रियल एस्टेट क्षेत्रक विनियमन (Real estate sector regulation)


केन्द्र सरकार ने सबके लिये आवास मिशन, जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना भी कहा जाता है, के तहत 305 शहरों व नगरों को चिन्हित किया है। इसके अन्तर्गत वर्ष 2022 तक शहरी गरीबों के लिये 2 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य है। कम लागत/वहनीय आवास के लिये मानदण्ड 30/60 वर्गमीटर के बिल्टअप क्षेत्र से बदलकर 30/60 वर्गमीटर कारपेट क्षेत्र हो गया है और इस तरह निम्न लागत-वहनीय आवास सेगमेंट निर्माताओं (बिल्डर्स) के लिये अधिक लाभप्रद और खरीदारों के लिये अधिक आकर्षक है। रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता लाने और उपभोक्ता हितों की रक्षा में मदद के लिये रियल एस्टेट सेक्टर को विनियमित करने की आकांक्षा के साथ 10 मार्च, 2016 को विधेयक पारित किया गया। इस अधिनियम को रियल एस्टेट (विनियम व विकास) अधिनियम 2016 कहा गया। यह जम्मू व कश्मीर को छोड़कर पूरे देश पर लागू है। भारत में यह 1 मई, 2017 से प्रभावी है। इस अधिनियम का उद्देश्य विनियामक व निर्णायक प्राधिकरण का गठन कर रियल एस्टेट सेक्टर को विनियमित व प्रमोट करना और इस तरह पारदर्शिता तथा क्रेता के हित को सुनिश्चित करना है।

रियल एस्टेट अधिनियम के आने से पूर्व, रियल एस्टेट के खरीदारों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की परिभाषा के तहत रखा जाता था या उसके पास दीवानी न्यायालय में अपना आवेदन ले जाने का विकल्प था। सभी को एक नजर से देखना हमेशा ही प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध होता है और इस तरह क्रेता या सम्भाव्य क्रेता को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अर्थ के तहत उपभोक्ता के रूप में व्यवहृत करने पर उनकी समस्याओं के त्वरित व उपयुक्त समाधान में व उन्हें न्याय दिलाने में सिर्फ कठिनाई ही आएगी।

अधिनियम की जरूरत तथा भारत में रियल एस्टेट : एक अवलोकन


रियल एस्टेट क्षेत्रक में चार उप क्षेत्र शामिल हैं: आवास, रिटेल (खुदरा), आतिथ्य तथा वाणिज्य। इस सेक्टर की संवृद्धि कॉर्पोरेट वातावरण की संवृद्धि तथा कार्यालय स्थान के साथ-साथ शहरी व अर्द्धशहरी आवास की माँग पर निर्भर है।

प्रधानमंत्री का सपना है कि 2022 तक सबका अपना आवास हो। आर्थिक स्थितियों में सुधार से रियल एस्टेट हेतु माँग बढ़ सकती है क्योंकि आवास भारतीय परिवारों के बीच पसंदीदा निवेश है। भारत में समग्र शहरी आवास की माँग 2019 तक लगभग डेढ़ करोड़ इकाइयों तक बढ़ने की सम्भावना है। कुशमैन वेकफील्ड रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष 8 शहर इस समग्र माँग में 34 लाख इकाइयों का योगदान देंगे। शीर्ष 8 शहरों में दिल्ली-एनसीआर 872,000 इकाइयों के अपने हिस्से का योगदान देगा। यह एनसीटी, गुड़गाँव, नोएडा, गाजियाबाद व फरीदाबाद तक फैला होगा। शीर्ष 8 शहरों में से, मध्य आय-समूह (एमआईजी) माँग का प्राथमिक नियंत्रक होगा और 2019 तक 41 प्रतिशत या 14 लाख इकाइयों के लिये जिम्मेदार होगा। एमआईजी प्रवर्ग के लक्ष्य के निकट एलआईजी प्रवर्ग इसी अवधि के दौरान इन आठ शहरों में 13 लाख इकाइयों का योगदान करेगा।

रियल एस्टेट सरकार के लिये रोजगार सृजन, पूँजी आगमन तथा राजस्व सृजन हेतु अपनी व्यापक सम्भावनाओं की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है। यह भारत की जीडीपी में लगभग 9.5 प्रतिशत का योगदान करते हुए तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के अनुसार 2013-2022 के दौरान मानव संसाधन अपेक्षाओं में अधिकतम उठान दर्ज करते हुए रियल एस्टेट सेक्टर भारत में प्रमुख रोजगार सर्जक बनने को तैयार है।

तकरीबन 265 अनुषंगी उद्योगों के फॉरवर्ड-बैकवर्ड लिंकेज के साथ, भारतीय रियल एस्टेट सेक्टर हाल के समय में तेजी से कदम बढ़ा रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था में सर्वश्रेष्ठ योगदान करने वाले एक क्षेत्र के रूप में उभरा है। इस सेक्टर ने विश्व भर की विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मध्य बिखरे हुए और असंगठित स्वरूप से उठकर संरचित तथा संगठित होते हुए अपना रूपान्तरण जारी रखा है। वैश्विक परिदृश्य में भारत के बढ़ते वर्चस्व का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है जिससे इस क्षेत्र से अपेक्षाएँ व इसका दायित्व बढ़ा है।

केन्द्र सरकार ने सबके लिये आवास मिशन, जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना भी कहा जाता है, के तहत 305 शहरों व नगरों को चिन्हित किया है। इसके अन्तर्गत वर्ष 2022 तक शहरी गरीबों के लिये 2 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य है। कम लागत/वहनीय आवास के लिये मानदण्ड 30/60 वर्ग मीटर के बिल्टअप क्षेत्र से बदलकर 30/60 वर्गमीटर कारपेट क्षेत्र हो गया है और इस तरह निम्न लागत-वहनीय आवास सेगमेंट निर्माताओं (बिल्डर्स) के लिये अधिक लाभप्रद और खरीदारों के लिये अधिक आकर्षक है। बिल्ट-अप क्षेत्र से कारपेट एरिया में बदलाव के साथ खरीदारों को अधिक विस्तृत जगह मिलेगी और निर्माता (बिल्डर) खरीदारों के बड़े हिस्से को सम्पत्ति को बेच सकने में समर्थ होगा। सिर्फ 4 महानगरों की नगरपालिकाओं के मामले में 30 वर्गमीटर की सीमा लागू होगी, महानगरों के आस-पास वाले क्षेत्रों समेत देश के बाकी सभी हिस्सों में 60 वर्गमीटर की सीमा लागू होगी।

चिन्हित किये गए शहरों व नगरों में से 74 मध्य प्रदेश में, 42 ओडिशा में, 40 राजस्थान में, 36 छत्तीसगढ़ में, 30 गुजरात में, 34 तेलंगाना में, 19 जम्मू व कश्मीर में और 15-15 केरल तथा झारखण्ड में हैं। संस्थापन प्रलेख (एमओए) पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य राज्य हैं: आन्ध्र प्रदेश, बिहार, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, उत्तराखण्ड। इस मिशन में वर्तमान में 2.9 करोड़ कार्यबल लगा हुआ है, जिसमें 2030 तक 3.8 करोड़ कार्यबल की आवश्यकता होगी और इस तरह इसमें प्रमुख रोजगार सर्जक क्षेत्र होने की सम्भावना है।

इस पृष्ठभूमि में, आवास क्रेताओं को विवेकहीन डेवलपर्स से बचाने के लिये भारत सरकार द्वारा रियल एस्टेट (विनियम व विकास) अधिनियम, 2016 नामक महत्त्वपूर्ण कानून 1 मई 2017 को लाया गया। हमें अपने देश के बेहद महत्त्वपूर्ण रियल एस्टेट सेक्टर के भरोसे को कायम रखने के लिये आरईआरए की आवश्यकता थी। रियल एस्टेट सेक्टर हमारे देश में प्रमुख राजस्व सर्जकों में से एक है और इसे किसी विनियामक प्राधिकरण या कुछ पारदर्शी सरकारी प्राधिकरणों की आवश्यकता थी ताकि डेवलपर्स पर नजर रखी जा सके। आरईआरए खरीदारों व डेवलपर्स दोनों के लिये एक साझा मंच प्रदान करेगा और उन जोखिमों को कम करेगा जिनका सामना अब तक लोग करते आ रहे थे। यह अनुमान है कि आरईआरए कुछ आवास खरीदारों के लिये नई उम्मीद लाएगा। इस सेक्टर को पारदर्शी बनाएगा और भारतीय रियल एस्टेट मार्केट में निवेश करने के लिये निवेशकों के आत्मविश्वास को बढ़ाएगा। यहाँ इस अधिनियम की कुछ प्रमुख विशेषताएँ दी जा रही हैं।

आरईआरए : प्रमुख विशेषताएँ


1. यह अधिनियम वाणिज्यिक व आवासीय रियल एस्टेट दोनों प्रोजेक्ट्स को विनियमित करता है।
2. अधिनियम रियल एस्टेट लेन-देनों के अवलोकन हेतु राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों में रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण का गठन करेगा।
3. अधिनियम के अनुसार रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स तथा रियल एस्टेट एजेंट्स का प्राधिकरण के साथ पंजीकरण अनिवार्य है।
4. यह रियल एस्टेट एजेंट्स, संविदाकारों, आर्किटेक्ट, संरचनागत इंजीनियरों आदि के साथ-साथ प्रमोटर, प्रोजेक्ट, लेआउट योजना, भूमि स्थिति, अनुमोदन, करार समेत सभी पंजीकृत परियोजनाओं के ब्योरों के प्रकटीकरण को अनिवार्य करता है।
5. विनियामक से रजिस्ट्रेशन के बगैर और स्थानीय प्राधिकरणों से सभी अनुमोदन प्राप्त किये बिना किसी प्री-लांच की अनुमति नहीं है। सभी अधूरी परियोजनाएँ विनियमन के अधीन हैं।
6. अधिनियम 500 वर्गमीटर से अधिक वाले या आठ अपार्टमेंट (राज्य अपनी अपेक्षाओं को कम कर सकता है) वाले सभी परियोजनाओं को कवर करता है।
7. प्राधिकरण भ्रामक विज्ञापनों की स्थिति में उपभोक्ताओं को मुआवजा दे सकता है।
8. डेवलपर्स को विगत पाँच वर्षों में शुरू की गई परियोजनाओं, खत्म और निर्माणाधीन दोनों ही के संक्षिप्त ब्यौरे और परियोजनाओं की वर्तमान स्थिति प्रदान करनी होगी। इन ब्यौरों को विनियामक की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाये ताकि क्रेता सचेत निर्णय ले सके।
9. अधिनियम के अनुसार कारपेट क्षेत्र का प्रकटीकरण अनिवार्य है।
10. रियल एस्टेट अधिनियम ने परियोजना के समय पर पूरा होने के लिये परियोजना के निर्माण लागत को पूरा करने हेतु बिल्डर्स के लिये खरीदारों से जुटाई गई राशि के 70 प्रतिशत हिस्से को 15 दिनों के भीतर किसी अनुसूचित बैंक के साथ एक एस्क्रो खाते में जमा करने को अनिवार्य किया है।
11. निर्णय लेने वाले अधिकारियों व अपील प्राधिकरणों के जारी विवादों के निपटान हेतु फास्ट ट्रैक विवाद निपटान प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है।
12. अधिनियम दीवानी न्यायालयों को वहाँ परिभाषित मसलों को उठाने से प्रतिबन्धित करती है। हालांकि उपभोक्ता न्यायालयों को रियल एस्टेट मसलों पर सुनवाई की अनुमति है। देशभर में 644 उपभोक्ता न्यायालय हैं। शिकायत निपटान हेतु और अधिक रास्ते बनाने से खरीदारों के लिये मुकदमा लागत कम होगी।
13. प्रमोटर्स को परियोजना के दो तिहाई खरीदारों की सहमति के बिना योजना व रूपरेखा में बदलाव की अनुमति नहीं है।
14. यदि प्रमोटर अपनी सम्पत्ति को पंजीकृत नहीं करता है, तो उसे दंडस्वरूप परियोजना के 10 प्रतिशत का भुगतान करना होगा। यदि वह आरईआरए (रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण) द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन करता है तो उसे तीन वर्ष तक का कारावास हो सकता है तथा या उसे परियोजना के अनुमानित लागत के 10 प्रतिशत के अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना होगा। यदि बिल्डर अधिनियम के किसी अन्य प्रावधान का उल्लंघन करता है, तो उसे परियोजना के अनुमानित लागत के 5 प्रतिशत तक के अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना होगा। एजेंट के लिये प्रावधानों के उल्लंघन की अवधि के दौरान रु. 10,000/- प्रतिदिन का दण्ड है। अपील प्राधिकरणों के आदेशों का उल्लंघन करने की स्थिति में इसमें रियल एस्टेट एजेंट्स व खरीदारों के लिये एक वर्ष के कारावास की सजा भी शामिल है।
15. उपभोक्ता न्यायालय को सम्पर्क करने की अनुमति खरीदारों के लिये बड़ी राहत है क्योंकि देश भर में कुल 644 उपभोक्ता न्यायालय हैं। यह खरीदारों के लिये निम्न लागत पर शिकायत निपटान की सुविधा देगा।
16. अधिनियम की एक अन्य प्रमुख विशेषता चूक या देरी की स्थिति में प्रमोटर व खरीदारों के लिये समान ब्याज दर प्रभावित करने का प्रस्ताव है। पहले यह प्रावधान बिल्डर्स के पक्ष में था।
17. अधिनियम ने प्रमुख इकाई/सम्पत्तियों के आवंटन के तीन माह के भीतर आवंटित संघ का गठन अनिवार्य किया है ताकि निवासी पुस्तकालय तथा कॉमन हॉल जैसी सामान्य जरूरतों को पूरा कर सके। साथ ही, यदि खरीदार सम्पत्ति में कोई संरचनागत कमी पाता है तो वह अधिग्रहण के एक वर्ष के भीतर विक्रय पश्चात सर्विस हेतु डेवलपर से सम्पर्क कर सकता है।

अधिनियम के कार्यान्वयन से सम्पत्ति के खरीदार परियोजना से सम्बन्धित ब्यौरों की जाँच ऑनलाइन कर सकेंगे। वे निर्माण की प्रगति की जाँच भी कर सकेंगे और समय पर इसके पूरा न होने की स्थिति में शिकायत भी दर्ज कर सकेंगे। चूँकि यह अधिनियम रियल एस्टेट विनियामकों की स्थापना राज्य स्तर पर करता है अतः विनियामक के साथ पंजीकृत आवासीय व वाणिज्यिक परियोजनाओं को ही बेचा जा सकता है। हालांकि डेवलपर्स समुदाय का कहना है कि परियोजनाओं को तभी समय पर पूरा किया जा सकता है यदि नागरिक विभागों समेत पूरी व्यवस्था, जो कि अनुमोदन देता है और परियोजना के लिये आधारभूत संरचना तैयार करता है को समान रूप से जिम्मेदार बनाया जाये।

निष्कर्षतः अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि यह अधिनियम इस सेक्टर की आवश्यकता के अनुरूप पारदर्शिता लाएगा। इससे परियोजना में फंड का प्रवाह बढ़ाने में मदद मिलेगी। अब तक नियमों को अधिसूचित करने वाले 23 राज्यों में उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखण्ड, असम, झारखण्ड, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक, एनसीटी दिल्ली, अंडमान व निकोबार, चंडीगढ़, दादर नागर हवेली, दमन दीव, लक्षद्वीप, पुदुचेरी व हरियाणा शामिल हैं।

आरईआरए विधानमण्डल द्वारा भारत की अविनियमित किन्तु महत्त्वपूर्ण रियल एस्टेट सेक्टर, (जो न सिर्फ भारतीय जीडीपी में योग देता है बल्कि अरबों लोगों को रोजगार देता है), को विनियमित करने का एक प्रयास है। आरईआरए रियल एस्टेट कम्पनियों में और अधिक पारदर्शिता व जवाबदेही लाने में मदद करेगा और किसी भी धोखाधड़ी तथा मिथ्या निरूपण से खरीदारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा।

इसके अलावा, 2022 तक सबके लिये आवास नामक सरकारी मिशन में निवेश हेतु निजी क्षेत्र से बड़ी राशि की आवश्यकता है। रियल एस्टेट सेक्टर परियोजनाओं के लिये फंड जुटाने में प्रयासरत है क्योंकि कम्पनियाँ बड़े ऋण की समस्या से जूझ रही हैं। यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। यह उपभोक्ताओं के साथ-साथ ईमानदारी से व्यवसाय करने वाले डेवलपर्स के हित में होगा। अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया जैसे विश्व बाजारों को देखने पर पता चलता है कि उन्हें आवास में बड़े पैमाने पर एफडीआई प्राप्त होता है क्योंकि वहाँ इस क्षेत्र में पारदर्शिता है। रियल एस्टेट उद्योग ने भी इस अधिनियम का स्वागत किया है। हालांकि उन्हें लगता है कि परियोजनाओं को मंजूर करने वाले सरकारी प्राधिकारियों को इस कानून में शामिल नहीं करने की वजह से अनुमोदन प्रक्रिया में देरी हो सकती है। अन्ततः रियल एस्टेट सेक्टर उच्च पारदर्शिता व लोगों की आकांक्षाओं में बेहतर उपभोक्ता संवेदनाओं से प्रेरित अर्थव्यवस्था में नवीकृत विश्वास तथा निम्न आवास ऋण दरों वाले एक नई परम्परा की शुरुआत का गवाह बनेगा।

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