रोहिनि जो बरसै नहीं, बरसै जेठ नित मूर।
एक बूँद स्वाती पड़ै, लागै तीनों तूर।।
शब्दार्थ- तूर-अन्न। जेठ-ज्येष्ठा। मूर-मूल।
भावार्थ- यदि रोहिणी नक्षत्र में वर्षा न हो, पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र में पानी बरस जाय तथा यदि स्वाति नक्षत्र में एक बूँद भी पानी पड़ जाये तो तीनों फसलें अच्छी हो जाती हैं।
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