रोजगार गारंटी में सामाजिक अंकेक्षणों की निगरानी

रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर राज्यों की खिंचाई भी हो रही है। मध्यप्रदेश में भी योजना के तहत हुए व्यापक भ्रष्टाचार पर केंद्रीय मंत्रियों ने टिप्पणी की है। ऐसी स्थिति में सरकारों का एवं ग्रामीण विकास विभाग का यह दायित्व बढ़ जाता है कि योजना के तहत सामाजिक अंकेक्षण को बेहतर तरीके से किया जाए।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में ग्राम स्तर पर छह-छह माह में सामाजिक अंकेक्षण की कानूनी अनिवार्यता है। सामाजिक अंकेक्षण इस योजना का सबसे मजबूत पक्ष है, पर दुखद बात यह है कि इस सबसे मजबूत पक्ष को ही क्रियान्वयन के स्तर पर सबसे ज्यादा उपेक्षित किया जा रहा है। अधिकांश ग्राम पंचायतें सामाजिक अंकेक्षण की औपचारिकता कर रिपोर्ट पेश कर देती हैं। नियमानुसार प्रक्रिया अपनाकर सामाजिक अंकेक्षण करने से पंचायतें कतराती हैं। सामान्य तौर पर पंचायतराज अधिनियम के तहत होने वाली अनिवार्य ग्रामसभाओं के साथ सामाजिक अंकेक्षण की औपचारिकता पूरी कर ली जाती है। साल में होने वाली चार अनिवार्य ग्रामसभाओं में एक का आयोजन 15 अगस्त को किया जाता है। यही वजह है कि यदि पिछले सालों का रिकॉर्ड उठाकर देखा जाए, तो रोजगार गारंटी में सामाजिक अंकेक्षण सबसे ज्यादा अगस्त महीने में दिखता है।

ऐसा नहीं है कि अनिवार्यतः होने वाली ग्रामसभा में रोजगार गारंटी का सामाजिक अंकेक्षण नहीं किया जा सकता, पर उसमें ग्रामसभा के अन्य बहुत सारे एजेंडे होते हैं, जिससे उसी दिन सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया पूरा करना संभव नहीं हो सकता। इसके बावजूद भी पंचायतों में अन्य एजेंडे के साथ-साथ या अन्य एजेंडे को दरकिनार कर सिर्फ सामाजिक अंकेक्षण किया जा रहा है, तो उस पर सरकारी एवं गैर सरकारी निगरानी जरूरी है, ताकि सामाजिक अंकेक्षण सिर्फ औपचारिकता नहीं रह जाए। जिन पंचायतों में एक से ज्यादा गांव हैं, वहां एक-दो दिन आगे तक ग्रामसभा का आयोजन किया जाएगा। इस दरम्यान अधिकांश ग्रामसभाओं का मूल एजेंडा सामाजिक अंकेक्षण ही होगा। सवाल यह है कि क्या इस बार भी सामाजिक अंकेक्षण एक औपचारिकता भर रह जाएगा, या फिर इसमें सुधार देखने को मिलेगा?

एक-एक गांवों में लाखों रुपए का खर्च रोजगार गारंटी के तहत किया जा रहा है, जिसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। योजना से भ्रष्टाचार को मिटाने एवं प्रभावी बनाने के लिए सामाजिक अंकेक्षण का व्यापक महत्व है। रोजगार गारंटी के तहत काम करने वाले अधिकांश मजदूर कमजोर आर्थिक एवं सामाजिक वर्ग से आते हैं, जिसकी वजह से मजदूरी की मांग करने से लेकर भुगतान पाने तक वे सवाल-जवाब करने से डरते हैं। इस योजना के कारण गांव की सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों में व्यापक बदलाव आया है। गांवों में पैसों का प्रवाह बढ़ा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने पर गांव में आपसी संबंध खराब होने के डर से लोग शिकायत नहीं करना चाहते हैं। रोजगार गारंटी योजना में सिर्फ आर्थिक समस्याएं ही नहीं है, बल्कि इसके तहत कार्य स्थल पर दी जाने वाली सुविधाएं, गांव के सबसे कमजोर एवं अक्षम वर्ग को रोजगार से जोड़ने की पहल, बेरोजगारी भत्ता, मुआवजा, हितग्राहियों का चयन, सही रिकॉर्ड रखना, जॉब कार्ड का सही तरीके से भरा जाना, नियमों का पालन आदि पर भी सवाल उठते हैं। प्रभावी सामाजिक अंकेक्षण से ही गरीब ग्रामीण रोजगार कार्डधारियों के रोजगार का हक सुरक्षित किया जा सकता है और बेहतर पारिवारिक और ग्रामीण विकास के लिए गांव में निर्मित अधोसंरचनाओं का लाभ मिल सकेगा।

पंचायतों द्वारा किए गए सामाजिक अंकेक्षण की रिपोर्ट्स को देखा जाए, तो ऐसा लगता है कि जो फॉर्मेट उन्हें दिया गया है, उसे भरकर विभाग में सौंप दिया जाता है। सामाजिक अंकेक्षण के दरम्यान होने वाली बहस एवं आपत्तियों को लिखित में दर्ज करने की इच्छा पंचायतें नहीं रखती हैं एवं उनकी पुरजोर कोशिश यही होती है कि सामाजिक अंकेक्षण की सिर्फ औपचारिकता पूरी कर दी जाए। कई बार यह स्थिति सामाजिक अंकेक्षण की सही प्रक्रिया नहीं जानने के कारण भी हो सकती है। एक बेहतर सामाजिक अंकेक्षण सार्वजनिक पैसे के प्रति जवाबदेही एवं पारदर्शिता की संस्कृति की नींव स्थापित कर सकता है।

रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर राज्यों की खिंचाई भी हो रही है। मध्यप्रदेश में भी योजना के तहत हुए व्यापक भ्रष्टाचार पर केंद्रीय मंत्रियों ने टिप्पणी की है। ऐसी स्थिति में सरकारों का एवं ग्रामीण विकास विभाग का यह दायित्व बढ़ जाता है कि योजना के तहत सामाजिक अंकेक्षण को बेहतर तरीके से किया जाए। इस कार्य में स्थानीय स्तर पर काम कर रही स्वैच्छिक संस्थाओं का सहयोग लिया जा सकता है एवं उन्हें सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया मे शामिल करने का निर्देश जारी किया जा सकता है। शासन स्तर पर यह प्रयास होना चाहिए कि अनिवार्य ग्रामसभाओं में सामाजिक अंकेक्षण की औपचारिकता पूरा नहीं किया जाए, बल्कि इसके लिए पूरा दिन सुरक्षित रखा जाए। सामाजिक अंकेक्षण के लिए अलग से ग्रामसभा आयोजित करने के लिए पंचायतों को प्रेरित करना चाहिए या फिर अनिवार्य ग्रामसभा के अगले दिन सामाजिक अंकेक्षण के लिए ग्रामसभा आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। फिर भी यदि अनिवार्यतः होनेवाली ग्रामसभा में एजेंडे के रूप में सामाजिक अंकेक्षण शामिल हैं एवं ग्रामसभा में सामाजिक अंकेक्षण हो रहा है, तो भी यह कोशिश एवं व्यवस्था की जानी चाहिए कि ग्रामसभा उसे बेहतर तरीके से कर सकें। इसके लिए सामाजिक अंकेक्षण पर तत्काल सरकारी एवं गैर सरकारी निगरानी तंत्र विकसित कर देना चाहिए, ताकि सामाजिक अंकेक्षण अपने उद्देश्यों में सफल हो सके।

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