रक्षक ही भक्षक

वर्तमान में करीब 22 टाइगर का होना बताया जा रहा है। वन्यजीवों पर हो रहे अपराध पर वन विभाग का नियंत्रण नहीं है। वन्यजीवों की हत्या के अधिकांश मामले अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान के ईद-गिर्द बसे गांवों में हुए हैं। वन विभाग ऐसे में मामलों में अपराधियों को पकड़ने में सफल तो होता है लेकिन सजा दिलाने में नाकाम साबित होता है। कई मामले तो अब भी अनसुलझे हैं, जिसमें 'बड़े लोगों' के नाम शामिल हैं।

छत्तीसगढ़ में टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन बाघों की संख्या निरंतर घट रही है। प्रजनन आदि को बढ़ावा देकर इनकी संख्या बढ़ाने की तो बात दूर, जो जीवित हैं उन्हें भी मानवीय मुठभेड़ और शिकारियों की बुरी नजर से बचाने में वन प्रशासन अक्षम नजर आ रहा है। यही कारण है कि बीते चार साल में यहां के जंगलों में बाघों की संख्या 30 से घटकर करीब 22 रह गई है। एक साल के भीतर दो बाघिन और एक बाघ मारे जा चुके हैं। अभी बीते दिनों भी एक बाघिन को वन विभाग के अधिकारियों ने ही मार कर रक्षक ही भक्षक वाली उक्ति चरितार्थ की है। यह घटना मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के गृह जिला कवर्धा में हुई है। जिले के भोरमदेव अभ्यारण्य के जामुनपानी क्षेत्र में केरपानी का जंगल है। यहां एक बाघिन को जहर देकर मारा दिया गया। मामले में वन विभाग के चार कर्मचारी ही लिप्त पाए गए हैं। इनके पास से शेरनी के दो दांत, 19 नाखून, मूंछ के बाल जब्त किए जा सके हैं।

इस घटना से पहले राजनांदगांव जिले के छुरिया ब्लॉक स्थित बखरूटोला में एक बाघिन की ग्रामीणों से मुठभेड़ हो गई और उन्होंने उसे पीट-पीटकर मार डाला। मामले की जांच राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने की और उसमें भी वन विभाग की ही लापरवाही उजागर हुई। कवर्धा के जंगल में दिसंबर, 2010 में भी एक शेर को जहर देकर मारा गया था। इसके जिम्मेदार भी पकड़े गए थे। इन मामलों में वन विभाग और ग्रामीणों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसके साथ ही वन्यजीव अंगों के तस्कर करंट से अन्य वन्यजीव भी मारते हैं और जमकर तस्करी को अंजाम देते हैं। भले ही बाघों की रक्षा के लिए राज्य को केंद्र सरकार से मिलने वाली राशि हर साल बढ़ती जा रही हो लेकिन आलम तो यह है कि बाघों की संख्या साल-दर-साल घटती जा रही है।

केंद्र से मिलने वाली राशि का यदि आकलन करें तो पता चलता है कि वन विभाग हर साल एक बाघ पर करीब आठ लाख रुपए खर्च कर रहा है फिर भी आखिर उनकी संख्या कम क्यों हो रही है! राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली एवं भारतीय वन्य प्राणी संस्थान, देहरादून द्वारा वन्य प्राणियों के आकलन से पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2008 में 3,609 वर्ग किलोमीटर बाघ रहवास क्षेत्र था। इसमें अचानकमार क्षेत्र में 18 से 22, उदंती सीतानदी क्षेत्र में 6 से 8 तथा अन्य क्षेत्रों में इक्का-दुक्का टाइगर थे जबकि इंद्रावती टाइगर रिजर्व क्षेत्र में गणना नहीं हुई थी। वहीं 2010 में 23 से 24 टाइगर होने का आंकड़ा पेश किया गया था। वर्तमान में करीब 22 टाइगर का होना बताया जा रहा है। वन्यजीवों पर हो रहे अपराध पर वन विभाग का नियंत्रण नहीं है। वन्यजीवों की हत्या के अधिकांश मामले अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान के ईद-गिर्द बसे गांवों में हुए हैं। वन विभाग ऐसे में मामलों में अपराधियों को पकड़ने में सफल तो होता है लेकिन सजा दिलाने में नाकाम साबित होता है। कई मामले तो अब भी अनसुलझे हैं, जिसमें 'बड़े लोगों' के नाम शामिल हैं।

कवर्धा में मारी गई बाघिन का शवदाहकवर्धा में मारी गई बाघिन का शवदाहराज्य के वन मंत्री विक्रम उसेंडी प्रदेश में हो रही वन्यजीवों की तस्करी की बात स्वीकार की है और तस्करी रोकने के प्रति अपनी प्राथमिकता स्पष्ट की है। इसके लिए उन्होंने कहा है कि सूचना तंत्र को और मजबूत किया जाएगा। ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियान चलाया जाना भी उन्हें जरूरी लगता है और यकीनन वह है। उन्होंने कहा है कि ऐसी योजना पर काम चल रहा है। दरअसल, राज्य में वन्यजीवों की हत्या के बाद उनके अंग उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश सहित कई अन्य सीमावर्ती इलाकों में खपाया जा रहा है। कांकेर में सबसे ज्यादा वन्यजीवों की खाल पकड़ में आती रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत करोड़ों में आंकी गई है। इस मामले में इंद्रावती टाइगर प्रोजेक्ट के फील्ड डायरेक्टर अरुण पांडे ने पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखकर उनसे आग्रह किया है कि वन्यजीवों की खाल की कीमत के संबंध में जानकारी को ग्लैमराइज न करें, क्योंकि इसी कीमत के लालच में कई तस्कर इस अपराध से जुड़ते हैं। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) रामप्रकाश का कहना है कि वन्यजीवों की हत्या रोकने के लिए वन विभाग प्रयास करता है लेकिन कई कारणों से इसे पूरी तरह से रोक पाना मुश्किल है। फिलहाल विभागीय अधिकारियों को विशेष खोजबीन के निर्देश दिए गए हैं।

वन्यजीवों के आश्रयस्थल


प्रदेश की भूमि का 44 फीसदी हिस्सा जंगल है। इसमें तीन टाईगर रिजर्व - इंद्रावती, अचानकमार, उदंती-सीतानदी, आठ अभ्यारण्य - बादलखोल, गोमर्डा, बारनवापारा, तमोरपिंगला, सेमरसोत, भैरमगढ़, पामेड़, भोरमदेव, दो राष्ट्रीय उद्यान - कांगेर घाटी और गुरु घासीदास हैं। ये कुल 9,614.464 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जो राज्य के कुल वनक्षेत्र का 16.08 फीसदी है।

प्रोजेक्ट टाइगर के लिए (स्वीकृत राशि (लाखों में)


वर्ष

आबंट

खर्च

2008-09

253.64

209.28

2009-10

1556.38

1569.58

2010-11

1782.14

1749.12



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