौरान कई रोग व कार्यिकीय विकार ग्रसित करते हैं जिन्हें नियंत्रित करने हेतु कई रसायनों का प्रयोग किया जाता है। इन रसायनों के अवशेष मानव में कई रोगों जैसे कैंसर, हृदयघात एवं मधुमेह आदि के जनक माने जाते हैं। यही कारण है कि विश्वस्तर पर वैज्ञानिक ऐसी तकनीकें विकसित करने में लगे हैं जो मानव व पर्यावरण-मित्र हों। इन्हीं तकनीकों में एक फलों की तुड़ाई-पूर्व थैलाबंदी भी है। इस तकनीक में फल-विशेष या फलों के गुच्छे को विशेष प्रकार के थैले से कुछ समय के लिये ढक देते हैं। विश्वभर में किए शोध कार्यों से यह ज्ञात हुआ है कि फलों की थैलाबंदी फलों में आकर्षक रंग, कीट एवं रोगों से सुरक्षा, पक्षियों से सुरक्षा एवं फलों में गुणवत्ता हेतु काफी अच्छी तकनीक है। यह तकनीक कई देशों में सेब, आडू, अंगूर, लोकाट आदि के उत्पादन में व्यावसायिक स्तर पर अपनाई जा रही है। क्योंकि हमारे देश में अभी इस तकनीक का उपयोग नहीं हो सका है, अतः स्पन से बने थैलों से ‘रॉयल डिलिशियस’ सेब में इनके प्रभाव पर अध्ययन किया गया।

सामग्री एवं विधि


फल सामग्री एवं अध्ययन का स्थान: यह अध्ययन 2010-12 के दौरान कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में किया गया। दो वर्षों के अध्ययन के दौरान रॉयल डिलिशियस सेब के फलों को तुड़ाई से 30 दिन पहले कुल्लु (हिमाचल प्रदेश) में एक प्राइवेट बगीचे में स्पन से बने हल्के पीले थैलों से ढका गया। इन थैलों को तुड़ाई से तीन दिन पहले निकाला गया। थैलाबंदी 15 पेड़ों पर की गई। एक पेड़ पर लगभग 50 प्रतिशत फलों की थैलाबंदी की गई। एक पेड़ पर लगभग 50 प्रतिशत फलों की थैलाबंदी की गई एवं बाकी के 50 प्रतिशत खुले रखे गये। जहाँ तक सम्भव हो सका थैलाबंदी, पेड़ की सभी दिशाओं में बराबर संख्या में की गई। थैलाबंदी से पहले एवं बाद में सेब में सभी सामयिक क्रियाएं एक समान की गई।

परीक्षण एवं विधियाँ: तुड़ाई के बाद फलों के रंग दृढ़ता, कैल्शियम की सांद्रता, लिपॉक्सीजीनेस एंजाइम की सक्रियता एवं फलों की गुणवत्ता (कुल घुलनशील ठोस व एस्कार्बिक अम्ल आदि) कारकों पर थैलाबंद व बिना थैलाबंद सेबों का परीक्षण किया गया। इन परीक्षणों के बाद सेबों को 20C तापमान व 90±5% सापेक्ष आर्द्रता पर छः महीनों तक भण्डारित किया गया। 6 महीने बाद फलों को भण्डार कक्ष से निकालकर उपरोक्त मापकों पर उनका परीक्षण किया गया।

फलों का रंग ज्ञात करना: किन्हीं 20 थैलाबंद व बिना थैले के फलों में रंग ज्ञात करने हेतु हंटर कलर सेब का प्रयोग किया गया। लाल रंग को हंटर “a” के मान के रूप में प्रदर्शित किया गया।

फलों में दृढ़ता ज्ञात करना: किन्हीं 20 थैलाबंद व बिना थैलाबंद सेबों की दृढ़ता ज्ञात करने हेतु दृढतारित्र (टी.ए.+डी. स्टेवल माइक्रो सिस्टम्स, यू.के.) का प्रयोग किया गया एवं फलों की दृढ़ता को न्यूटन (N) के रूप में देखा गया।

फलों में कैल्शियम की सांद्रता ज्ञात करना: किन्हीं 20 थैलाबंद व बिना- थैलाबंद सेबों में कैल्शियम की सांद्रता ज्ञात करने हेतु शर्मा एवं साथी द्वारा बताई गई विधि प्रयुक्त की गई। फलों से 3-4 मि.मी. लम्बे टुकड़े निकालकर (लगभग 100 ग्राम) उन्हें उखली व मूसली में पीसा गया। तदोपरांत उन्हें अवन में लगभग 50-60 ग्राम तक सुखाया गया। इस हिस्से में से 50 मिग्रा. को 0.1 मोलर नाइट्रिक अम्ल में घोलकर बाद में प्रत्येक नमूने में कैल्शियम की सांद्रता, आण्विक अवशोषण स्पेक्ट्रोफोटोमीटर से ज्ञात कर मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम शुष्क भार दर्शाया गया।

लिपॉक्सीजीनेज एंजाइम की सक्रियता ज्ञात करना


एंजाइम का अर्क तैयार करना: अर्क तैयार करने हेतु शर्मा व पाल द्वारा सेब हेतु सुझाई गई विधि प्रयुक्त की गई 10.1 मिली, लिनोलिनिक अम्ल (मर्क इंडिया लिमिटेड, नई दिल्ली) को 1 मिली. सोडियम हाइड्रॉक्साइड (0.1 मोलर) तथा 150 माइक्रोलीटर ट्राईटोन-एक्स-100 में घोला गया। इस घोल को अल्ट्रा टुरॉक्स (पेंसिया इन्द्रमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, भारत) में 2 मिनट तक इमल्सीकृत करने के बाद इसमें 50 मिली. पानी डालकर तनुकृत किया गया। ब्लैंक घोल भी इसी प्रकार तैयार किया गया, परन्तु उसमें लिनोलिनिक अम्ल नहीं मिलाया गया। अर्क व ब्लैंक को प्रयोग करने तक 40C तापमान पर अंधेरे में भण्डारित किया गया।

एंजाइम का कच्चा अर्क तैयार करना: एंजाइम का कच्चा अर्क 40C तापमान पर झालेगर एवं साथी द्वारा सुझाई गई विधि से तैयार किया गया। फलों से 1 ग्राम नमूना लेकर उसे ठण्डी मूसल में 10 मिली. इथिलीन डाईमीन टेट्रा एसिटिक अम्ल (EDTA) (0.2 मोलर) में पिसाई की। इस मिश्रण को 15,000 आर.पी.एम. पर 40C तापमान में 20 मिनट के लिये अपकेन्द्रण किया तथा इस घोल की ऊपरी सतह को लिपॉक्सीजीनेज एंजाइम की सक्रियता ज्ञात करने हेतु प्रयुक्त किया गया।

लिपॉक्सीजीनेज एंजाइम की सक्रियता का निर्धारण: लिपॉक्सीजीनेज एंजाइम की सक्रियता जानने के लिये शर्मा एवं साथी द्वारा सुझाई गई विधि का प्रयोग किया गया। 50 माइक्रो लीटर कच्चे एंजाइम के अर्क को छोटी टयूब में डालकर 2.5 मिली. अर्क में मिलाकर स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (पर्किंग-एलमर यू.वी. विस लेमडा-25, सेंजोस, कैलिफोर्निया, अमरीका) में 234 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्य पर 30 सेकेण्ड के अंतराल पर 3 मिनट पर दर्ज की गई। लिपॉक्सीजीनेज सक्रियता को माइक्रोमोल प्रति मिनट ताजे भार के रूप में दर्शाया गया।

फलों की गुणवत्ता ज्ञात करना: सेब के फलों के कुल घुलनशील ठोस की मात्रा ज्ञात करने हेतु साधारण रिफ्रैक्टोमीटर का पयोग कर, ब्रिक्स में प्रदर्शित किया गया। एस्कार्बिक अम्ल को ज्ञात करने हेतु रंगन्ना की विधि प्रयोग कर मिग्रा. एस्कार्बिक अम्ल/100 ग्राम गूदे के रूप में प्रदर्शित किया गया। कुल घुलनशील ठोस एवं एस्कार्बिक अम्ल की सांद्रता को ज्ञात करने हेतु बेतरतीब ढंग से चुने किन्हीं 20 थैलाबंद व बिना-थैलाबंद सेबों का प्रयोग किया गया।

भण्डारण के दौरान गम्भीर गर्त विकार का आपतन


भण्डारण के दौरान थैलाबंद व बिना -थैलाबंद सेबों में गम्भीर गर्त विकार का आपतन ज्ञात करने हेतु विकार प्रभावित एवं स्वस्थ फलों को गिनकर प्रतिशत में व्यक्त किया गया।

सांख्यिकीय डिजाइन एवं आंकड़ो का विश्लेषण


सम्पूर्ण अध्ययन के लिये खण्डित क्रमगुणित यादृच्छिक खण्ड डिजाइन (Factorial Completely Randomized Design) को उपयोग में लाया गया। क्योंकि 2 वर्षों के आंकड़ों में कोई भिन्नता नहीं थी अतः आंकड़ों को जमाकर अमरीका के एस ए एस सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर विश्लेषण किया गया। परिणामों को एनोवा से एल.एस.डी. (LSD) निकालकर आंकड़ों के महत्व के 5% स्तर पर तुलना की गई।

परिणाम एवं विवेचना


थैलाबंदी का फलों के रंग पर प्रभाव: इस अध्ययन से पता चलता है कि ‘‘रॉयल डिलिशियस’’ सेब के फलों के रंग पर थैलाबंदी का अनुकूल प्रभाव पड़ा। सेबों की हल्के पीले थैलों से थैलाबंदी से फलों पर बिना- थैलाबंद सेबों की अपेक्षा (हंटर a=38) काफी आकर्षक (हंटर a=52) रंग आया (चित्र 1) उपभोक्ताओं को सेबों का लाल रंग आकर्षित करता है, जिस कारण फलों का मार्केट में अच्छा भाव मिलता है। विदेशों में किए गए पिछले कुछ अध्ययनों में भी यह पाया गया कि सेब में थैलाबंदी एंथोसाइनिन वर्णक की सांद्रता में बढ़ोत्तरी करती है जो फलों में आकर्षक लाल रंग हेतु उत्तरदायी होते हैं। हालाँकि थैलाबंदी से ढ़के रहने के कारण सेब में आकर्षक रंग नहीं आता परंतु थैले हटाने के बाद फल सूर्य की रोशनी के प्रति अति-ग्रहणशील हो जाते हैं जो उनमें और भी अधिक रंग पैदा करने में सहायता करता है। भण्डारण के दौरान फलों के लाल रंग में कुछ कमी आई परंतु थैलाबंद सेबों में यह सांद्रता बिना- थैलाबंद सेबों के मुकाबले काफी अधिक थी।

Fig-1थैलाबंदी का फलों की दृढ़ता, कैल्शियम की सांद्रता एवं लिपॉक्सीजीनेज एंजाइम की सक्रियता पर प्रभाव: हमने इस अध्ययन में यह पाया है कि तुड़ाई के समय थैलाबंद सेबों की दृढ़ता (38.6 N) बिना- थैलाबंद सेबों (32.0 N) से काफी अधिक थी, परतु फलों की दृढ़ता में भण्डारण के दौरान काफी कमी पाई गई (चित्र 2ए)। थैलाबंद सेबों में कैल्शियम की सांद्रता (5.38 मिग्रा./100 ग्राम) बिना- थैलाबंद सेबों (4.58 मिग्रा./100 ग्राम) के मुकाबले काफी अधिक थी जिसमें भण्डारण के दौरान काफी कमी पाई गई (चित्र 2 बी) इसके विपरीत थैलाबंद सेबों में लिपॉक्सीजीनेज एंजाइम की सक्रियता (1.38 मा.मो./मिन्ट/ग्राम ताजा भार) बिना- थैलाबंद सेबों से काफी कम थी (1.82 मा.मो./मिन्ट/ग्राम ताजा भार) (चित्र 2सी)। कई शोध कार्यों से पता चलता है कि थैलाबंद सेबों या अन्य फलों की दृढ़ता बिना-थैलाबंद फलों की अपेक्षा अधिक होती है एवं उनकी जीर्णता कम होती है, अतः ऐसे फलों की लिपॉक्सीजीनेस एंजाइम की सक्रियता कम होती है। भण्डारण के दौरान दृढ़ता में कमी, कैल्शियम की सांद्रता में कमी व लिपॉक्सीजीनेज एंजाइम की सक्रियता में बढ़ोतरी के कारण होती है।

थैलाबंदी का फलों की गुणवत्ता पर प्रभाव: हमने इस शोध में यह पाया है कि थैलाबंदी का सेब के फलों की गुणवत्ता पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। थैलाबंद सेबों में कुल घुलनशील पदार्थों (13.6%) एवं एस्कार्बिक अम्ल (13.0 मिग्रा/100 ग्राम गूदा) की मात्रा बिना-थैलाबंद सेबों की अपेक्षा काफी अधिक थी, परतु भण्डारण के दौरान गुणवत्ता के इन अवयवों में कमी दर्ज की गई (रेखाचित्र 3ए, बी)। बेंटले व विवरोस ने भी अपने शोध में यह पाया था कि ‘ग्रेनी स्मिथ’ सेब के फलों की भूरे पेपर के थैलों से थैलाबंदी, उनकी गुणवत्ता में सुधार लाती है। अन्य कुछ शोधों से पता चलता है कि थैलाबंदी से अंगूर, आडू, नाश्पाती एवं लीची के फलों की गुणवत्ता में आश्चर्यजनक सुधार आता है।

Fig-2,3थैलाबंदी का भण्डारण के दौरान फलों में गम्भीर गर्त विकार के आपतन पर प्रभाव: हमने इस शोध में यह पाया है कि थैलाबंदी का सेब के फलों में भण्डारण के दौरान होने वाले गम्भीर गर्त कार्यिकीय विकार के आपतन कम करती है। भण्डारण के दौरान थैलाबंद सेबों में गम्भीर गर्त का आपतन 2.2% एवं बिना-थैलाबंद सेबों में 16.6% पाया गया (रेखाचित्र 3सी)। थैलाबंद सेबों में गम्भीर गर्त के कम आपतन का संबंध फलों में तुड़ाई एवं भण्डारण के दौरान कैल्शियम की अधिक सांद्रता से हो सकता है क्योंकि गम्भीर गर्त सेब का कैल्शियम-जनित विकार है।

निष्कर्ष


इस अध्ययन से पता चलता है कि ‘रॉयल डिलिशयस’ सेब के फलों की स्पन कपड़े के थैलों से तुड़ाई-पूर्व थैलाबंदी फलों में आकर्षक रंग पैदाकर उनमें दृढ़ता, गुणवत्ता में आश्चर्यजनक सुधार एवं भण्डारण के दौरान गम्भीर गर्त विकार में कमी लाती है।

संदर्भ


Sandarv-1Sandarv-2

सम्पर्क


राम रोशन शर्मा, विद्या राम सागर एवं कुलदीप कुमार, Ram Roshan Sharma, Vidhya Ram Sagar & Kuldeep Kumar
कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 110012, Division of Post Harvest Technology, Indian Agricultural Research Institute, New Delhi 110012


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